Kashyapa

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(Redirected from Kaśyapa)
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Genealogy of Suryavansha

Kashyapa (कश्यप) was an ancient sage (rishis) in Suryavansha, who was one of the Saptarshis in the present Manvantara; with others being Atri, Vashishtha, Vishvamitra, Gautama, Jamadagni, Bharadvaja .

Mention by Panini

Kashyapa (काश्यप) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]

Jat Gotras from Kashyapa

Vamana avatar, Rishi Kashyapa's the son with Aditi, in the court of King Bali.

In Epics

He was the father of the Devas, Asuras, Nagas and all of humanity. He is married to Aditi, with whom he is the father of Agni, the Adityas, and most importantly Lord Vishnu took his fifth avtar as Vamana, as the son of Aditi, in the seventh Manvantara. With his second wife, Diti, he begot the Daityas. Diti and Aditi were daughters of King Daksha Prajapati and sisters to Sati, Shiva's consort. Kashyapa received the earth, obtained by Parashurama's conquest of King Kartavirya Arjuna and henceforth, earth came to be known as "Kashyapi".

He was also the author of the treatise Kashyap Samhita, or Braddha Jivakiya Tantra, which is considered, a classical reference book on Ayurveda especially in the fields of Ayuvedic Pediatrics, Gynecology & Obstetrics [4] [5].

In Mahavansa

Mahavansa/Chapter 1 writes that ...Now since a great sacrifice by Kassapa of Uruvela was near at hand, and since he saw that this latter would fain have him away, he, the victorious over enemies, went to seek alms among the Northern Kurus ; and when he had eaten his meal at evening time near the lake Anotatta, the Conqueror, in the ninth month of his buddhahood, at the full moon of Phussa, himself set forth for the isle of Lañkä, to win Lanka for the faith. For Lanka was known to the Conqueror as a place where his doctrine should (thereafter) shine in glory; and (he knew that) from Lañkä, filled with the Yakkhas, the Yakkhas must (first) be driven forth.


Manda, Visala, Kassapa - Mahavansa/Chapter 15 tells ...Third in our age of the world was the Conqueror of the Kassapa clan, the all-knowing Teacher, compassionate toward the whole world. `The Mahamegha-grove was called (at that time) Mahasagara; the capital, named Visãla, lay toward the West. Jayanta was the name of the king of that region then, and this isle bore then the name of Mandadipa. At that time a hideous and life-destroying war had broken out between king Jayanta and his younger royal brother. When Kassapa, gifted with the ten powers, the Sage, full of compassion, knew how great was the wretchedness caused to beings by this war, then, to bring it to an end and afterwards to achieve the converting of beings and progress of the doctrine in this island, he, urged on by the might of his compassion, came through the air surrounded by twenty thousand (disciples) like to himself, and he stood on the Subhakuta-mountain.

Birth and Lineage of Kashyapa

He is the son of Marichi, one of the ten mentally generated sons (Maanasa-putras) of the Creator Brahma. The Prajapati Daksha gave his thirteen daughters (Aditi, Diti, Kadru, Danu, Arishta, Surasa, Surabhi, Vinata, Tamra, Krodhavasa, Ida, Khasa and Muni [6] in marriage to Kashyapa.


In the family line of Kashyapa, along with him there are two more discoverers of Mantras, namely, his sons Avatsara and Asita. Two sons of Avatsara, namely, Nidhruva and Rebha, are also Mantra-seers. Asita had a son named Shandila, from whom the famous Shandilya family line (Gotra) started.

In the Manvantara period named 'Svarochisha', Kashyapa was one of the seven Sages for that manvantara. The Indian valley of Kashmir in the himalayas is named after him. Legend states that the valley of Kashmir was a vast high altitude lake which was drained by Kashyap rishi, out of which the beautiful valley of Kashmir emerged, hence the name Kashyapmira which corrupted overtime to become Kashmir.

काश्यप लोग

ठाकुर देशराज[9] ने लिखा है.... काश्यप - शिवि लोगों के वर्णन में मिस्टर क्रूक साहब के हवाले से यह बात हम बता चुके हैं कि जाटों में एक बड़ा समूह काश्यप लोगों का भी है। सूर्यवंश की प्रसिद्धि इन्हीं काश्यप से बताई जाती है। काशी के काश्य भी काश्यप हैं जो कि जाटों के अंदर काफी काशीवात कहलाते हैं। मगध के लिच्छवि शाक्य और ज्ञातृ भी काश्यप ही थे। इनके अलावा सैकड़ों काश्यिप गोत्री खानदान जाटों में मौजूद हैं। पुराणों में तो कैस्पियन सागर को कश्यप ऋषि का आश्रम बताया है। कुछ लोग श्रीनगर से 3 मील दूर हरी पर्वत पर कश्यप ऋषि का आश्रम मानते हैं।

कश्यप/ काश्यप का इतिहास

दलीप सिंह अहलावत[10] लिखते हैं : ब्रह्मा के पुत्र मरीचि से कश्यप का जन्म हुआ था। कश्यप ऋषि से ही सूर्यवंश की प्रसिद्धि बताई जाती है। असल में सूर्यवंश का प्रचलन तो कश्यपपुत्र विवस्वत् से हुआ था। इनके नाम पर कश्यप या काश्यप जाटवंश प्रचलित हुआ। पुराणों ने तो कैस्पियन सागर को कश्यप ऋषि का आश्रम बताया है। कुछ इतिहासकारों ने श्रीनगर से तीन मील दूर हरिपर्वत पर कश्यप ऋषि का आश्रम लिखा है।

“ट्राईब्स एण्ड कास्ट्स ऑफ दी नार्थ वेस्टर्न प्राविन्सेज एण्ड अवध”नामक पुस्तक में मिस्टर डब्ल्यू कुर्क साहब लिखते हैं कि दक्षिण पूर्वी प्रान्तों के जाट अपने को दो भागों में विभक्त करते हैं - शिवि गोत्री या शिवि के वंशज और कश्यप गोत्री

मगध के लिच्छवी, शाक्य और ज्ञातृ भी काश्यप ही थे। इनके अतिरिक्त सैंकड़ों काश्यप गोत्री खानदान जाटों में विद्यमान हैं। काशी के काश्य भी काश्यप हैं जो कि जाटों के अन्दर काशीवत कहलाते हैं। [11]

महर्षि कश्यप की वंशावली

कश्मीर/काश्मीर (AS, p.152) का प्राचीन नाम कश्यपमेरु या कश्यपमीर (कश्यप का झील) था। किंवदंती है कि महर्षि कश्यप श्रीनगर से तीन मील दूर हरि-पर्वत पर रहते थे। जहाँ आजकल कश्मीर की घाटी है, वहाँ अति प्राचीन प्रागैतिहासिक काल में एक बहुत बड़ी झील थी जिसके पानी को निकाल कर महर्षि कश्यप ने इस स्थान को मनुष्यों के बसने योग्य बनाया था।

श्रीनरसिंह पुराण के अनुसार मरीचि ऋषि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र थे। उन्हीं मरीचि ऋषि तथा उनकी पत्नी सम्भूति ने एक बालक को जन्म दिया, जिसको कश्यप नाम दिया गया। कश्यप नामक यही बालक बड़ा होकर ना सिर्फ महर्षि कश्यप बना बल्कि उसकी पहचान सदैव के लिए सप्तऋषियों में भी होने लगी। महर्षि कश्यप इसीलिए युगों-युगों से जाने जाते हैं क्योंकि उन्होंने अपने श्रेष्ठ गुणों, तप बल एवं प्रताप के बल पर देवों के समान ही इस सृष्टि के रहस्यों को समझ लिया था। महर्षि कश्यप द्वारा इस सृष्टि के लिए दिए गए अपने महायोगदानों से संबंधित सनातन साहित्य के वेद, पुराण, स्मृतियां, उपनिषद और ऐसे अन्य अनेकों धार्मिक साहित्य भरे पड़े हैं, जिससे यह सिद्ध हो जाता है कि उन्हें ‘सृष्टि का सृजक’ क्यों माना जाता है।

महर्षि कश्यप एक अत्यंत तेजवान ऋषि थे, इसीलिए ऋषि-मुनियों में वे सर्वश्रेष्ठ माने जाते थे। सुर हो या असुर दोनों ही के लिए वे मूल पुरूष माने जाते थे। इसी कारण देवताओं ने उन्हें ‘महर्षि’ जैसी श्रेष्ठतम उपाधि दी थी।

देश-विदेश के अनेकों इतिहासकारों, पुरातत्ववेत्ताओं, पौराणिक तथा वैदिक साहित्यिक एवं ऐतिहासिक दस्तावेजों से यह सिद्ध होता है कि कस्पियन सागर एवं भारत के शीर्ष प्रदेश कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप के नाम पर ही हुआ था। और उस समय महर्षि कश्यप ने ही सर्वप्रथम कश्मीर को बसाया और उस पर शासन किया था।

दक्ष प्रजापति ने अपनी 13 पुत्रियों की शादी कश्यप से की। उन्हीं पत्नियों से देवों और मानस पुत्रों का जन्म हुआ, और उसी के बाद से इस सृष्टि का सृजन आरंभ हुआ। उसी के परिणामस्वरूप महर्षि कश्यप ‘सृष्टि के सृजक’ या सृजनकर्ता’ कहलाए। महर्षि कश्यप की इन सभी पत्नियों ने अपने-अपने गुण, स्वभाव, आचरण के अनुसार संतानों को जन्म दिया, जिसके बाद से ही इस सृष्टि का आरंभ हुआ। जैसे कि उनमें से अदिति नामक पत्नी के गर्भ से 12 आदित्य पैदा हुए थे। उनसे सूर्यवंश प्रारंभ हुआ।

कश्यप की पत्नी दिति से हिरण्यकश्यप और हिरण्‍याक्ष पुत्र प्राप्त हुये और उनके वंशज दैत्य कहलाए।

कश्यप की पत्नी विनत से पुत्र गरुड़ और अरुण प्राप्त हुये।

कश्यप की कद्रू नामक पत्नी नागवंशी थी और उनके गर्भ से नागवशं की उत्पत्ति हुई। कद्रू के पुत्रों की संख्या 8 बताई जाती है। उन 8 नागों के नाम थे अनंत नाग यानी शेष नाग, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। आगे चलकर इन्हीं 8 नागों से नागवंश की स्थापना हुई थी।

महाभारत में कद्रू से उत्पन्न नागों के 5 प्रमुख कुल बताये हैं जिनमें शेष अथवा अनंत, वासुकि, तक्षक, कूर्म, और कुलि हैं। (शेषॊ ऽनन्तॊ वासुकिश च तक्षकश च भुजंगमः, कूर्मश च कुलिकश चैव काद्रवेया महाबलाः (महाभारत:I.59.40)

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.328, 334, 342
  2. Dr Mahendra Singh Arya, Dharmpal Singh Dudee, Kishan Singh Faujdar & Vijendra Singh Narwar: Ādhunik Jat Itihasa (The modern history of Jats), Agra 1998, p.227
  3. Dr Mahendra Singh Arya etc,: Ādhunik Jat Itihas, Agra 1998, p.226
  4. Q7 indianmedicine.nic.in. Q 7. The main classical texts for reference of Ayurvedic principles comprise of Charak Samhita, Susrut Samhita, Astang Hridaya, Sharangdhar Samhita, Madhav Nidan, Kashyap Samhita, Bhavprakash and Bhaisajya Ratnavali etc.
  5. Kashyap Samhita, Prof. (Km.) P. V. Tewari
  6. 6.0 6.1 6.2 Vishnu Purana: Book I, Chapter XV Vishnu Purana, translated by Horace Hayman Wilson, 1840. p. 112. The daughters of Daksha who were married to Kaśyapa were Aditi, Diti, Danu, Arisht́á, Surasá, Surabhi, Vinatá, Támrá, Krodhavaśá, Id́á, Khasá, Kadru, and Muni 19; whose progeny I will describe to you...Vishńu, Śakra, Áryaman, Dhútí, Twáshtri, Púshan, Vivaswat, Savitri, Mitra, Varuńa, Anśa, and Bhaga
  7. Lineage of Kashyapa Valmiki Ramayana - Ayodhya Kanda in Prose Sarga 110.
  8. Birth of Garuda The Mahabharata translated by Kisari Mohan Ganguli (1883 -1896], Book 1: Adi Parva: Astika Parva: Section XXXI. p. 110.
  9. Jat Itihas (Utpatti Aur Gaurav Khand)/Pancham Parichhed,p.99
  10. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ-225
  11. (जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड, पृ० 100, लेखक ठा० देशराज)

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