Norway
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Norway (नॉर्वे) is a sovereign and unitary monarchy whose territory comprises the western portion of the Scandinavian Peninsula, Jan Mayen, and the Arctic archipelago of Svalbard. The Antarctic Peter I Island and the sub-Antarctic Bouvet Island are dependent territories and thus not considered part of the Kingdom. Norway also lays claim to a section of Antarctica known as Queen Maud Land. Until 1814, the Kingdom included the Faroe Islands (since 1035), Greenland (1261), and Iceland (1262).
Location
Norway is bordered by Finland and Russia to the north-east, and the Skagerrak Strait to the south, with Denmark on the other side. Norway has an extensive coastline, facing the North Atlantic Ocean and the Barents Sea.
Origin of name
Norway country's name means "the northward route" (the "way north" or the "north way"), which in Old Norse would have been nor veg or *norð vegr. The Old Norse name for Norway was Nóregr, the Anglo-Saxon Norþ weg and mediaeval Latin Northvegia.
Around 890 AD, Ohthere of Hålogaland distinguished "Norwegians" ("nordmenn", the people of Norvegr) from Sami people and Danes. While he identified the Sami people by their nomadic way of life, Danes he identified geographically or politically. According to Ohthere, "Danes" dominated Skagerrak and Kattegat, the bodies of water separating present day Denmark from the Scandinavian peninsula. "Norwegians" on the other hand lived on the North Sea and Atlantic coasts, and were connected to the islands of the North Atlantic. Ohthere's Norway covered a much smaller area than present day Norway.[1]
History
Between 3000 and 2500 BC new settlers (Corded Ware culture) arrived in eastern Norway. They were Indo-European farmers who grew grain and kept cows and sheep. The hunting-fishing population of the west coast was also gradually replaced by farmers, though hunting and fishing remained useful secondary means of livelihood.
From about 1500 BC bronze was gradually introduced, but the use of stone implements continued; Norway had few riches to barter for bronze goods, and the few finds consist mostly of elaborate weapons and brooches that only chieftains could afford. Huge burial cairns built close to the sea as far north as Harstad and also inland in the south are characteristic of this period. The motifs of the rock carvings differ from those typical of the Stone Age. Representations of the Sun, animals, trees, weapons, ships, and people are all strongly stylised.
Iron Age: Little has been found dating from the early Iron Age (the last 500 years BC). The dead were cremated, and their graves contain few burial goods. During the first four centuries AD the people of Norway were in contact with Roman-occupied Gaul. About 70 Roman bronze cauldrons, often used as burial urns, have been found. Contact with the civilised countries farther south brought a knowledge of runes; the oldest known Norwegian runic inscription dates from the 3rd century. At this time the amount of settled area in the country increased, a development that can be traced by coordinated studies of topography, archaeology, and place-names. The oldest root names, such as nes, vik, and bø ("cape," "bay," and "farm"), are of great antiquity, dating perhaps from the Bronze Age, whereas the earliest of the groups of compound names with the suffixes vin ("meadow") or heim ("settlement"), as in Bjorgvin (Bergen) or Saeheim (Seim), usually date from the 1st century AD.
Migration Age: The destruction of the Western Roman Empire by the Germanic tribes (5th century) is characterised by rich finds, including chieftains' graves containing magnificent weapons and gold objects. Hill forts were built on precipitous rocks for defence. Excavation has revealed stone foundations of farmhouses 18 to 27 metres long—one even 46 metres long—the roofs of which were supported on wooden posts. These houses were family homesteads where several generations lived together, with people and cattle under one roof.[citation needed] From this period and later (600–800), nascent communities can be traced. Defense works require co-operation and leadership, so petty states of some kind with a defence and administrative organisation must have existed.
These states were based on either clans or tribes (e.g., the Horder of Hordaland in western Norway). By the 9th century each of these small states had things, or tings (local or regional assemblies), for negotiating and settling disputes. The thing meeting places, each eventually with a horg (open-air sanctuary) or a hov (temple; literally "hill"), were usually situated on the oldest and best farms, which belonged to the chieftains and wealthiest farmers. The regional things united to form even larger units: assemblies of deputy yeomen from several regions. In this way, the lagting (assemblies for negotiations and lawmaking) developed. The Gulating had its meeting place by Sognefjord and may have been the centre of an aristocratic confederation[citation needed] along the western fjords and islands called the Gulatingslag. The Frostating was the assembly for the leaders in the Trondheimsfjord area; the earls Jarls of Lade, near Trondheim, seem to have enlarged the Frostatingslag by adding the coastland from Romsdalsfjord to the Lofoten Islands. A lagting developed in the area of Lake Mjøsa[citation needed] in the east and eventually established its meeting place at Eidsvoll, becoming known as the Eidsivating. The area around Oslofjord, although at times closely tied to Denmark, developed a lagting—with its meeting place at Sarpsborg called the Borgarting.
Jats in Norvay
- Anju Chaudhari (Saharan) - She got elected as Member of Vest-Agder County Council in Norway. Currently she is Member of Transport, Area and Environment Committee in Vest-Agder County.
जाटों का शासन
दलीप सिंह अहलावत[2] ने लिखा है.... ययाति जम्बूद्वीप के सम्राट् थे। जम्बूद्वीप आज का एशिया समझो। यह मंगोलिया से सीरिया तक और साइबेरिया से भारतवर्ष शामिल करके था। इसके बीच के सब देश शामिल करके जम्बूद्वीप कहलाता था। कानपुर से तीन मील पर जाजपुर स्थान के किले का ध्वंसावशेष आज भी ‘ययाति के कोट’ नाम पर प्रसिद्ध है। राजस्थान में सांभर झील के पास एक ‘देवयानी’ नामक कुंवा है जिसमें शर्मिष्ठा ने वैरवश देवयानी को धकेल दिया था, जिसको ययाति ने बाहर निकाल लिया था[3]। इस प्रकार ययाति राज्य के चिह्न आज भी विद्यमान हैं।
महाराजा ययाति का पुत्र पुरु अपने पिता का सेवक व आज्ञाकारी था, इसी कारण ययाति ने पुरु को राज्य भार दिया। परन्तु शेष पुत्रों को भी राज्य से वंचित न रखा। वह बंटवारा इस प्रकार था -
1. यदु को दक्षिण का भाग (जिसमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरयाणा, राजस्थान, दिल्ली तथा इन प्रान्तों से लगा उत्तर प्रदेश, गुजरात एवं कच्छ हैं)।
2. तुर्वसु को पश्चिम का भाग (जिसमें आज पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब,यमन, इथियोपिया, केन्या, सूडान, मिश्र, लिबिया, अल्जीरिया, तुर्की, यूनान हैं)।
3. द्रुहयु को दक्षिण पूर्व का भाग दिया।
4. अनु को उत्तर का भाग (इसमें उत्तरदिग्वाची[4] सभी देश हैं) दिया। आज के हिमालय पर्वत से लेकर उत्तर में चीन, मंगोलिया, रूस, साइबेरिया, उत्तरी ध्रुव आदि सभी इस में हैं।
5. पुरु को सम्राट् पद पर अभिषेक कर, बड़े भाइयों को उसके अधीन रखकर ययाति वन में चला गया[5]। यदु से यादव क्षत्रिय उत्पन्न हुए। तुर्वसु की सन्तान यवन कहलाई। द्रुहयु के पुत्र भोज नाम से प्रसिद्ध हुए। अनु से म्लेच्छ जातियां उत्पन्न हुईं। पुरु से पौरव वंश चला[6]।
जब हम जाटों की प्राचीन निवास भूमि का वर्णन पढते हैं तो कुभा (काबुल) और कृमि (कुर्रम) नदी उसकी पच्छिमी सीमायें, तिब्बत की पर्वतमाला पूर्वी सीमा, जगजार्टिस और अक्सस नदी
जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-185
उत्तरी सीमा और नर्मदा नदी दक्षिणी सीमा बनाती है। वास्तव में यह देश उन आर्यों का है जो चन्द्रवंशी अथवा यदु, द्रुहयु, तुर्वसु, कुरु और पुरु कहलाते थे। भगवान् श्रीकृष्ण के सिद्धान्तों को इनमें से प्रायः सभी ने अपना लिया था। अतः समय अनुसार वे सब जाट कहलाने लग गये। इन सभी खानदानों की पुराणों ने स्पष्ट और अस्पष्ट निन्दा ही की है। या तो इन्होंने आरम्भ से ही ब्राह्मणों के बड़प्पन को स्वीकार नहीं किया था या बौद्ध-काल में ये प्रायः सभी बौद्ध हो गये थे। वाह्लीक,तक्षक, कुशान, शिव, मल्ल, क्षुद्रक (शुद्रक), नव आदि सभी खानदान जिनका महाभारत और बौद्धकाल में नाम आता है वे इन्हीं यदु, द्रुहयु, कुरु और पुरुओं के उत्तराधिकारी (शाखायें) हैं[7]।
सम्राट् ययातिपुत्र यदु और यादवों के वंशज जाटों का इस भूमि पर लगभग एक अरब चौरानवें करोड़ वर्ष से शासन है। यदु के वंशज कुछ समय तो यदु के नाम से प्रसिद्ध रहे थे, किन्तु भाषा में ‘य’ को ‘ज’ बोले जाने के कारण जदु-जद्दू-जट्टू-जाट कहलाये। कुछ लोगों ने अपने को ‘यायात’ (ययातेः पुत्राः यायाताः) कहना आरम्भ किया जो ‘जाजात’ दो समानाक्षरों का पास ही में सन्निवेश हो तो एक नष्ट हो जाता है। अतः जात और फिर जाट हुआ। तीसरी शताब्दी में इन यायातों का जापान पर अधिकार था (विश्वकोश नागरी प्र० खं० पृ० 467)। ये ययाति के वंशधर भारत में आदि क्षत्रिय हैं जो आज जाट कहे जाते हैं। भारतीय व्याकरण के अभाव में शुद्धाशुद्ध पर विचार न था। अतः यदोः को यदो ही उच्चारण सुनकर संस्कृत में स्त्रीलिंग के कारण उसे यहुदी कहना आरम्भ किया, जो फिर बदलकर लोकमानस में यहूदी हो गया। यहूदी जन्म से होता है, कर्म से नहीं। यह सिद्धान्त भी भारतीय धारा का है। ईसा स्वयं यहूदी था। वर्त्तमान ईसाई मत यहूदी धर्म का नवीन संस्करण मात्र है। बाइबिल अध्ययन से यह स्पष्ट है कि वह भारतीय संसकारों का अधूरा अनुवाद मात्र है।
अब यह सिद्ध हो गया कि जर्मनी, इंग्लैंण्ड, स्काटलैण्ड, नार्वे, स्वीडन, रूस, चेकोस्लोवाकिया आदि अर्थात् पूरा यूरोप और एशिया के मनुष्य ययाति के पौत्रों का परिवार है। जम्बूद्वीप, जो आज एशिया कहा जाता है, इसके शासक जाट थे[8]।
50 दिन सूरज नहीं निकलता, फिर भी जिंदगियों में उजाला
लेखक: अभिषेक रंजन रिसर्च फेलो, आर्कटिक यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्वे
करीब 4 साल पहले जब मैं नॉर्वे के इस ट्रोमसो (Tromsø) शहर में आया था, तो लग रहा था कि जिंदगी कितनी मुश्किल होगी यहां। 50-50 दिन सूरज नहीं निकलता। पारा -25 डिग्री तक चला जाता है। बर्फ पर फिसलने से चोट लगना आम बात है।
अंधेरे में एक्सीडेंट बहुत होते हैं। चीजें बहुत महंगी हैं। ऐसी जगह कैसे रह पाऊंगा? मगर ये सिक्के का एक पहलू है। कई बार निगेटिविटी में पॉजिटिविटी भी होती है। सिर्फ नजरिया बदलने की जरूरत है, नजारा खुद बदल जाता है।
नॉर्वे में LED लाइट्स से पूरी की जाती है सूरज की कमी: यह रिपोर्ट पढ़ने के बाद गारंटी है कि आपको भी ये तो जरूर लगने लगेगा कि काश, मैं भी यहां जा पाता या फिर यहीं बस भी जाता। जैसा कि अब मुझे महसूस होता है।करीब 70 हजार की आबादी वाले इस शहर का दूसरा पहलू ये है कि यह चारों तरफ ऊंचे पर्वत से घिरा है। बीच में समंदर है। आसमान में ऑरोरा (कुदरती रंगीन लाइट्स) और दोनों किनारों पर बसी आबादी का नजारा देखते ही बनता है।
जिन 50 दिनों में यहां सूरज नहीं निकलता, उससे पहले लोग विटामिन डी, विटामिन सी और ओमेगा बी 12 के सप्लीमेंट्स जुटा लेते हैं, ताकि शरीर में जरूरी चीजों की कमी न हो। सभी लोग रोज घर में कुछ वक्त LED लाइट्स को देखते हैं, ताकि शरीर में सूरज की रोशनी की कमी पूरी कर सकें। पेड़-पौधों के सामने भी यही लाइट्स लगाते हैं, ताकि वे जिंदा रह सकें। बर्फ पर न फिसलें, उसके लिए स्पाइक्स लगाते हैं।
लोग जिंदादिली से जीते हैं: नॉर्वे में जब लोग बाहर निकलते हैं तो रेट्रो रिफलेक्टर पहनते हैं, जो बांह में लगता है। लाइट पड़ते ही चमकने लगता है, ताकि एक्सीडेंट न हों। सर्दी हो, गर्मी हो, बर्फबारी हो या बारिश...यहां स्कूल-कॉलेज और ऑफिस का वक्त नहीं बदलता। इनकी टाइमिंग सुबह 8 बजे से शाम करीब 4 बजे ही रहती है। लोग पूरी जिंदादिली से जीते हैं। पैसों के बारे में तो सोचते भी नहीं। बचत नहीं करते, क्योंकि इलाज-पढ़ाई का खर्च सरकार उठाती है। ड्राइवर और क्लीनर जैसा काम करने वाले भी हर महीने ढाई से तीन लाख रुपए कमा लेते हैं।
एक सिनेमाहॉल है, जहां अलग-अलग भाषाओं की फिल्में लगती हैं, जिनमें अंग्रेजी में सब टाइटल्स होते हैं। हाल में लाल सिंह चड्ढा व आरआरआर भी लगी थी।यहां क्राइम न के बराबर है। अगर आपका पर्स बस में गिर जाए, तो संभवतः वापस मिल जाएगा। कैश का कोई झंझट ही नहीं है, सब कुछ डिजिटल है। हिंसा तो दूर की बात, लोग चिल्लाते भी नहीं। ज्यादातर लोगों के पास ऑडी, मर्सिडीज व टेस्ला जैसी लग्जरी कारें हैं।
स्रोत - भास्कर, 23 जनवरी 2023
External links
References
- ↑ Orning, Hans Jacob: En vestlandskonge? Klassekampen, 18 February 2013.
- ↑ Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter III, p.185-186
- ↑ महाभारत आदिपर्व 78वां अध्याय, श्लोक 1-24.
- ↑ ये वे देश हैं जो पाण्डव दिग्विजय में अर्जुन ने उत्तर दिशा के सभी देशों को जीत लिया था। इनका पूर्ण वर्णन महाभारत सभापर्व अध्याय 26-28 में देखो।
- ↑ जाट इतिहास पृ० 14-15 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।
- ↑ हाभारत आदिपर्व 85वां अध्याय श्लोक 34-35, इन पांच भाइयों की सन्तान शुद्ध क्षत्रिय आर्य थी जिनसे अनेक जाट गोत्र प्रचलित हुए । (लेखक)
- ↑ जाट इतिहास (उत्पत्ति और गौरव खण्ड) पृ० 146-47 ले० ठा० देशराज।
- ↑ जाट इतिहास पृ० 14-18 लेखक श्रीनिवासाचार्य महाराज ।
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