Mahendra Singh Tikait

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Mahendra Singh Tikait

Mahendra Singh Tikait (महेन्द्र सिंह टिकैत) (Born: 6 Oct. 1935; Death: 15 May 2011)[1] was a popular leader of farmers from Uttar Pradesh in India. He was a Jat of Raghuvansi gotra. He is Choudhary of Baliyan Khap. A resident of village Sisauli of Muzaffarnagar in Uttar Pradesh, Tikait was a "Title" conferred to Head of Baliyan Khap by ruler of Thanesar, Raja Harshavardhana, in 7th century. From the time of Raja Harshavardhana the title 'Tikait' is being used by the Choudhary of Balyan Khap, alongwith his name, way down to generations.

Head of Balyan Khap

Mahendra Singh Tikait, the BKU Chaudhary ('Headman') was born in 1935 at village Sisauli in Muzaffarnagar of Uttar Pradesh. Ch. Mahendra Singh Tiakait inherited the Chaudharyship of the Khap Baliyan at the age of eight when his father Ch.Chauhal Singh died in 1943. The Chaudharyship of the Baliyan khap has been vesting in his family for the last thirteen centuries. The chaudharyship of a khap panchayat is a hereditary position. The Chaudahry enjoys administrative, adjudicative and executive powers over the khap villages. The chaudhary is held in high esteem and his decisions are binding on his people. At a panchayat meeting of the khap Baliyan held at Sisauli on May 12,1941, a resolution was passed which said : " We will work with our body, heart and soul under the leadership of our Chaudhary for the good of our Khap. Towards this end the Chaudhary of a khap has the right even to demand our lives." Thus, the Chaudahry of a khap panchayat enjoys supreme powers.

Messiah of Kisans

After the death of former Prime Minsiter late Ch. Charan Singh, Ch. Mahendra Singh Tikait was de facto 'messiah' of kisans in western Uttar Pradesh. On 17th October,1986 he formed a non-political orgarnisation named 'Bhartiya Kisan Union' to protect the interests of all the farmers of India. In this way, he headed so many movements and as a result of these agitations,many times, he was arrested and sent to jail, yet he is on the way to protect the interest of all the kisans of India.

Major kisan movements

Mahendra Singh Tikait in a Kisan Rally.jpg

Some major movements started by Ch. Mahendra Singh Tikait are listed below:

  • उन्होने दिसंबर 1986 में ट्यूबवेल की बिजली दरों को बढ़ाए जाने के ख़िलाफ़ मुज़फ्फरनगर के शामली से एक बड़ा आंदोलन शुरु किया था।
  • The Karmukhera Power House Gherao in January 1987 to pressurize the State Government to concede to its 11-point charter of demands.


  • The famous Meerut March in February 1988, forcing the State Government to concede the 35-point charter of demands.


  • The 110-day long Rajabpur Satyagraha in March-June 1988 when there was police firing on kisans during Rail Roko/ Rasto Roko Andolan.


  • The week-long Delhi Boat Club Panchayat to project farmers' demands as approved by the Inter-State Coordination/ Committee of Farmers Organisation.


  • Naiyma Lao Movement at Bhopa village in August-September 1989 (Naiyma, a Muslim girl was abducted and killed and the Police Station was gheraoed by the Union).


  • Lucknow Panchayat of July 1990 to protest against the Janata Dal Government in UP State as it failed to meet genuine demands of kisans.


  • Second Lucknow Panchayat of January 1992 to protest against the enhanced rate of fertilizers and hike in electricity rates, sugarcane supplies to mills and allied issues relating to sugarcane crop and TELCO land acquisition compensation issue.


  • Delhi Fertilizer Subsidy Panchayat of 2 October 1991.


  • The month-long Lucknow Panchayat of June 1992 for 7-point charter of demands including implementation of writing-off of Govt. loans of Rs. 10,000.


  • Ghaziabad Kisan Land Compensation Movement (June-August 1992) to demand adequate compensation for farmers whose lands had been acquired in 1962, employment in government jobs for depandants of farmers and early disposal of compensations.


  • The Chinhat Kathauta Panchayat of June 1993 to demand adequate compensation for Chinhat-Kathauta farmers for their acquired lands.


  • Cattle Satyagraha of Sept.-October 1993 - the 7-point charter of demands, relief of Ramkola kisans, payment of sugarcane dues and writting off of loans upto Rs. 10,000 in Uttar Pradesh.


  • The Dunkel Dunk or Beej Satyagraha of 1993, urging Government not to allow the Multi National Corporation enter the agriculture sector in the country.

His arrests

During his farmers' movements, Ch. Tikait was arrested several times, the latest being in February 2000 in Muradabad while on his way to hold a panchayat in Lucknow. He was also arrested (and then released in bail) in 2008 on the orders of Chief Minister Mayawati who alleged that Kisan leader used some derogatory language against her. In fact, a large battallion of police was sent to arrest him and Sisauli and other neighboring villages were sieged by police.

Death

He breathed his last on 15 May 2011

25 अक्टूबर 1988 को दिल्ली के बोट क्लब पर

25 अक्टूबर 1988 को दिल्ली के बोट क्लब पर महेन्द्र सिंह टिकैत

25 अक्टूबर 1988

स्थान- दिल्ली का बोट क्लब

7 लाख से ज्यादा किसानों की भीड़ के बीच लाउड स्पीकर पर एक आवाज गूंजती है "खबरदार इंडिया वालों!दिल्ली में भारत आ गया है।"जैसे ही यह आवाज गूंजी,पूरी दिल्ली में भूचाल सा आ गया!लुटियन जॉन में अजीब सी बेचैनी छा जाती है!दिल्ली पुलिस आंखे बंद करके बस आगे क्या होगा इसके इंतजार में खड़ी रहती है!मीडिया टकटकी लगाए मंच की तरफ एक हाथ मे हुक्का व दूसरे हाथ से माइक ऊंचा करते एक शख्स की तरफ देखती है!यह आवाज किसी और की नहीं बल्कि किसान नेता महेंद्रसिंह टिकैत की थी जो हमेशा के लिए किसानों को आवाज दे गई।

उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली में छह अक्टूबर 1935 को एक किसान परिवार में जन्मे टिकैत ने गांव के ही एक जूनियर हाई स्कूल में कक्षा सात तक शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता का नाम चोहल सिह टिकैत व माता का नाम मुखत्यारी देवी था। चौहल सिंह बालियान खाप के चौधरी थे। पिता की मृत्यु के समय टिकैत की आयु महज आठ वर्ष थी। इतनी छोटी सी आयु में इन्हें बालियान खाप की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी।बालियान खाप का नेतृत्व करते-करते उन्होंने जल्द ही भांप लिया था कि अकेली जातीय खाप पंचायत वर्तमान सिस्टम से लड़ने में कमजोर पड़ रही है तो उन्होंने सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों को क्रियान्वित करते हुए सन् 1950,1952,1956, 1963 में बड़ी सर्वखाप पंचायते बुलाई और उसमे पूर्ण रूप से भागीदारी निभाते हुए दहेज प्रथा, मृत्यु भोज, नशाखोरी भ्रूण हत्या,दिखावे- आडम्बर आदि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की।

सिसौली में 17 अक्टूबर 1986 सभी जाति, धर्म और खापों के चौधरियों, किसानों व किसान प्रतिनिधियो की साझा हित साझी समस्या को देखते हुए महापंचायत की गई। इसी दौरान भारतीय किसान यूनियन के गठन की घोषणा की गई और टिकैत को सर्वसम्मति से इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया।

हांलाकि बीकेयू उन दिनों लोकल संगठन था लेकिन सूबे के किसानों की समस्‍याएं एक जैसी थीं। टिकैत ने जब देखा कि गांवों में बिजली न मिलने से किसान परेशान है, उसकी फसलें सूख रहीं हैं, चीनी मिलें उनके गन्‍ने को औने-पौने दामों में खरीदती हैं तो उन्‍होंने किसानों की समस्‍याओं को लेकर 27 जनवरी 1987 को मुजफ्फरनगर के शामली कस्‍बे में स्थित करमूखेड़ी बिजलीघर को घेर लिया और हजारों किसानों के साथ समस्‍या निदान के लिए वहीं धरने पर बैठ गए। पुलिस-प्रशासन ने तीन दिन तक कोशिश की कि किसान किसी तरह वहां से उठ जाएं लेकिन जब किसान टिकैत के नेतृत्‍व में वहां डटे रहे तो पुलिस ने उन पर सीधी गोलियां चला दीं। इस गोलबारी में दो किसान जयपाल और अकबर अली ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।हर-हर महादेव अल्लाह-हु-अकबर के नारों के बीच टिकैत के नेतृत्‍व में किसानों ने गोलीबारी में मारे गए दोनों युवकों के शव पुलिस को घटनास्‍थल से नहीं उठाने दिए। इतना ही नहीं टिकैत आंदोलन में शहीद हुए किसानों के अस्थिकलश गंगा में प्रवाहित करने खुद शुक्रताल के लिए रवाना हुए तो उनके पीछे इतना बड़ा किसानों का कारवां था कि उनके रास्‍ते में एक भी खाकी वर्दी वाला दिखाई नहीं दिया। अस्थि कलश यात्रा में टिकैत के पीछे चलती भीड़ की संख्‍या का अंदाजा लगाना तो मुश्किल था लेकिन एक सिरा शुक्रताल पंहुच चुका था लेकिन दूसरा सिरा मुजफ्फरनगर में था। इसके बाद टिकैत का जुझारुपन किसानों को इतना भाया कि इस आंदोलन के बाद से उनके मुंह से निकले शब्‍द किसानों के लिए अंतिम सत्य बन गए।

टिकैत ने पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के सभी किसानों को एकजुट कर दिया और सभी खापें एक मंच पर आ गईं। टिकैत के शब्‍द भले ही अंतिम सत्य बन चुके थे लेकिन उन्‍होंने हमेशा किसी भी आंदोलन को शुरु करने या खत्‍म करने के लिए मंच पर सभी खापों और सभी बिरादरियों के पंचों को बिठाया और उनकी रायशुमारी पर आगे का फैंसला लिया। ये उनके नेतृत्‍व का गुण था कि वह 'शक्तिशाली' होने के बाद भी लोकतांत्रिक परंपराओं का हमेशा निर्वहन करते थे। दो किसानों की मौत के बाद टिकैत ने आंदोलन बंद नहीं किया बल्कि 1 अप्रैल 1987 को उन्‍होंने वहां किसानों की सर्वखाप महापंचायत बुलाई और उसमें फैंसला लिया कि शामली तहसील या जिले में उनकी मांगों पर कोई विचार नहीं हो रहा इसलिए कमिश्‍नरी घेरी जाए।इसी बीच 29मई 1987 को चौधरी चरणसिंह का देहांत हो गया।किसान राजनीति में शून्यता इस कदर छा गई कि तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने चौधरी चरणसिंह के अंतिम संस्कार के लिए जगह देने से ही इनकार कर दिया।किसी भी किसान नेता के मुंह से आवाज नहीं निकली।हालात को भांपकर चौधरी अजीतसिंह ने पार्थिव शरीर को पैतृक गांव नूरपुर ले जाने की तैयारी कर ली।किसान मसीहा के अपमान को उनकी बेटी सहन नहीं कर पाई और अंतिम उम्मीद के रूप में बाबा टिकैत से मदद मांगी।बाबा टिकैत ने सिसौली से ही भारत सरकार को धमकी दी थी कि शाम तक भारत सरकार जगह उपलब्ध करवाएं अन्यथा किसान दिल्ली की तरफ कुछ करेंगे और अंतिम संस्कार की जगह भी किसान तय करेंगे और समय भी किसान तय करेंगे!सरकार को झुकना पड़ा और आज दिल्ली के किसान घाट पर नमन करके किसान प्रेरणा भी लेते है।

बाबा टिकैत ने किसान राजनीति की शून्यता को भरने के बीड़ा उठाया और लाखों किसानों के साथ 27 जनवरी 1988को मेरठ कमिश्‍नरी पर डेरा डाल दिया और वहीं पर किसानों ने खाने के लिए भट्टियां सुलगा दीं।हुक्के की गुड़गुड़ाहट से कमिश्नरी का मैदान पहली बार किसानियत की ताकत से परिचित हुआ।नित्‍य कर्मों के लिए कमिश्‍नरी का मैदान सुनिश्चित कर लिया। 35 सूत्रीय मांगों को लेकर यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चौबीस दिन चला। आंदोलन में भाग लेने आए कई किसान ठंड लगने से मर गए लेकिन टिकैत के नेतृत्‍व में किसान टस से मस नहीं हुए। पुलिस-प्रशासन ने उन्‍हें उकसाने की बहुत कोशिश की लेकिन उन्‍होंने अहिंसा का रास्‍ता नहीं छोड़ा। चौधरी महेन्‍द्र सिंह टिकैत अब बाबा टिकैत के नाम से पुकारे जाने लगे थे। शासन-प्रशासन हतप्रभ था कि इतने दिन तक इतने किसान भयंकर सर्दी के मौसम में खुले आसमान के नीचे कैसे डटे हुए हैं!चौबीस दिन बाद टिकैत ने सरकार को गूंगी-बहरी कहते हुए यह आंदोलन खुद ही खत्‍म कर दिया कि कमिश्‍नरी में उनकी सुनवाई संभव नहीं तो अब हमें लखनऊ और दिल्‍ली में दस्तक देनी होगी।

इसके बाद रेल रोको-रास्‍ता रोको आंदोलन में पुलिस ने गोलियां चला दीं तो टिकैत दल-बल सहित 6 मार्च 1988 को रजबपुरा पंहुच गए और एक सौ दस दिन तक किसानों के साथ तब तक धरने पर बैठे रहे जब तक गूंगी-बहरी सरकार के कानों में जूं नहीं रेंगी। रजबपुरा के बाद टिकैत ने देश भर के किसान नेताओं और किसानों के अराजनीतिक संगठनों से संपर्क किया और उनके साथ एक बैठक में फैंसला लेने के बाद 25 अक्‍टूबर को वोट क्‍लब पंहुच गए।

25अक्टूबर 1988 को बाबा टिकैत के नेतृत्व में 7लाख से ज्यादा किसान दिल्ली के वोट क्लब पर आकर जम गए और बाबा टिकैत का वो ऐतिहासिक वाक्य लुटियन की फिजाओं में गुंजा कि "खबरदार इंडिया वालों!दिल्ली में भारत आ गया है।"सात दिन चले इस धरने के बाद राजीव गांधी को घुटने टेकने पड़े थे और सभी मांगों पर सहमति देनी पड़ी थी।

बाबा टिकैत ने संघर्ष की राह को हमेशा कायम रखा। वोट क्‍लब के बाद भी उन्‍होंने दर्जनों बड़े आंदोलन किए और कई बार उन्‍हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन वह न कभी याचक बने और न कभी स्‍वाभिमान से समझौता किया।कभी पंच का चुनाव लड़ने तक की नहीं सोची।गैर-राजनीतिक ऐसा किसान नेता जिसने अपने ईमान को कभी डिगने नहीं दिया!अपनी खुद्दारी को कमजोरी के आगे लाचार नहीं बनने दिया। उनकी खुद्दारी को इसी से समझा जा सकता है कि जब 8 मार्च2010 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्‍हें सरकारी खर्चे पर दिल्‍ली में बेहतर इलाज की पेशकश की तो वह गंभीर अवस्‍था में भी ठहाके लगा कर हंस दिए। उन्‍होंने प्रधानमंत्री से सिर्फ इतना कहा कि उनकी हालत गंभीर है।पता नहीं कब क्‍या हो जाए! ऐसे में यदि उनके जीते जी केंद्र सरकार किसानों की भलाई में कुछ ऐसा ठोस कर दे जिससे वह आखिरी वक्‍त में कुछ राहत महसूस कर सकें और उन्‍हें दिल से धन्‍यवाद दे सकें!लंबी कैंसर की बीमारीं से लड़ते हुए अपने अंतिम दिनों में सिसौली में अपने खाट पर सो रहे थे तो अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया कि खाप पंचायत ऑनर किलिंग करवाती है उन पर सख्ती से प्रतिबंध लगाया जाए तो बाबा के मुंह से निकला कि "इल्‍जाम भी उनके, हाकिम भी वह और ठंडे बंद कमरे में सुनाया गया फैंसला भी उनका…..लेकिन एक बार परमात्‍मा मुझे बिस्‍तर से उठा दे तो मैं इन्‍हें सबक सिखा दूंगा कि किसान के स्‍वाभिमान से खिलबाड़ का क्‍या मतलब होता है…..’खाप पंचायते किसानो के हक़ की लड़ाई लडती है उनकी मांग उठाती है, राजनितिक कारणों से उनकी आवाज को दबाया जा रहा है !"15मई 2011 को बाबा का देहांत हो गया। आज बाबा हमारे बीच नहीं है और समस्‍याएं भी वही हैं!

आज देशभर का किसान किश्तों में मर रहा है,टुकड़ों में मर रहा है।किसान नेताओं की सोच एक विधायक के टिकट तक,एक मंत्री के पद तक,एक राज्यसभा के पद तक सिमटी हुई है।बर्बाद किसान समझ नहीं पा रहे जी कि क्या किया जाएं!तकरीबन 6 महीने होने को है दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों को।लेकिन किसान कौम से सांसद बने लोगों के पास समस्या का हल नहीं है।

किसानों की समस्याओं को दिल्ली तक पहुंचाने का कोई चैनल नहीं है।सरकारें लाख दावे कर ले लेकिन किसानों तक राहत पहुंचाने की न कोई मंशा है और न कोई माध्यम है।न हिन्दू खतरे में है और न मुस्लिम खतरे में है।सिर्फ और सिर्फ किसान खतरे में है और उनके बच्चों का भविष्य खतरे में है।सरकारी बंदूक से जितनी भी हत्याएं हो रही है उसकी 90%संख्या किसान व उनके बच्चों की है।लगभग 90 %संख्या जेलों में आपको किसानों के बच्चों की मिलेगी और कोर्ट कचहरी में मुकदमों को झेल रहे ज्यादातर लोग किसान ही होंगे।

एक तरफ बर्बाद किसान खुद आत्महत्या कर रहा है तो दुसरी तरफ किसानों के बेरोजगार बच्चे अपराध के दलदल में फंसकर बर्बाद हो रहे है।किसानी नस्लों को बर्बाद करने के लिए राजनेताओं व शरमायेदारों के गठजोड़ से पैदा हुए तस्कर नशे की आग में धकेल रहे है।

अब किसान कौम के जुझारू व ईमानदार युवाओं को आगे आना होगा नहीं तो बाबा टिकैत की बरसी पर नमन करके अपनी आंखों से खत्म होते किसान व खत्म होती किसानियत को देखने के अलावे कुछ बचेगा नहीं। युवाओं से अपील है कि आपसी द्वंद्व,विरोध आदि को भूलकर अपने वजूद की लड़ाई का भार अपने कंधों पर उठाएं! बाबा टिकैत कहा करते थे कि क्रोध व अहंकार दोनों अलग-अलग होते है तो वह जहर होता है लेकिन दोनों साथ मे आ जाये तो वो स्वाभिमान बन जाता है।किसान स्वाभिमान की जिंदगी जीना चाहता है।अब यह आप पर निर्भर है कि लुटेरों की चौखट पर दलाली करने वालों के पीछे अपनी ऊर्जा जाया करो या किसानियत के स्वाभिमान को जिंदा रखने के लिए मोर्चा संभालो!

लेखक: प्रेमसिंह सियाग

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