A.W.T. Webb

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Captain A.W.T. Webb

A.W.T.Webb (b.1889, d.1968), O.B.E., was British Senior Officer Sikar from 1934 to 1938. His full name was Archibald Wilfred Tisdal.

Joined as Senior Officer Sikar

He joined his Shekhawati assignment on 24 May 1934 and served up to 2 October 1938. We are concerned here mainly about his role in Shekhawati farmers movement. Apart from this Mr. Webb took number of steps to improve the condition of farmers of Shekhawati particularly in the field of Education and Rural development. We come to know about steps taken by Mr. Webb as Senior Administrator of Sikar from a report obtained from Mr. Jay Narayan Soni of Sikar (Mob: 9352812545), which has recently been translated in to Hindi by Prof. Bhagwan Singh Jhajharia and edited by Archaeologist Mr. Ganesh Berwal and published in the form of a book titled Sikar Ki Kahani, Captain Webb Ki Jubani, 2009.

Captain Webb on Harsha

Cover page of the book "Sikar Ki Kahani, Captain Webb Ki Jubani"

Captain Webb during his stay at Sikar as Administrator (1934-38 AD) had visited the place and had mentioned about the temple and other monuments in his report. Captain Webb had arranged to send these sculptures and other records to Sikar museum. Webb has mentioned about sculpture of Nandi made of marble and sculptures of Pandavas and Vakata (वाकाट) at the temple site. There were six huge statues of 7 feet each of pandavas and Kunti , which were sent to Sikar Museum. [1]

Efforts of Captain Webb in preserving sculptures and bringing on record of this historical place are appreciable. He has mentioned about visit Harshanatha in year 1834 by Sergeant E. Dean. Webb mentioned that during his visit in 1834 there were about 20 statues, of size one third larger than normal, at the site in good condition. Webb was shocked to see less than half of the statues after hundred years. Webb has also mentioned about a new Shiva temple near old one built by Rao Raja of Sikar Shri Shiva Singh. This new temple was built from remains of old temple about 200 years back. A path leads from old temple to a nearby small temple of Bhainruji. [2]

The Harshagiri Inscription is about the construction of temple of Shiva in the name Harshadeva. Harsha or Harshadeva is not one of the names of Shiva, it is quite different. This inscription connects the name Harsha with a Puranic story of destruction of Asura Tripura, who had displaced Indra and other gods from svarga. The displaced Gods were rehabilitated here eulogized Shiva here on this occasion and this may perhaps be the origin behind the name Harsha. [3]

कैप्टन वेब (A.W.T. Webb) की नियुक्ति

ठिकाना सीकर जितना ही बर्बरता पर उतरा, उतना ही जाटों का पक्ष सबल बना । देश का लोकमत उनके अनुकूल बना । आखिर सर जॉन बीचम को समझ में आ गया कि किसानों की समस्याओं को टाला नहीं जा सकता । ऐसी स्थिति में जयपुर सरकार ने यह निश्चय किया कि किसी योग्य व अनुभवी अंग्रेज अफसर को पूरे अधिकारों के साथ सीनियर अफसर के पद पर सीकर भेजा जाय । तब जयपुर सरकार ने सीकर-प्रशासन के लिए कैप्टन वेब (A.W.T. Webb) को नियुक्त किया जिसने 24 मई 1934 को चार्ज संभाला । 29 मई 1934 को सीकर वाटी किसान पंचायत के मंत्री देवा सिंह बोचल्या के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल मि. वेब से मिला । वेब ने सुझाव दिया कि एक कमिटी बनाई जाये जिसमें किसान प्रतिनिधि भी सम्मिलित हों । यह सुझाव किसान नेताओं को जमा नहीं, क्योंकि चार किसान प्रतिनिधियों में से दो किसानों को प्रशासन की और से मनोनीत करना था । 24 जून 1934 ई. को कूदन में सीकरवाटी के प्रमुख जाटों की एक बैठक कमीशन के लिए मेंबर चुनने के लिए हुई जिसमें भरतपुर के ठाकुर देशराज और कुंवर रतनसिंह शामिल हुए । 25 जून 1934 को किसानों की एक आवश्यक बैठक पृथ्वी सिंह के प्रयासों से गोठड़ा गाँव में बुलाई गयी । काफी संख्या में एकत्रित किसानों ने अपनी ओर से सर छोटूराम, कुंवर रतनसिंह, पृथ्वीसिंह गोठडा एवं ईश्वरसिंह भैरूपुरा को प्रतिनिधि मंडल के रूप में चुन लिया । इन्हें वेब की कमेटी में काम करना था । किन्तु वेब ने 15 जुलाई 1934 को एक पक्षीय घोषणा कर दी । (डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.101) इस घोषणा में नाम मात्र की सहूलियतें थी । किसान पंचायत संतुष्ट नहीं हुई । पंचायत के मंत्री देवा सिंह बोचल्या ने एक विज्ञप्ति जारी कर वेब के ऐलान को मानाने से इनकार कर दिया । इस पर देवा सिंह बोचल्या को गिरफ्तार कर लिया । [4]

कैप्टन वेब की नियुक्ति की परिस्थितियाँ

ठाकुर देशराज[5] ने लिखा है .... तारीख 14 मई 1934 को जाट किसान जत्था अलीगढ़ से वापस होकर दिल्ली पहुंचा। स्टेशन पर कुछ स्थानीय जाट सरदारों ने जत्थे का स्वागत किया। दिल्ली के प्रसिद्ध पत्रकारों तथा नेताओं में पंडित इंद्र जी व्यवस्थापक अर्जुन ने जत्थे की कष्ट कहानी सुनने व आवभगत करने में पूरी दिलचस्पी ली। श्रीयुत देवीदास गांधी ने भी कष्ट कहानी सुनने के लिए उत्सुकता के साथ जत्थे के प्रतिनिधि से मिलते ही स्वीकृति दी। यदि उन्हें उस दिन अचानक एक दूसरा आवश्यक कार्य न आ अटकता और जत्था दूसरे दिन के लिए ठहर जाता तो श्री देवदास जी तथा हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक महोदय इस किसान जाते की की कहानी बड़े प्रेम के साथ सुनते। लाला देशबंधु दास प्रोपराइटर तेज ने भी अपना रिपोर्टर जाट किसान जत्थे के ठहरने के स्थान पर भेज कर अपनी उदारता प्रकट की। नवयुग के सरकारी संपादक जी भी जाट जत्थे के प्रतिनिधियों से बड़े प्रेम के साथ मिले और विश्वास दिलाया कि उनकी सच्ची शिकायतों को जनता के सामने रखने के लिए नवयुग कभी पीछे नहीं रहेगा। जाट जत्थे की इच्छा थी कि आर्य सार्वदेशिक सभा के प्रधानमंत्री उनसे मिलकर जनेऊ संबंधी वास्तविक घटनाओं की बाबत पूछताछ करके वास्तविक घटनाओं को जान लें। किंतु मंत्री और प्रधान के कार्यालय ममें न होने से भेंट न कर सके।

चौधरी हरचंद सिंह जी (अर्जुन), महाशय धनीराम जी प्रोपराइटर जमींदार ब्रोस, चौधरी लाजपत राय जी करोल बाग में जाट जत्थे को जलपान तथा अन्य सुविधाएं प्राप्त कराने में


[पृ.250]: काफी दिलचस्पी ली। इस समय जत्था रेवाड़ी के आसपास है। ..... लोकमान्य 23 मई 1934

जब बाहर इस प्रकार का आंदोलन जाटों के पक्ष में हो रहा था तब सीकर ठिकाने नहीं एक चाल सोची। और वह यह कि साम, दाम, भाय और भेद से कुछ जाटों से इस आशय के दस्तकत कराने लगे कि हमें कोई शिकायत ठिकाने से नहीं है। किंतु जिन 15 चौधरियों ने ऐसे दस्तखत किए उन्हें भी आंदोलन में शामिल होना पड़ा।

सीहोट के जुल्मों के विरोध में कटराथल में जो जोरदार स्त्री कॉन्फ्रेंस हुई थी उससे ठिकानेदारों के कान तो जरूर खड़े हुए किंतु राव राजा सीकर व जयपुर राज्य किसी की ओर से सीहोर के ठाकुर के विरुद्ध कोई सख्त कार्रवाई ना होने के कारण छुट भैए जागीरदारों के और सरकारी कर्मचारियों के जुल्मों में कोई अंतर नहीं आ रहा था।

सीकर के सीनियर अफसर मिस्टर डिसूजा एक धार्मिक ईसाई अवश्य थे किंतु राव राजा पर उनका कोई प्रभाव नहीं था। वे दोनों तरफ से असफल रहे। न तो राव राजा और उनके साथियों को ही वह संतुष्ट कर सके और न किसानों को चलती चक्की से बचा सके। इसलिए जयपुर दरबार की आज्ञा से एडबल्यूटी वेब नाम के अंग्रेज को जो कि एक पॉलिटिकल रिटायर्ड अफसर था, राव राजा ने सीकर का सीनियर ऑफिसर बनाना स्वीकार कर लिया। (एसोसिएटेड प्रेस 15 मई 1934)

22 मई 1934 को मि. वेब ने सीकर आकर सीनियर ऑफिसर का चार्ज ले लिया। इससे एक दिन पहले अर्थात 21 मई को जाट लोग


[पृ.251]: अपनी मांगों का मेमोरियल फिर एक बार जयपुर दरबार की सेवा में प्रेषित कर चुके थे। इस मेमोरियल में अपनी उनकी मांगों को दुहराया था जो पहले पेश की जा चुकी थी।

सीकर के जाटों की सफलता: ठिकाने ने जांच कमीशन नियुक्त कर दिया, जयपुर 29 मई 1934 : जाट पंचायत सीकर वाटी के महामंत्री देवा सिंह बोचल्या की प्रमुखता में लगभग 200 जाटों का एक डेपुटेशन सीकर के नए सीनियर अफसर एडबल्यू वेब से मिला और अपनी शिकायतें सुनाई। मिस्टर वेब ने उनकी बातों को सहानुभूति पूर्वक सुनकर बतलाया कि राव राजा सीकर ने आप लोगों की शिकायतों की जांच करने के लिए 8 व्यक्तियों का एक मिशन नियत करने की इजाजत दे दी है। उसका प्रधान मैं स्वयं और मेंबर मेजर मलिक मुहम्मद सेन खां पुलिस तथा


[पृ.254]: जेलों के अफसर-इंचार्ज कैप्टन लाल सिंह, मिलिट्री मेंबर ठाकुर शिवबक्स सिंह, होम मेंबर और चार जाट प्रतिनिधि होंगे। चार जाटों में से दो नामजद किए जाएंगे और दो चुने जाएंगे।

आप ने यह भी कहा कि मुझे जाटों की शिकायतें कुछ अत्युक्तिपूर्ण मालूम पड़ती हैं तथापि यदि जांच के समय आंदोलन बंद रहा और शांति रही तो मैं जांच जल्दी समाप्त कर दूंगा और जाटों को कोई शिकायत नहीं रहेगी।

जाट जांच कमीशन की रचना से संतुष्ट नहीं हैं। न वे चारों जाट मेंबरों को चुनना ही चाहते हैं। वे झुंझुनू में एक सभा बुलाने वाले हैं। बोसना में भी एक पंचायत होगी इन दोनों सभाओं में मिस्टर वेब के ऐलान पर विचार होगा। (यूनाइटेड प्रेस)

इसके बाद राव राजा साहब और सीनियर साहब दोनों ही क्रमश: 2 जून और 6 जून सन 1934 को आबू चले गए।

आबू जाने से 1 दिन पहले सीनियर ऑफिसर साहब मिस्टर वेब ने सीकर वाटी जाट पंचायत को एक पत्र दिया जो पुलिस की मारफ़त उसे मिला। उसमें लिखा था, “हम चाहते हैं कि कार्यवाही कमीशन मुतल्लिका तहकीकात जाटान सीकर फौरन शुरू कर दी जावे। हम 15 जून को आबू से वापस आएंगे और नुमायदगान से जरूर सोमवार 18 जून सन 1934 को मिलेंगे। लिहाजा मुक्तिला हो कि जाट लीडरान जगह मुकर्रर पर हमसे जरूर मिलें।

सीनियर ऑफिसर के आबू जाने के बाद सीकर के जाट हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठे। बराबर गांवों में मीटिंगें करते रहे। उन्होंने इन मीटिंगों में इस बात के प्रस्ताव पास किया, “जयपुर दरबार के सामने पेश की हुई हमारी मांगे


[पृ.255]: सर्वसम्मत हैं और हमारे ऐसी कोई भी पार्टी नहीं जो इन मांगों के विरुद्ध हो, सीकर के कर्मचारियों ने मिस्टर वेब को यह समझाया कि यहां के जाटों में दो पार्टियां हैं कतई झूट है” (नवयुग 12 जून 1934)

मि. वेब आबू से एक दो दिन की देर से वापस हुए। इसके बाद में शायद किसी जरूरी काम से जयपुर गए। इसलिए जाट पंचायत के प्रतिनिधियों से बजाय 18 जून 1934 के 22 जून 1934 को मुलाकात हुई। उन्होने पहली जुलाई तक कमीशन के लिए जाटों के नाम की लिस्ट देने को जाट पंचान से कहा और यह भी बताया कि राव राजा साहब ने ठिकाने में से सभी बेगार को उठा दिया है।

29 जून 1934 को राव राजा साहब भी आबू से वापस आ गए। कुछ किसानों ने रींगस स्टेशन पर उनसे मुलाकात करनी चाहिए किंतु नौकरों ने उन्हें धक्के देकर हटा दिया।

इससे पहले ही तारीख 24 जून 1934 को कूदन में सीकर वाटी के प्रमुख जाटों की एक मीटिंग कमीशन के लिए मेंबर सुनने के लिए हो चुकी थी। भरतपुर से ठाकुर देशराज और कुंवर रतन सिंह जी भी इस मीटिंग में शामिल हुए थे। तारीख 25 जून 1934 को एक खुली मीटिंग गोठड़ा में हुई जिसमें रायबहादुर चौधरी छोटूराम और कुंवर रतन सिंह बाहर से तथा कुंवर पृथ्वी सिंह और चौधरी ईश्वर सिंह सीकर से जांच कमीशन के लिए चुने गए।

आरंभ में मि. वेब ने तत्परता और बुद्धिमानी से काम लिया। उन्होंने सरकारी कर्मचारियों के रुख में परिवर्तन करने के लिए 30 जून को एक मीटिंग की और उसमें तमाम कर्मचारियों से कहा कि हम सब “प्रजा के नौकर हैं”, उन्होंने खर्चे में भी घटोतरी की। पहले तमाम कर्मचारी सरकारी सवारी बरतते


[पृ.256]: थे, उन्होंने इस प्रथा को मिटा दिया। बेगार के खिलाफ भी कदम उठाया। मालिक मोहम्मद जैसे षड्यंत्र लोगों के जाल में वे भी फंस गए। जाट लोग मलिक मोहम्मद को कभी पसंद नहीं करते थे क्योंकि जाटों पर दमन करने में वह अगवा था।

तारीख 23 जुलाई 1934 से कमीशन कार्य शुरु कर देगा। ऐसा निश्चय सुनकर जाट प्रतिनिधि वेब से बहुत खुश हुए और उन्होंने उस दिन 10 जुलाई की मुलाकात में उनसे उन्हें बधाई देते हुए यह भी कह डाला कि अब हमारे आधे दुख दूर हो गए हैं। इस दिन मिस्टर वेब ने खुले दिल से 2 घंटे तक जाट प्रतिनिधियों से बातें की थी और सारी तकलीफें अपने समय में दूर कर देने का विश्वास दिलाया।

तारीख 23 जुलाई 1934 की प्रतीक्षा जाट किसान बड़ी उत्सुकता से कर रहे थे कि उस दिन उनके कष्ट की जांच का कार्य आरंभ हो जाएगा किंतु ‘साईं के मन कछु और है मेरे मन कछु और’ वाली कहावत के अनुसार मिस्टर वेब की ओर से मिलने वाली विज्ञप्ति तारीख 15 जुलाई 1934 को ही मिल गई।

वेब का ऐलान 15 जुलाई 1934 अधूरा और निराशा पूर्ण

ठाकुर देशराज[6] ने लिखा है .... इस एलान से सीकर के किसानों के दुख दूर नहीं हो सकते। 15 जुलाई 1934 को मिस्टर ए.डबल्यू.टी. वेब साहब सीनियर ऑफिसर सीकर ने राव राजा साहब सीकर की मंजूरी से ऐलान अपने इजलास से निकाला है, वह निराशाजनक है। ऐसा निर्णय सीकरवाटी जाट पंचायत अपने विशेष मीटिंग द्वारा 16000 की उपस्थिति में 29 जुलाई 1934 को कर चुकी है। सीकर के समस्त किसान जिन कारणों और कमियों से एलान को अपूर्ण और निराशाजनक समझते हैं, वह इस एलान में जोकि पंचायत द्वारा प्रकाशित कराया जाता है..... इसलिए वह तब तक स्वीकार होना कठिन है जब तक सीकर वाटी जाट पंचायत द्वारा विस्तार से दी गई लिखित बातों का उसमें समावेश और संशोधन न हो जाए। ....देवासिंह बोचल्या, मंत्री सीकर वाटी जाट क्षत्रिय पंचायत

जयपुर के ठिकानों में प्रजा पीड़न

ठाकुर देशराज[7] ने लिखा है .... ‘राजपूताना मेल’ के संपादक का आंखों देखा वर्णन -

‘राजपूताना मेल’ अखबार के संपादक श्री दिनकर राव ने फॉरवर्ड में एक पत्र प्रकाशित करवाया है जो इस प्रकार है-

समाचार पत्रों में सीकर के जाट किसान आंदोलन के संबंध में बहुत से समाचार प्रकाशित हुए हैं। उन्हीं की सत्यता की जांच करने के लिए मैंने सीकर के सीनियर अफसर कैप्टेन एडबल्यूटी वेब से तार द्वारा आज्ञा प्राप्त कर सीकर गया था। मैं वहाँ 2 दिन रहा और कई आदमियों से मिला। जो कुछ मैंने वहां देखा बड़ा ही हृदय विदारक था। बेचारे जाट लोगों को भोमिया लोग एक न एक अपराध लगाकर खुल्लम-खुल्ला सताते हैं। मैं कैप्टन एडबल्यूटी वेब से मिला था और उनसे बातचीत की थी। बातचीत करने पर वह मुझे सच्चे और स्पष्ट वक्ता मालूम हुये। जाट आंदोलन से वह बहुत ही विचलित दिखाई देते थे। परंतु खुड़ी दुर्घटना के संबंध में उनका विचार है कि जाट भी अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित थे। उन्होंने तलवार लाठियां तथा अन्य हथियार दिखाए जो उनके कथन अनुसार जाटों के पास से खुड़ी ग्राम में बरामद हुए थे। यह हो सकता है परंतु इसमें कोई बुरी बात नहीं है। हर किसान लाठी रखता है और राजस्थान के गांव में तो कोई भी किसान ऐसा नहीं मिलेगा जिसके पास लाठी ना हो। रही कुछ तलवारों और दो-तीन स्वदेशी बंदूकों की बात जो भागे हुये जाटों के पास से बरामद हुई थी सो वे भी साधारण हैं।


[पृ.291]: भीषण दमन तथा लाठीचार्ज को सहकर जाट अपने अहिंसात्मक आंदोलन पर दृढ़ रहे यह अत्यंत सराहनीय बात है। भोमियों के प्रति जो यह कहा जाता है कि वे अहिंसा पर दृढ़ रहे इसमें तो कोई खास बात नहीं है। परंतु जाट जैसी लड़ाकू कौम उत्तेजना दिलाने जाने पर भी चुप रही, वह बड़े आदर्श की बात थी। इस स्थिति से मैं निराश नहीं हुआ हूं। यदि जिम्मेदार नेता हस्तक्षेप करें तो मुझे विश्वास है कि शांतिपूर्ण समझौता हो जाएगा। (लोकमान्य 5 अप्रैल 1935)

राजेन्द्र कसवा द्वारा वेब का मूल्यांकन

कैप्टन वेब (A.W.T. Webb) के बारे में राजेन्द्र कसवा[8] लिखते हैं कि कैप्टन वेब एक क्रूर, अभिमानी किन्तु अनुशासित अफसर माना गया है । इसके पीछे उसके फौजी संस्कार भी जान पड़ते हैं । ऐसा प्रतीत होता है की वह मात्र हुक्म चलाने का आदि था । आन्दोलनकारियों से वह बिलकुल खुश नहीं था और उन पर गोली चलाना उसके बांयें हाथ का खेल था । (राजेन्द्र कसवा: P. 160)

कैप्टन वेब सीकर में सीनियर अधिकारी के तौर पर 1934 से 1938 तक पांच साल तक रहे । उसका दुर्भाग्य था कि ये पांच वर्ष सीकरवाटी में भारी उथल-पुथल के रहे । जन आन्दोलन से चिढ़ने की उसकी अंग्रेज मानसिकता थी, किन्तु वह एक विचारशील व्यक्ति था ।

मि. वेब सबसे पहले तत्कालीन व्यवस्था का एक हिस्सा था । यह तो वह मानता है कि किसान अत्यंत पीड़ित था किन्तु जन आन्दोलन को वह नहीं पचा पाया । ठिकानेदारों-जागीरदारों की अकर्मण्यता, निर्दयता और ऐयाशी के कारण वह उनसे घृणा करता था तो किसान आन्दोलन से भी खुश नहीं था । उसका स्वभाव कुछ ऐसा जान पड़ता है कि यदि वह शांति काल में सीकरवाटी में रहता तो निश्चय ही जनहित के कार्य करता । वह किसानों और ग्रामीण जनता के शोषण से दुखी रहता था । अशिक्षा, धार्मिक पाखंडों, रूढियों, छुआछूत और अंधविश्वासों से निजात दिलाने का कार्य करता, किन्तु आम जन उसके कार्यकाल में अपने अधिकारों के लिए और स्वतंत्रता के लिए उठ खड़ा हुआ था । घमंडी सामंतों और निरीह किसानों, दोनों के लिए वेब समान रूप से अप्रिय साबित हुआ, यही उसके व्यक्तित्व की विशेषता थी । (राजेन्द्र कसवा: P. 163)

अक्टूबर 1938 में सीकर दरबार का सीनियर अफसर कैप्टन वेब का कार्यकाल पूरा हो गया । कैप्टन वेब का कार्यकाल विवादस्पद से अधिक कठोर किन्तु संवेदनशील अफसर का समझा गया है । बेशक आरंभिक वर्षों में किसान आन्दोलन को कुचलने में उसका हाथ था, लेकिन यह सब तत्कालीन परिस्थितियों के कारण हुआ । अनपढ़ और क्रूर जागीरदारों के बीच कैप्टन वेब हमेशा सही रस्ते की तलाश में लगे रहे । यही कारण था कि किसान उस पर विश्वास करने लगे थे । (राजेन्द्र कसवा: P. 169)

शेखावाटी जाटों के वेब के प्रति विचार

24 जून 1938 को सीकरवाटी जाट किसान पंचायत की सीकर में एक बैठक हुई जिसमें सीकर के रावराजा के जयपुर दरबार से विद्रोह प्रकरण में जाटों द्वारा हिस्सा न लेने के निम्न कारण बताये गए-

  • 1. खूड़ी और कूदन में जाटों के साथ किया गया बुरा व्यवहार ।
  • 2. राजपूत जागीरदारों द्वारा जाटों पर की गयी ज्यादतियां ।
  • 3. रावराजा सीकर का कुप्रंध और जाट जाति के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार ।
  • 4. जाट किसान आन्दोलन के दौरान राव रानी द्वारा कोई सहानुभूति नहीं दर्शाना ।
  • 5. कैप्टन वेब (A.W.T. Webb) के अच्छे प्रशासन से जाट जाति को अनेक फायदे विशेषकर कृषि सम्बन्धी सुधार, शिक्षा एवं चिकित्सा सुविधाए तथा ग्रामीण उत्थान[9]

जयपुर सीकर प्रकरण में शेखावाटी जाट किसान पंचायत ने जयपुर का साथ दिया था । विजयोत्सव के रूप में शेखावाटी जाट किसान पंचायत का वार्षिक जलसा गोठडा गाँव में 11 व 12 सितम्बर 1938 को शिवदानसिंह अलीगढ की अध्यक्षता में हुआ जिसमें 10-11 हजार किसान, जिनमें 500 स्त्रियाँ थी, शामिल हुए ।

इस पंचायत में अन्य प्रस्तावों के साथ निम्न प्रस्ताव भी पारित किया गया -

सीकर के वर्तमान प्रशासन में किसी प्रकार का परिवर्तन न किया जाय क्योंकि कैप्टन वेब (A.W.T.Webb) के प्रशासन के दौरान किसानों को पर्याप्त राहत मिली है । अतः वेब को तब तक रखा जाय जब तक की सीकर में भूमि बंदोबस्त पूरा न हो जाय ।[10]

शेखावाटी जाट किसान पंचायत के इन संकल्पों से यह स्पष्ट होता है कि जाट कैप्टन वेब से काफी खुश थे । वे कैप्टन वेब को शेखावाटी के प्रशासक रूप में रोकना चाहते थे । जाटों के इस अहसान को 'सीकर की कहानी- कैप्टन वेब की जुबानी' पुस्तक में कैप्टन वेब ने इस अहसान को निम्न शब्दों में व्यक्त किया-

जागीरदार और किसान के मध्य होने वाला स्थाई संघर्ष एक चरम की और पहुँच रहा था । मुझे उस समय की कटु यादें आती हैं जब किसान की पीड़ा उन्हें उकसाने का कारण बनी और राजनैतिक दृष्टता करने वालों के समूहों के लिए दरवाजे खुल गए । हमने उस तूफ़ान का मुकाबला किया परन्तु इस दौरान हिंसक मृत्यु और निर्दयता से घायल होने पर भारी क्षति सहन करनी पड़ गयी थी । ईश्वर को अवसर प्रदान करने पर धन्यवाद् है कि जिनकी कठिनाईयों को दूर करने का प्रयत्न कर मैंने उनके प्रति अपनी सहानुभूति प्रमाणित की और मैं वहां के सीधे-सादे लोगों द्वारा बाद में परेशानी के समय में दी गयी सहायता के प्रति कृतज्ञ रहूँगा और उसकी स्मृति सदा दिल में संजोये रखूँगा ।" (भगवान सिंह झाझड़िया, p.71)

कैप्टन वेब के हर्ष की धरोहर को बचाने के प्रयास

कैप्टेन वेब (A.W.T. Webb) लिखते हैं कि जब वे हर्ष के ब्राह्मण पुजारियों से मिले तो बताया गया कि यह गाँव विध्वंश कर दिया गया था और इसके निवासियों को मौत के घाट उतार दिया गया, जब मुसलमानों द्वारा सन 1679 में मंदिर ध्वस्त किया गया था । जो मौत से बच गए उन्होंने हर्ष का वर्तमान गाँव बसाया । इस मंदिर का सर्वनाश सन 1679 में तब हुआ जब खानजहां बहादुर ने मुग़ल बादशाह औरंगजेब के आदेशानुसार या किसी तरह उस मूर्ती-भंजक स्वेच्छाचारी शासक को प्रसन्न करने के लिए मंदिर पर हमला कर हर्ष के मंदिरों को जमींदोज कर दिया और प्रत्येक मूर्ती और गढ़ाई के कार्य को विकृत कर दिया । कोई भी बड़ा टुकड़ा अछूता नहीं बचा । [11]

कैप्टेन वेब सीकर के प्रशासक 1934 से 1938 की अवधी में रहे हैं । हाल ही में उनके द्वारा अंग्रेजी में लिखे अभिलेखों का अनुवाद कर भगवान सिंह झाझड़िया ने 'सीकर की कहानी कैप्टेन वेब की ज़ुबानी' नामक पुस्तक 2009 में प्रकाशित किया है । इससे पता लगता है कि कैप्टेन वेब ने इस धरोहर को बचाने और सुरक्षित करने का काफी प्रयास किया । वेब ने भग्नावस्था में बिखरी पडी पुरासंपदा को सीकर में लाकर संग्रहालय में रखवाया ।

कैप्टेन वेब हर्ष मंदिर के निरीक्षण के समय ध्वंश को देखकर इतने व्यथित हुए कि वे लिखते हैं कि तब मेरा क्रोध बचकानी ध्वंशात्मक प्रवृति के प्रतीक उनके मुस्लिम नौकर के प्रति जाग्रत हुआ और मैंने उसे जितना बड़ा टुकड़ा मैं उठा सकता था उसके हाथों में लाद दिया और उसके पूर्वजों के प्रति अपराध के लिए उसे आदेश दिया क़ि वह इसे पहाड़ी के नीचे ले जाए. बिना हिचक उसने हुक्म का पालन किया, केवल यह कहते हुए कि वह भी मूर्तिपूजा का समर्थन नहीं करता । [12]

कैप्टेन वेब द्वारा हर्ष मंदिर की कुछ सामग्री सन 1935 में सीकर ले जाई गयी थी । यहीं उनके प्रयत्न से एक म्यूजियम बना था जिसके अनेकों कमरे इस कला संसार से भरे हुए थे । हजारों दर्शक विस्मयविमुग्ध होकर इस सामग्री को देखते थे । आज ज्ञात नहीं यह कला संसार कहाँ विलुप्त हो गया । धन लोलुप लोगों ने इसे पश्चिमी देशों में पहुंचा दिया । यह कला का खजाना भारत से नेपाल होता हुआ आगे गया । सीकर के राव राजा का पुत्र हरदयाल नेपाल विवाह गया था । सीकर ठिकाना हर्ष की सामग्री पर अपना एकाधिकार मानता था । [13]

सीकर की कहानी- कैप्टन वेब की जुबानी

कैप्टन वेब को समझने के लिए एक छोटी सी पुस्तिका का सहारा लिया जा सकता है, जो उसने स्वयं लिखी थी । इसका हिंदी अनुवाद 'सीकर की कहानी- कैप्टन वेब की जुबानी' नाम से प्रोफ़ेसर भगवान सिंह झाझड़िया एवं गणेश बेरवाल ने किया है ।

विभिन्न मुद्दों पर वेब ने जो लिखा उसके कुछ अंश प्रस्तुत हैं-

मरुस्थल में वापसी -कैप्टन वेब लिखते हैं कि सर्वप्रथम मैंने इस प्रदेश (मरुस्थल) को बिना समझ वाली आँखों से लगभग अर्ध शताब्दी पूर्व एक शिशु के रूप में गोद में देखा था । मेरे माता-पिता के साथ मैंने रेगिस्तान के ऊँट गाड़ी से बीकानेर तक यात्रा की जहाँ से रेल में बैठकर मेरी मातृभूमि इंग्लैंड गया था । लगभग 46 साल पश्चात् मैं इस प्रदेश के एक कोने में स्थित सीकरवाटी के प्रशासक के रूप में आया ।(भगवान सिंह झाझड़िया, p.6)

जाटों के बारे में -

  • कितना ही अत्याचार हो, कड़ा लगान लिया जाय, एक जाट अपने पुरखों की जमीन को छोड़ना पसंद नहीं करता. (भगवान सिंह झाझड़िया, p.10)
  • ...जाट जो कि कृषि करने वाले समुदाय का 70 प्रतिशत हिस्सा है अब तक मुर्गी-पालन व सब्जियां उगाने को पूरी तरह से नकारता है । सब्जियों, अण्डों और मुर्गियों का स्पस्ट अभाव है और यह धंधा किसानों के लिए लाभदायक हो सकता है । परन्तु नहीं- जाटों ने कभी भी मुर्गी-पालन या सब्जी पैदा करने का कार्य न तो किया है न अब करने का इरादा रखते हैं । क्यों? ओह-मुर्गियां हमारे घरों में शोर करती हैं और सब्जियां उगाना बागवान का काम है किसान (जाट) का नहीं...(भगवान सिंह झाझड़िया, p.13)

सीकरवाटी में जीवन-स्तर में सुधार के बारे में- मुझे विश्वास है कि सीकरवाटी में पर्याप्त मात्र में जीवन-स्तर में सुधार लाया जा सकता है....मरुदेश में भूतल में पानी उपलब्ध है परन्तु सिचाई के लिए ऊर्जा की आवश्यकता है, विशाल पैमाने पर बिजली उपलब्ध कराना समस्या का हल हो सकता है, यदि उसके लिए धनराशि उपलब्ध हो । इस तरह की व्यवस्था मरुदेश के वर्तमान निवासियों के आर्थिक संसाधनों कि क्षमता में संभव नहीं है क्योंकि देश अनेक स्वतंत्र राज्यों और जागीरों में विभक्त है जो कि खर्चीले शाही घरों कि व्यवस्था करते हैं । यदि कभी ऐसी सुविधाएं प्राप्त होती हैं तो वे पड़ौस के स्वशासित प्रान्तों के सम्मलेन से ही प्राप्त की जा सकेंगी । तब राजकुमार और प्रमुख उस बहुत कुछ को खो देंगे जो बहुत सुन्दर हैं और शानो-शौकत व् दिखावा अदृश्य हो जायेगा. (भगवान सिंह झाझड़िया, p.14-15)

राजपूतों के बारे में-

  • कैप्टन वेब राजपूतों के बारे में लिखते हैं कि यह आश्चर्यजनक नहीं है कि राजपूत जाति भारत में भी सबसे अधिक नफ़रत का पात्र थी । उनसे पीड़ित लोग कहते हैं कि ईश्वर ने छ: बार इस डाकू जाति को दमित किया और सातवां अवसर भी शीघ्र ही आने वाला है । वे आगे कहते हैं कि राजपूतों को याद रखना चाहिये कि चूहों और विजेताओं के लिए दुर्भाग्य से क्षमादान नहीं होता । राजपूत अपने आप को विशिष्ट वर्ग मानते हैं (भगवान सिंह झाझड़िया, p.27) और दूसरी जातियों में जन्म लेने को एक त्रासदी मानते हैं. ....अपने आप तक सीमित होने पर राजपूतों का प्रशासन का तरीका रुखा और सहज है । ब्रिटिश लोगों के आगमन से पूर्व कोई भी राजपूत अपनी जनता की भलाई के बारे में नहीं सोचता था । उसका ध्यान फ़ौज और किसानों से वसूल किये जाने वाले हर एक रुपये पर केन्द्रित था (भगवान सिंह झाझड़िया, p.28) . ...वे अब भी अपने हृदयों में इस विश्वास को गले लगाते हैं कि राजनीती और शासन की कला में विश्वासघात अपरिहार्य तत्व है । (भगवान सिंह झाझड़िया, p.29)
  • जो लोग शताब्दियों से तलवार के डर से उनकी प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ती करते रहे अब उनके विरोध में उठ रहे हैं । अब वे दिन लद रहे हैं जब जागीरदार किसानों को जानबूझकर अज्ञान में रखते थे ताकि वे और कठोर परिश्रम करें । राजपूत अब अधिक समय तक सम्पन्नता में नहीं रह सकते । (भगवान सिंह झाझड़िया, p.30)
  • मेरे जैसे लोग जो राजपूत का हित चाहते हैं उन्हें सिर्फ समय न खोने की राय दे सकते हैं कि जीवित वस्तुओं को समय के साथ बदलना चाहिए या वे फिर न उठने के लिए गिर जायेंगे. ...परन्तु जिस व्यवस्था से वे चिपके हैं जिसको उन्होंने अब तक अनिवार्य माना है उसके अलावा जीने के और भी तरीके हैं ।(भगवान सिंह झाझड़िया, p.30)

शेखावाटी के नामकरण पर - शेखावाटी के नामकरण पर कैप्टन वेब लिखते हैं कि शेखावाटी के सभी सरदारों की उत्पति बालोजी से मानते हैं । बलोजी आमेर के शासक उदयकरण (1363 -1388 ) के तीसरे पुत्र थे । बलोजी को अमृतसर जिला प्राप्त हुआ । उनका पुत्र शेखाजी था जिसने अपने नाम पर शेखावाटी नाम दिया । एक राजपूत ने कैसे मुस्लिम नाम पाया यह रुचिकर है । यह नाम एक मुस्लिम संत के सम्मान स्वरुप दिया गया था जिनकी दुआओं से निसंतान मोकल बालोजी ने पुत्र पाया । संत का नाम शेख बुरहान था । और उनका परिवार स्थान अब भी अचरोल (जयपुर राज्य) के पास मौजूद है । (भगवान सिंह झाझड़िया, p.31)

जागीरदार और किसान के मध्य होने वाला स्थाई संघर्ष पर - जागीरदार और किसान के मध्य होने वाला स्थाई संघर्ष एक चरम की और पहुँच रहा था । मुझे उस समय की कटु यादें आती हैं जब किसान की पीड़ा उन्हें उकसाने का करण बनी और राजनैतिक दृष्टता करने वालों के समूहों के लिए दरवाजे खुल गए । हमने उस तूफ़ान का मुकाबला किया परन्तु इस दौरान हिंसक मृत्यु और निर्दयता से घायल होने पर भारी क्षति सहन करनी पड़ गयी थी । ईश्वर को अवसर प्रदान करने पर धन्यवाद् है कि जिनकी कठिनाईयों को दूर करने का प्रयत्न कर मैंने उनके प्रति अपनी सहानुभूति प्रमाणित की और मैं वहां के सीधे-सादे लोगों द्वारा बाद में परेशानी के समय में दी गयी सहायता के प्रति कृतज्ञ रहूँगा और उसकी स्मृति सदा दिल में संजोये रखूँगा । (भगवान सिंह झाझड़िया, p.71)

शिम्भूराम भूकर शहीद हो गए

रणमल सिंह[14] लिखते हैं कि सन् 1934 के प्रजापत महायज्ञ के एक वर्ष पश्चात सन् 1935 (संवत 1991) में खुड़ी छोटी में फगेडिया परिवार की सात वर्ष की मुन्नी देवी का विवाह ग्राम जसरासर के ढाका परिवार के 8 वर्षीय जीवनराम के साथ धुलण्डी संवत 1991 का तय हुआ, ढाका परिवार घोड़े पर तोरण मारना चाहता था, परंतु राजपूतों ने मना कर दिया। इस पर जाट-राजपूत आपस में तन गए। दोनों जातियों के लोग एकत्र होने लगे। विवाह आगे सरक गया। कैप्टन वेब जो सीकर ठिकाने के सीनियर अफसर थे , ने कटराथल गाँव के चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल जो उस समय जाट पंचायत के मंत्री थे, को बुलाकर कहा कि जाटों को समझा दो कि वे जिद न करें। चौधरी गोरूसिंह की बात जाटों ने नहीं मानी, पुलिस ने लाठी चार्ज कर दिया। इस संघर्ष में दो जने शहीद हो गए – चौधरी रत्नाराम बाजिया ग्राम फकीरपुरा एवं चौधरी शिम्भूराम भूकर ग्राम गोठड़ा भूकरान । हमारे गाँव के चौधरी मूनाराम का एक हाथ टूट गया और हमारे परिवार के मेरे ताऊजी चौधरी किसनारम डोरवाल के पीठ व पैरों पर बत्तीस लाठियों की चोट के निशान थे। चौधरी गोरूसिंह गढ़वाल के भी पैरों में खूब चोटें आई, पर वे बच गए।

चैत्र सुदी प्रथमा को संवत बदल गया और विक्रम संवत 1992 प्रारम्भ हो गया। सीकर ठिकाने के जाटों ने लगान बंदी की घोषणा करदी, जबरदस्ती लगान वसूली शुरू की। पहले भैरुपुरा गए। मर्द गाँव खाली कर गए और चौधरी ईश्वरसिंह भामू की धर्मपत्नी जो चौधरी धन्नाराम बुरड़क, पलथना की बहिन थी, ने ग्राम की महिलाओं को इकट्ठा करके सामना किया तो कैप्टेन वेब ने लगान वसूली रोकदी। चौधरी बक्साराम महरिया ने ठिकाने को समाचार भिजवा दिया कि हम कूदन में लगान वसूली करवा लेंगे।

Books authored

  • Webb, A. W.. (1961): Agricultural census of the Seychelles Colony: Report & tables for 1960
  • Webb, A. W.. (1960): Population census of the Seychelles Colony: Report and tables for 1960
  • A.W.T.Webb(1964): The Story of Seychelles, .Victoria: Government Printing Office.1966.
  • Webb, A. W. T. (Archibald Wilfred Tisdal): List of Islands which constitute the Colony of Seychelles
  • A. W. T. Webb (1944): Padmini- a historical romance.Published by Thacker & Co. in Bombay. Written in English.

References

  1. Sikar Ki Kahani, Captain Webb Ki Jubani, 2009, p. 81
  2. Sikar Ki Kahani, Captain Webb Ki Jubani, 2009, pp. 18-19
  3. Sikar Ki Kahani, Captain Webb Ki Jubani, 2009, p. 76
  4. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 125-126
  5. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.249-256
  6. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.262-267
  7. Thakur Deshraj: Jat Jan Sewak, 1949, p.290-291
  8. राजेन्द्र कसवा: मेरा गाँव मेरा देश (वाया शेखावाटी), जयपुर, 2012, ISBN 978-81-89681-21-0, P. 160
  9. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.159
  10. डॉ पेमाराम: शेखावाटी किसान आन्दोलन का इतिहास, 1990, p.162
  11. सीकर की कहानी (कैप्टेन वेब की जुबानी), सीकर, 2009, पृ. 22,80
  12. सीकर की कहानी (कैप्टेन वेब की जुबानी), सीकर, 2009, पृ.23
  13. रतन लाल मिश्र:शेखावाटी का नवीन इतिहास, मंडावा, 1998, पृ.274
  14. रणमल सिंह के जीवन पर प्रकाशित पुस्तक - 'शताब्दी पुरुष - रणबंका रणमल सिंह' द्वितीय संस्करण 2015, ISBN 978-81-89681-74-0 पृष्ठ 113