Baba Nrisingh Das

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Baba Nrisingh Das (बाबा नृसिंहदास जी) was a social worker, reformer, a Freedom fighter and hero of Shekhawati farmers movement. He was resident of Nagaur from Agarwal community.

Establishment of ‘Shekhawati Kisan Jat Panchayat’

With the efforts of Thakur Deshraj a sabha of Rajasthan Jat Mahasabha took place at Badhala village in Palsana. It was attended by famous revolutionist Vijay Singh Pathik, Baba Nrisingh Das, Ladu Ram Bijarnia (Gordhanpura Sikar). It was resolved in this meeting that –

  1. Jat Panchayats be established to prevent the excesses of Jagirdars,
  2. The sons of farmers be given education and fight with Jagirdars with the organizational support.
  3. Efforts are made for the economical, social and cultural development of farmers.
  4. The farmers are given the khatoni parcha after the settlements of their lands.

With these objectives ‘Shekhawati Kisan Jat Panchayat’ was established in 1931 in Jhunjhunu.

इतर जाट जन सेवक

ठाकुर देशराज[1] ने लिखा है ...बाबा नृसिंहदास जी: [पृ.535] आपकी जन्मभूमि नागौर है। आप अग्रवाल वैश्य किंतु जाति-पांति से आप बहुत अच्छे हैं। आपने अपना सर्वस्व कांग्रेस के पीछे स्वाहा कर दिया किंतु किसानों के आप आरंभ से ही हम दर्द रहे हैं।

सीकर शेखावाटी आंदोलन में आप ने सबसे अधिक लंबी सजा काटी और संकट भी काफी झेले। उस समय का आप का बयान काफी जोशीला और आतंक को भंग करने वाला था। खेद है कि हमारे पास उसकी कॉपी नहीं है किंतु उसका एक शेर उस सारे बयान का नक्शा सामने लाकर खड़ा कर देता है- “बूट डासन ने बनाए, मैंने एक मजमू लिखा। मुल्क में मजमून खेला और जूता चल गया।“

बाबाजी ने कई पुस्तक लिखी है। कई पत्रों का प्रकाशन किया है। जिनमें वीरभूमि और प्रभात के नाम उल्लेखनीय हैं।


[पृ.536]: आप स्वभाव के अत्यंत साफ हैं। कपट आपको छू नहीं गया है। राजस्थान के महारथियों में आप की गिनती है।

जेल में ठूंस दिया

ठाकुर देशराज[2] ने लिखा है ... आखिरकार जयपुर को हार झक मारकर झुकना पड़ा और उसने सीकर के मामले में हस्तक्षेप किया। अनिश्चित समय के लिए राव राजा साहब सीकर को ठिकाने से अलग रहने की सलाह दी गई। गिरफ्तार हुए लोगों को छोड़ा गया। जिनके वांट थे रद्द किए गए। किंतु जाटों की नष्ट की हुई संपत्ति का कोई मुआवजा नहीं मिला और न उन लोगों के परिवारों को कोई सहायता दी गई जिनके आदमी मारे गए थे। इस प्रकार इस नाटक का अंत सीकर के राव राजा और दोनों को सुख के रूप में नहीं हुआ। किंतु यह अवश्य है कि


[पृ.294] इस संघर्ष ने सीकर के जाट को नवजीवन दे दिया। जाट नेताओं और दूसरे सहायकों को मई 1935 के आरंभ में ही जयपुर से निकाला जा चुका था, किंतु नरसिंह दास बाबाजी जलते-बलते दिनों में प्रतिबंध की परवाह न कर के भी जयपुर पहुंचे और वे सीकर जाना चाहते थे कि किशनलाल जी जोशी के साथ पकड़ लिए गए और एक लंबे अरसे के लिए जेल में ठूंस दिया गया।

यह प्रतिबंध भी जयपुर ने अपनी गर्ज पूरी करने के लिए दो-डेढ़ वर्ष बाद ही उठा लिया। जयपुर और राव राजा का झगड़ा खड़ा हो गया जिसमें सीकर के तमाम राजपूतों ने सीकर के राव राजा का साथ दिया। जाट तटस्थ रहे इस गर्ज से जयपुर को यह करना पड़ा।

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ

  1. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.535-36
  2. Thakur Deshraj:Jat Jan Sewak, 1949, p.293-294

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