Bhaga Amritsar

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Bhagga (भग्गा) Bhaga (भागा) is a village in tahsil -, district Amritsar in Punjab.

Jat Gotras

History

Ram Sarup Joon[1] writes about The Mann Chiefs Of Bhaga: Chaudhary Amar Singh Mann, resident of Bhaga joined the Kanhaiya Misal and annexed the Pargana, of Sokalgarh, Sujanpur, Dharmakot and Dharampur.


Man-Jat, ancestor founder of Bhagga family was Amar Singh of village Bhagga (Amritsar), who in left his village to seek fortune, he became Sikh and joined Kanhaiya misl.[2]

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज- भागा

भागा खानदान पहले बहुत धनी और शक्तिशाली था। इसका संस्थापक अमरसिंह जाट था, जो कि अमृतसर जिले के भाग गांव के मान जाट जमींदार का बेटा था। यह सिख धर्म में दीक्षित हो गये और कन्हैया मिसल में शामिल होकर लूटमार करने लगे। इस नये काम में उन्हें इतनी सफलता मिली कि इनके बहुत से नये साथी हो


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-534


गये जिनका सरदार कर्मसिंह नाम का एक आदमी था। इन्होंने गुरुदासपुर के एक बड़े भाग को अपने अधिकार में कर लिया जिसमें सुजानपुर, सुकलगढ़, धर्मकोट और बहरामपुर शामिल थे। इन्होंने सुकलगढ़ में एक किला बनवाया जहां पर यह अधिकतर रहा करते थे और यहीं पर सन् 1805 ई० में युद्ध में अपना जीवन व्यतीत करने के बाद मृत्यु को प्राप्त हो गये और उसका अधिकारी अपने बड़े पुत्र भागसिंह को बना गये। यह सरदार अपने पिता की भांति युद्ध-प्रिय स्वभाव के न थे और न इन्होंने अपनी रियासत बढ़ाने की चेष्टा की। सिखों में बहुत ही कम ग्रंथ-साहब के एक भी पृष्ठ का उच्चारण कर सकते थे किन्तु भागसिंह पारसी और संस्कृत के पंडित थे। वह बन्दूक ढालना भी जानते थे और एक प्रसिद्ध चित्रकार भी थे। वह केवल तीन साल ही अपने पिता के उत्तराधिकारी रहे और उनकी मृत्यु के बाद राजगद्दी के लिए झगड़ा खड़ा हो गया। अमरसिंह की बहन का बेटा देशासिंह मजीठिया हमेशा भागसिंह का गहरा मित्र रहा था और अब उसने उनके पुत्र हरीसिंह के गद्दी पर बैठने का पक्ष लिया। किन्तु बहुमत ने उनके भाई बुद्धसिंह का पक्ष लिया। अतः बुद्धसिंह ही रियासत के अधिकारी रहे। किन्तु वह बहुत दिनों तक इस पर अधिकार न रख सके। सन् 1809 में रणजीतसिंह ने कांगड़ा युद्ध के लिए इनसे सहायता मांगी। भाग सरदार यह ख्याल करता था कि हम रणजीतसिंह के बराबर ही शक्तिशाली हैं। इसलिए एक भी आदमी या रुपया देने से मना कर दिया। रणजीतसिंह ने इस पर धावा कर दिया और घमासान लड़ाई के बाद इन्हें हरा दिया और भागा राज्य को ले लिया। इसमें देशासिंह मजीठिया ने खूब दिलचस्पी ली क्योंकि उसने हरीसिंह के ऊपर विजय के कारण बुद्धासिंह को क्षमा नहीं किया था और वह दुश्मन के पास गया जहां पर कि भागा की स्थिति रखने के कारण उसका इतना मान किया गया कि इस मामले के बाद ही रणजीतसिंह ने इसे भगोवाल, सुकलगढ की भागा रियासत को जागीर में दे दिया। जिसमें से कि सुकलगढ़ सन् 1859 तक मजीठिया खानदान के अधिकार में रहा और सरदार लेहनासिंह की मृत्यु के बाद सरकार गवर्नमेण्ट ने अपने राज्य में मिला लिया। रणजीतसिंह ने बुद्धासिंह के लिए धर्मकोट भागा की जागीर दे दी जिसकी कीमत 22 हजार थी। सन् 1846 ई० में इनकी मृत्यु तक इनके अधिकार में रही। राजा लालसिंह ने इसे ले लिया। किन्तु सरदार लेहनासिंह के कहने पर बुद्धासिंह के बेटे प्रतापसिंह और उनकी तीन बेवाओं की गुजर के लिए 5 हजार की जायदाद दे दी, किन्तु अन्तिम आज्ञा की मंजूरी होने के पहले ही प्रतापसिंह की मृत्यु हो गई! उनके कोई औलाद न थी, अतः दरबार ने हरीसिंह और इस खानदान की स्त्रियों के लिए 3800) रु० मंजूर कर दिये। सन् 1852 ई० में हरीसिंह की मृत्यु हो गई। इनके पुत्रों में से ईश्वरसिंह सन् 1901 में और जीवनसिंह 1905 में मर गए! ईश्वरसिंह के दो पुत्र और


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-535


जीवनसिंह 5 पुत्र छोड़कर मरे, जिनमें से सबसे बड़ा हरनामसिंह सारे खानदान की जागीर का प्रधान बना जो बटाला के पास बुर्ज आर्ययान गांव में है जिसकी कीमत 619 रुपया है।

भागा खानदान का वंश-वृक्ष

इनके दो भाई मुसलमान हो गये और मुसलमान होने पर उनके नाम मुहम्मद इकबाल और फजलहक रखे गये, दोनों के पास धर्मकोट में जमीन थी और फजलहक के पास लायलपुर जिले में 6 मुरब्बे जमीन और भी थी। एक और भाई जिसका नाम गुरुदयालसिंह था, 25वीं केवेलरी में जमादार था और सबसे छोटा भाई बलवन्तसिंह था उसे 10) रुपया माहवार का भत्ता मिलता था, जो जागीर से दिया जाता था। सर लैपिल ग्रिफिन ने इस खानदान का वंश वृक्ष इस प्रकार दिया है -

  • अकाल
  • अकाल का पुत्र अमरसिंह
  • अमरसिंह के दो बेटे हुए - 1. भागसिंह 2. बुद्धसिंह
  • बुद्धसिंह के तीन बेटे हुए - प्रतापसिंह, गुरुमुखसिंह, काकासिंह।
  • भागसिंह का एक बेटा हरीसिंह हुआ।
  • हरीसिंह के तीन बेटे हुए - 1. भूपसिंह (उनके एक बेटा गुलाबसिंह) 2. ईश्वरसिंह 3. जीवनसिंह
  • ईश्वरसिंह के चार बेटे हुए - 1. करमसिंह 2. ऊधमसिंह 3. कृपासिंह 4. मेहरसिंह
  • जीवनसिंह के छः बेटे हुए - 1. हरनामसिंह 2. सन्तसिंह 3. फजलहक (मुसलमान हो गया) 4. गुरुदयालसिंह 5. मुहम्मद इकबाल (मुसलमान हो गया) 6. बलवन्तसिंह

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-536


Notable persons

  • Sirdar Bhup Singh, Bhagga (b.1836), - Man-Jat, was a Punjab Chief.

External links

References


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