Dakshinagiri

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Dakshinagiri (दक्षिणगिरि) is name a Mountain mentioned in Mahavansha. It is identified probably with Sanchi.

Origin

Variants

History

Mahavansha

Mahavansa/Chapter 13 mentions The Coming of Mahinda to Lanka. THE great thera Mahinda, of lofty wisdom, who at that time had been twelve years (a monk), charged by his teacher and by the brotherhood to convert the island of Lañkä, pondered on the fitting time (for this) and thought: `Old is the king Mutasiva; his son must become king.'

When he had resolved to visit in the meantime his kinsfolk, he bade farewell to his teacher and the brotherhood and having asked the leave of the king he took with him the four theras and also Samghamitta's son, the miraculously gifted samanera Sumana, mighty in the six supernormal powers; and he went to Dakkhinagiri to confer on his kinsfolk (the) grace (of his preaching). While he was so doing six months passed away. When he came in time to Vedisagiri the city of his mother Devi, he visited his mother and when Devi saw her dear son she made him welcome, and his companions likewise, with foods prepared by herself, and she led the thera up to the lovely vihära Vedisagiri.


Mahavansa/Chapter 29 mentions about the Obtaining of the Wherewithal to build the Great Thupa....When the king, glad at heart, had thus had preparation made upon the spot where the Great Thüpa was to be built, he arranged, on the fourteenth day of the bright half of the month Asalha, an assembly of the brotherhood of the bhikkhus....From various (foreign) countries also did many bhikkhus come hither....From the Dakkhinagiri in Ujjeni came the thera Urusamgharakkhita with forty thousand ascetics.

दक्षिणगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ... दक्षिणगिरि का उल्लेख 'महावंश' 13, 5 में इस प्रकार है- 'इस बीच में उपाध्याय और संघ की वंदना कर तथा राजा (अशोक) से पूछ, स्थविर महेन्द्रसेन, चार स्थविरों तथा संघमित्रा के पुत्र महासिद्ध षड़भिक्षु सुमन सामणेर को साथ ले, संबंधियों से मिलने के लिए दक्षिणगिरि गए। (आनंद कोसल्यायन, महावंश पृष्ठ 68.) इसी के आगे विदिशागिरि का उल्लेख किया गया है। दक्षिणगिरि (AS, p.423) सांची या भिलसा (मध्य प्रदेश) के परिवर्ती पहाड़ी प्रदेश की कोई पहाड़ी हो सकती है। संभवत: यह सांची ही है। यह भी संभव है कि कालिदास ने जिस पहाड़ी को 'मेघदूत' में 'नीची' या 'नीच गिरि' कहा है, उसी का नाम दक्षिणगिरि हो सकता है। 'दक्षिण' और 'नीच' समानार्थक शब्द भी हैं। (दे.नीच गिरि)

नीचगिरि

नीचगिरि (AS, p.504) का उल्लेख कालीदास के 'मेघदूत'(पूर्वमेघ 27) में हुआ है, जिसके अनुसार इसे एक पहाड़ी बताया गया है- 'नीचैराख्यं गिरिमधिवसेस्तत्र विश्रामहेतोस्त्वत् संपर्कात् पुलकितमिवप्रौढ़ पुष्पै: कदंवै:, य: पण्यस्त्री रतिपरिमलोद्गारिभिर्नागराणामुद्दामानि प्रथयति शिलावेश्मभियौवनानि'

कालिदास ने नीचगिरि का उल्लेख विदिशा के पश्चात् किया है और सर जॉन मार्शल का अनुमान है कि शायद कालिदास ने वर्तमान सांची के स्तूप की पहाड़ी को ही नीचगिरि माना है। (दे. ए गाइड टू सांची) विदिशा के उत्कर्ष काल में सांची की पहाड़ी पर अवश्य ही इस विलासवती नगरी का क्रीडाद्यान रहा होगा। सांची, विदिशा से चार-पांच मील दूर है। (महावंश आनंद कौसल्यायन की टीका, पष्ठ 68) में जिस पहाड़ी को दक्षिणगिरि कहा है वह नीचगिरि ही जान पड़ती है। 'नीच' और दक्षिण शब्द समानार्थक भी हैं। (दे. दक्षिणगिरि)

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References