Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Satyavati-Karna Singh
रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया
ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546
सज्जनों ! मिथिलापुरी राजधानी में राजा अजीत सिंह राज करते थे। उनकी रानी का नाम वेदवती, बेटा कर्ण सिंह व बेटी सत्यवती थी । राजा ने राजकुमार कर्ण सिंह की सगाई चंपागढ़ के राजा इन्द्रसेन की राजकुमारी इंद्रा से कर रखी थी । राज में अमन चैन था किन्तु रूद्र नारायण डाकू ने आतंक मचा रखा था इसलिए राजा कुछ सैनिक लेकर डाकू की तलाश में निकल जाता है ।
- == कथा परिचय ==
- == आनन्दी ==
- अजीत सिंह महीपाल की, मिथिलापुरी राजधानी थी।
- वेदवती पतिव्रता सती, राजा अजीत की रानी थी।
- कर्ण सिंह एक राजकुमार था, चढ़ती हुई जवानी थी।
- सत्यवती एक राजकुमारी, आयु बिल्कुल यानी थी।।
- रूद्रनारायण डाकू, राज में करने लगा फिसाद सुनो।
- रोजाना डाके मारे, करे नये नये अपराध सुनो।
- राज के अन्दर जुल्म देखकर, राजा ने सोचा मन में।
- प्रजा मेरी दुख पावे, धिक्कार मेरे क्षत्रियपन में।।
- अपनी सेना लेकर के, जंगल को हुआ रवाना था।
- उसी दिशा में चाल पड़ा, डाकू का जहाँ ठिकाना था।।
- राजा बोला कितने ही चाहे, तन पै कष्ट उठाऊँगा।
- जब तक डाकू नहीं पकड़ा जा, लौट के घर नहीं आऊँगा।।
- वेदवती ने पीछे से, अपना प्रोग्राम बनाया है।
- कुम्भ का मेला देखण जाऊँ, सखियों को बुलवाया है।।
वार्ता- सज्जनों ! इधर रानी अपनी सहेलियों को बुलाकर हरिद्वार कुम्भ का मेला देखने का प्रोग्राम बनाती है ।
भजन-1 रानी वेदवती का
- तर्ज : होगा गात सूक के माड़ा........
- चालो सखी सहेली सारी, मिलके अपनी करलो तैयारी।
- म्हारी उमर गई बेकार में, कुम्भ का मेला सै हरिद्वार में।। टेक ।।
- ऋषि मुनि वहाँ आवें महात्मा, बड़े-बड़े दुर्वेश।
- वेदों के उपदेश सुनेंगी, मनके मिटें क्लेश।
- देश-देश के राजा आवें, गंगाजी के गोते लावें।
- आवें मुक्ति के इन्तजार में, कुम्भ का मेला सै हरिद्वार में।। 1 ।।
- छोटे-छोटे मेले बहुत से, एक साल में आवें।
- गूगा भैरूं सेढ़-मसानी, कोई देवी पर जावें।
- बतावें बारह साल में आवे, न्यू ये महाकुम्भ कहलावे।
- दिखावे कौन भला संसार में, कुम्भ का मेला सै हरिद्वार में ।। 2 ।।
- हार सिंगार बनालो, अंगूरी चम्पा चमेली केला।
- सारी जिन्दगी याद करोगी, इसा दिखाऊँ मेला।
- धेला नहीं खर्च करवाऊँ, पाई-पाई बिल भुगताऊँ।
- लगाऊँ रूपैया कई हजार मैं, कुम्भ का मेला सै हरिद्वार में।। 3 ।।
- छोटे बच्चे गोदी में ले, त्यार हो गई थी सारी।
- भालोठिया कहे घोड़ा-बग्गी, ऊँट गाड़ी न्यारी।
- सवारी शाम को हुई रवाना, जा जंगल में हुआ ठिकाना।
- गाना जेवर की झनकार में, कुम्भ का मेला सै हरिद्वार में। 4 ।।
- == आनन्दी ==
- रूद्रनारायण की टोली ने वहाँ आके डाका डाला था।
- जेवर कपड़े तार लिये, ये डाकू ने घर घाला था।
- राजकुमारी सत्यवती को, डाकू ले गये साथ में।
- उसके सोने का जेवर था, गले पैरों और हाथ में।।
वार्ता- सज्जनों ! हरिद्वार जाते समय जंगल में रात को डाकूओं ने डाका डाला व उनके जेवर, कपड़े और राजकुमारी को उठा ले गये ।
भजन-2 कवि का
- तर्ज : गंगा जी तेरे खेत में.........
- जंगल बियाबाऽऽऽन में, हो रही थी हाहाकार।
- अंधेरी राऽऽऽत में, रोवे थी महारानीऽऽऽ।। टेक ।।
- रात अंधेरी, विपदा गेरी, जंगल बियाबान उजाड़।
- कई मील तक, झील बनी, और आसमान को नापें पहाड़।
- कहीं रेतीले, खड़े थे टीले, कहीं खड़े थे झुण्डे झाड़।
- कहीं पै अजगर, काले विषियर, मस्त ऊँट पीसैं जाड़।
- रींछ भगेरे, फिरें भतेरे, शेरों की सुनती दहाड़।
- हाथी चालें, जंगल हालें, जोर की मारें चिंघाड़।
- पाड़ लगी सुनसाऽऽऽन में, वो डाकू थे बदकार।
- फिरें थे घाऽऽऽत में, वोह करगे मनमानीऽऽऽ।। 1 ।।
- जगत के स्वामी अंतरयामी, आप सुनो फरियाद मेरी।
- जेवर धन, सब ले गये दुश्मन, जिन्दगानी बरबाद मेरी।
- होके प्रगट, मेटो संकट, करो आप इमदाद मेरी।
- महल में दासी, बारहमासी, टहल करें थी रोज मेरी।
- पति नहीं घर, पढ़े कॅवर, अब कौन करेगा खोज मेरी।
- रोवें सहेली, खड़ी अकेली, नहीं साथ में फौज मेरी।
- घेरी आ मैदाऽऽऽन में, जब सो गये पहरेदार।
- दर्द सै गाऽऽऽत में, अब हो गई परेशानी ऽऽऽ।। 2 ।।
- मुझे बचाओ, दौड़ के आओ, सुनता हो आवाज मेरी।
- नहीं सहारा, दूर किनारा, नाव डूब रही आज मेरी।
- खुद के कारण, बनी भिखारण, खोई शर्म लिहाज मेरी।
- कर्म का चक्कर, पड़ा भयंकर, बिछुड़ गया परिवार मेरा।
- बन में फिरता, विपदा भरता, आज कहीं भरतार मेरा।
- गोदी सूनी, करगे खूनी, था बेटी से प्यार मेरा।
- डेरा महल मकाऽऽऽन में, था शाही दरबार।
- राज था हाऽऽऽथ में, आज हो गई बेगानीऽऽऽ।। 3 ।।
- आके बन में, फँसी विघ्न में, बिगड़ गये सब इन्तजाम।
- छाया सन्नाटा, दाल और आटा, राशन भी ले गये तमाम।
- लाग्या रगड़ा, झूठा झगड़ा, फेर करूँ नहीं तीर्थधाम।
- मिथिलापुर में, अपने घर में, वापिस क्योकर जाऊँगी।
- राजा आवे, आँख दिखावे, मन ही मन पछताऊँगी।
- धर्मपालसिंह, देख ढंग, मैं करणी के फल पाऊँगी।
- खाऊँगी विषपाऽऽऽन मैं, जीना सै बेकार।
- बात की बाऽऽऽत में, खोऊँ जिन्दगानी ऽऽऽ।। 4 ।।
- == आनन्दी ==
- जेवर ले लड़की का डाकू, अपना काम निकाल गये।
- लड़की को फिर बाँध के गठरी, एक झेरे में डाल गये।
- देवदत्त पंडित चम्पागढ़ का, हरिद्वार से आवे था।
- स्नान करके गंगा में वो, चम्पागढ़ को जावे था।
- बच्चा रोवे पंडित के, आवाज कान में आई थी।
- कान लगाके चारों ओर झेरे में सुरत लगाई थी।।
वार्ता- सज्जनों ! रास्ते में डाकू लड़की को झेरे में डाल गए । देवदत्त ब्राह्मण रोती हुई उस बच्ची को अपने घर चंपागढ़ ले गया और अपने बच्चे की तरह पालने लगा ।
भजन-3 देवदत्त पंडित का
- तर्ज : चौकलिया
- बियाबान भयंकर जंगल, दीखे नहीं अंधेरे में।
- किस पापी ने जुल्म करा, ये बच्चा रोवे झेरे में।। टेक ।।
- सारा जंगल गूँज रहा, कहीं हाथी खड़े चिंघाड़ें सैं।
- कहीं पर काले सांप पड़े सैं, कहीं अजगर मुँह पाड़ें सैं।
- चीता रींछ भगेरा बोलें, बब्बर शेर दहाड़ें सैं।
- जो कोई माणस मिले अकेला, उसको तुरंत पछाड़ें सैं।
- एक बात मैं न्यू सोचूँ , अब ज्यान बचेगी बेरे में ।। 1 ।।
- बारह-बारह कोस चोगरदे, कोई शहर घर गाम नहीं।
- कौन सहायता करदे मेरी, दीखे माणस जाम नहीं।
- जब तक भीतर नहीं बडूंगा, मेरे भी आराम नहीं।
- भीतर बडूं अकेला मैं, तो ये आसानी काम नहीं।
- सत्तर होली फूँक दई, अब ज्यान नहीं सै मेरे में ।। 2 ।।
- नहीं समाई पंडित के, अब सुन-सुन के हद होली थी।
- थोड़ा गहरा था वो झेरा, बड़के गठड़ी खोली थी।
- छोटी लड़की थी गठड़ी में, सूरत उसकी भोली थी।
- लिपट गई ब्राह्मण के लड़की, रो के मां-मां बोली थी।
- ज्यान बचाली कन्या की, जो फँसी मौत के घेरे में ।। 3 ।।
- लड़की रोवे थी गोदी में, पंडित रोवे खड़ा-खड़ा।
- कन्या के हत्यारे तेरे, क्यों नहीं काला नाग लड़ा।
- गया अन्धेरा हुआ सबेरा, बूढ़ा घर ने चाल पड़ा।
- कभी तेज कभी मंदा चाले, चम्पागढ़ में आन बड़ा।
- धर्मपालसिंह भालोठिया कहे, आ गया अपने डेरे में ।। 4 ।।
- == दोहा ==
- मिथिलापुरी में आ गया, पूरा राज परिवार।
- बहन की चला तलाश में, कर्ण सिंह राजकुमार।।
वार्ता- सज्जनों ! परिवार के मिथिलापुरी आने पर राजकुमारी का पता चला, कर्ण सिंह ने कहा मैं बहन को ढूंढने जाऊंगा और जब तक वह नहीं मिलेगी घर वापस नहीं आऊंगा ।
भजन-4 राजकुमार कर्ण सिंह का माँ से कहना
- तर्ज : चौकलिया
- कर प्रतिज्ञा चला कर्ण सिंह, आज अकेला जाऊँगा।
- आऊँ नहीं अकेला एक दिन, साथ बहन को लाऊँगा।। टेक ।।
- पोशाक जितनी राजकंवर की, तन से आज उतारूँ माँ।
- जटा बढ़ाके राख रमा, साधु का बाणा धारूँ माँ।
- जहाँ कहीं मिल जावें डाकू, गिन-गिन उनको मारूँ माँ।
- राम हिमाती हिम्मत का सै, मैं नहीं हिम्मत हारूँ माँ।
- सपूत बच्चे कैसे हों, दुनिया को सीन दिखाऊँगा ।। 1 ।।
- क्या-क्या बीती साथ आपके, सारा हाल बतादे माँ।
- बहन को लेकर गये किधर, डाकू चांडाल बतादे माँ।
- कहाँ जंगल में बनती उनकी, रोटी-दाल बतादे माँ।
- जेवर कपड़ा कितना ले गये, नकदी माल बतादे माँ।
- मूल ब्याज ले लूँगा पूरा, मैं अपना प्रण निभाऊँगा ।। 2 ।।
- आत्महत्या नहीं करूँगा, कहीं लगा के फांसी माँ।
- बम्बई कलकत्ता दिल्ली, देखूँगा मथुरा काशी माँ।
- जंगल पहाड़ देख लूँ सारे, बन करके बनवासी माँ।
- चाहे जीओ सौ वर्ष, उमर भर करता रहूँ तलाशी माँ।
- जिस दिन मेरी बहन मिलेगी, आपके दर्शन पाऊँगा ।। 3 ।।
- मिथिलापुरी में जिस दिन, साथ बहन और भाई माँ।
- नगरी सारी नर और नारी, आवे देण बधाई माँ।
- देख के घर-बर करे पिताजी, बहन का ब्याह सगाई माँ।
- महल में जीजा गावें सहेली, गावें आप जमाई माँ।
- मेरी बहन की शादी में, भालोठिया को बुलवाऊँगा ।। 4 ।।
- == दोहा ==
- चम्पागढ़ में आ गया कर्ण सिंह,हो गई उमर सत्ताईस साल।
- सत्यवती पंडित के घर में, पन्द्रह साल उमर फिलहाल ।।
वार्ता- सज्जनों ! कर्ण सिंह बहन की तलाश में जब चंपागढ़ पहुंचता है वहां इंद्रसेन राजा की बेटी इंद्रा की स्वयंवर शादी हो रही थी लेकिन वह जीव बलि के लिए तैयार नहीं थी परंतु कर्ण सिंह ने वहां आकर शोर मचा दिया ।
भजन-5 कवि का
- तर्ज : इस फैशन नै म्हारे देश की, कती बिगाड़ी चाल .....
- इन्द्रसैन का, इन्द्रभवन में, लगा हुआ दरबार ।
- देखियो क्या होगा ।। टेक ।।
- इन्द्रसैन महाराजा की, बेटी इन्द्रा शहजादी।
- दिन में स्वयंवर सै उसका, शाम को हो जागी शादी।
- करी मनादी राजा ने, दिया दूर-दूर समाचार।।
- देखियो क्या होगा ।। 1 ।।
- सजा हुआ पंडाल गजब का, मंडप की शोभा न्यारी।
- चारों ओर कनात लगाई, जिस पै हुआ खर्च भारी।
- पंडित बैठे वेदाचारी, मंत्र रहे उचार।।
- देखियो क्या होगा ।। 2 ।।
- राजा गद्दी पर बैठे, प्रधान की कुर्सी थी न्यारी।
- बडे़-बडे़ सरदार बिराजे, बैठे अफसर सरकारी।
- एक ओर ने, देश-देश के, बैठे राजकुमार।।
- देखियो क्या होगा ।। 3 ।।
- देर हो रही पल-पल की, बैठे सब इन्तजार में।
- वरमाला लेकर शहजादी, आ पहुँची दरबार में।
- किसके माला डालेगी, न्यू करने लगे विचार।।
- देखियो क्या होगा ।। 4 ।।
- राजा मंत्री बतलाये, वो आपको बात बतानी सै।
- ब्याह से पहले देवी पर, बकरे की बली चढ़ानी सै।
- शहजादी न्यू बोली, क्यों करते अत्याचार।।
- देखियो क्या होगा ।। 5 ।।
- किसी जीव का गला काट के, नहीं बनूं हत्यारी मैं।
- इससे अच्छा तो बाबल, रह जांगी उमर कंवारी मैं।
- नरक नहीं देखूँगी मैं, निर्दोष पशु को मार।।
- देखियो क्या होगा ।। 6 ।।
- जहाँ स्वयंवर लगा हुआ, वहाँ एक संन्यासी आया था।
- जय हो धर्म की जय हो धर्म की, उसने शोर मचाया था।
- भालोठिया कहे हल्ला पड़ग्या, शादी रही उधार।।
- देखियो क्या होगा ।। 7 ।।
- == आनन्दी ==
- सांग देखकर साधु का, सब दरबारी हो गये हैरान।
- शहजादी कहे जल्दी पकड़ो, कहाँ गया पुलिस कप्तान।
- सात रोज हवालात में रखो, न्यू बोली थी शहजादी।
- काट के सिर देवी पर चढ़ाऊँ, फिर होगी मेरी शादी।।
वार्ता- सज्जनों ! साधु कर्ण सिंह के शादी में विघ्न डालने पर शहजादी उसी का सिर काट कर देवी पर चढ़ाने के लिए कहती है, तभी साधु शहजादी से कहता है -
भजन-6 साधु (कर्ण सिंह) का
- तर्ज : जरा सामने तो आओ छलीये.......
- जरा होश करो शहजादी, क्यों सिर काटे सै मेरा।
- तू डाकू मनै बतावे, के माल लूट लिया तेरा।। टेक ।।
- तू राजा की राजकुमारी, मैं साधु बैरागी।
- मैं तो अमर हो जाऊँगा, पर तू बण ज्यागी दागी।
- मत बणे पाप की भागी, हो ज्यागा घोर अन्धेरा ।। 1 ।।
- सुना आज तक निर्दोषों पर, जोर जुल्म जो करगे।
- हिरण्यांकुश दुर्योधन रावण, अपने पाप से मरगे।
- वो सिर बदनामी धरगे, हो गया नरक में डेरा ।। 2 ।।
- ओछे आदमी देखे हमेशा, ओछी बात करेंगे।
- जहाँ पोल दिखेगी उनको, वहाँ उत्पात करेंगे।
- अपनों से घात करेंगे, सारी दुनिया ने बेरा ।। 3 ।।
- मनै मार के तू रोवेगी, खेल बिगड़ जा सारा।
- मार के अपने कुत्ते को, ज्यों रोया था बंजारा।
- ले इतना समझ इशारा, माणस के लिए भतेरा ।। 4 ।।
- जैसी करणी वैसी भरणी, शास्त्र वेद बतावें।
- धर्मपालसिंह कहे प्राणी, करणी के फल पावें।
- सब हाथ पसारे जावें, जग चिडि़या रैन बसेरा ।। 5 ।।
- == आनन्दी ==
- पुलिस कप्तान बोला ये साधु, हवालात में नहीं डटे।
- देवदत्त के घर लाया किशनचंद, रोग कटे तो यहाँ कटे।
- कमरे में बन्द कर ताला लगाया, पंडित को दे दी ताली।
- सात रोज दो खान पान और आप करोगे रखवाली।
- सत्यवती अपने भाई को, भोजन रोज जिमावे थी।
- लेकिन पता नहीं था उसको, केवल फर्ज निभावे थी।।
वार्ता- सज्जनों ! साधु को सात दिन के लिए देवदत्त के घर बंदी रखा जाता है, उसे देखकर लोग चर्चा करते थे की साधु और लड़की की शक्ल एक जैसी है ।
भजन-7 लोगों का
- तर्ज : बार बार तोहे क्या समझाऊँ, पायल की झन्कार......
- साधु सती की शकल देखकर, लोग करें सब ध्यान।
- सृष्टि के कर्ता धर्ता, तेरी कारीगरी महान।। टेक ।।
- अलग-अलग दो खोड़ बनाई, एक सूरत, एक सूरत।
- एक रंग और एक ढंग, ये दो मूरत, दो मूरत।
- आपको कितनी पड़ी जरूरत, दीन बन्धु भगवान ।। 1 ।।
- कोई कहे ये दीखें दोनों, खास बहन-भाई, बहन भाई।
- कोई कहे ब्राह्मण के घर में, लड़की नहीं जाई, नहीं जाई।
- कोई कहे झेरे में पाई, जंगल के दरम्यान ।। 2 ।।
- सुन लोगों की बात कर्ण सिंह, सोचे था मन में, मन में।
- मेरी बहन को डाकू ले गये, बचपन में, बचपन में।
- देवदत्त को मिल गयी बन में, ये मेरा अनुमान ।। 3 ।।
- चन्द्रमा सा चेहरा दो, और एक शकल, एक शकल।
- एक ही इनका खानदान, और एक नशल, एक नशल।
- भालोठिया को नहीं मुश्किल, बिछड़ों का करे मिलान ।। 4 ।।
वार्ता- सज्जनों ! लोगों की चर्चा सुनकर साधु सोच में पड़ गया । उसे याद आया की बहन की हथेली में लहसुन का निशान था, उसे देखकर बहन को पहचान लिया ।
भजन-8 साधु (कर्ण सिंह) का
- तर्ज : शुभ कर्मों की कमाई कै के रोली लागै सै .......
- सुन के लोगों की कहानी, साधु पड़ग्या चक्कर में।। टेक ।।
- अगर सती की सकल को देखूँ, है माँ जाई बहन।
- देवदत्त ब्राह्मण की लड़की, कुछ लोगों का कहन।
- बयान सुनके ये जबानी, साधु पड़ग्या चक्कर में ।। 1 ।।
- सोते-सोते साधु के, आ गई याद बचपन की।
- बहन की हथेली पर थी, छाप एक लहसन की।
- मन की मेटूंगा परेशानी, साधु पड़ग्या चक्कर में ।। 2 ।।
- इसी फिकर में रात गुजारी, उदय हुआ था भान।
- साधु का भोजन लेकर के, लड़की पहुँची आन।
- खानपान करलो ज्ञानी, साधु पड़ग्या चक्कर में ।। 3 ।।
- बोला भोजन नहीं जीमूँगा, तबियत मेरी है कुन्द।
- गन्दे हाथ लगा दिये तूने, भोजन में दुर्गन्ध।
- मन्द मन्द बोले बाणी, साधु पड़ग्या चक्कर में ।। 4 ।।
- सती बोली महात्मा, मिटाले ये विश्वास।
- मेरी हथेली सूंघ ले तूं, कहाँ आती है बांस।
- खास देखली निशानी, साधु पड़ग्या चक्कर में ।। 5 ।।
- भालोठिया कहे बहन मिली, भाई को लगी औचाटी।
- कर्ण सिंह का दिल उझला था, झाल डटें नहीं डाटी।
- काटी संकट की जिन्दगानी, साधु पड़ग्या चक्कर में ।। 6 ।।
वार्ता- सज्जनों ! अगले दिन साधु का सिर काटा जाना था अतः गांव के लोग चिंता में विलाप कर रहे थे और साधु से उसका नाम व गांव पूछ रहे थे ।
भजन-9 लोगों का
- तर्ज : फिरकी वाली, तूं कल फिर आना.........
- अलफी वाले, तू अपना नाम बतादे, असली घर गाम बतादे,
- पिता और मात का, बटेऊ तूं आज रात-रात का।। टेक ।।
- चौड़ी छाती, लम्बी गर्दन, मृग जैसी आँख सैं, सिर पे लम्बे केश।
- गोरा-गोरा, गजब डठोरा, कौन तेरा घर देश।
- भेष सुहाना, शोभा दे भगवां बाना, ये संता की जमात का ।
- बटेऊ तूं आज रात-रात का ।। 1 ।।
- राजा नाटे, खुद सिर काटे, राजकुमारी आपका, हो जागा महापाप।
- नगरी सारी, नर और नारी, जो रातों करें विलाप।
- जाप करावें, साधु की खैर मनावें, के जोर चले पंचात का ।
- बटेऊ तूं आज रात-रात का ।। 2 ।।
- जिनका जवान बेटा मरजा, के जीना माँ बाप का, कौन बंधावे धीर।
- जिन्दगी खोवें, बैठे रोवें, नयनों बरसे नीर।
- शरीर सूके, दिन-रात चिंता फूँके, ढ़ंग बिगड़जा गात का ।
- बटेऊ तूं आज रात-रात का ।। 3 ।।
- दिन निकलेगा, तनै पकड़ के, पहलवान ले जावेगा, जहाँ लगे दरबार।
- इन्द्रा छोरी, मारे फोरी, सूंत रही तलवार।
- मार कसूती, ले-ले हाथां में जूती, अब आग्या ओड़ बारात का ।
- बटेऊ तूं आज रात-रात का ।। 4 ।।
- राम हिमाती हिम्मत का न्यू, सारी दुनिया बता रही, उसको करले याद।
- राम सुमरले, हिम्मत करले, हो जागा आजाद।
- इमदाद करेगा, भालोठिया नहीं डरेगा, धणी सै पक्का बात का।
- बटेऊ तूं आज रात-रात का ।। 5 ।।
वार्ता- सज्जनों ! साधु अपनी बहन सत्यवती को शुरू से अब तक की कहानी ब्योरेवार बताता है -
भजन-10 साधु (कर्ण सिंह) का बहन सत्यवती से कहना
- == आनन्दी ==
- बहन और भाई निकल गये, अब घर की सुरत लगाई थी।
- सुबह किशनचन्द पहलवान, देवदत्त के घर पर आया था।
- साधु वहाँ पर नहीं मिला और सत्यवती नहीं पाई थी।
- किशनचन्द ने शहजादी को, सारी व्यथा बताई थी।।
वार्ता- सज्जनों ! बहन और भाई रात को मौका देख कर घर के लिए भाग जाते हैं । सुबह किशनचंद पहलवान शहजादी को इसकी जानकारी देता है ।
भजन-11 किशनचन्द पहलवान का
तर्ज : जिन न करी दगा की कार,दगा उनके गल आन पड़ी ......
- आज हो गया जुल्म अपार, सुनो गौर से शहजादी।। टेक ।।
- मैं जो साधु लाया पकड़ के, जंजीरो से खूब जकड़ के ।
- अकड़ के बोले था बदकार, था असली उग्रवादी ।। 1 ।।
- देवदत्त पंडित के घर से, भागा खास आपके डर से।
- नगर से बाहर हुआ बदकार, उसको मिल गई आजादी ।। 2 ।।
- उस मोडे का गलत इरादा, सती को ले गया हरामजादा।
- दादा के चढ़ गया बुखार, सुबक-सुबक रोवे दादी ।। 3 ।।
- जिसको कर्म का पाठ पढा़ती, आज देवी की भेंट चढा़ती।
- करवाती तू ब्याह संस्कार, अब क्योंकर होगी शादी ।। 4 ।।
- भालोठिया कहे भरे भ्रम का, भांडा फूट गया कुकर्म का।
- धर्म का जो करता प्रचार, बना फिरे था सत्यवादी ।। 5 ।।
- == आनन्दी ==
- शहजादी ने दस घोड़ों पर, झट से काठी लगवाई।
- जंगल में जा घेर लिये थे, जहाँ जा रहे बहन-भाई।।
- शहजादी ने कर्ण सिंह पै, तान के तीर चलाया था।
- जख्मी हो गया, आँधी आ गई, इनके हाथ नहीं आया था।।
- कर्ण सिंह पर तीर चलाने वाले, अपना नाम बता।
- चढ़ घोड़े पर भाग गया, जंगल में हो गया लापता।।
- इन्द्रा ने सुना नाम कर्ण सिंह, चोट जिगर में लागी थी।
- ओ प्यारे कर्ण सिंह, प्यारे कर्ण सिंह, न्यू कहती हुई भागी थी।।
वार्ता- सज्जनों ! शहजादी इंद्रा को पहलवान से सूचना मिलने पर घोड़े पर चढ़कर पीछा करते हुए गई और इंद्रा के तीर चलाने पर अपने बचपन के मंगेतर कर्ण सिंह का नाम सुनकर कर इंद्रा ने उसके पीछे घोड़ा दौड़ा दिया और उसका नाम लेकर पुकारती है ।
गीत-12 इन्द्रा शहजादी का
- तर्ज : कजरा मोहब्बत वाला, अँखियों में ऐसे डाला.............
- घटा घन घोर पिया, आँधी का जोर पिया।
- जंगल बियाबान, हाय रे आओ मेरी जान।। टेक ।।
- कदम-कदम पै खतरा, ज्यान अकेली पिया।
- जोबन जवानी तन में, मस्ती अलबेली पिया।
- जिया दुख पाया मेरा, दिल क्यों दुखाया मेरा।
- दिखा निराली शान , हाय रे आओ मेरी जान ।। 1 ।।
- गरज-गरज के आवे, चमके ये बिजली घन में।
- मिलके बिछुड़गी जोड़ी, उठें झाल मन में।
- तन में सन्नाटा पिया, डटे नहीं डाटा पिया।
- जवानी का तूफान , हाय रे आओ मेरी जान ।। 2 ।।
- जीवन के साथी मेरे, आवे सै याद तेरी।
- मेरी ये पुकार पिया, जीना दुश्वार पिया।
- तड़प-तड़प के काया, जंगल में हो जा ढ़ेरी।
- दया करो श्रीमान , हाय रे आओ मेरी जान ।। 3 ।।
- जन्म-जन्म का सच्चा, मोहब्बत का मेल जहाँ।
- धर्मपाल सिंह खेलो, मोहब्बत का खेल वहाँ।
- यहाँ और वहाँ सारे, होते हैं जय-जयकारे।
- राजी हो भगवान , हाय रे आओ मेरी जान ।। 4 ।।
- == आनन्दी ==
- शहजादी यहाँ छोड़ तड़पती, बहन की चिन्ता में भाग्या।
- बहन को घेरे खड़ा किशनचन्द, मौके पर दुश्मन पाग्या।
- किशनचन्द को मार के आगे, दोनों चले बहन-भाई।
- पति-पति रही बोल भटकती, आगे शहजादी पाई।।
वार्ता-सज्जनों ! कर्ण सिंह ने बहन को घेरे खड़े किशनचंद को मार दिया और वहीं पर शहजादी के मिलने पर कर्ण सिंह ने शहजादी को वापिस चंपागढ़ जाने के लिए कहा किंतु शहजादी मना कर देती है ।
भजन-13 कर्ण सिंह इन्द्रा वार्तालाप
- तर्ज : सजना मैं जांगी मेले में,बलमा मैं जांगी मेले में .........
- सजनी चली जा चम्पागढ़, गौरी चली जा चम्पागढ़।
- मैं आऊँ बाँध के मोड़, करूँगा तोड़, रहेंगे साथ में।
- सजना नहीं जां चम्पागढ़, बलमा नहीं जां चम्पागढ़।
- मैं कहूँ जोड़ के हाथ, प्राण के नाथ, रहेंगे साथ में।। टेक ।।
- जब-जब मेरी सहेली अपनी, शादी में रंग छाँटे थी।
- गीत सुरीले गावें थी और खील-पतासे बाँटे थी।
- धूम-धड़ाके देख-देख के, मेरी छाती पाटे थी।
- मेरी शादी कब होगी, न्यू गिन-गिन के दिन काटे थी।
- सजना नहीं जां चम्पागढ़, बलमा नहीं जां चम्पागढ़।
- नहीं करूँ इन्तजार, मेरे भरतार, रहेंगे साथ में ।। 1 ।।
- बनड़ा बनूं मैं चम्पागढ़ में, मेरे बाराती आवेंगे।
- भाई भतीजा चाचा ताऊ, गोती नाती आवेंगे।
- मेरे पिताजी और फूफाजी, साथ में भाती आवेंगे।
- कितने जिगरी यार मेरे, बचपन के साथी आवेंगे।
- सजनी चली जा चम्पागढ़, इन्द्रा चली जा चम्पागढ़।
- वहाँ होगा ब्याह-संस्कार , लें फेरे चार, रहेंगे साथ में।। 2 ।।
- बिना शादी के ले चालूँ तो, घर कुणबे में चोरी सै।
- कोई कहेगा ल्याया उठा के, गये घरां की छोरी सै।
- कोई कहे घर-गाम नहीं , ये बचपन की हंडोरी सै।
- कोई कहे माँ-बाप नहीं, ये जीभ की चटोरी सै।
- सजनी चली जा चम्पागढ़, इन्द्रा चली जा चम्पागढ़।
- जहाँ पंडित बाँचे वेद, मिटादें भेद, रहेंगे साथ में ।। 3 ।।
- बात आपकी समझ गई, जो बने कहानी जीवन में।
- समाज करदे गृहस्थी के, भारी परेशानी जीवन में।
- ऋषि-मुनियों ने बना दई, जो रीत पुरानी जीवन में।
- फेरां के बिना बहू बने नहीं, कोई जनानी जीवन में।
- सजनां नहीं जां चम्पागढ़, बलमा नहीं जां चम्पागढ़।
- कर भालोठिया इन्तजाम, बनादे काम, रहेंगे साथ में ।। 4 ।।
सज्जनों ! जंगल में अमरनाथ के आश्रम पर कर्ण सिंह इन्द्रा की शादी होती है ।
भजन-14 कवि का
- तर्ज : मन डोले, मेरा तन डोले.............
- देखो शादी, एक शहजादी, एक सै राजकुमार।
- हो रहे जंगल में मंगल।। टेक ।।
- रूप नगर के मुखिया आ गये, सारी व्यवस्था करवाई।
- ब्याह शादी में खास जरूरत, बुला लिये ब्राह्मण-नाई।
- मंडप सजा दिया पंडित ने, वेदी सबके मन-भाई।
- शुभ-संस्कार घड़ी और मुहूर्त, होते सबको सुखदाई।
- छाई खुशी, नहीं देखी इसी, किसी राजा के दरबार।
- हो रहे जंगल में मंगल ।। 1 ।।
- गीत वक्त के गावण वाली, आ गई थी धापां ताई।
- माड़ी अंगूरी और किस्तूरी, दाखां भतेरी भरपाई।
- भूरी भरती सरती इमरती, मोहरी, पतोरी स्योबाई।
- कमला विमला और उर्मिला, शान्ती छन्नो अणचाई।
- आई खजानी लाडो नारानी, गावें मंगलाचार।
- हो रहे जंगल में मंगल ।। 2 ।।
- मिथिलापुरी का राजकुमार, चम्पागढ़ की शहजादी।
- अमरनाथ के आश्रम पे, जंगल में हो रही शादी।
- मात-पिता नहीं चाचा ताऊ, चाची ताई नहीं दादी।
- चारण भाट सुनावें कविता, ढ़ोल बजावें थे बादी।
- खादी वस्त्र, धारे शस्त्र, ले लिये फेरे चार।
- हो रहे जंगल में मंगल ।। 3 ।।
- अमरनाथ वर वधू को अपना, प्यार भरा दे आशीर्वाद।
- गृहस्थ के बन्धन में आ गये, जो प्राणी फिरते आजाद।
- जितने भी नर नारी आये, उन सब को दे रहे प्रसाद।
- धर्मपाल सिंह कहे कर्ण को, जन्मभूमि आ गई याद।
- आबाद कर, अब अपने घर, लें माता-पिता का प्यार।
- हो रहे जंगल में मंगल ।। 4 ।।
वार्ता- सज्जनों ! अमरनाथ आश्रम पर शादी के बाद कर्ण सिंह इन्द्रा और सत्यवती मिथिलापुरी के लिए चल देते हैं । उधर मिथिलापुरी में इनके स्वागत की तैयारियां होने लगती हैं ।
भजन-15 कवि का
- तर्ज : दिल लूटने वाले जादूगर,अब मैंने तुम्हें पहचाना है........
- मिथिलापुरी में होने लगा, जब स्वागत बहन और भाई का।
- राजा-रानी दंग रह गये, जब तांता लगा बधाई का।। टेक ।।
- थी खुशी भूप को मनमानी, बच्चों की करे था अगवानी।
- सिर पुचकारे थी रानी, उस इन्द्रसैन की जाई का ।। 1 ।।
- लिया रोक महल का दरवाजा, बोली बहन भाई आजा।
- मेरा नेग दे-दे ताजा, मांगे थी बार रूकाई का ।। 2 ।।
- सब पूरा रश्म-रिवाज किया, सब लोगों को धन्यवाद दिया।
- बहू ने आशीर्वाद लिया, सासू से पैर दबाई का ।। 3 ।।
- ज्यों होता मेल दूध जल का, न्यू मिलन हुआ बिछुड़े कुल का।
- रानी ने हार दिया गल का, बहू को मुँह दिखाई का ।। 4 ।।
- निर्बल निर्धन को दाम दिया, बेरोजगारों को काम दिया।
- भालोठिया का इनाम दिया, इस स्वागत की कविताई का ।। 5 ।।
सज्जनों ! इस प्रकार कर्ण सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण कर बहन के प्रति अपना धर्म निभायाऔर इसके बाद बहन व पत्नी को लेकर मिथिलापुरी पहुँचा, वहां समस्त नगरी व परिवार ने उनका भव्य स्वागत किया ।
- यू ट्यूब पर
- कथा – सत्यवती - कर्णसिंह
अजीत सिंह महाराजा की कभी मिथिलापुरी राजधानी थी।
वेदवती पतिव्रता सती, राजा अजीत की रानी थी।
कर्ण सिंह एक राजकुंवर था उनकी चढ़ती हुई जवानी थी।
सत्यवती एक राजकुमारी, अवस्था बिल्कुल यानी थी।।
- दोहा
सखियां पास बुला लई, रानी लागी कहन ।
हरिद्वार का मेला देखन चालो प्यारी बहन ।।
- भजन - 1
चालो सखियो चालो सखियो, मतना लावो बार ।
कुंभ का मेला देखण चालां, चालो हरिद्वार ।।
बड़े-बड़े साधु संतों के वहां दर्शन होंगे ।
वेदों के उपदेश सुनोगी मन प्रसन्न होंगे ।
पाप सभी मर्दन होंगे मन के मिटें विकार ।। 1 ।।
कौन बरजने वाला हे, आज बाहर गए महाराज ।
मेला देखां, हे गंगा नहावां, एक पंथ दो काज ।
आज रात को चलना चाहिए, मिलके सब हों तैयार ।। 2 ।।
पश्चिम में हुआ भान अस्त, छाई रात काली ।
सखी सहेली नई नवेली, रानी संग चाली ।
गोद में लड़की उठा ली, हो गई रथ अंदर सवार ।। 3 ।।
सच्चे मोती जड़े हुए, रेशम वस्त्र पहने ।
शीश चीर कोमल शरीर सै कैसे कैसे गहने ।
सुनहरे गहने पहने सबने, रतन जड़ाऊ हार ।। 4 ।।
नकली गहने दुख देवें, न्यू ऋषियों ने बतलाई ।
मिथिलापुरी की महारानी, जंगल में भूलगी राही ।
भगवान सिंह सिर करड़ाई नहीं बसावे पार ।। 5 ।।
- भजन - 2
शीश पीट के रोई थी रानी, हे मेरे भगवान ।
डाकू चाले कर गये हो ।। टेक ।।
र मनै डाकू भारी दुख देगे, मेरी बेटी ने उठा के लेगे ।
भे गए हाथ खूँन में अभिमानी, अन्यायी बेईमान ।
ज्यान का गाला कर गए हो ।। 1 ।।
कोई सुनता हो तो आइयो, मेरी बेटी न छुड़ा के लाइयो ।
बटवाइयो कोई विपत बिरानी, भूलूँ नहीं एहसान ।
दूर कसाला करग्या हो ।। 2 ।।
कैसे मिथिलापुरी में जाऊं, पति को कैसे मुंह दिखलाऊँ ।
खाऊँ जहर मरण की ठाणी, तज दूँ यहां प्राण ।
ज्यान का गाला करग्या हो ।। 3 ।।
- भजन – 3
चला था करणवीर, धार के प्रण वीर ।
बहन की तलाश में ।। टेक ।।
सुना हाल, हुए नेत्र लाल, ज्यों जलते हुए अंगारे ।
शेर ज्यों कड़के तड़के, ज्यों बिजली के सरारे ।
बहन की खोज करूँ, रात दिन रोज करूं ।
फिरूँ बारह मास मैं ।। 1 ।।
रूद्रदत्त बेईमान तनै, मैं जिंदा नहीं छोडूंगा ।
गिण गिण के तेरी मैं हड्डी पसली तोडूंगा ।
राक्षस सै जूण तेरा, मैं भी करके खून तेरा ।
बुझाऊंगा प्यास मैं ।। 2 ।।
चाहे कहीं भी मिले बहन, मैं टोहके लाऊंगा ।
बहन नहीं पाई तो वापिस मुंह नहीं दिखाऊंगा ।
शहर और उजाड़ छाणु समुद्र और पहाड़ छाणु ।
धरती और आकाश में ।। 3 ।।
टोहते टोहते वर्ष बीतगे, लड़के ने दस बारा ।
राजधानी चंपागढ़ में, यो पहुंचा राजकुंवारा ।
भगवान सिंह काद्यान वहां पर, सिंगार के सामान वहां पर ।
होते थे रणवास में ।। 4 ।।
- दोहा
लाखों दुश्मन खड़े सिरहाने, एक एक से आला ।
कौन बिगाड़ करे उसका, जिसका भगवान रखवाला ।।
चंपागढ़ का देवदत्त, था उनका शुभ नाम ।
हरिद्वार स्नान करके, लौट रहा था धाम ।।
- भजन – 4
बारह बारह कोस चौगरदे , जंगल बियाबान रे ।
कौन विपत में रोवै सै, इस झेरे के दरम्यान रे ।। टेक ।।
भूल भटक के जो माणस, इस जंगल में आज्या रे ।
हाथी चीते शेर बघेरे, पाड़ के खाजां रे ।
न्यारे न्यारे हाड खिंडाज्यां, मिले ना नाम निशान रे ।। 1 ।।
भले आदमी दुखी रहें , जहां गुंडे बास करें ।
मनचाही उस जंगल में, डाकू बदमाश करैं रे ।
पराये धन की आस करें, नित गुंडे बेईमान रे ।। 2 ।।
दुखियारी विपता की मारी, यहां कैसे आई रे ।
के रास्ता गई भूल, के ठा लाई करड़ाई रे ।
जेवर और कपड़े तार लिए होंगे बहुत करी हैरान रे ।। 3 ।।
गऊ, कन्या और ब्राह्मण की, जो कोई विपत बटावे नां रे ।
पशु भला उस माणस तै , जो ईश्वर गुण गावे नां रे ।
कोई मनुष्य बतावै नां रे, फिरता फिरे बियाबान रे ।। 4 ।।
- भजन – 5
इंद्रसेन का इंद्रभवन में, लगा हुआ दरबार ।
राजा मंत्री बैठे दोनों, बड़े-बड़े सरदार ।। टेक ।।
इंद्रसेन महाराजा की, इंदिरा शहजादी सै ।
आज शाम को होनी जिसकी स्वयंवर शादी सै ।
स्वयंवर की करी मनादी सै, बांट बांट इश्तहार ।। 1 ।।
पढ़ी-लिखी विद्वान, राजा इंद्रसेन की पुत्री सै ।
वा रूप दीवानी गुण खाणी, जाणु स्वर्ग तै उतरी सै ।
शान शकल की सुथरी सै, चंद्रमा की ऊणीहार ।। 2 ।।
हाथ में फुलमाला ले, चली राजकुमारी जी ।
किसके माला डालेगी, यह इंतजारी जी ।
ईश्वर लीला न्यारी लोगो, नहीं बसावै पार ।। 3 ।।
उसी वक्त दरबार के अंदर, साधु पहुंचा आण ।
दोनों हाथ उठाके बोला, कल्याण हो कल्याण ।
भगवान सिंह काद्यान वहां पर, दिखे ना ननिहार ।। 4 ।।
- दोहा
बेरहमी के साथ में, जकड़ा हुआ शरीर ।
रहम करो रे रहम करो, न्यू कहण लगा फकीर ।।
- भजन – 6
शहजादी मनै मतना सतावै, मैं रमता राम फकीर
भीख मांग के खावणिया ।। 1 ।।
कतल तू इस साधु नै करके, खामखां खून हाथ में भर के ।
के मुँह ले के हर के जावै, लिखी मिले तहरीर ।
रोते सुने रुआवणीया ।। 2 ।।
बता के लुच्चा और लफंगा, कर्म तू करण लगी बेढंगा ।
गंगा जी में डले बगावै, यो बिगड़े निर्मल नीर ।
गाल बकेंगे न्हावणीया ।। 3 ।।
तोल नहीं था जिसके बल का, सीता नै लेग्या था भेष भर छल का ।
अपने कुल का दीवा बुझावे, था बांका रणधीर ।
मरगे सीता चुरावणिया ।। 4 ।।
- भजन – 7
साधु और सती की एक शकल है ।। टेक ।।
गोरे गोरे मुखड़े दो ये चांद के टुकड़े दो ।
खिला हुआ यो फूल कमल है ।। 1 ।।
एक सूरत है, ये दो मूर्त हैं ।
एक गोत्र और एक नसल है ।। 2 ।।
कहता योगी मेरी यह बहना होगी ।
कहती आत्मा, पर नाटै दिल है ।। 3 ।।
बहन और भाई दोनों यह देते दिखाई ।
एक गोत्र और एक नसल है ।। 4 ।।
- भजन – 8
लड़की की देखकर शकल, अकल साधु की चकराई ।। टेक।।
लड़की की शकल देखूँ , तो है मां जाई बहन ।
मगर देवदत्त ब्राह्मण की लड़की, लग रहे लोग कहन ।
है व्याकुल मन, टेढ़ी उलझन , जाती ना सुलझाई ।। 1 ।।
बैठे-बैठे साधु के, एक आई याद पुरानी ।
मेरी बहन की हथेली में थी लहसुन की निशानी ।
जब आवे अकेली, मैं देखूं हथेली, दिल में ठहराई ।। 2 ।।
इसी फिक्र में रात गुजारी, उदय हुआ था भान ।
साधु का भोजन लेकर, लड़की पहुंची आन ।
करती सवाल, बोली वचन, करती निवेदन, फूल सी कुमलाई ।। 3 ।।
योगी लो भोजन कर लो, आगे रख दिया थाल ।
मगर भोजन नहीं जीमा, दिल पर अति मलाल ।
करती सवाल जो, बता हाल, वो थी शरमाई ।। 4 ।।
कैसे खाऊं, क्या बतलाऊं, तबीयत बिल्कुल मंद ।
गंदे हाथ लगा दिए तुमने, भोजन में दुर्गंध ।
कहण लगी रे महात्मा, लीजियो मिटा विश्वास ।
मेरी हथेली सूँघ लो, कहां आती है बास ।
- भजन – 9
क्या नाम आपका, रे साधु क्या है नाम आपका ।। टेक ।।
कल आपको मारा जावेगा, सिर तारा जावेगा ।
काम नहीं इंसाफ का, रे साधु क्या है नाम आपका ।। 1 ।।
सोहनी सूरत तेरी छिप जावैगी, धरती थर्रावेगी ।
यो पाला बंधा पाप का, रे साधु क्या है नाम आपका ।। 2 ।।
जोर चले तो साधु तनै बचालूं , आई मौत नै टालूं ।
देकर हुकुम माफ का, रे साधु क्या है नाम आपका ।। 3 ।।
जिसका जवान बेटा मर जा, वो खाके तिवाला गिर जा ।
के जीना मां-बाप का, रे साधु क्या है नाम आपका ।। 4 ।।
- भजन – 10
तर्ज : अ दिल यह बता तू किस पै आ गया .......
के बूझेगी हाल मेरा, कुछ जाती नहीं बताई।
तू लागै सै बहन मेरी और मैं लागू तेरा भाई।। टेक ।।
मिथिलापुरी में राज करै, अजीतसिंह महीपाल।
तू भी उसकी बेटी सै और मैं भी उसका लाल।
सारा हाल बताऊँ किस विध, चम्पागढ़ में आई।
किस कारण तेरे भाई ने, तन में खाक रमाई ।। 1 ।।
गये पिताजी डाकू पकड़न, ले के सेना साथ।
पीछे से हरिद्वार का मेला, देखण चाली मात।
राह में हो गई रात, सिर पर छाई करड़ाई ।
वन के अंदर फिरी भटकती, माँ भूल गई राही ।। 2 ।।
मौका पाकर रुद्रदत्त ने फिर, गेर दिया डाका।
जेवर कपड़े तार लिये, नहीं जोर चला माँ का।
तेरे डाका याद न आवे, थी उमर साल ढ़ाई ।
संग में तनैं ले गये, उठाके वो डाकू अन्याई ।। 3 ।।
माताजी ने रो रो के, डाके का हाल सुनाया।
ठंडा हो गया खून मेरा, एकदम सन्नाटा छाया।
काया चक्कर खा गई एकदम तबियत घबराई।
आग बदन में लाग गई, मैंने रोटी ना खाई ।। 4 ।।
सत्यवती सै नाम तेरा, और मेरा नाम करण हे।
ढूँढ बहन को लाऊँगा, मैंने दिल में किया प्रण हे।
छान लिये आकाश धरण, तू कहीं भी नहीं पाई।
मारा-मारा फिरा बनों में, विपदा घणी उठाई ।। 5 ।।
सत्यवती के पक्की जचगी, यो भाई माँ जाया।
लिपट गई थी कर्ण सिंह के, दिल दरिया उझलाया।
बहन को भाई पाया था, न्यू खुशी गात में छाई ।
भगवान सिंह कहे जिसी खुशी, उसी टेढी़ कविताई ।। 6 ।।
- भजन – 11
जा मत रे मेरे वीर, तू छोड़ के जा मत रे ।। टेक ।।
मां जाए वीर काल नै घेरा, राजकुमारी सिर कटवावै तेरा ।
ले पैनी जंजीर ।। 1 ।।
तेरे साथ बचपन में खेली, तड़के जा बीरा छोड़ अकेली।
नैनो बरसे नीर ।। 2 ।।
कहण लगी मैं क्यों ना मरगी पापण, भाई खाणी डैण बणी मैं काली सांपण ।
रोई होय अधीर ।। 3 ।।
देखें बाट पिता और माता, कब आएंगे दोनों बहन और भ्राता ।
उनकी कौन बन्धावे धीर ।। 4 ।।
- आनंदी
काली रात अंधियारी, झुक रही थी रात अंधियारी ।।
चंपागढ़ का फाटक भिड़ग्या, देख नाग सा लड़ग्या ।
अड़ग्या अड़ग्या कर्म अगाड़ी, अड़ग्या कर्म अगाड़ी ।। 1 ।।
एक गली से दोनों लिकड़गे , दुर्ग दीवार पर चढगे ।
नीचे छलांग मारी, छलांग मारी, काली रात अंधियारी ।। 2 ।।
- आनंदी
सती ने ले के भाग गया, वो साधु बदमाश ।
असली बात बताऊं मैं ।। टेक ।।
हाय हाय चाले करग्या निर्भाग, वो लेग्या तार राज की फाग ।
दाग आपके लाग गया, हुआ बात का नाश ।
उसने अमृत में विष घोला, वो रोवै सै पुजारी भोला ।
मैं रोला सुनके जाग गया, फिर आया आपके पास ।
सही हालात बताऊं मैं ।।
- भजन – 12
घोड़ों के सवार आते हैं मेरी बहना ।। टेक ।।
घोड़ों के टाप सूनैं सैं, वो आलिए बेबे कई जणे सैं ।
यह हमें पकड़ना चाहते हैं मेरी बहना ।। 1 ।।
संग में इंदिरा राजकुमारी, जिसको क्रोध चढ़ा सै भारी ।
देख के क्रोध आते हैं मेरी बहना ।। 2 ।।
लेकिन बहना मत घबराओ, इस रास्ते से बहन चली जाओ ।
वो इस रास्ते से आते हैं मेरी बहना ।। 3 ।।
- आनंदी
कर्ण सिंह पर तीर चलाने वाले, अपना नाम बता।
वो इतनी कह कर भाग गया, बन में हो गया लापता।।
इन्द्रा ने सुना नाम कर्ण सिंह, चोट जिगर में लागी थी।
ओ मेरे पति कर्ण सिंह, प्यारे कर्ण सिंह, न्यू कहती हुई भागी थी।।
- भजन – 13
गरजता घन, जंगल बियाबन, इंद्रा मारे किलकारी ।। टेक ।।
प्यारे राजकुमार, दिखला दे वार ।
करो माफ खता, मुझे नहीं था पता ।
बंधवा के बेल, या भेज जेल ।
कहां लगा बाण, बतलाओ आन ।
हो करूं मरहम पट्टी, हो इंद्रा मारे किलकारी ।।
- भजन – 14
तर्ज : मेरा दिल ये पुकारे आजा.......
मेरी टेर सुनो अविनाशी, तुम हो घट-घट के वासी।
है मझधार में नैया, तुम बिन कौन खिवैया ।। टेक ।।
आपके दरबार में इन्साफ, होता है, होता है।
हमने सुना जहाँ कहीं पाप, होता है, होता है।
करते भक्तों की इमदाद, किया दुष्टों को बरबाद ।
- करे करके आप तलाशी ।। 1 ।।
जो कोई निर्बल को दुख देना चाहता है, चाहता है ।
उसकी इज्जत आबरू को लेना चाहता है, चाहता है ।
बनके निर्बल के राम, उनका किया सिद्ध काम ।
- नहीं लागी देर जरा सी ।। 2 ।।
एक रोज सीता जी सताई, रावण ने, रावण ने ।
लोभ दिया खंजर से डराई, रावण ने, रावण ने।
रावण वीर था बंका, मिलादी खाक में लंका।
- आज लोग उड़ावें हाँसी ।। 3 ।।
भरी सभा में केश पकड़ के मुक्का, मारा था, मारा था।
द्रोपदी ने प्रभू आपको रूक्का, मारा था, मारा था।
वो पापी दुर्योधन, जो करता था विघन।
- वो मारा सत्यानाशी ।। 4 ।।
आज मैं भी जुल्मों का शिकार, हो गई, हो गई।
घर और गाँव छोड़ के फरार, हो गई, हो गई।
धर्मपाल सिंह भाई, सुनाया करता कविताई ।
- बन गई मैं बनवासी ।। 5 ।।
- भजन – 15
- (सावन का विरह गीत)
तर्ज -सावन की मल्हार - बाजन लगे समर के ढोल ----
सावन आया, बहना सारी झूलती हे,
हे री मेरा, कहाँ गया चित चोऽऽर ।
सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। टेक ।।
नगर हिंडोले, बहना मेरी गड गये री।
हे री कोई, जिनकी हो समय डोर ।।
सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। 1 ।।
काले काले बदले, बहना मेरी छा गये री।
ऐरी कहीं, बिजली कर रही घोर ।।
सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। 2 ।।
पी पी पपीहा, बहना मेरी बोलता री।
एरी कहीं, मोर मचावें शोर ।।
सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। 3 ।।
छोटी छोटी बुन्दियां, बहना मेरी पड़ रही री।
एरी कहीं, परवा हवा का जोर ।।
सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। 4 ।।
हरी हरी खेती, बहना मेरी लहलहा रही री।
एरी कहीं, दूब चरैं सैं ढ़ोर।।
सावन सूना, सैंया बिन रह गया री ।। 5 ।।
- भजन – 16
आनंद बाजे बजें द्वारे, खुशी शहर में छाई ।
सूखे बाग हुए हरियाले, होगी मन की चाही ।। टेक ।।
सूते जागे भाग हमारे, हरे हो गए बाग हमारे ।
प्रसन्न हुए चिराग हमारे, हो गई ज्योत सवाई ।। 1 ।।
राजा खुश हो दान करके, घर आए का मान करते ।
धन धन सभी किसान करते, कर दी लाख उघाही ।। 2 ।।