Gaitor

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Gaitor (गैटोर) is the crematorium of royal family of Jaipur located at the foot hills of Nahargarh fort in Jaipur, Rajasthan, India.

Origin

Gaitor gets name from Meena clan ruler named Gaita Meena prior to its occupation by Dulahrai Kachhwaha. [1]

Variants

History

There are several spectacular cenatophs and memorials built in the memory of various distinguished members of the royal family of Jaipur. The most prominent of the cenotaphs is that of Maharaja Jai Singh, which is made in the white marble. It has creamy marble domes with interiors of beautiful stonework encrusted with carvings of elephants, battle scenes and wild flowers.

गेटोर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...गैटोर (AS, p.295) राजस्थान के जयपुर में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है। यहाँ नाहरगढ़़ क़िले की तलहटी में दिवंगत राजाओं की छतरियाँ निर्मित हैं। पुरातत्त्व महत्त्व की अनेक वस्तुएँ यहाँ पाई गई हैं। प्राचीन राजाओं की समाधि-छतरियाँ आदि यहाँ के उल्लेखनीय स्मारक हैं। ये राजस्थान की प्राचीन वास्तुकला के सुन्दर उदाहरण हैं।

गैटोर परिचय

नाहरगढ़ और गढ़गणेश की पहाड़ियों की तलहटी में शांत और सुरम्य स्थल पर जयपुर के राजा, महाराजाओं का समाधि स्थल है। यहाँ जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर अंतिम शासक महाराजा माधोसिंह द्वितीय की समाधियां हैं।

छतरियाँ: सबसे सुंदर छतरी जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जयसिंह की है, जिसकी एक अनुकृति लंदन के 'केनसिंगल म्यूजियम' में भी रखी गई है। हिन्दू राजपूत स्थापत्य कला और पारंपरिक मुग़ल शैली के बेजोड़ संगम का प्रतीक ये छतरियाँ अपनी खूबसूरती के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। दिवंगत राजाओं का दाह संस्कार करने के बाद उस स्थल पर राजा की स्मृति स्वरूप ये समाधियां बनाई गई थीं। सभी समाधियां सबंधित राजा, महाराजा के व्यक्तित्व और उनकी पदवी के अनुसार भव्यता के विभिन्न स्तर छूती हैं।

शिल्पकला: इन छतरियों में सीढ़ीदार चबूतरे के चारों ओर का भाग पत्थर की जालियों से आच्छादित है और केन्द्र में सुंदर खंभों पर छतरियों का निर्माण किया गया है। गैटोर की छतरियाँ मुख्यत: तीन चौकों में निर्मित हैं। चौक के मध्य भाग में जयपुर के संस्थापक राजा सवाई जयसिंह की भव्य छतरी है, जो 20 खंभों पर टिकी हुई है। ताज संगमरमर से बनी इस सुंदर समाधि के पत्थरों पर की गई शिल्पकारी अद्भुद है। समाधि के चारों ओर युद्ध, शिकार, वीरता और संगीत प्रियता के शिल्प मूर्तमान हैं। इसी चौक के बाईं ओर राजा सवाई मानसिंह की संगमरमर निर्मित भव्य छतरी है। गौरतलब है कि राजा मानसिंह पोलो के अच्छे खिलाड़ी थे।

इसके अलावा यहाँ महाराजा माधोसिंह द्वितीय और उनके पुत्रों की भी भव्य समाधियां बनी हुई हैं। यहाँ से अगले चौक में एक विशाल छतरी भी है। राजपरिवार के तेरह राजकुमारों और एक राजकुमारी की महामारी से एक साथ हुई मौत के बाद यह छतरी उन सभी की स्मृति में बनाई गई थी। इसी चौक में वटवृक्ष के नीचे भगवान शिव का प्राचीन मंदिर भी है। तीसरे चौक में राजा जयसिंह, महाराजा रामसिंह, सवाई प्रतापसिंह और जगतसिंह की समाधियां हैं। राजा जयसिंह की समाधि मकराना संगमरमर से बनी है तो राजा रामसिंह की समाधि में खूबसूरत इटैलियन संगमरमर का प्रयोग किया गया। इन दोनों समाधियों पर की गई शिल्पकारी राजस्थान की पारंपरिक शिल्पकला का अद्भुद नमूना है।

सिसोदिया रानी के बाग़ में फव्वारों, पानी की नहरों, व चित्रित मंडपों के साथ पंक्तिबद्ध बहुस्तरीय बगीचे हैं व बैठकों के कमरे हैं। अन्य बगीचों में, विद्याधर का बाग़ बहुत ही अच्छे ढ़ग से संरक्षित बाग़ है, इसमें घने वृक्ष, बहता पानी व खुले मंडप हैं। इसे शहर के नियोजक विद्याधर ने निर्मित किया था।

गैटोर की छतरियों से एक प्राचीर के साथ सीढ़ीदार मार्ग टाईगर फोर्ट की ओर भी जाता है। राजपरिवार के लोग यह मार्ग नाहरगढ़ से समाधि स्थल तक पहुंचने के लिए इस्तेमाल करते थे। वर्तमान में गैटोर की छतरियों का रखरखाव और संरक्षण सिटी पैलेस प्रशासन के अधीन है।

संदर्भ: भारतकोश-गैटोर जयपुर

ढूंढाड़ अंचल का प्राचीन क़स्बा

जमवारामगढ़ ढूंढाड़ अंचल का प्राचीन क़स्बा है जो जयपुर से उत्तर-पूर्व में 30 किमी दूरी पर स्थित है. जयपुर शहर के पानी की पूर्ती यहाँ के बाँध से होती है. कछवाहों के आगमन से पूर्व यह स्थान मांच (मंच) कहलाता था. यहाँ सीहरा वंशीय मीणों का राज्य था. मांच में उस समय वंश का राव नाथू राज्य करता था. उसका पुत्र मेदा था. राज्य स्थापना के क्रम में दूलहराय का मंच के मीणा शासक से युद्ध हुआ. दूलहराय ने स्थान का नाम राम के नाम पर रखा रामगढ़. यहीं जमवायमाता का मंदिर बनवाया. जमवाय माता कछवाहों की कुलदेवी के रूप में मानी जाती है. दूलहराय ने बाद में मीणों के अन्य संस्थान - चांदा मीना की खोह, गेटा मीना का गेटोर, तथा झोटा मीना का झोटवाड़ा पर अधिकार कर लिया। आगे चलकर कछवाहों की राजधानी आमेर होने के बाद भी रामगढ़ का महत्व हुआ यह वहाँ के शिलालेख से ज्ञात होता है.[3]

External links

References

  1. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,p.107
  2. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.295
  3. Dr. Raghavendra Singh Manohar:Rajasthan Ke Prachin Nagar Aur Kasbe, 2010,pp. 106-107