Harphool Singh Kulhari
Subedar Harful Singh Kulhari (2.6.1952-30.5.1999) was a martyr of Kargil War. He was from village Triloki Ka Bas in Jhunjhunu district in Rajasthan. He was born in the family of Bhagirath Mal Kulhari. He joined Army on 4 August 1971. During his army service of 28 years he received many awards. He became martyr on 30 May 1999 in Kargil War. He was in Unit-17 Jat Regiment of Indian Army. Service no. of Sub HFS Kulhari is Jc183456 k.
सूबेदार हरफूल सिंह कुलहरी का जीवन परिचय
सूबेदार हरफूल सिंह कुलहरी (2.6.1952-30.5.1999) का जन्म 2 जून 1952 को गाँव तिलोका का बास में भागीरथ मल कुलहरी के घर में माता झूमा देवी की कोख से हुआ।
उन्होंने अपने गाँव से 5 किमी दूर स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कोलीण्ड़ा से 8 वीं पास की। 10 मई 1968 को उनका विवाह जीत की ढाणी की सुकनी देवी के साथ हुआ। परिवार की गरीब दशा को देखते हुए हरफूल आसाम चले गए जहां दो साल तक नौकरी की।
सेना में भर्ती
वह 4 अगस्त 1971 को सेना में भर्ती हुये। 1971 के युद्ध में वे जम्मू कश्मीर में पदस्त थे जहाँ उन्होंने बड़ी बहादुरी का परिचय दिया। वे 15 मार्च 1989 को नायब सूबेदार की रैंक में JCO के पद पर नियुक्त हुए। 1993 में सूबेदार के रैंक में कमीशन होने के 6 माह बाद सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन कर अमरत्व को प्राप्त करने वाले इस बहादुर का जीवन सैन्य प्राक्रम से भरा हुआ है। उन्होंने 2 नवम्बर 1998 से 31 जनवरी 1999 तक चौधरी चरण सिंह कृषि विश्व विद्यालय हिसार से Scientific Farming, Animal Science, Mashroom Production and Bee keeping विषय पर प्रशिक्षण प्राप्त किया।
कीर्तिमान स्थापित
सिपाही से सूबेदार बने हरफूल ने 28 वर्ष की सेवा में अनेक कीर्तिमान स्थापित किये. उनको प्राप्त बहादुरी के सम्मान में प्रमुख है:
- स्पेसल मैडल सेना ग्रुप
- स्पेसल मैडल J & K
- पश्चिमी स्टाल मैडल
- संग्राम मैडल
- स्वतंत्रता की रजत जयंती मैडल
- G. S. मैडल
- नौ वर्षीय सेवा मैडल
- 20 वर्षीय नायब सूबेदार कनिष्ठ आयुक्त मैडल
- 20 वर्षीय सूबेदार कनिष्ठ आयुक्त मैडल
- आपरेशन विजय J & K कारगिल मैडल
शहीद का परिवार
शहीद सूबेदार हरफूल सिंह के दो पुत्र और एक पुत्री हैं। बड़ी पुत्री प्रेम की शादी उन्होंने पहले ही गाँव सिरसली के उम्मेद सिंह भास्कर के साथ कर दी थी. उनके दो पुत्र प्रवीण तथा प्रदीप हैं। शहीद के बड़े भाई का नाम नौरंग सिंह है जो लम्बे समय तक सेना में रह चुके हैं। उनके पिता का स्वर्गवास पहले ही हो चूका था। मृत्यु के समय उनकी 75 वर्षीय माता झूमा देवी तथा 35 वर्षीय पत्नी सुकनी देवी गाँव में रहती हैं। उनकी बहादुरी के किस्से गाँव में बहुत प्रचलित हैं। वे गाँव के पहले फौजी हैं जो 28 वर्ष की सेवा कर शहीद हुए हैं.
आपरेशन विजय में शहीद
कारगिल के युद्ध में सेना की अन्य बटालियनों के साथ सूबेदार हरफूल की 17 जाट रेजिमेंट भी आपरेशन विजय में सम्मिलित थी। इसे द्रास सेक्टर में घुसपैठियों को खदेड़ने का जिम्मा दिया था। 29 मई 1999 को उच्च अधिकारियों के आदेश पर सूबेदार हरफूल 17 जाट रेजिमेंट की टुकड़ी के 38 सैनिको का नेतृत्व करते हुए मश्कोह घाटी के पॉइंट 4590 चोटी पर कब्ज़ा करने के लिए आगे बढे। उनकी 2 घंटे तक पाकिस्तानी सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई. हमले में 15 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। शेष घुसपैठिये भाग गए और भारतीय सेना का इस चोटी पर नियंत्रण हो गया। भारतीय सेना को इसमें कोई हानि नहीं हुई।
योजना के अनुसार सूबेदार हरफूल सिंह और उनकी टुकड़ी ने शत्रु की दूसरी चौकी की ओर बढना आरम्भ किया। रात के अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लगभग 4 बजे उन्हें पता चला कि वे शत्रु के काफी निकट पहुँच गए हैं। जब वे शत्रु की बंकर से 100 मीटर की दूरी पर थे, शत्रु ने घात लगाकर अचानक अँधा-धुंध फायरिंग शुरू की। गोलियों की गड़गड़ाहट के बीच हरफूल सिंह की टुकड़ी शत्रुओं पर टूट पडी। कई दुश्मन ढेर हो गए। इसी बीच हरफूल सिंह के एक साथी को एक गोली लगी और वह शहीद हो गया। एक गोली हरफूल सिंह के बांह में भी लगी पर इसकी परवाह नहीं की। अपने साथी रणवीर सिंह को हताहत होते देख हरफूल सिंह शत्रु पर कहर बनकर टूट पड़े। देखते ही देखते उन्होंने शत्रु के दो बंकर उड़ा दिए। अपने साथियों के साथ उन्होंने 22 शत्रु सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। इसी बीच भारतीय टुकड़ी की युद्ध सामग्री समाप्त हो गई। पीछे से कुमुक नहीं पहुँचने से हरफूल सिंह शत्रुओं से घिर गए। दो गोलियां उनके माथे पर लगीं और तीन सीने पर। हरफूल सिंह अपने अन्य पांच साथियों के साथ शहीद हो गए। उनके 9 अन्य साथी घायल भी हुए। हरफूल सिंह शहीद हो गए परन्तु उनकी सैन्य टुकड़ी ने उत्साह में भरकर तीव्र आक्रमण किया और वे "पॉइंट 4590" चोटी को प्राप्त करने में सफल रहे ।
शहीद सूबेदार हरफूल सिंह का शव ख़राब मौसम के कारण तुरंत नहीं प्राप्त हो सका था। 30 मई को शहीद होने के 46 दिन बाद 14 जुलाई 1999 को अन्य भारतीय सैनिकों के साथ 15 फुट गहरी बर्फ में दबा हुआ पाया था।
इस लड़ाई में बलिदान हुए अन्य सैनिकों के नाम...
सिपाही रणवीर सिंह, मैनपुरा, झुंझुनूं, (राजस्थान)
सिपाही विनोद कुमार नागा, रामपुरा, सीकर, (राजस्थान)
सिपाही कृष्ण कुमार बांदर, तरकांवाली, सिरसा, (हरियाणा)
सिपाही गजपाल सिंह, नगला चौधरी, हाथरस, (उत्तर प्रदेश)
सिपाही धर्मवीर सिंह कोयर, मलूपुर, आगरा, (उत्तर प्रदेश)
शहीद का सम्मान
वायुसेना के हेलीकोप्टर से उनका शव दिल्ली लाया गया जहां पर सेना के उच्चाधिकारियों ने पुष्प चक्र भेंट किया और फिर 15 जुलाई को उनके शव का पैतृक गाँव में सैनिक सम्मान के साथ दाह संस्कार किया गया। सेना की 123-इन्फैंट्री के जवानों ने नायब सूबेदार ओम प्रकाश सिनसिनवार के नेतृत्व में शहीद के सम्मान में 'गार्ड आफ आनर' दिया।
शहीद सूबेदार हरफूल सिंह की याद में सरकार द्वारा राजगढ़ रोड़ चुरू पर एक पेट्रोल पम्प उनके आश्रितों को आवंटित किया गया है।
Gallery
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सूबेदार हरफूल सिंह कुलहरी
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Harphool Singh Kulhari Statue
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Harphool Singh Kulhari Statue
सन्दर्भ
- श्री रमेश दधीच (मोब: 09413194024) - गाँव बीदासर , जिला चूरू, राजस्थान द्वारा जानकारियाँ और चित्र ई-मेल से उपलब्ध कराये गये।
- Parveen Kulhari - Son of Shaheed Harphool Singh Kulhari, Mob:9413360499
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