Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu/Wiki Editot Note

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Jat Samuday ke Pramukh Adhar Bindu, Agra, 2004

Author: Dr Ompal Singh Tugania

Publisher - Jaypal Agencies, Agra-282007


विकी एडिटर नोट

Note - The book contains information about the Upadhi (Titles), Baunk, Gotra, Vansha, Khap, Sarva Khap and Sarva Khap Panchayat of the Jat community and a Jat Gotras List (Jat Gotrawali).

Vanshas and Gotras

Gotras have initially been created in the name of a person, a place or some historical incidence. When a great person takes birth in a generation, all the previous titles of this generation are included in the name of this great person and a new gotra starts in his name. Like caste does not change, gotras and vanshas also do not change. There can be more than one gotra in a vansha but there can not be more than one vansha in a gotra. For example Chauhan Vansha has 116 gotras included in it.(Dr Ompal Singh Tugania: Jat samudāy ke pramukh Ādhār bindu, p.5)

Initially, there was only one vansha that was Manuvansha. Later one branch started from sons of Manu, which was called Suryavansh and other branch started from daughter of Manu, Ila, that was called Chandravansh. Later to minimize the influence of Buddhism and Jainism in India, the Brahmans organized a grand yagya at mount Abu in Rajasthan, which continued for 40 days. Almost all the ruling clans attended this yagya. The ruling clans which took part in this yagya were titled as ‘Rajputs’. Four Kshatriyas appeared from the agnikunda namely, Solankis, Pratiharas, Chauhans and Paramaras. They were termed, "Agnivanshi Kshatriyas".(Dr Ompal Singh Tugania: Jat samudāy ke pramukh Ādhār bindu, p.7)

पुस्तक- जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिंदु

Dr Ompal Singh Tugania

जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिंदु (2004)

लेखक : डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया

प्रकाशक : जयपाल एजेन्सीज, सुभाषपुरम, पुलिस चौकी के पीछे बोदला, आगरा- 282007, मूल्य : 35 रूपया

लेखक-डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया का परिचय

  • डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया पुत्र श्री वेद सिंह ।
  • जन्म - 1 दिसंबर 1951 गाँव: तुगाना, तहसील: बडौत, जिला: बागपत, उत्तर प्रदेश ।
  • शिक्षा - एम.ए. पी.एच.डी. (शिक्षा शास्त्र) ।
  • सेवा - हरयाना सरकार में राजपत्रित अधिकारी ।
  • स्थाई पता - 644 /21, होली चाइल्ड स्कूल रोड, नरेन्द्र नगर, सोनीपत, हरियाणा ।
  • संपर्क - मो. 09255135595, फोन: 0130-6527625.

क्यों जरूरी है यह पुस्तक ?

लोग जाट समाज के बारे में कितना जानते हैं? जाट जाति एक आदिकालीन जाति है जिसकी अपनी अनेक विशिष्ट व्यवस्थाएं हैं और इन अनुपम व्यवस्थाओं के कारण ही विश्व धरातल पर जाट समुदाय की अलग पहचान है. इसकी संरचना बेजोड़ और अनेक है और कुछ विशिष्ट मान बिंदुओं पर आधारित है जिनके बिना जाट समुदाय की कल्पना करना भी संभव नहीं है. इस की उपाधि, बौंक, गोत्र, वंश और खाप व्यवस्थाएं अपनी कोई सानी नहीं रखती. इस जाति ने अपने लिए कुछ सामाजिक मापदंड भी स्वयं ही निश्चित कर रखे हैं जिन्हें पीढ़ी दर पीढ़ परखा जाता है. यह समाज अपने गोत्र वंश और खाप पर बड़ा गर्व करता है. इन विशिष्ट मान बिंदुओं की अनभिज्ञता के कारण ही अक्सर कहीं न कहीं विवाद खड़े होते रहते हैं तथा स्वजनों को सामाजिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है. उपाधि, बौंक, गोत्र, वंश, खाप, गोत्रावली आदि व्यवस्थाएं जाट समुदाय की प्राचीन धरोहर हैं जिनका ज्ञान सभी को होना ही चाहिए ताकि अनावश्यक विवादों से बचते हुए जाट समुदाय अपने गौरवशाली परंपराओं को बनाए रखें. गोत्रों और खाप व्यवस्था पर अनेकों बार न्यायालयों में भी प्रकरण चलते हैं. परंतु समाज की इन व्यवस्थाओं के बारे में कहीं लिखित जानकारी नहीं मिलती. इस कमी को दूर करने के लिए मेरे द्वारा इस संबंध में उपलब्ध डॉ ओमपाल सिंह तुगानिया की एक मात्र पुस्तक ‘जाट समुदाय के प्रमुख आधार बिंदु’ डिजिटाइज़ कर Jatland.com पर उपलब्ध कराया गया है. आप यह लिंक खोलकर पढ़ सकते हैं- https://www.jatland.com/home/Jat_Samuday_ke_Pramukh_Adhar_Bindu

पुस्तक के अध्याय-8 में जाट गोत्रों की सूची दी गई है. इस सूची में से गोत्रों का संदर्भ प्रत्येक गोत्र में Jatland.com पर दिया गया है. यह सूची यहाँ जेपीजी फॉर्मेट में है.

पुस्तक समीक्षा

जाट जाति की विशिष्ट व्यवस्थाएं: जाट जाति एक आदिकालीन जाति है जिसकी अपनी अनेक विशिष्ट व्यवस्थाएं हैं. इनकी उपाधि, बौंक, गोत्र, वंश और खाप व्यवस्थाएं कोई सानी नहीं रखतीं. इस तरह की अनुपम व्यवस्थाएं अन्य समुदायों में नहीं मिलती हैं. इन व्यवस्थाओं के कारण ही जाट समुदाय की अलग पहचान है. इसकी संरचना भी अपने आप में बेजोड़ और अनेक विशिष्ट मान बिंदुओं पर आधारित है जिनके बिना जाट समुदाय की कल्पना करना भी संभव नहीं है. इन विशिष्ट व्यवस्थाओं के अनभिज्ञता के कारण अनेक बार समाज में और देश में विवाद की स्थिति बनती है. इन प्राचीन व्यवस्थाओं का ज्ञान सभी को होना चाहिय यही इस पुस्तक का लक्ष्य है. लेखक ने जाट समुदाय की इन अनुपम व्यवस्थाओं की बहुत सुंदर ढंग से व्याख्या की है.

गोत्र का प्रादुर्भाव: प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों का इस संबंध में अध्ययन करने से निष्कर्ष निकलता है कि जब किसी पीढ़ी में कोई प्रसिद्ध अथवा महान व्यक्ति पैदा हो जाता है तो उसके नाम में पूर्व की चली आ रही सभी उपाधियां समाहित हो जाती हैं. ऐसे में यह नवीन व्यक्तित्व एक नए नाम का श्रीगणेश करता है जो प्राय: उसके नाम से जुड़ा होता है यही पहचान उसका गोत्र कहलाती है.

गोत्र की अपरिवर्तनशीलता: जिस प्रकार जाति जीवन पर्यंत नहीं बदल ली जा सकती, ठीक उसी प्रकार वंश और गोत्र भी अपरिवर्तनीय होते हैं.

वंशों की समाप्ति के बाद गोत्र का प्रचलन: प्राचीन ग्रंथों में यह भी स्पष्ट है कि राजा-महाराजाओं के युग में वंश विशेष महत्व रखता था क्योंकि उस समय गोत्र का प्रचलन नहीं था परंतु राज-पाट समाप्त होते ही एक ही वंश में अनेक परिवर्तन आए, पलायन हुआ और अनेक महान व्यक्तियों ने अपने अपने नाम से अलग-अलग बस्तियों की स्थापना की. इन बस्तियों में रहने वालों ने अपनी अलग-अलग पहचान स्थापित करने के लिए अपने संस्थापकों के नामों से अपने आपको जोड़ लिया. यह नाम ही कालांतर में गोत्र का रूप धारण कर गए. ऐसा करने में उन्होंने अपने प्राचीन राजवंश को नहीं छोड़ा.

गोत्र और वंश: इस प्रकार वंश राजवंश से संबंध रखता है जबकि गोत्र समाज में एक महान परिवर्तन लाने वाले लोगों के नामों की पहचान है. दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने चौहान की जो उपाधि प्राप्त की थी वह इतना स्थायित्व ग्रहण कर गई कि वह वंश का स्थान ले गई और वास्तव में वह राजवंश की दूसरी शर्त भी पूरी करती है. यदि चौहान वंश का गहन अध्ययन करें तो पता चलता है कि चौहान वंश के पतन के बाद अगली पीढ़ियों में प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम पर अनेक गोत्रों ने जन्म दिया. इस विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि जब भी कोई राजवंश समाप्त हुआ तो उसकी अगली पीढ़ियों ने अपने-अपने प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम से विभिन्न गोत्रों को जन्म दिया.

जाट समुदाय की संपूर्ण वैवाहिक व्यवस्था भी गोत्र पहचान पर आधारित है.

खाप व्यवस्था: खाप या सर्वखाप एक सामाजिक प्रशासन की पद्धति है जो भारत के उत्तर पश्चिमी प्रदेशों यथा राजस्थान, हरयाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में अति प्राचीन काल से प्रचलित है. इसके अनुरूप अन्य प्रचलित संस्थाएं हैं पाल, गण, गणसंघ, जनपद अथवा गणतंत्र.

सर्वखाप व्यवस्था - जब कोई समस्या खाप द्वारा भी नहीं सुलझ पाती तब सर्वखाप पंचायत का आयोजन किया जाता है. इस पंचायत में तो हर समस्या का समाधान हो ही जाता है क्योंकि इसके फैसले को दोषी पक्ष मानने को विवश होता है. कई बार सर्वखाप पंचायत का आयोजन तब होता है जब कोई ऐसी समस्या आ खड़ी हुई हो जिससे संपूर्ण जाति का अस्तित्व खतरे में हो अथवा राष्ट्र संकट में हो. नादिर शाह, अब्दाली, तैमूर, औरंगजेब आदि के जुल्मों का सामना करने के लिए सर्व खाप के पंचायती मल्लों का बलिदान सर्वविदित है. सर्व-खाप पंचायत ने जहां इल्तुतमिश, रज़िया, बहादुर शाह और महाराजा सूरजमल, राजा नाहर सिंह का साथ दिया वहीं धर्मान्ध और जालिम बादशाहों से डटकर टक्कर भी ली.

सर्वखाप पंचायत में भाग लेने के लिए जाटों की विभिन्न खापों की संख्या सदैव घटती-बढ़ती रही है. कुछ खास अन्य खापों में विलीन हो गई और कुछ ने अपना नाम और सीमा क्षेत्र बदला फिर भी इनका महत्व कभी कम नहीं हुआ.

84 प्रमुख खापों का संक्षिप्त विवरण सर्वखाप व्यवस्था के अंतर्गत किया गया है. इन प्रमुख खापों के अंतर्गत महत्वपूर्ण गांवों और खाप-मुख्यालय का विवरण दिया गया है.

सर्वखाप-पंचायत यह जाट जाति की सर्वोच्च पंचायत व्यवस्था है जिसमें सभी ज्ञात पाल, खाप भाग लेती हैं. जब जाति , समाज, राष्ट्र अथवा जातिगत संस्कारों, परम्पराओं का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है अथवा किसी समस्या का समाधान किसी अन्य संगठन द्वारा नहीं होता तब सर्वखाप पंचायत का आयोजन किया जाता है जिसके फैसलों का मानना और दिशा निर्देशानुसार कार्य करना जरुरी होता है.

जाट गोत्र सूची - इस ऑनलाइन संस्करण में जाट गोत्रों की सूची जेपीजी फॉर्मेट में दी गई है. Jatland.com में प्रत्येक गोत्र में इस सूची से गोत्र की पुष्टि हेतू पृष्ठ और अणुक्रमांक का संदर्भ दिया गया है. किसी विवाद की स्थिति में यह पुष्टि इस सूची से की जा सकती है.

लेखक की कृतियाँ

  • स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरक संस्करण भाग-१, २
  • भक्ति में शक्ति भाग - १,२
  • नन्हें क्रांतिकारी,
  • Chauhānvanshī Lakra Jaton kā Itihās चौहानवंशी लाकड़ा जाटों का इतिहास / by ओमपाल सिंह 'तुगानिया', Published :by : आर्य बुक डिपो (नई दिल्ली) Physical details: 659 पृ 22 सेमी (सजिल्द) ISBN: 8170631742, Year : 2008
  • जाट समाज की प्रमुख व्यवस्थाएं (Jāt samudāy ki pramukh vyavasthāyen)
प्रकाशक जय पाल अजेन्सीज, 31-बी, सुभाषपुरम्, पुलिस चौकी के पीछे, बोदला, आगरा-282007 , उत्तर प्रदेश
प्रकाशक जय पाल अजेन्सीज, 31-बी, सुभाषपुरम्, पुलिस चौकी के पीछे, बोदला, आगरा-282007 , उत्तर प्रदेश
  • धर्मशाला कुरुक्षेत्र एक परिचय
  • अंतहीन इंतज़ार (सामाजिक उपन्यास)
  • खून के रिश्ते (सामाजिक उपन्यास)
  • झरोका (कहानी संग्रह)
  • दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और महारानी संयोगिता
  • आर्यान पेशवा राजा महेन्द्र प्रताप
  • जाट समुदाय के प्रमुख मान बिंदु

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