Rakesh Tikait

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Ch. Rakesh Tikait

Chaudhary Rakesh Tikait (Balyan) is a leader of Bhartiya Kisan Union (BKU) and is the National Spokesman of this organisation. He is the second son of late Chaudhary Mahendra Singh Tikait, who was actually the founder of BKU. In December 2020, he has been in news for spearheading the farmers' agitation in Delhi.

Education

Rakesh Tikait is a graduate [Kala Snatak (B.A.)] from Meerut University 1993. He did his schooling (Intermediate) - U.P. Madhyamik Shiksha Parishad 1988 from Kisan Inter College, Lalukhedi Mujaffarnagar. He passed his High School, U.P. 1986, from D.A.V. Inter College, Sisoli Mujaffarnagar.

Early life

Rakesh Tikait was born on 4 June 1969 in Sisauli town of Muzaffarnagar, Uttar Pradesh. He is the son of a prominent farmer leader and BKU co-founder late Mahendra Singh Tikait.[1] His eldest brother is Naresh Tikait, who is the National President of the BKU.

Career

He joined Delhi Police in 1992 as constable then Sub Inspector,[2] but left Delhi police during farmers' protest at Red Fort in 1993–1994. After leaving police he joined the protest as a member of BKU. After the death of his father, Tikait officially joined BKU and later became a spokesperson.

In 2018, Tikait was the leader of Kisan Kranti Yatra from Haridwar, Uttrakhand to Delhi.[2]


In November 2020, his organization BKU joined 2020–2021 Indian farmers' protest supporting the legal assurance of MSP and removal of Farm bills and he said, “When the Prime Minister says that the minimum support price would continue, why it can’t be included in the law.”[3]

Resurgence in farmer movement

He is Responsible for resurgence in farmer protest in Delhi. Thousands of farmers gathered in Muzaffarnagar 150 km from Ghazipur Border near Delhi on 29 January 2021 after a video showing Tikait in tears went viral.[4]

राकेश टिकैत का संक्षिप्त जीवन परिचय

राकेश टिकैत (जन्म: 4 जून 1969) किसान नेता, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, पूर्व में संगठन के अध्य्क्ष महेंद्र सिंह टिकैत के वह दूसरे बेटे हैं। उनका संगठन उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत में सक्रिय है। 2020 में कृषि कानून के विरोध में ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन से चर्चा में रहे। राकेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं। 'राकेश' भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष रहे 'दिवंगत महेंद्र' सिंह टिकैत के बेटे हैं। वह सिसोली के एक किसान नेता हैं।

राकेश टिकैत का परिवार बालियान खाप से है। इस खाप का नियम है कि पिता की मौत के बाद परिवार का मुखिया घर का बड़ा होता है। चूंकि नरेश, राकेश से बड़े हैं इसलिए उन्हें बीकेयू का अध्यक्ष बनाया गया।

जानिए कौन हैं राकेश टिकैत

संदर्भ: आजतक 9.12.2020

राकेश टिकैत की पहचान ऐसे व्यवहारिक नेता की है जो धरना-प्रदर्शनों के साथ-साथ किसानों के व्यवहारिक हित की बात रखते हैं. किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे बेटे राकेश टिकैत के पास इस वक्त भारतीय किसान यूनियन की कमान है और यह संगठन उत्तर प्रदेश और उत्तर भारत के साथ-साथ पूरे देश में फैला हुआ है.

राकेश टिकैत का जन्म मुजफ्फरनगर जनपद के सिसौली गांव मे 4 जून 1969 को हुआ था. राकेश टिकैत 1992 में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल के पद पर नौकरी करते थे. राकेश टिकैत ने मेरठ यूनिवर्सिटी से एम.ए. की पढ़ाई की हुई है. लेकिन 1993-1994 में दिल्ली के लाल किले पर स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में चल रहे किसानों के आंदोलन के चलते सरकार का आंदोलन खत्म कराने का जैसे ही दबाव पड़ने लगा उसी समय राकेश टिकैत ने 1993-1994 में दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ दी थी.

नौकरी छोड़ किसानों की लड़ाई में लिया हिस्सा

नौकरी छोड़ राकेश ने पूरी तरह से भारतीय किसान यूनियन के साथ किसानों की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया था. पिता महेंद्र सिंह टिकैत की कैंसर से मृत्यु के बाद राकेश टिकैत ने पूरी तरह भारतीय किसान यूनियन की कमान संभाल ली.

दरअसल महेंद्र सिंह टिकैत बालियान खाप से आते थे और जब महेंद्र सिंह टिकैत की मृत्यु हुई तब आपने बड़े बेटे नरेश टिकैत को भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाया क्योंकि खाप के नियमों के मुताबिक बड़ा बेटा ही मुखिया हो सकता है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर भारतीय किसान यूनियन की कमान राकेश टिकैत के हाथ में है और सभी अहम फैसले राकेश टिकैत ही लेते हैं. राकेश टिकैत की संगठन क्षमता को देखते हुए उन्हें भारतीय किसान यूनियन का राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया था जिसे वो आज तक बखूबी निभा रहे हैं.

बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई शादी

राकेश टिकैत की शादी सन 1985 में बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से हुई थी इनके एक पुत्र चरण सिंह दो पुत्री सीमा और ज्योति हैं. इनके सभी बच्चों की शादी हो चुकी है. भारतीय किसान यूनियन की नींव 1987 में उस समय रखी गई थी. जब बिजली के दाम को लेकर किसानों ने शामली जनपद के करमुखेड़ी में महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में एक बड़ा आंदोलन किया था. जिसमें दो किसान जयपाल ओर अकबर पुलिस की गोली लगने से मारे गए थे. उसके बाद भारतीय किसान यूनियन बनाया गया था जिसका अध्यक्ष स्वर्गीय चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत को बनाया गया था.

15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते महेंद्र सिंह टिकैत के निधन के बाद इनके बड़े बेटे चौधरी नरेश टिकैत को पगड़ी पहनाकर भारतीय किसान यूनियन का अध्यक्ष बनाकर कमान सौंप दी गई थी. राकेश टिकैत ने दो बार राजनीति में भी आने की कोशिश की है. पहली बार 2007 मे उन्होंने मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. उसके बाद राकेश टिकैत ने 2014 में अमरोहा जनपद से राष्ट्रीय लोक दल पार्टी से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था. लेकिन दोनों ही चुनाव में इनको हार का सामना करना पड़ा था.

बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं राकेश टिकैत

भारतीय किसान यूनियन के नेता रहे स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत कुल चार भाई हैं, जिनमें सबसे बड़े नरेश टिकैत हैं जोकि भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. वहीं राकेश टिकैत बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. इसके अलावा राकेश टिकैत के दो अन्य भाई हैं. उत्तर प्रदेश से भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश प्रवक्ता, आलोक वर्मा ने आज तक से बातचीत में, जानकारी साझा करते हुए बताया कि राकेश टिकैत से छोटे एवं तीसरे स्थान पर उनके भाई सुरेंद्र टिकैत मेरठ के एक शुगर मिल में मैनेजर के तौर पर कार्यरत हैं. वहीं, सबसे छोटे भाई नरेंद्र खेती का काम करते हैं. आलोक वर्मा आगे बताते हैं कि वर्ष 1985 में राकेश दिल्ली पुलिस में एस.आई. यानी कि सब इंस्पेक्टर के तौर पर भर्ती हुए थे.

दिल्ली के लाल किले पर डंकल प्रस्ताव आंदोलन चलाया

इसी दौरान उनके पिता महेंद्र टिकैत द्वारा दिल्ली के लाल किले पर डंकल प्रस्ताव हेतु आंदोलन चलाया गया था, जिसमें सरकार द्वारा राकेश टिकैत के ऊपर दबाव डाला जा रहा था कि वह अपने पिता को समझाएं और आंदोलन को खत्म कराएं. सरकार द्वारा राकेश के ऊपर दबाव बनाने के कारण 1993 में राकेश टिकैत ने पुलिस की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद से इन्होंने किसानों के लिए सक्रिय काम करते हुए अपने पिता के साथ काम करना शुरू किया और 1997 में भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाए गए.

किसानों की लड़ाई लड़ते रहने के कारण राकेश टिकैत 44 बार जेल की यात्रा भी कर चुके हैं. बीकेयू के उत्तर प्रदेश प्रवक्ता आलोक यह भी बताते हैं कि मध्यप्रदेश में एक समय किसान के भूमि अधिकरण कानून के खिलाफ उनको 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था. उसके उपरांत दिल्ली में लोकसभा के बाहर किसानों के गन्ना मूल्य बढ़ाने हेतु सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया,और गन्ना को जला दिया था, जिसकी वजह से उन्हें तिहाड़ जेल भेज दिया गया था.

बाजरे के मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार से मांग

राकेश टिकैत ने राजस्थान में भी किसानों के हित में बाजरे के मूल्य बढ़ाने के लिए सरकार से मांग की थी, सरकार द्वारा मांग न मानने पर टिकैत ने सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया था. जिस वजह से उन्हें जयपुर जेल में जाना पड़ा था. हालांकि आलोक वर्मा बताते हैं कि राजस्थान सरकार ने बाजरे के मूल्य को किसानों के लिए बढ़ा दिया था. वहीं, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजीत सिंह ने 2014 में अमरोहा से राकेश टिकैत को लोकसभा प्रत्याशी बनाया था.

इस मामले में लगातार सरकार से बातचीत कर रहे भारतीय किसान यूनियन का मानना है कि अब गेंद सरकार के पाले में है और सरकार को ही तय करना है कि आंदोलन खत्म होगा या फिर अनवरत चलता रहेगा क्योंकि अगर सरकार ने तीनों कानून वापस नहीं लिए तो इस आंदोलन के खत्म होने की संभावना नहीं है.

राकेश टिकैत के आँसू देख ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर उमड़ी भीड़

राकेश टिकैत गुरुवार रात 29.1.2021 को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर

गुरुवार रात 29.1.2021 को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर के उनके एक भावुक वीडियो से ना सिर्फ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बल्कि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसानों में भी आंदोलन के लिए एक नई ऊर्जा देखने को मिली है. सोशल मीडिया पर इन इलाक़ों के सैकड़ों लोग हैं जिन्होंने लिखा है कि 'उनके यहाँ कल रात खाना नहीं बना' और वो 'अपने बेटे की पुकार' पर ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुँच रहे हैं.' 26 जनवरी के दिन लाल क़िले पर हुई घटना के बाद किसान संगठन जिस नैतिक दबाव का सामना कर रहे थे, उसके असर को ग़ाज़ीपुर की घटना ने कम कर दिया है और किसान नेता राकेश टिकैत के क़द को बढ़ा दिया है. [5]

किसान आंदोलन में 26 जनवरी की हिंसा के बाद से जो तनाव की स्थिति बनी हुई थी. गाजीपुर बॉर्डर पर टिकैत समेत बैठे किसानों ने उस तनाव को तकरीबन दूर कर दिया है. पुलिस की चेतावनी के बाद भी गाजीपुर बॉर्डर से ये किसान नहीं उठे और भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत की आंसुओं ने माहौल बदल दिया. पश्चिमी यूपी, हरियाणा के अलग-अलग गांवों से किसान उठकर गाजीपुर बॉर्डर पहुंचने लगे. इतना ही नहीं मुजफ्फरनगर में महापंचायत बुलाई गई, जिसमें भारी संख्या में किसानों ने हिस्सा लिया.

शुक्रवार को गाजीपुर बॉर्डर पर यूपी प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू, अलका लांबा, आम आदमी पार्टी नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, आरएलडी नेता जयंत चौधरी पहुंचे.इंडियन नेशनल लोकदल के महासचिव अभय चौटाला भी राकेश टिकैत से मिलने वाले हैं. कुल मिलाकर गाजीपुर प्रदर्शन स्थल किसान आंदोलन का प्रमुख केंद्र बनकर उभरा है. [6]

राकेश टिकैत के बढ़ते समर्थन ने क्या योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं?

"जो लोग भी पिछले दो दिन में अपने गाँव वापस गए हैं और अपनी ट्रैक्टर को वहाँ खड़ा किया है, गाँव की महिलाओं ने उनके सामने चूड़ियाँ फेंक दी हैं. घर के मर्दों को कह रहीं हैं, चूड़ियाँ पहन लो, यहाँ बैठे हो, तुम्हारा नेता वहाँ बैठा है, तुम्हें वहाँ उनके पास होना चाहिए था."

28-29 जनवरी की दरमियानी रात को तकरीबन 1.30 बजे, गाज़ीपुर बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन से जुड़े एक किसान ने अपने नेता राकेश टिकैत के समर्थन में ये बात कही. गुरुवार सुबह ही किसी ज़रूरी काम की वजह से वो अपने गाँव पहुँचा था. लेकिन मोबाइल पर राकेश टिकैत का वायरल वीडियो देख दोबारा से ग़ाज़ीपुर धरने पर लौट आया.

28 जनवरी की सुबह लग रहा था मानो धीरे-धीरे ग़ाज़ीपुर पर घरना स्थल ख़ाली होने वाला है. लेकिन राकेश टिकैत की एक भावुक वीडियो अपील ने मानो पूरी बाज़ी पलट दी हो. देर रात तक ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर दोबारा से किसानों का आना एक बार फिर शुरू हो गया और 29 तारीख़ सुबह से दोबारा 26 जनवरी वाली भीड़ देखने को मिली.

संदर्भ: सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली, 29 जनवरी 2021

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References


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