Samod Singh Dengari

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search

Samod Singh Dengari (born: 11.01.1968), also called Kavi Samod Singh Kamando, is a poet from village village Charaura in Anupshahr tehsil of Bulandshahar district in Uttar Pradesh. Presently settled at Faridabad in Haryana.

जीवन परिचय - कवि समोद सिंह 'कमांडो'

कवि समोद सिंह 'कमांडो'

पूर्व सैनिक - आर्मी (स्पेशल फोर्स पैरा 'कमांडो')

जन्म स्थान = गाँव - चरौरा, पोस्ट - चरौरा, तहसील – अनूपशहर

जिला – बुलंदशहर उत्तर प्रदेश, पिन - 202394

पिता - श्री सुरेंद्र सिंह

माता - श्रीमती निर्मला देवी

पत्नी - श्रीमती स्वदेश देवी

पुत्र - हर्षित चौधरी

पुत्री - नम्रता चौधरी

जाति - जाट

गोत्र - डेंगरी

वर्तमान निवास - बी - 1001, अडोर हैप्पी होम्स सेक्टर. 86. ग्रेटर फरीदाबाद (हरियाणा)

संस्थापक अध्यक्ष - ग्रामीण पब्लिक लाइब्रेरी चरौरा

अध्यक्ष...साहित्य संचेतना . आखिर खुद लड़ना होगा (साहित्यिक संस्था)

राष्ट्रीय महासचिव आगमन समूह (साहित्यिक संस्था) व लोक संस्कृति

विदेश यात्रा -- श्री लंका


विशेष -

(1). ‎विशेष साहसिक कदम ....15 अगस्त 2017 (जम्मू कश्मीर, श्रीनगर में सपत्नीक 11 किलोमीटर तिरंगा यात्रा)

(2). “राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका ट्रू मीडिया, दिसम्बर 2016 अंक - समोद सिंह चरौरा के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाशित

संपर्क

Email: choudharyswadesh@gmail.com

कवि समोद सिंह , जन्म (11- 01 - 1968) मोबाइल ( 9999276269)

कवियत्री स्वदेश सिंह , जन्म (01 - 07- 1969) मोबाइल (8860684461)

प्रकाशित पुस्तकें

1. पहला कदम - (.कुण्डलिया छंद),

2. मन की उड़ान, (गीत .गीतिका),

3. मेरे मन के बोल - (कुण्डलिया छंद),

4. किलकारियाँ, (गीत, गीतिका),

5. सुधारस के कुम्भ (मुक्तक.छंद),

6. बर्तन की महक, (ग़ज़ल संग्रह)

7. गीत गुंजन (गीत संग्रह) ।

पुस्तकें.= साझा काव्य संकलन

1.काव्यशाला,

2. तेरी यादें,

3. सहोदरी सोपान प्रथम,

4. कविता अनवरत प्रथम,

5. धूल के फूल,

6.गीतिकलोक,

7. परवाज़,

8. विहग प्रीति के,

9 पुष्पगंधा, 10. सुगन्ध मंजरी ।


सम्मान व पुरस्कार

1. विदेश सेवा पदक (श्री लंका) 1989

2. स्पेशल सर्विस मेडल (भारतीय थल सेना) 1989

3. हिंदी साहित्य साधना सम्मान 2012 (मेरठ)

4.आखर आराधक 2013 (मनासा मध्यप्रदेश)

5.साहित्य गौरव पुरस्कार (अखण्ड भारत) – 2014 (अजमेर)

6. सजग साहित्य सम्मान 2014 (बूंदी राजस्थान)

7. ध्रुव काव्य सागर, सम्मान 2015 (बुलंदशहर)

8. आगमन साहित्य, सम्मान 2015 (गाजियाबाद)

9. साहित्य गौरव सम्मान 2015 (गांधी प्रतिष्ठान दिल्ली)

10.कविता लोक गौरव. 2015 (हिसार)

11. मुक्ता साहित्य, सम्मान. 2016 (बरेली)

12. ब्रज प्रान्त काव्य गौरव .2016 (आगरा)

13. काव्य रत्न, सम्मान. 2017 ( इंदौर)

14 फरीदाबाद गौरव अवार्ड 2017 (फरीदाबाद)

15. लिटरेरी एक्सीलेंसी अवार्ड 2017 ( चंडीगढ़)

16. कायाकल्प साहित्य - भूषण सम्मान 2018 (कायाकल्प नोएडा)

17. काव्य प्रतिभा सम्मान 2018 (हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी)

18. विद्यावाचस्पति सम्मान 2018. (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ)

19. त्रिवेणी साहित्य सम्मान 2020 (अलवर राजिस्थान)

एक श्रेष्ठ कुंडलीकार . समोद सिंह चरौरा

डा. कुँअर बेचैन लिखते हैं --

एक श्रेष्ठ कुंडलीकार . समोद सिंह चरौरा

गीत, गजल, छंद, मुक्तक सभी विधाओं में सृजन करने वाले कवि समोद सिंह चरौरा . निश्चित रूप से एक श्रेष्ठ कुंडलीकार हैं !

हिन्दी कविता की विभिन्न विधाओं में हमारे साहित्य - मनीषियों और लक्षण - ग्रंथकारों ने अनेक मात्रिक और वार्णिक छंदों का निर्माण किया और कवियों ने उन छंदों में कविताओं को रचने का कौशल भी दिखाया। हिन्दी कविता के इतिहास के रीतिकाल में यह कार्य खूब हुआ। इन अनेक छंदों में कुण्डलिया छंद का भी बहुत महत्व रहा। यूं तो अनेक कवियों ने ये कुंडलियाँ लिखीं किन्तु गिरिधर कविराय की कुंडलियों ने हिन्दी कविता के क्षेत्र में बहुत धूम मचाई। इन कुंडलियों में सामान्य जीवन की महत्वपूर्ण और दिन - प्रतिदिन काम में आने वाली शिक्षाएं अधिक थीं। साथ ही विभिन्न - विषयक अन्य कुंडलियाँ भी गिरिधर कवि ने लिखीं। आधुनिक काल में भी अनेक कवियों ने इस छंद में कविता करके इसकी सहजता को और भी गरिमापूर्ण स्थान दिलाया, जिनमें काका हाथरसी जी का बड़ा योगदान है। इन्होने अपनी हास्य कविताओं के लिए इस छंद का चुनाव किया जो बहुत सफल रहा। इसी प्रकार और भी बहुत से कवि इन दिनों कुंडलियाँ लिख रहे हैं और इस छंद को लोकप्रिय बना रहे हैं ।

इन कवियों में कवि समोद चरौरा जी का प्रयास भी सराहनीय है। अभी इस प्रकार हम देखते हैं कि समोद जी ने कुण्डलिया छंद की जो विशेषताएँ हैं उनका पालन करने का भरसक प्रयास किया है। विषय-वस्तु की दृष्टि से ये कुंडलियाँ कभी हँसाती हैं, कभी व्यंग्य करती हैं, कभी जीवनानुभवों को रेखांकित करती हैं, कभी नीतिपरक बातों को बताती हैं, कभी व्यक्तियों की पहचान कराती हैं तो कभी राजनीतिक, कभी आर्थिक, कभी सामाजिक, कभी सांस्कृतिक और धार्मिक परिस्थितियों का आज के संदर्भ में आकलन करती हैं। कहने का आशय यह है कि समोद जी ने अपनी कुंडलियों में जहां व्यक्तिगत अनुभूतियों को उकेरा है वहीं समाज से भी अपना रिश्ता कायम किया है जो एक सही कवि की पहचान भी है।... और इस प्रयास में वे सफल भी रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आगे चलकर वे निश्चित रूप से एक श्रेष्ठ कुंडलीकार के रूप में सामने आएंगे और अनेक पुस्तकें हिन्दी कविता के साहित्य को अर्पित करेंगे।

मैं समोद चरौरा जी को बहुत बधाइयाँ देता हूँ और शुभकामनाएँ भी देता हूँ कि वे निरंतर इसी प्रकार अपनी लेखनी को निखार देते रहें।

डॉ. कुँअर बेचैन

गाजियाबाद


कुण्डलिया ....छंद

1

सूखी नदिया प्रेम की, कहाँ बहे रस धार !

आकर बैठे छाँव में, काटे पेड़ हजार !!

काटे पेड़ हजार, पाँव पर मार कुल्हाड़ी !

पेट करे लाचार, भूख ने शक्ल बिगाड़ी !!

कह समोद कविराय, मात रोवै घर भूखी !

बिन छाया घबराय, धूप में काया सूखी !!

2

केवल अपनी नाव को, बचा रहे गद्दार !

लोक दिखावा कर रहे, हिंदी के सरदार !!

हिंदी के सरदार, विदेशी घर में लेटा !

इंग्लिश का श्रृंगार , करें हिंदी के बेटा !!

कह समोद कविराय, मिलेगा खूब चढ़ावा !

हिंदी हिंदी हिन्द, करें जब लोक लिखावा !!

3

कुण्डलिया.. ......... हिंदी , उर्दू साथ में, गुपचुप करें विलाप !

खुशियों का त्यौहार है, सो जाओ चुपचाप !!

सो जाओ चुपचाप, करो मत और फजीहत !

भाषा, बकरी आज, बनेंगी नई मुसीबत !!

कह समोद कविराय, भाल पर मिली न बिंदी !

बिटिया भी सकुचाय, बोलती जब भी हिंदी !!

....समोद सिंह चरौरा

3

मोठे मच्छर हर जगह, हल्ला रहे मचाय !

डेंगू राजा आ गया, भागो पूँछ दबाय !!

भागो पूँछ दबाय, चिकन गुनियाँ भी आई !

होंगे हम बर्बाद, मरें अब लोग लुगाई !!

कह समोद कविराय, भगाओ मच्छर छोटे !

डेंगू कभी न आय, दूर हों मच्छर मोठे !!

4

शक्ल बदलकर घूमते, शहरों में शैतान !

लुप्त कहाँ हैं भेड़िये, बन बैठे इंसान !!

बन बैठे इंसान, हुआ जंगल में मंगल !

गाँव शहर में रोज, देखते खूनी दंगल !!

कह समोद कविराय, रहो अब इनसे बचकर !

घूम रहे हैवान, शहर में शक्ल बदलकर !!


5.

फिर से फड़की म्यान में, जंग लगी तलवार !

वीरों की सौगन्ध है, करूँ वार पर वार !!

करूँ वार पर वार, शहीदों का लूँ बदला !

बचे न पाकिस्तान, युद्ध होगा अब अगला !!

कहता भारत देश, चर्च, मस्जिद, मन्दिर से !

साथ रहें गुरु ग्रन्थ, मरेगा दुश्मन फिर से !!


6

सुविधा कर के फेर में, फँसे कई श्रीमान ।

असली मुजरिम दूर है'अधिकारी अन्जान ।।

अधिकारी अन्जान, हुई लोगों में चर्चा ।

भ्रस्ट हुए हैरान, चले अब कैसे खर्चा ।।

कह समोद कविराय,दूर हो मन की दुविधा ।

सच्चाई के साथ, चलें गर सारी सुविधा ।।

7

दुश्मन का सुर बोलते, कुछ कायर मतिमंद !

फिर से पैदा हो गए, भारत में जयचन्द !!

भारत में जयचन्द, निकालो सब को घर से !

मुहँ से बकते गंद, नहीं जो पैदा नर से !!

कह समोद कविराय, उतारो नकली गर्दन !

घर में पले हजार, देश के असली दुश्मन !!

8

घरवाली मैके गयी, फूलचन्द हर्षाय ।

नीची गर्दन डार कै,मंद मंद मुस्काय ।।

मंद मंद मुस्काय, यार सब ढूक रहे हैं ।

ठेका घर के पास, ख़ुशी से कूक रहे हैं ।।

कह समोद कविराय, हुई जब बोतल खाली ।

सजन गए घबराय, देख घर में घरवाली ।। ................

..गीत..

1

वसुंधरा की गोद आज स्वर्ग सी सजाएं हम ।

हो बात जिसमें मुल्क की वो गीत गुनगुनायें हम !!

उठो कि कायनात को तुम्हारा इन्तजार है !

खिली खिली फिजायें हैं खिली हुई बहार है !

खिली है आज हर कली, खिला खिला है ये चमन !

खिली है आज धूप भी, खिली है भोर की किरन !

तो क्यूँ न इसके साथ साथ आज खिलखिलायें हम !

जरा सा मुस्कराओ तुम, जरा सा मुस्करायें हम !!

वसुन्धरा की गोद आज स्वर्ग सी सजायें हम !

हो बात जिसमें मुल्क की वो गीत गुनगुनायें हम !!

उम्मीद के चिराग से, ये जिंदगी सँवार लो !

घटा से मोम, आसमां से रौशनी उधार लो !

कुरेद कर के जख्म को तमाम गम उधेड़ दो !

कि जिंदगी के साज पर विहाग राग छेड़ दो !!

हैं दरमियाँ जो आज सारे फासले मिटायें हम ! कभी हमें बुलाओ तुम, कभी तुम्हें बुलायें हम !!

वसुन्धरा की गोद आज स्वर्ग सी सजायें हम !

हो बात जिसमें मुल्क की वो गीत गुनगुनायें हम !!

कदम डगर में भूल से, फिसल गए तो क्या हुआ !

जो पल गए हैं हाथ से, वो पल गए तो क्या हुआ !

जो पल बचे हुए हैं आप, उनसे काम लीजिये !

पलों पलों में डूबिये, पलों को थाम लीजिये !

जो पल हैं अन्धकार के उनमें लो जलायें हम

कभी हमें बुलाओ तुम कभी तुम्हें बुलाएँ हम !!

वसुन्धरा की गोद आज स्वर्ग सी सजायें हम !

हो बात जिसमें मुल्क की वो गीत गुनगुनायें हम !!

ये दिन जो आज आ गया है मुस्करा के काटिये !

सभी से प्यार लीजिये सभी में प्यार बाँटिये !!

ये जिंदगी उधार है उधार है हरेक पल !

अगर नयन उठाओ तो बहार है हरेक पल !!

तो क्यूँ न इस बहार में तमाम गुल खिलायें हम !

कहीं शजर लगाओ तुम कहीं शजर लगायें हम !!

वसुन्धरा की गोद आज स्वर्ग सी सजायें हम !

हो बात जिसमें मुल्क की वो गीत गुनगुनायें हम !!

....समोद सिंह चरौरा

2

वसंत की सुगन्ध संग ताजगी मुझे मिली !

किसी को जो नहीं मिली वो सुंदरी मुझे मिली !!

वो सुंदरी है लेखनी बहर है जिसकी चूड़ियाँ !

है रोशनाई वस्त्र और शब्द हैं अंगूठियाँ !!

गजल गुलाबी गाल है तो नर्म हाथ गीत है !

ये कागजों का जिस्म है कलम से इसको प्रीत है !!

उसी के दम से सोहरतें बुलंदियों पे हैं मिरी !

उसी के दम से गायकी व् शायरी मुझे मिली !!

किसी को जो नहीं मिली वो सुंदरी मुझे मिली !

वसंत की सुगन्ध संग ताजगी मुझे मिली !!

यही है मेरी प्रेमिका, ये राधिका ये साधिका !

ये मुफलिसी के दौर में बनी उम्मीद की शिखा !!

ये बंद छंद काफिये ये हुस्न का निखार है !

है नज्म नूर अक्स का भजन गले का हार है !!

कि दाद की फ़िराक में न दर बदर फिरा करो !

कभी कभी तुम्हें मिली कभी कभी मुझे मिली !!

किसी को जो नहीं मिली जो सुंदरी मुझे मिली !

वसंत की सुगन्ध संग ताजगी मुझे मिली !!

तो इससे गुफ्तगू करो तमाम गम मिटायेगी !

ये ऐसी प्रेमिका है जो कभी न दूर जायेगी !!

इसी को अप्सरा कहो यही तुम्हारी हूर है !

कबीर है रहीम है ये मीर है ये सूर है !!

हमारा जब मिलन हुआ तो इस कदर मिलन हुआ !

मैं उसका चाँद हो गया वो चाँदनी मुझे मिली !!

किसी को जो नहीं मिली वो सुंदरी मुझे मिली !

वसंत की सुगन्ध संग ताजगी मुझे मिली !!

....समोद सिंह चरौरा

3.

मेरे मन के हर कोने को उज्ज्वल तुम कर दो !

देशभक्ति की दिव्यप्रभा से आलोकित कर दो !!

मुखमण्डल का तेज खो गया !

वाणी से सुर दूर हो गया !!

तन की शक्ति क्षीण हुई है !

शारीरिक उत्साह सो गया !!

तनबल मनबल से गुरुवर अब आप इसे भर दो !

मेरे मन के हर कोने को उज्ज्वल तुम कर दो !!

विवेकवान सम बुद्धि भी हो !

ह्रदय में करुणा बसती हो !!

संयम रखने वाला सुंदर !

मातृभूमि का इक प्रेमी हो !!

ह्रदय के सब तटबंधों की तारकसी कर दो !

मेरे मन के हर कोने को उज्ज्वल तुम कर दो !!

स्थिर मन मेरा हो जाये !

विश्वासी दृढ निश्चय पाये !!

प्रबल हमेशा इच्छाशक्ति !

शूरवीर सा साहस लाये !!

रक्तशिरायें निर्बल हैं जो बलप्रद सब कर दो !

मेरे मन के हर कोने को उज्ज्वल तुम कर दो !!

सिंह समाना, मन हो निर्भय !

तन ऐसा हो,जिसकी हो जय !!

लक्ष्य रखे जो ऊँचा अपना !

केवल ईश्वर का ही हो भय !!

पवन वेग सी गति को लाकर मेरे तन भर दो !

मेरे मन के हर कोने को उज्ज्वल तुम कर दो !!

जीवन में अनुशासन लाऊँ !

छन्द बद्ध सा मैं हो जाऊँ !!

वाणी मेरी ओजमयी हो !

देश भक्ति के राग सुनाऊँ !!

वीरों सी बल बुद्धि देकर जग रोशन कर दो !

मेरे मन के हर कोने को उज्ज्वल तुम कर दो !!

देश भक्ति की दिव्यप्रभा से आलोकित कर दो !!

....समोद सिंह चरौरा


4

जब - जब बच्चे अपने घर के, जड़ कुटुंब ठुकराते हैं !

तब - तब इस पावन वसुधा पर,वृद्धाश्रम बन जाते हैं !!

धूप के आगे तेज हवा भी, मद्धम होती जाती है !

घर में रक्खी रद्दी की कीमत कम होती जाती है !!

जैसे माला में फूलों का , हार ज़रूरी होता है !

जीवन में भी हरा भरा परिवार ज़रूरी होता है !!

जब - जब माँ और बाप ज़मीं पर बोझिल समझे जाते हैं !

तब - तब इस पावन वसुधा पर , वृद्धाश्रम बन जाते हैं !!


जिन लोगों ने सपने वारे, ज़ालिम तेरे सपनों पर !

जिन लोगों ने शाम सवेरे रक्खा तुझको पलकों पर !!

जिसने तुझ पर छाता रक्खा बारिश की बौछारों में !

तूने उसको छोड़ दिया है, लाकर क्यूँ अंगारों में !!

बेटा हो, पर बेटा भी शैतान न हो तो अच्छा है !

वरना तो भगवान कोई संतान न हो तो अच्छा है !!

किसी काँच की तरह से टूटे, जब -जब रिश्ते नाते हैं !

तब - तब इस पावन वसुधा पर वृद्धाश्रम बन जाते हैं !!


ये मुझको अधिकार नहीं है, पिता पे मैं अनुबन्ध लिखूँ !

माँ की ममता के बदले में, मैं कोई प्रतिबन्ध लिखूँ !!

मुझको देकर छाँव, धूप में उसे सुलगते देखा है !

हाँ मैने अपनी माँ को यूँ, रातों जगते देखा है !!

अपने जीवन से ममता का, मौसम तुम मत जाने दो !

मात - पिता को कभी 'चरौरा, वृद्धाश्रम मत जाने दो !!

जब मानव के भाव डूब, दुष्कर्मों में ढल जाते हैं !

तब - तब इस पावन वसुधा पर वृद्धाश्रम बन जाते हैं !!

....समोद सिंह चरौरा


कवयित्री स्वदेश सिंह 'चरौरा'

(कवयित्री ---वीर रस, श्रृंगार रस एवम शांत रस)

मोबाइल नंबर : 8860684461

शिक्षा:- एम ए हिंदी, एम ए संस्कृत, बीएड,

विद्यावाचस्पति सम्मान

भूतपूर्व शिक्षिका: टीजीटी हिंदी संस्कृत

पति - कवि समोद सिंह कमांडो

पुत्र - हर्षित चौधरी

पुत्री - नम्रता चौधरी

जाति - जाट

गोत्र - रावत

संरक्षिका: ग्रामीण पब्लिक लाइब्रेरी चरौरा

स्थाई निवास: ग्राम चरौरा, डाकघर – चरौरा, तहसील – अनुपशहर, जिला - बुलंदशहर (उ.प्र) पिन – 202394.

संरक्षक एवम् संस्थापक अध्यक्ष: -

ग्रामीण पब्लिक लाइब्रेरी 'चरौरा' (बुलंदशहर) उत्तरप्रदेश

प्रकाशित पुस्तक:--

'रिसते रिश्ते - दोहा सप्तशती'

छह साझा काव्य संकलन

लेखन -

हिंदी साहित्य की गद्य एवम् पद्य सभी विधाओं में लेखन

विशेष साहसिक कदम: --

15 अगस्त 2017 को जम्मू कश्मीर श्रीनगर में लाल चौक से एयरपोर्ट तक ग्यारह किलोमीटर तिरंगा यात्रा

गैलरी

बाहरी कड़ियाँ

संदर्भ