Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Dridh Pratigya Aur Sewabhavi Sathi Karni Ram

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Digitized by Dr Virendra Singh & Wikified by Laxman Burdak, IFS (R)

अनुक्रमणिका पर वापस जावें

पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

22. दृढ़ प्रतिज्ञ और सेवाभावी साथी करणीराम
श्री हरनन्दराम एडवोकेट, झुंझुनू

बाल्यावस्था में माता का स्वर्गवास होने पर चौ.टीकूराम नाना ने करणीराम को अपने ग्राम बास नानंग में मंगवा लिया था। वहीं पालन-पोषण हुआ। सम्वत 1982 में श्री झाबर मल जी शर्मा शास्त्री बुगाला निवासी ने अपने ताऊजी श्री गणेश नारायण जी वैध के मन्दिर में बच्चे पढ़ाना शुरू किया। पढ़ने वाले विद्यार्थियों में चौधरी टीकूराम का पौत्र हनुमान भी था।

हनुमान पढ़ने से जी चुराता था और गुरूजी के पास यदाकदा ही जाता था, जिसका पता लगने पर करणीराम को रखवाली के निमित हनुमान के साथ भेजा जाने लगा कि हनुमान गुरूजी की चटशाला से अनुपस्थित न रहे और नित्य नियमित रूप से पढ़ने के लिए गुरु जी के पास जाया करे। करणीराम अपने कर्तव्य पालन में खरा उतरा। लेकिन येनकेन प्रकारण डॉट-डपट पिलाकर तथा घसीट कर गुरूजी के पास ले ही जाता। हनुमान पढ़ने में शिथिल रह गया किन्तु करणीराम रखवाला पढ़ने लग गया और अपने साथियों में चेष्ठावान सिद्ध हुआ।

अगले वर्ष सम्वत 1983 में मेरे पिताजी ने श्री झाबरमल जी शास्त्री को अपने घर ग्राम अजाड़ीकला में जो बास नानग के समीप ही है, बुला लिया और वहां बच्चे पढ़ने में पिछड़ गया, किन्तु करणीराम पढ़ने में होशियार निकला। अब करणीराम जहां कहीं जिस स्कूल में मेरे साथ पढ़ने के लिए गया, वहीं चौधरी टीकूराम अपने अपने पौत्र और दोहिते को भेजने लगे। हनुमान पढ़ने में पिछड़ गया और


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-83

करणीराम जी व मैनें सम्वत 1998 में वकालत करना मेरे साथ ही शुरू कर दिया और पांच वर्षो तक जोइन्ट प्रेक्टिस की।

पं. टीकाराम पालीवाल के मंत्री काल में सन 1952 में राजस्व विभाग से एक अध्यादेश प्रसारित हुआ था कि पैंतालीस के काश्तकारों से पैदावर का 1/6 भाग अर्थात पैदावार का छठा भाग वसूल किया जायेगा। इस अध्यादेश की जानकारी होने पर पेंतालीसा के भौमियों और भी कुपित हुए और काश्तकारों के साथ ज्यादतियां शुरू कर दी। मारपीट कर के शक्ति और बल पर वसूली होने लगी काश्तकारों ने तत्कालीन नेता सरदार हरलाल सिंह ने अपनी व्यथा कही।

ग्राम चौंरा के समीप जयपुर से पुलिस ने आकर पड़ाव डाल दिया, तथापि भौमियों की बर्बरता कम नहीं हुई भौमियों और काश्तकारों के बीच संघर्ष तथा कटुता की धधकती अग्नि में करणीराम अपने साला के लड़के श्री रामदेवसिंह को साथ लेकर कूद पड़ा। भौमियों की कटुता व शत्रुता करणीराम के विरुद्ध बहुत ही तीव्र हो गई।

करणीराम चाहता था, किसी प्रकार से राजस्थान सरकार के तथा कथित राजस्व अध्यादेश से कुछ अधिक ही लगान दिलाया जाकर भी मामले के निपटारा होना ही उस पक्ष के अनुकूल होगा। इसी विचार को लेकर करणीराम ने पेंतालीसा के गण मान्य भौमियों को गुढा में समझौता करने का सुझाव दिया, किन्तु वहां किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सके, इसलिये दूसरी बार उदयपुरवाटी मद पुनः समझौते की बातचीत करने के लिये तारीख 10 मई 1952 को निश्चित की।

दीपपुरा ग्राम का जगदीश नामक स्वामी मंदिर का पुजारी था। भौमियों की विश्वसनीय मंत्रणा एवं योजनाओं से जगदीश स्वामी पूर्णरूपेण अवगत रहता था। तारीख 2 मई 1952 को जगदीश एक घोड़ी पर सवार होकर मेरे पास आया और एकान्त में बुलाकर मेरे से कहा यह करणीराम अजाड़ी का रहने वाला बतलाया जाता है। जगदीश ने बतलाया कि कल 10 तारीख को करणीराम व रामदेव उदयपुर-


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-85

वाटी भौमियों तथा काश्तकारों का समझौता करने के लिए जायेगा और वहां उसको मारने वाले व्यक्तियों को दिखाया जायेगा, यदि सुने हुये के अनुसार तेरा रिश्तेदार हो तो उसे समझा देना कि वहां न जाये वरना समझना कि वह दुनियां में नहीं रहेगा। उसने वापिस जाते समय मेरे से यह भी बतलाया कि मेरी बात किसी को भी मत कहना।

मैं तत्क्षण करणीराम के पास पहुंचा, जो बाबुलाल मोदी के मकान में किराये पर रहता था। मैनें कहा पांच मिनट बात करना चाहता हूँ जो बहुत ही आवश्यक है। मेरे से कहा कि मेरे पास यहां आदमियों की भीड़ है, इस से निपट कर कोर्ट में थोड़ी देर के लिये जिलाधीश से बातें करने के लिए आता हूँ। वहीं अपनी बातें होंगी। लगभग आधा घण्टा बाद ही करणीराम जीप लेकर आया कलेक्टर के कार्यालय के अन्दर घुस गया। थोड़ी देर बातें कर के बाहर आया तो हम कोर्ट के अहाते में कुछ दूरी पर जाकर बैठे।

मैनें पूछा आज कहाँ जाने की तैयारी है, उत्तर मिला कि जहां देव ले जायेगा, पर मैं उदयपुरवाटी जाना चाहता हूँ। काश्तकारों के मामले में कुछ निर्णयात्मक बातें हो जायें तो संकट टल ही जाये। मैनें करणीराम से कहा कि उदयपुरवाटी में होने वाली कल की मीटिंग में शामिल मत होना, वहां धोखा होगा। तुम्हारे प्रति उनकी घात है। ऐसे व्यक्ति तैयार किये गये है जो प्राण घातक है। आज ही मुझे भौमियों की मंत्रणा का विश्वस्त सूत्र से ज्ञान हो गया हो। देखो, तुम्हारे साथ रामदेव सिंह गीला भी होगा यह बात भी मुझे बताई गई है। इसलिए मेरा साथी होने के नाते यह कर्तव्य हो गया कि मैं तुम्हे सचेत करूं। जिस आशा को लेकर उदयपुरवाटी जाना चाहते हो वह पूर्ण नहीं होगी, अपितु धोखा होगा।

इस पर करणीराम ने कहा "चाहे मेरे साथ धोखा हो या मृत्यु भी क्यों न हो, मैं अपने निश्चय में कोई फेर बदलाव नहीं कर सकता। मैं आज अवश्य ही उदयपुर जाऊंगा। बड़ी संख्या में लोग मेरी प्रतीक्षा करते है। आज न जाकर समय निकलने पर मैं उनको कैसे मुंह दिखाऊं। जनता मेरा भविष्य में क्यों विश्वास करेगी?भाई साहब मुझे मत रोकों" इतना कह कर जीप में सवार हो गया। मैनें


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-85

वह सौभ्यमूर्ति पुनः जीवित नहीं देखी अपितु गोलियों से क्षत विक्षत वक्षस्थली ही देखी और वह देखी तारीख 14 मई सन 1952 को।

करणीराम दृढ़ प्रतिज्ञ, सेवाभावी, सरलमना, सादा, त्यागी पुरुष था। झुंझुनू जिला विशेषतः पेंतालीसा के कृषक वर्ग का उद्धार करने वाला शहीद था।


"वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।" ----स्वामी रामतीर्थ


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-86

अनुक्रमणिका पर वापस जावें