Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Ek Udar Hridya Aur Shiksha Premi Manav

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

19. एक उदार ह्रदय और शिक्षा-प्रेमी मानव
चौधरी रामलाल सिंह, भोजासर

श्री करणीराम जी एक शिक्षा-प्रेमी और उदार ह्रदय व्यक्ति थे। वे भोजासर में जन्मे थे, वहीं स्थान उनका पैतृक स्थान था अतः इस स्थान की उन्नति में स्वाभाविक रूप से वे बहुत दिलचस्पी लेते थे। वकालत झुंझुनू में करते थे, वहीं रहते थे, पर बीच-बीच में गाँव की भी बराबर सार संभाल करते थे। गाँव में आते तो सभी लोगों से दुःख सुख की चर्चा करते और जहां तक हो सकता अपनी तरफ से पूरी मदद करते।

अन्य गांवों की तरह पिछड़ापन लिए हुए भोजासर का गाँव था। अधिक बस्ती किसानों की थी। जागीर जुल्म का शिकार गाँव भी था पर अन्य ठिकानों की अपेक्षा खेतड़ी का शासन आगे चलकर अधिक उदार हो गया था। वर्षो से चले आते हुए सामाजिक जीवन का पिछड़ापन लिए हुये लोग यहां भी पारस्परिक जीवन जीते आ रहे थे। आस पास के विकसित जीवन की खबरें ग्राम में आती रहती थी तथा इन्हीं बातों के कारण लोगों के मन में उन्नति की ओर एक स्वाभाविक हो चला था।

उन दिनों बिड़ला जी ग्राम ग्राम में पाठशाला खोलकर ग्राम्य जीवन में शिक्षा प्रसार का प्रयत्न कर रहे थे। जागीरदार शिक्षा प्रसार के प्रति जरा भी साथ नहीं देते उल्टा उसमें बाधक बनते थे। बड़ी मुश्किल से स्थान मिलता और अध्यापन की व्यवस्था होती थी। लोगों के मन में शिक्षा के प्रति अधिक रूचि न थी अतः मुश्किल से लड़के पढ़ने आते।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-68

मुकुन्दगढ़ के मुरारका बसंतलाल जी की तरफ से भी ग्राम्य जीवन, में शिक्षा प्रसार के प्रयत्न हो रहे थे। कनोड़ियाजी की भी स्कूले चलती थी। इसमें उनकी तरफ से 15 रूपये महीने स्कूल के लिए मिलते थे। एक कच्ची खुड्डी में स्कूल चलती थी,ऊपर कच्चा छप्पर था। गाँव के कुछ बच्चे पढ़ने आते थे।

उन दिनों शिक्षित अध्यापक मिलना भी मुश्किल था। पास ही के चूड़ी अजीतगढ़ में रहने वाले भींव जी बाहृमण स्कूल में अध्यापक थे। स्कूल चौथी कक्षा तक चलती थी। पंडित जी स्वयं कम पढ़े लिखे थे। यह स्कूल सन 1929 में गाँव में स्थापित की गई थी।

गोठड़ा गाँव में सन 1938 में एक बड़ी मीटिंग हुई थी। चौधरी पृथ्वी सिंह गोठड़ा के ही थे और वे एक निर्भीक कार्यकर्त्ता थे। वहां एक समझौते वार्ता किसानों और जागीरदारों के बीच हो रही थी। किसानों के प्रतिनिधि सरदार हरलाल सिंह थे तथा जागीरदारों में रावल मदन सिंह अन्य सरदारों के साथ थे। इस मीटिंग की अध्यक्षता उतर प्रदेश के असेम्ब्ली सदस्य विजय पाल सिंह कर रहे थे। इस मीटिंग में करणीराम और राधाकिशन भी जयपुर से भाग लेने आये थे।

मीटिंग में भाषण देते हुये सरदार हरलाल सिंह ने कहा कि इन लोगों से कैसे समझौता हो सकता है। रावत मदन सिंह नयी रोशनी के माने जाते हैं, पर इन्होने शेखतर की स्कूल में ढीरे लगवा दिये। उन्होंने मि. यंग पुलिस इन्स्पेक्टर जनरल से इस बात को नोट करने के लिए कहा। डूंडलोद ठाकुर ने टूढाणा में चल रहीं स्कूल बन्द करवा दी। लूंग-फूंस पानी में से भी ये आधा उठा लेते हैं। किसान तरसता रह जाता है।

बूढ़े बड़े लोग जो प्रायः अनपढ़ ही थे, वह मानने लगे थे की शिक्षा आवश्यक है। बच्चों में भी स्कूल जाने की एक होड़ आगे चलकर ही चली थी। इन कारणों से ग्राम की यह छोटी सी पाठशाला दिनों दिन उन्नति करने लगी। जागीरी गाँव


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-69

था पर अधिक बस्ती जाटों की होने तथा खेतड़ी ठिकाने के अधिक उदार होने के कारण स्कूल के सामने बाधाएं भी और स्थानों की तरह नहीं थी।

स्कूल के संचालन के लिये ग्राम के लोगों की छोटी सी समिति बनी हुई थी। इस समिति के मंत्री चौ.कालूराम थे। ये ढलती उम्र के शिक्षा में रूचि लेने वाले उत्साही व्यक्ति थे। स्कूल के लिए खुड्डी की व्यवस्था ग्राम में ही की थी और स्कूल के पानी की व्यवस्था के लिए ढोल, बरी, स्टेशनरी, आदि के खर्चो की व्यवस्था भी समिति की तरफ से होती थी। समिति अपनी तरफ से 15 रूपये माहवार का खर्चा जुटाती और जैसा कि ऊपर कहा गया है 15 रूपये मुरारकाजी की ओर से मिलते इस प्रकार मिले-जुले प्रयत्न तथा गाँव वालों के उत्साह से एक छोटी सी स्कूल गाँव में निरन्तर प्रगति करने लगी।

एक दिन की बात है कि चौ.करणीराम जी भोजासर में होली के समय आये। उन दिनों गाँव में अधिकांश घर कच्चे ही थे। होली दीपावली आदि त्यौहारों पर लोग अपने घरों को लीप पोत कर सुन्दर बना लेते थे। स्कूल का मकान यद्धपि गाँव वालों के प्रयत्न से ही बनाया गया था। पर सार्वजनिक वस्तु के प्रति उतना लगाव न होने के कारण स्कूल की खुड्डी अभी लिपी पोती नहीं गई थी। करणीराम जी जब स्कूल देख रहे थे तो खुड्डी की इस व्यवस्था की ओर उनका ध्यान गया। उन्होंने चौ.कालूराम से पूछा कि जब सारे गाँव के घर लिपे पुते और साफ़ सुथरे हैं तो यह सीर का घर (स्कूल) टूटी फूटी क्यों है चौ.जी ने उत्तर दिया, बेटा मेरे पास तो पैसे हैं नहीं और लीपने वाली स्त्रियां पैसे मांगती है अतः यह स्कूल का स्थान बिना लिपा पूता ही रह गया। उन दिनों चमारियाँ आठ आने प्रतिदिन की मजदूरी पर पोतने का काम करती थीं। उन्होंने पूछा कि खुड्डी की लिपाई पर कितना खर्च लगेगा तो चौधरी जी ने बताया कि 10 औरतें दो दिन गोबर मिट्टी से पोत देंगी। इस पर करणीराम जी ने अपनी जेब से पांच रूपये निकालकर चौधरी जी के हाथ में थमा दिए इससे मकान लिप पुत कर अन्य घरों की तरह सामान्य बन गया।

यद्धपि आज के मूल्यांकन के हिसाब से पांच रूपये विशेष मूलयवान नहीं है पर उन दिनों पांच रुपयों का बड़ा महत्त्व था। और सबसे बड़ी महत्वपूर्ण उनकी


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-70

वह भावना थी जो सार्वजनिक जीवन में पनपती हुई इस सामजिक संस्था के अभ्युत्थान में सलंग्न थी। सार्वजनिक वस्तु के प्रति लगाव और उसके विकास में निरन्तर रूचि उदार ह्रदय मानव का ही काम होता है और करणीराम जी ऐसे ही उदारहृदय मानव थे।

एक दिन की बात है की श्री करणीराम जी श्री सरदार हरलाल सिंह जी के साथ गाँव में आये और चौधरी चिमनाराम के मकान पर गये। चौधरी जी यहाँ भी नम्बरदार थे पर आये गए आदमी के ठहरने के लिए कोई स्थान नहीं था। घर में कच्ची खुड्डियां थी जिनमें रहने तथा खाना पकाने की व्यवस्था थी। करणीराम जी और सरदार जी एक बालाजी के जांट के नीचे जाकर खड़े हुए और आपस में खड़े-खड़े बात करने लगे. बात ही बात में करणीराम जी ने घर स्थान की और इशारा कर चौ. चिमनाराम को कहा कि बाहर के लोगों को उठने बैठने के लिए घर के बाहर एक पक्की ईंटे बनाकर कहे अनुसार एक तिबारी बना ली जो आज भी मौजूद है और इस उदारहृदय व्यक्ति की सार्वजनिक जीवन के कल्याण की भावना का स्मरण करा रही हैं। वस्तुतः वे सार्वजनिक जीवन के कल्याण में रूचि लेने वाले व्यक्ति थे। जिन्होंने स्वयं के सुख दुःख की परवाह न कर ग्राम जीवन के दुःख दर्द को दूर करने में अपना सब कुछ प्रदान किया था।

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"इतिहास, पुराण सभी साक्षी है की मनुष्य के संकल्प के सामने देव,दानव सभी पराजित होते है। "


एमसर्न


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-71

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