Shekhawati Ke Gandhi Amar Shahid Karni Ram/Prabhavshali Evam Nyaypriy Vyaktitv

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पुस्तक: शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम

लेखक: रामेश्वरसिंह, प्रथम संस्करण: 2 अक्टूबर, 1984

द्धितीय खण्ड - सम्मत्ति एवं संस्मरण

9. प्रभावशाली एवं न्याय प्रिय व्यक्तित्व

चुन्नीलाल

रिटायर्ड उप-अधीक्षक पुलिस।

यह घटना सन 1951 के मई महीने की है। राज्य सरकार ने 1/6 उपज का भाग लगान के रूप में तय कर दिया था। पहले जागीरदार 1/2 भाग लेते थे। जागीरदार इससे बोखला गए थे।

उपयुक्त हालात को देखते हुए राज्य सरकार ने क्षेत्र में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए पंडित शीश राम जी आई.पी.एस.पुलिस अधीक्षक को स्पेशल अधिकारी नियुक्त कर बुलाया। गुढ़ा उनका हैडक्वाटर्स बना। श्री आर. डी.गुप्ता नाजिम उदयपुर का भी मुख्यालय आरजी तौर पर गुढ़े में बनाया। मुझे एक प्लाटून के हथियारबंद जवानों के साथ पुलिस लाइन में 3-4 ऊंट सवार देकर वहां भेजा गया।

मैंने टीटनवाड नामक ग्राम की धर्मशाला में अपना कैंप बनाया और 10-15 दिनों तक इस क्षेत्र में गस्त लगाता रहा। मैंने अपने गुप्तचर भी पूरे हालत जानने के लिए छोड़ दिए थे। गुप्तचरों में से एक अचानक रात्रि के 10:00 बजे मेरे पास आया और खबर दी कि जागीरदारों ने बहुत बड़ी हिंसक घटना करने का निश्चय किया है। वे किसानों को कत्ल करेंगे और लूटमार करेंगे। अधिकांश जागीरदार कोटडियो में इकट्ठे हो गए हैं और हथियार लाने के लिए अपने आदमियों को इधर-उधर भेज दिया है। उन्होंने कलजी नामक डकैत को भी अपने दो साथियों के साथ बुलाया है। वे कल दोपहर के बाद हमला करेंगे। मैंने यह इतला उच्च अधिकारियों को की।

दूसरे दिन सुबह स्पेशल एस.पी.व एस.डी.एम.साहब आए। मैंने


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-11

सारे हालात उनको बता दिए। जागीरदार और उनके समर्थक नारे लगाते हुए इकट्ठे होने लगे।

करीब 11:00 बजे दिन के जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक आ गए। उस समय बी.एन.तनखा और ठाकुर जसवंत सिंह पुलिस अधीक्षक थे। वे अपने साथ श्री करणीराम जी को भी लाए थे क्योंकि वे समझते थे कि वे अपने शांत स्वभाव और प्रभावशाली व्यक्तित्व से शांति स्थापित कर सकते थे।

भौमियों के मुखिया को श्री जसवंत सिंह ने बुलाया। जो वे आए तो उन्हें समझाने की कोशिश की। वे नहीं माने और बोले कि हम तो आधा लगान लेंगे और जो नहीं देगा उसे जबरदस्ती वसूल करेंगे। ठाकुर जसवंत सिंह जी क्रोध में आग बबूला हो गए। स्थिति बिगड़ती देखकर तत्काल श्री करणीराम जी वहां आए और उन्होंने भौमियों को समझाना शुरू किया।

श्री करणीराम जी ने धर्मशाला के बाहर इकट्ठे हुए काश्तकारों के प्रतिनिधियों को बुलाया और दोनों पक्षों को आपस में बातचीत करवाई। यह तय हुआ कि दोनों के दो-दो पंच चुने जाएंगे। यह चारों पंच चुनकर एक सरपंच सुनेंगे। इसी प्रकार बनी हुई पंचायत जो निर्णय देगी वह दोनों पक्षों को मान्य होगा।

भौमियों के कहने से पंचों ने श्री करणीराम को अपना सरपंच चुन लिया। हालांकि श्री करणीराम जी इसके लिए तैयार न थे। भौमिया लोगों का कहना था कि आपको छोड़कर हमें कोई सलटाना चाहता ही नहीं। इस पंचायत ने सारे विवादग्रस्त मामलों का फैसला कर दिया। यह तय हुआ कि 1/6 हिस्से की बजाय काश्तकार 1/4 हिस्सा देंगे। जिन भौमियों के पास खुद काश्त की जमीन नहीं थी उनको किसानों से 15-15 बीघा जमीन दिलवा दी। इस फैसले को दोनों पक्षों ने मंजूर किया और शाम को गले मिलकर अपने-अपने घर चले गये। इससे पता चलता है की करणीराम जी में सभी पक्षों का कितना विश्वास एवं प्रेम था।

दूसरी ही साल जब अचानक 13 मई को मुझे पता चला की करणीराम को भौमियों ने ग्राम चंवरा की एक ढाणी में कत्ल कर दिया तो विश्वास ही नहीं हो सका कि कोई उनको इस तरह कत्ल कर सकता है। वे सही मायने में गाँधी विचारधारा के सच्चे व्यक्ति थे। जो कोई भी एक बार उनके सम्पर्क में आ गया वो उनको कदापि न भूलेगा।


शेखावाटी के गांधी अमरशहीद करणीराम, भाग-II, पृष्ठांत-12

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