Tarim River

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Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Map of Tarim River

Tarim River (तारिम नदी) (Sita River) is the principal river of the Xinjiang Uygur Autonomous Region in China. It gives its name to the great Tarim Basin between the Tian Shan and Kunlun Mountains systems (the northern edge of the Tibetan Plateau) of Central Asia. It is the longest inland river in China.

Variants of name

Course

The Tarim river and most of its tributaries flow down from the Himalayas. The name Tarim is applied to the river formed by the union of the Aksu River, flowing from the north, and Yarkand River, coming from the southwest, near the Aral City in western Xinjiang. The third river, the Khotan River comes to the same junction area from the south, but it is usually dry at this location, as it has to cross the Taklamakan Desert to get here.

Another river of western Xinjiang is the Kashgar River, which falls into the Yarkand River some 37 kilometres upstream from the Yarkand's merger with the Aksu.

Mention by Panini

Sita (सीता) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]

History

Some Chinese originally considered the Tarim to be the upper course of the Huanghe or Yellow River [6] but, by the time of the Former Han Dynasty (125 BCE–23 CE), it was known that it drains into Lop Nur, a series of salt lakes.

Jat History

In Mahabharata

Sita River (सीता) (River) in Mahabharata (VI.12.30),

Bhisma Parva, Mahabharata/Book VI Chapter 12 describes Sakadvipa, Seven Varshas, Shaka tree, Four provinces and Rivers in Shakadvipa. Sita River (सीता) (is mentioned in Mahabharata (VI.12.30). [2]....The rivers there are full of sacred water, and Ganga herself, distributed as she hath been into various currents, is there, Sukumari, and Kumari, and Sita River, and Kaveraka, and Mahanadi, O Kauravya, and the river Manijala, and Chakshus, and the river Vardhanika,....

तरिम नदी

तरिम (AS,p.392) - मध्य एशिया की नदी जिसका प्राचीन संस्कृत नाम सीता कहा जाता है. (दे. सीता)[3]

सीता नदी

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...Sita सीता (=तारिम नदी) (AS, p.968): सीता नदी वर्तमान तरिम नदी का ही संस्कृत नाम है जो पश्चिमी चीन के सिंकियांग प्रांत में बहती है. इसकी एक शाखा यारकंद नगर के निकट है (देखें एन्सिएंट खोतान- स्टाइन पृ. 27-35-42). यह शाखा तिब्बत के उत्तरी पर्वतों में से निकलती है. संभवत: इसका उद्गम गंगा के उद्गम मानसरोवर के निकट ही है और इसीलिए हमारे प्राचीन साहित्य में इस नदी को गंगा की ही एक पश्चिमी शाखा माना गया है. शायद सीता का सर्वप्रथम उल्लेख वाल्मीकि रामायण बालकांड 43, 13 में है--'सुचक्षुश्चैव सीता च सिंधुश्चैव महानदी। तिस्र: प्राचीं दिशं जग्मु: गंगा: शिवाजला: शुभा:'. अर्थात् सुचक्षु, सीता और सिंधु पुण्यजला गंगा की पश्चिमगामिनी शाखाएं हैं.

महाभारत भीष्म 6, 48 में भी सीता को गंगा की धारा माना है, उन धाराओं के नाम इस प्रकार हैं- 'वस्वोकसारा नलिनी पावनीसरस्वती, जम्बूनदीसीतागंगा सिंधुश्च सप्तमी'।

विष्णु पुराण के अनुसार सीता भद्राश्ववर्ष की एक नदी है जो गंगा ही की एक शाखा है-- 'विष्णुपादविनिष्क्रान्ता प्लावयित्वेन्दुमंडलम्, समन्ताद् ब्रह्मण: पुर्यांगंगा पतति वे दिव:। सा तत्र पतिता दिक्षुचतुर्द्धा प्रतिपद्यते, सीता चालकनंदा च चक्षुर्भद्रा च वै क्रमात्' पूर्वेण शैलात्सीता तु शैलं यात्यवन्तरिक्षगा, ततश्च पूर्ववर्षेण भाद्राश्वेनैति सार्णवम्' इस उद्धरण के अनुसार सीता, पूर्व की ओर से एक पर्वत से दूसरे पर प्रवाहित होती हुई भाद्राश्व को पार कर समुद्र में मिल जाती है.

कुण्डू जाटवंश का जनपद

दलीप सिंह अहलावत[5] के अनुसार महाभारतकाल में भारतवर्ष में इस कुन्दा (कुण्डू) जाटवंश का भी एक जनपद था। (महाभारत भीष्मपर्व, अध्याय 9)।

जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया ने पृ० 46 पर वायुपुराण 47/43 का हवाला देकर लिखा है कि “कुन्दा (कुण्डू) लोग मध्य एशिया में सीता नदी के तट पर रहते थे।” आगे यही सज्जन पृ० 73, 262 पर लिखते हैं कि “कुन्दा” कुण्डू ही हैं। सीता नदी को तारिम नदी सिद्ध किया गया है। (S.M. Ali, OP. Cit P. 105) यह तारिम नदी पामीर पठार से निकलकर उत्तरपूर्व की ओर बहती हुई लोपनोर झील में गिरती है। जे० सी० विद्यालंकार का कहना है कि यह यारकन्द या जरफशान नदी है, जिसको चीनी लोग आजकल भी सीटो कहते हैं। (भारतभूमि पृ० 123)। कुण्डू लोगों के नाम पर पामीर पठार में कुण्डू नगर है1। काशिका पुस्तक में बहुत जाटवंशों का उल्लेख है। उस में लिखा है कि Trigarta (त्रिगर्त) संघ के लिए छः सभासद नियुक्त किये हुए थे। उनमें से दो जाति कुण्डूपर्थ और डांडाकी थी। ये लोग कुण्डू एवं डांढा जाटगोत्र हैं। पाणिनि ऋषि ने भी लिखा है कि कुण्डूपर्थ, जालन्धर राज्य त्रिगर्त संघ का ही खण्ड (भाग) था।


1. Through the Pamirs, P. 209, जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज पृ० 23 लेखक बी० एस० दहिया।


हग्गा जाट

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज (पृ.-171) के अनुसार ज्ञातिवादी अर्थात् जाट लोग इसी संघर्ष में उत्तर में जगजार्टिस नदी तक और पच्छिम में ईरान की खाड़ी तक फैल गए। यहीं से वे अपने जत्थों द्वारा इधर-उधर भी गए। जदुकाडूंग से शनैःशनैः काश्मीर की ओर फिर दर्दस्तान को पार करके कुछ यादव पूर्वी चीन तक पहुंचे। चीन के प्राचीन इतिहास अपने को भारतीयों के वंशज बताते हैं। हियंगू नदी और हुंगा पर्वत के पास के लोग जो भारत में लौटकर आ गए, आज हग्गा जाट कहलाते हैं।

डॉ धर्मचंद विद्यालंकार [6] लिखते हैं कि कुषाणों का साम्राज्य मध्य-एशिया स्थित काश्गर-खोतान, चीनी, तुर्किस्तान (सिकियांग प्रान्त) से लेकर रूस में ताशकंद और समरकंद-बुखारा से लेकर भारत के कपिशा और काम्बोज से लेकर बैक्ट्रिया से पेशावर औए मद्र (स्यालकोट) से मथुरा और बनारस तक फैला हुआ था. उस समय मथुरा का कुषाण क्षत्रप हगमाश था. जिसके वंशज हगा या अग्रे जाट लोग, जो कि कभी चीन की हूगाँ नदी तट से चलकर इधर आये थे, आज तक मथुरा और हाथरस जिलों में आबाद हैं. आज भी हाथरस या महामाया नगर की सादाबाद तहसील में इनके 80 गाँव आबाद हैं. (पृ.19 )

कुषाणों अथवा युचियों से रक्त सम्बन्ध रखने वाले ब्रज के जाटों में आज तक हगा (अग्रे), चाहर, सिनसिनवार, कुंतल, गांधरे (गांधार) और सिकरवार जैसे गोत्र मौजूद हैं. मथुरा मेमोयर्स के लेखक कुक साहब ने लिखा है कि मथुरा जिले के कुछ जाटों ने अपना निकास गढ़-गजनी या रावलपिंडी से बताया है. कुषाण साम्राज्य के अधिकांश क्षेत्र में जाटों की सघन जन संख्या उनको कुषाण वंसज होना सिद्ध करती है.(पृ.20)

External links

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.68, 196
  2. सुकुमारी कुमारी च सीता कावेरका तथा, महानदी च कौरव्य तथा मणिजला नदी, इक्षुवर्धनिका चैव तथा भरतसत्तम (VI.12.30)
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.392
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.968
  5. जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठ.294
  6. Jat Samaj:11/2013,pp 19-20

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