Veerbhoomi Haryana/प्रस्तावना

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हरयाणा इतिहास ग्रन्थमाला का प्रथम मणि


वीरभूमि हरयाणा

(नाम और सीमा)


लेखक

श्री आचार्य भगवान् देव


प्रस्तावना

हरयाणा क्षेत्र के इतिहास को ठीक रूप से लिखने के संबन्ध में यह सर्व प्रथम प्रयास किया गया है । इससे पूर्व हरयाणा के विषय में कुछ लेख और टिप्पणियां लिखी गईं थीं । उनका आधार भी सुनी-सुनाई किंवदन्तियाँ अथवा कुछ सरकारी कागजात थे । वर्त्तमान कुछ वर्षों में इधर हरयाणा के इतिहास जानने की रुचि जनता में ही नहीं, अपितु विद्वानों में भी उत्पन्न हुई । परन्तु प्राचीन लुप्‍त इतिहास को खोज निकालना साधारण कार्य नहीं होता, उसके लिये विद्या, अध्यवसाय, सतत लग्न और खर्च के लिए विपुल धनराशि चाहिये ।


इस पुस्तक के लेखक पूज्य आचार्य भगवान् देव जी ने लगातार अनेक वर्षों तक इसमें अपनी शक्ति, धन और विद्या का प्रयोग किया । जाड़े, गर्मी और वर्षा ऋतु की परवाह किये बिना हजारों मीलों का पैदल और सवारी पर भ्रमण किया । गर्मी की तपती लूओं में मरुभूमि के रेत पर नंगे पैरों चले । भूख और प्यास की चिन्ता नहीं की । जाड़े में रातों रात चलते रहे, हरयाणा क्षेत्र के सैंकड़ों पुराने ऊजड़ खेड़ों की स्वयं कुदाल और खुर्पे से खुदाई की । हजारों रुपये के संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी, अरबी और अंग्रेजी के ग्रन्थ खरीदे । भारत के संग्रहालयों में घूमे । प्राचीन सिक्के पढ़े । इस समय आपके हरयाणा प्रान्तीय संग्रहालय में हजारों सिक्के, मुद्राएं और आहत मुद्रायें हैं । ढ़लाई के ठप्पे हैं । कुछ प्राचीन मुद्रायें हैं, जिनमें कुछ ऐसी हैं जो भारत भर के अनेक सरकारी संग्रहालयों में भी नहीं हैं । गुरुकुल झज्जर के हरयाणा संग्रहालय में यह सब कुछ आंखों देखा और पढ़ा जा सकता है । एक कर्मठ अध्यवसायी क्या कुछ कर सकता है, उसका दर्शन वहाँ जाकर किया जा सकता है ।


यह पुस्तक तो हरयाणा के विस्तृत इतिहास की पहिली झांकी है, कड़ी है, भूमिका है । पाठक महानुभावों को इस के पढ़ने से पता चलेगा, कि जो कुछ प्रस्तावना में लिखा गया है, वह इस पुस्तक के लाभ के एक अंश का ही द्योतक है । इतिहास के गवेषक, अनुसंधाता, खोजी ही इस पावन तपस्या अगाध विद्वत्ता का अंकन कर सकते हैं । लुप्‍त सामग्री का पुनः एक जगह संकलन करना कितना कठिन है यह इसके पढ़ने पर पाठक बन्धुओं को स्वयं ज्ञान हो सकेगा ।


यह हरयाणा इतिहास भूमिका केवल हरयाणावासियों के लिये ही गौरव की वस्तु नहीं है, अपितु राष्‍ट्र की बहुमूल्य संपत्ति है । पाठक महाशय पढ़ें और विचार करें । इस इतिहास पुस्तक के सब प्रकरण मनन करने योग्य हैं ।


परमेश्वर दया रखे कि यह इतिहास हमारे लुप्‍त वैभव का प्रकाश करके हमें गौरवान्वित कर सके ।


विनीत


- जगदेव सिंह सिद्धान्ती

लोकसभा सदस्य

मकर सक्रान्ति सं० २०२१ वि०

देहली


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