Wazir Singh

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search
Genealogy of the Fridkot rulers

Raja Wazir Singh (b.1811 - r.1849 - 1874) was Barar-Jat Raja of erstwhile Faridkot State.

History

Lepel H. Griffin[1] writes as under:

Raja Wazir Singh

This young man, during the second Sikh war of 1849, served on the side of the English. During the mutiny of 1857, he seized several mutineers and made them over to the English authorities. He placed himself and his troops under the orders of the Deputy Commissioner of Firozpur, and guarded the ferries of the Satlej against the passage of the mutineers.

His troops also served under General Van Cortlandt with credit in Sirsa and elsewhere, and he, in person, with a body of horse and two guns, attacked a notorious rebel. Sham Das, and destroyed his village, For his services during 1857-58, Raja Wazir Singh received the honorary title of "Burar Bans Raja Sahib Buhadar," a khillat of eleven pieces, instead of seven as before, and a salute of eleven guna He waa also exempted from the service of ten sowars which he had been previously obliged to furnish.††


* Report of Sir Henry Lawrence to Government, 18th September 1846; and Government to Sir Henry Lawrence, 17th November 1846. Sanad dated 4th April 1846 from Governor General creating Pahar Singh Raja, and conferring on him a valuable khillat.
† Letters from Deputy Commissioner Firozpnr, 14th, 16th, 20th,and 27th May, 12th July, 7th and 20th August, to Raja Wazir Singh.
†† Commissioner Lahore, to Raja Wazir Singh, 21st August 1858, enclosing letter from Governor General.

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज

महाराज वजीरसिंह फरीदकोट के राजा वराड़ वंशी जाट सिख थे। जाट इतिहास:ठाकुर देशराज से इनका इतिहास नीचे दिया जा रहा है।

महाराज वजीरसिंह

योग्य पिता के बाद वजीरसिंह फरीदकोट की गद्दी पर बैठे। शुरू में राज्य की उन्नति तथा खेती के विकास में आपने रुचि ली। पिता के समान अंग्रेजों से मित्रता बनाये रखी। दूसरे सिख-युद्ध के समय आपने अंग्रेजों की मदद की। पच्चीस हजार रुपये नकद सहायता में दिए। इनका एक आदमी घमड़सिंह जो मि० बराड़फुट की सेवा में पहाड़सिंह ने नियुक्त किया था, अंग्रेजों की कृपा से फरीदकोट का बख्शी बन गया था। एक ओर उसको घमण्ड हो गया था और दूसरी ओर उसके आसपास डाकुओं का जमघट लग गया। अंग्रेजी इलाके से शिकायत मिली कि घमड़सिंह के आदमी इधर लूटमार करते हैं। वजीरसिंह ने जांच कराई तो आरोप सही निकला। अतः उसको कैद कर लिया गया, पर थोड़े दिन बाद मुक्त कर दिया गया। जिस तरह इसने तरक्की पाई थी, उसी तरह इसका नाश भी हुआ। मौजा चाहिल में इसे रहने का हुक्म मिला किन्तु वहां से कुछ दिन बाद भाग गया। वास्तव में महाराज और उनके राजकुमार की भी यही इच्छा थी कि इसके बख्शीपने से पीछा छूटे। उनके इरादे में ईश्वर सहायक हुआ।

सिख-युद्ध के बाद महाराज अपने राजकाज के सुधार में चिपट गये। वे चाहते थे कि रियासत की आबादी खूब बढ़े ताकि खजाने में रुपया अधिक आये। किसी भी राज्य अथवा संस्था को चलाने के लिए रुपए की जरूरत हुआ करती है। किन्तु रुपया सदा नेक-नीयत से इकट्ठा करना चाहिए। राज चलाने के लिए जो राजा प्रजा को लूट-खसोट करके धन इकट्ठा करते हैं, वास्तव में वह प्रजा को विद्रोही बनाने के सामान पैदा करते हैं। महाराज वजीरसिंह प्रजा को खुश रखकर राज चलाना चाहते थे। इसीलिए वह आबादी बढ़ाने और खेती के कामों में तरक्की देने की कौशिशों में संलग्न हुए। किन्तु सिख-युद्ध के छः सात ही साल बाद देश में गदर खड़ा हो गया। यह गदर सेना की ओर से विदेशी शासक अंग्रेजों के


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-465


विरुद्ध था। गदर के कारण और घटनाओं से भारत का बच्चा-बच्चा जानकार है, इसलिए उस पर विशेष प्रकाश डालने की आवश्यकता नहीं। पंजाब की ओर इसकी लपट पहुंचते ही डिप्टी-कमिश्नर तथा कमिश्नर ने महाराज वजीरसिंह को खबरदार रहने तथा अंग्रेज सरकार की सहायता करने को प्रार्थना-पत्र भेजे। महाराज ने सेनापति सहित खुद जाकर अंग्रेजों की विद्रोहियों से रक्षा की तथा विद्रोह को दबाया। नाभा के प्रसिद्ध विद्रोही सामदास का दमन करके पंजाब के अंग्रेजों को सुरक्षित किया। रियासत से गल्ला-दाना देकर अंग्रेजी सैनिकों के प्राण बचाये। इस तरह लगातार एक साल तक, जब तक कि गदर शान्त हुआ, महाराज अंग्रेजों की मदद करते रहे।

गदर के शान्त हो जाने पर जब अंग्रेजों की जान में जान आई तो उन्होंने कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर पाया। इस अवसर पर महाराज फरीदकोट को भी याद किया गया। उनके जिम्मे की दस सवारों की सेना माफ की गई। खिलअत (चिट्ठी नं० 2094) तारीख 12 जुलाई, सन् 1858 ई० को दिए गए थे। इसके दो वर्ष बाद गवर्नर जनरल के हुक्म से सेक्रेटरी गवर्नमेंट पंजाब ने 11 मई, सन् 1860 ई० को ग्यारह तोप की सलामी का अधिकार महाराज फरीदकोट और उनकी सन्तान को दिया। सब प्रकार के झंझटों से मुक्त होने पर सरकार ने पंजाब के राजा रईसों को सलाह दी कि लगान बटाई के बजाय नकदी में लिया जाए और भूमि की माप कर ली जाये। चोरी-डकैतियों के बन्द करने के लिए महकमा पुलिस स्थापित किया जाये। इन सलाहों के अनुसार महाराज फरीदकोट ने अपने यहां सन् 1861 ई० में बन्दोबस्त कराकर नकदी में लगान बांध दिया। लेकिन जमीन का मालिक किसान ही रहा। किसान अपनी जमीन को दूसरे के हाथ बेच सकता है। राज के नियत किए हुए लगान से अधिक पर उठा सकता है। गिरवी रख सकता है। अपनी जमीन में से चाहे जितनी को बोये-जोते, चाहे जितनी पड़ी रहने दे। चाहे जहां कुआं, धर्मशाला, मकान बनवा सकते हैं। राज को उनकी जमीन को न छीनने का अधिकार है, न जब्त करने का। वह अपनी नियत की हुई मालगुजारी पाने का अधिकारी है। हां, मालगुजारी न मिलने पर जाब्ते की कार्यवाही की जाती है। किसानों के लिए ये सहूलियतें फरीदकोट के नरेशों की ओर से दी हुई थीं। यह उनकी उदारता का परिचय था। समस्त जाट राज्यों में जमीन के प्रायः ऐसे ही नियम थे।

जमींदारी का सबसे बुरा सिस्टम राजपूताने की राजपूत रियासतों में था। ब्रिटिश भारत की जागीरदारी में किसानों के लिए जो तकलीफें हैं, वही राजपूताने में हैं। फरीदकोट, नाभा आदि जाट-राज्यों में जमीन का बन्दोबस्त होने पर भी


जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-466


प्रजा की रक्षा की गई थी और अब तक है। बन्दोबस्त के हो जाने पर राज्य ने धीरे-धीरे अंग्रेजी शासन के ढ़ंगों को अपनाया। सन् 1859 ई० में कोर्ट-फीस और दस्तावेज का रिवाज जारी कर दिया। सन् 1859 में पुलिस भी अंग्रेजी ढ़ंग पर रखी जा चुकी थी। मालगुजारी वसूल करने के लिए तहसीलें कायम हुईं। पहले रियासत में कस्टम का रिवाज था, किन्तु व्यापार को तरक्की देने के लिए कस्टम का रिवाज भी उठा दिया।

चूंकि पंजाब में कई छोटी-छोटी जागीरें व रियासतें लावलदी में अंग्रेज सरकार ने जब्त कर ली थीं, इसलिए शेष रियासतों ने लावलदी के भय से सरकार के पास गोदनशीनी के अधिकार प्राप्त करने की प्रार्थना की, सरकार ने पंजाब के सभी रईसों को जातीय रिवाज के अनुसार सन् 1862 में गोद लेने का अधिकार दे दिया। महाराज वजीरसिंहजी भी इस अधिकार को पाकर बड़े प्रसन्न हुए। महाराज ने यह भी उचित समझा कि सरकार से अब तक मिली हुई अतायतों की सनद हासिल हो जानी चाहिए। उनके वकील ने इस बात को सरकार के सामने रक्खा। अतः सरकार की ओर से निम्न सनद मिली -

तर्जुमा सनद तमलीक मुल्क अज पेशगाह नवाब मुस्तताव मुअल्ले अलकाव वायसराय व गवर्नर-जनरल बहादुर किशोर हिन्द मुखर्रिख 21 अप्रैल सन् 1863 ई०।

जब से सरकार अंग्रेजी का अधिकार भारत में हुआ, राजा वजीरसिंह सा० बहादुर और उनके पूर्वजों की तरफ से सरकार मम्दूह की खैरख्वाही जाहिर होती रही और उसके औज में उनकी इज्जत और मरतिव और मुमलिकत नये सिरे से स्वीकार की जाती रही। अभी-अभी सन् 1857 व 1858 के गदर में रईसहाल ने सरकारी अमूर में दिलचस्पी जाहिर करके अपनी अकीदतमन्दी पाया सबूत को पहुंचाई और इसलिए सरकार अंग्रेजी ने निहायत महरबानी और शाहनशाही इनायत से जो खिदमत दस सवारों की अब तक चली आती थी, रियासत को माफ फर्मादी। रईस के अलकाब खिलअत में तरक्की की और अलावा इसके ग्यारह तोप की सलामी की खसूसियत बख्शी और उनकी इच्छा पर इन कृपाओं की मुस्तमिल सनद जिससे इनके कदीमी मौरूमी मुल्क का दख्ल भी जाहिर हो और यह भी साबित हो कि सिवाय इसके और मुल्क उन्होंने हासिल किया और सरकार अंग्रेजी ने अजरुये अतिया-शाही या तबादिला इनको बख्श देनी मंजूर हुई। बाये तफसील कि रईस हाल और उनके वारिसों का मिल्क और दखल हमेशा के लिए जायज व कबूल है। शरायत यह हैं -

दफा (1) रईस हाल और उनकी भावी संतान को जो मनकूहा रानी के पेट से हो हमेशा के लिए यह तमाम अधिकार और स्वत्व दीवानी-फौजदारी और माल के जो कि इनको हासिल हैं, इनके मौरूमी अधिकृत देश पर और निज उस मुल्क पर

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-467


जो प्रदान किए अथवा परिवर्तन हुए हैं और जिसकी फहरिस्त सनद हाजा के साथ शामिल है, बराबर बहाल और मकबूल रहेंगे।
दफा (2) वास्तशनायेजा अराजी माफी मुफस्सिला जल इलाका कोटकपूरा के जो अब वसूल नहीं हुआ। सरकार अंग्रेज रईस मौसूफ से और उनके किसी जांनशीन से और उनके मातहत जमींदार और जिलेदारों से और उनके खवीसों से करीबों या मुतवसीलों से कोई खिराज या बाज किसी तरह की खिदमत की बाबत हर्गिज वसूल नहीं करेगी। अराजियात लाखिराज इलाका कोट कपूरा की बाबत जो कि सरकार अंग्रेजी के कब्जे में आ गई हैं या आइन्दः वाज गश्त करें मुबलिग चार हजार दो सौ अड़तीस रुपया मुकर्रिर हैं इनमें खिसारह का मुआविजा जो बवजह माफ करने महसूल शायर के सरकार रियासत को मुजरा दिया गया है। दो हजार रुपया सालाना बाकी या फितनी सरकार अज जुमला चार हजार दो सौ अड़तीस रुपया, दो हजार दो सौ अड़तीस रुपया है।
दफा (3) राजा साहब मौसूफ ने जर तबादिला सिखिसारा सरकार अंग्रेजी से मिल जाने के सबब अपनी तरफ से और अपने जांनशीनों की तरफ से हक तहसील एक्साइज (खाने-पीने की वस्तु का महसूल) का कस्टम हमेशा के लिए छोड़ दिया है।
दफा (4) जबकि सरकार अंग्रेजी की मंशा है कि राजा साहब फरीदकोट का खानदान हमेशा कायम व बरकरार रहे इसलिए साहब मौसूफ और उनके जांनशीनों को औलाद जेना मनकूहा औरत के पेट से न होने की सूरत में उनके खानदान के दस्तूर के मुताबिक अपना जांनशीन मुकर्रर कर देने का हमेशा के लिए दिया गया है।
दफा (5) सरकार अंग्रेजी की रिआया जो राजा साहब के मुल्क में इरतकाब जुर्म करके माखूम हो, उस पर अख्तियारात शुन्दर्जे चिट्ठी साहिवानजीशान कोर्ट आफ डाइरेक्टरस् इस्मी गवर्नमेंट मद्रास नम्बर 13 मुवर्रिखा यकम जून सन् 1836 ई० राजा साहब मौसूफ और उनके जांनशीनों को हासिल होंगे। राजा साहब मौसूफ और उनके जांनशीन अपनी रियासत के इंसाफ देने और आराम बहबूदी बढ़ाने में साथी रहेंगे और पहले इकरारनामे की शर्तों के मुताबिक सती होने, बुर्दा फरोशी, दुख्तरकुशी की रस्मों को अपने मुल्क में से बिलकुल मौकूफ और बन्द करेंगे और जो लोग कि इन जुर्मों में से किसी अपराध के अपराधी होंगे उनको दूसरों की भलाई के लिए कठिन दण्ड देंगे।
दफा (6) राजा साहब बहादुर मौसूफ और उनके जांनशीन अंग्रेज सरकार की खैरख्वाही फर्माबरदारी और अकीदतमन्दी से मुनहरफ नहीं होंगे।
दफा (7) अगर कभी सरकार अंग्रेजी के दुश्मनों की फौज उधर सर उठावें तो राजा साहब मौसूफ सरकार अंग्रेजी की रफाकत में उस दुश्मन का मुकाबला

जाट इतिहास:ठाकुर देशराज, पृष्ठान्त-468


करेंगे। और अपने मकदूर भर गडों और रसद का सामान बहम पहुंचाने में अफसरान सरकारी की ख्वाहिश पर कौशिश करेंगे।
दफा (8) राजा साहब मौसूफ अपने मुलाजिमों की मारफत रेल की सड़कों, फरुद गाहों, शाही सड़कों और पुलों की तामीर के मौके पर हस्व दस्तूर जरूरी चीजें वकीमत मरूजा बहम पहुंचावेंगे और रेल की सड़कों और शाही सड़कों के जेर आमद जमीन विला किसी कीमत और मुआविजा के छोड़ देंगे।
दफा (9) राजा साहब मौसूफ और उनके जांनशीन हमेशा सरकार अंग्रेजी की वफादारी और इरादतमन्दी पर साबित कदम रहेंगे। और सरकार मन्दूह भी हमेशा राजा साहब मौसूफ और उनके खानदान की इज्जत और मर्तवा कायम रखने की ताक मुतवजह रहेगी।

फहरिस्त मुमालिक ममलूका राजा साहब फरीदकोट

मुल्क मौरूसी - परगना फरीदकोट, देहात परगना, परगना दीपसिंहवाला, कोटकपूरा व औज मौजा महमूआना सुलतानखानवाला अनाम-उ हुये।

मुल्क हासिक किरदः राजा सा० बहादुर - देहात परगना कोटकपूरा भगत अतिया सरकार अंग्रेजी सिवाये मौजा सविमाना जो वमूजिब तहरीर साहब चीफ कमिश्नर बहादुर पंजाब 4 मई 1858 ई० अंग्रेजी कलमरू में शामिल हुआ।

खजाने का पहला ढंग भी महाराज ने बदल दिया, किले में ही रुपया रखने का प्रबन्ध किया गया। पहले महाजनों के यहां रुपया जमा हुआ करता था। अब किले में सरकारी आदमियों की देख-रेख में रुपया रखने का प्रबन्ध हुआ, हिसाब के कागजात रखने का हुक्म दिया गया। खजाने का अध्यक्ष महाजनों की राय से चुना जाने लगा। कहा जाता है कि यह महाराज बड़े प्रजा-प्रिय थे। प्रजा के लोग दुःख और बीमारी के समय भी इनके नाम को याद करते थे। पिछले समय में जब आप थानेश्वर की तीर्थ-यात्रा से लौटे तो सन् 1874 ई० के अप्रैल महीने में आपका स्वर्गवास हो गया।

References


Back to The Rulers