Amrit Kalash/Chapter-8

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स्वतंत्रता सेनानी प्रसिद्ध कवि एवं समाज सुधारक - चौ. धर्मपाल सिंह भालोठिया - अमृत कलश (भजनावली),

लेखक - सुरेंद्र सिंह भालोठिया और डॉ स्नेहलता सिंह, बाबा पब्लिकेशन, जयपुर


अध्याय 8: अन्ध विश्वास

34. नहीं मिली दवाई,ये दुनिया रोग ने घेरी

भजन-34 (अन्धविश्वास का चक्र)

तर्ज:- सांगीत - मरण दे जननी, मौका यो ठीक बताया ......

नहीं मिली दवाई, ये दुनिया रोग ने घेरी ।। टेक ।।

जब से भारत माता पर, आजादी देवी कोप हुई ।

अविद्या के पैर जमे, वेद विद्या लोप हुई ।

पढना लिखना छूट गया, सबकी बुद्धि पोप हुई ।

चारों वर्ण अपने-अपने, कर्मो से बाहर गये ।

ब्राह्मण का ज्ञान गया, क्षत्रिय के हथियार गये ।

शुद्र की सेवा गई, वैश्य के व्यवहार गये ।

अंधविश्वास बढा घर-घर में, छाई रात अन्धेरी ।

नहीं मिली दवाई............।। 1 ।।

कोई कहे ढोसी गलता, और पुष्कर में रोग कटे ।

कोई कहे खाटूश्याम और लोहागर में रोग कटे ।

कोई कहे गोगामेड़ी और सालासर में रोग कटे ।

कोई कहे हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर में रोग कटे ।

कोई कहे असली धाम, मेहन्दीपुर में रोग कटे ।

कोई कहे पिंडारा और कुरूक्षेत्र में रोग कटे ।

कोई कहे देवी पर चालो, रोग कटे सै बेरी ।

नहीं मिली दवाई..............।। 2 ।।

कोई कहे रोग कटे, गंगाजी में नहाने से ।

कोई कहे रोग कटे, अमरनाथ पर जाने से ।

कोई कहे रोग कटे, झाड़ा लगवाने से ।

कोई कहे रोग कटे, रात के जगाने से ।

कोई कहे रोग कटे, बूझा करवाने से ।

कोई कहे रोग कटे, खड़ी कांवड़ लाने से ।

कोई कहे भैरूँ रोग काट दे, नहीं लगावे देरी ।

नहीं मिली दवाई.............. ।। 3 ।।

कलकत्ता में मुर्गा बकरा, झोटाखाणी रोग काटे ।

गुडगावां में शीतला माता, सेढ मसाणी रोग काटे ।

शेखावाटी झुन्झुनूं में, सती राणी रोग काटे ।

अन्धविश्वास के चक्कर में, जनता आज हुई परेशान ।

स्याणा सेवड़ा बने डॉक्टर, अन्धी दुनिया मोधू ज्ञान ।

कहीं भूतणी तंग करे , कहीं लांडा भूत करे घमसान ।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, कौन सुने आज मेरी ।

नहीं मिली दवाई..............।। 4 ।।

35 . गंगा जी तेरी धार में,मूर्ख गेरें हाड

भजन-35

तर्ज:- गंगाजी तेरे खेऽऽऽत में............

गंगाजी तेरी धाऽऽऽर में, आज मूर्ख गेरें हाड ।

अंधविश्वाऽऽऽस में, नरनारी भटक रहेऽऽऽ ।। टेक ।।

हिमालय पर्वत, उगले शरबत, बनी सैं अनेकों झील ।

किसी को पाई नहीं गहराई, लम्बी चौड़ी कई मील ।

तज के स्वार्थ, करूँ परमार्थ, भागीरथ ने किया फील ।

धुन का पक्का, करके धक्का, पहाड़ों को फोड़ फोड़ ।

बना के मार्ग, हो गया फारिग, पत्थरों को तोड़-तोड़ ।

गंगा माई एक बनाई, नदी नाले जोड़-जोड़ ।

कभी मंदी रफ्ताऽऽऽर में, कभी ले आती बाढ़ ।

अंधविश्वाऽऽऽस में, नरनारी भटक रहेऽऽऽ ।। 1 ।।

हर एक घर में, नारी नर में, पड़ी सै भंयकर भूल ।

पैर उभाणे, फिरे दीवाने, मुर्दघाट पर छाणे धूल ।

अंधविश्वासी, सत्यानासी हाडा न बतावें फूल ।

बहुत से दुर्जन, बचालें ईंधन, दाह कर्म को रोक देते ।

जाड़ दांत सिर पैर हाथ, लाकर के पूरा थोक देते ।

लाश उठाई, गंगा माई, तेरे अन्दर झोंक देते ।

पाप बढे नर-नाऽऽऽर में, ले करके तेरी आड़ ।

अंधविश्वाऽऽऽस में, नर-नारी भटक रहेऽऽऽ ।। 2 ।।

तेरे किनारे आन पधारे, जितने धूर्त पाखंडी ।

बैठे लुटेरे, लगाके डेरे, अपनी गाड़ दई झंडी ।

गढ़ मुक्तेश्वर, प्रयाग में घर, लूट की चला रहे मंडी ।

ठग अन्याई, मारें दुहाई, गंगा माई दे वरदान ।

भेज दे हैजा, ठाके लेजा, जलता रोज रहे श्मशान ।

बारहमास, ये करें आस, रोजाना एक मरे यजमान ।

कनखल और हरिद्वाऽऽऽर में, बैठे हजारों नाड ।

अंधविश्वाऽऽऽस में, नर नारी भटक रहेऽऽऽ ।। 3 ।।

कावड़ियाँ की देखी झाँकी, सामण और फागण में जोर ।

लेकर बोतल, भर गंगाजल, बम भोले का करें शोर ।

बांध अंगोछे, लम्बे ओछे, चाल पड़े सब डाकू चोर ।

करके कुकर्म, त्याग शर्म फिर, तेरी शरण में आवें गंगे ।

सारे पाप, करवा लूँ माफ, ले अन्तःकरण में आवें गंगे ।

झूठी कल्पना, लें सपना, नहीं जन्म मरण में आवें गंगे ।

भालोठिया संसाऽऽऽर में, सै दो दिन का लाड ।

अंधविश्वाऽऽऽस में, नर-नारी भटक रहेऽऽऽ ।। 4 ।।

36 . बनजा बन्दे नेक एक दिन, घड़ी अन्त की

।। दोहा ।।

पानी कैसा बुलबुला, अस मानुष की जात ।

देखत ही छिप जायेगा, ज्यों तारा प्रभात ।।

भजन-36

तर्ज:- चौकलिया

बन जा बन्दे नेक एक दिन, घड़ी अन्त की आवैगी ।

सही कहावत बकरे की माँ, कब तक खैर मनावैगी ।। टेक ।।

जलचर थलचर नभचर कितने ही, हाथी मगरमच्छ हंस गये ।

मनुष्य जन्म के बट्टा लगाके, हिरणाकुश और कंस गये ।

अपने आप गये और उनके, धरती पर से अंश गये ।

रावण और दुर्योधन जैसे, घमंडियों के वंश गये ।

कितनी दुनिया आई गई, न्यूँ किसकी बही बतावैगी।

सही कहावत बकरे की माँ ..... ।। 1 ।।

जैसे कर्म करेगा बन्दे, उसी कहानी रह जागी ।

कहीं लिखी मिल जावेगी और, कहीं जबानी रह जागी ।

शुभ कर्मों के करने से तेरी, साख्य पुरानी रह जागी ।

नेकी और बदी दोनों में, एक निशानी रह जागी ।

मालिक के घर तेरे कर्म की, लिखी कहानी पावैगी ।

सही कहावत बकरे की माँ .....।। 2 ।।

जिस दिन आवें तेरे मुकलाऊ, दीखें नहीं किसी को ऊत ।

कोई कहे फरिश्ता उनको, कोई बतावें जम के दूत ।

लेज्यां पकड़ के नहीं सुनेंगे, तेरे गवाही और सबूत ।

कोई कर्म से बने देवता, कोई कर्म से बने अछूत ।

कितनी मोर्चाबन्दी करले, एक दिन ये मौत हरावैगी ।

सही कहावत बकरे की माँ ......।। 3 ।।
:                 दौड़ (सांगीत)

गंगा जमना सरस्वती, चाहे त्रिवेणी में नहाले तू ।

सूरज ग्रहण पर कुरूक्षेत्र में, नहाके खुशी मनाले तू ।

लोहागर पुष्कर गलता में, गोते रोज लगाले तू ।

प्रस्ताव ले मुक्ति का चाहे, चार धाम पर जाले तू ।। 1 ।।

देवी और देवता सारे, उन सबको आजमाले तू ।

किसी की करदे सवामणी, और किसी की रात जगाले तू ।

किसी की देना बोल कड़ाही, किसी की फड़ बचवाले तू ।

कहीं जात गठजोड़े की दे, अमर पट्टा लिखवाले तू ।। 2 ।।

चक्रवर्ती राजा बन, पृथ्वी पर कब्जा करले तू।

हीरा मोती जवाहरात से, धन के कोठे भरले तू।

अरबपति चाहे खरबपति बन, सारी काढ़ कसर ले तू।

पाई साथ नहीं जा बेशक, सिर बदनामी धरले तू ।। 3 ।।

चाहे गुफा में लगा समाधि, बन निर्मोही फक्कड़ तू ।

बन कनफाड़ा राख रमा ले, बनज्या चाहे घुमक्कड़ तू ।

खड़ा तपस्या करले बेशक, फूँक देश के लक्कड़ तू ।

पंच धूणां के बीच बैठ के, चाहे पाड़ दे भक्कड़ तू ।। 4 ।।

जिस दिन तन में देखेगा, रोगों की आँधी उठी तू ।

चाहे इंजेक्शन लगवाले, चाहे पीले काढ़ा घूटी तू ।

चाहे अमरफल खाले चाहे, खाले सरजीवण बूटी तू ।

चाहे भाँग के गोले गिटले, चाहे लगाले सुट्टी तू ।। 5 ।।

जंतर मंतर में मंढ़वा के, चाहे पहनले अंगूठी तू ।

अपने कर्म नहीं देखे, तकदीर बतावे फूटी तू ।

चाहे काँच के महल में सो, बिछवाके सेज अनूठी तू ।

पहरेदार खडे़ कर दे, बेशक लगवा दे ड्यूटी तू ।। 6 ।।

चाहे थम्ब के कोली भरले, चाहे पकड़ ले खूँटी तू ।

एक दिन तेरी लिकड़ेगी, नहीं देख सके बैकुंठी तू ।

हाथ पसारे जाणा हो, आया था भींच के मुट्ठी तू ।

घर वाले तेरे आग लगादें, मेर करै सै झूठी तू ।। 7 ।।

सृष्टि का कर्ताधर्ता उस, मालिक के गुण गाले तू ।

अहिंसा परमोधर्म का मंत्र, पढ़ के मन समझाले तू ।

काम क्रोध मद लोभ छोड़ के, सेवा धर्म कमाले तू ।

तेरी मेरी हेरा फेरी, छोड़ अमर पद पाले तू ।

भालोठिया कहे समय निकलजा, फिर नहीं पार बसावैगी ।

सही कहावत बकरे की माँ, कब तक खैर मनावैगी ।। 8 ।।

37 . आओ अनपढ़ परिवार दिखाऊँ

।। भजन-37 ।। (अनपढ़ परिवार में अंधविश्वास)

तर्ज:- जरा सो टेढ़ो हो जा बालमा, म्हारो पल्लो लटके ........

आओ अनपढ़ परिवार, दिखाऊँ सजनो।। टेक ।।

काला अक्षर भैंस बराबर और विद्याधर नाम ।

देवी और देवता पूजें, करते तीरथ धाम ।

घर में बच्चों का लंगार , दिखाऊँ सजनो ।। 1 ।।

लोभ दिया देवों को, मिलगी मुँह मांगी संतान ।

श्यामा सेढू बजरंग देबू , भैरूँ जाहरदान ।

सारे बच्चे मिले उधार , दिखाऊँ सजनो ।। 2 ।।

डॉक्टर इनका स्याणा सेवड़ा, बूझागर मसटंडा ।

झाड़ा लगावें ताबीज बांधें, करते डोरी गंडा ।

सारे मूरख मूढ़ गवार , दिखाऊँ सजनो ।। 3 ।।

बहू में आई ओपरी पराई, दवाई सब बेकार ।

आया सेवड़ा धूमणी लगाई, भूतणी काढ़ी चार ।

रूपैया ले गया दो हजार , दिखाऊँ सजनो ।। 4 ।।

बच्चों की रक्षा के लिए भी, राखें ये गुपती चीज ।

छल्ला कोडी तागड़ी में, गंडा डोरी ताबीज ।

बिना लाईसेंस के हथियार , दिखाऊँ सजनो ।। 5 ।।

बकरी भेड़ चरावें छोरा, नाम बतावें जौहरी ।

भैंस चरावे गोबर थापे, नाम बतावे मोहरी ।

छोरी भैंस की सवार , दिखाऊँ सजनो ।। 6 ।।

देवी बोली सुनो पति, मैं गंगा नहाने जाऊँ ।

गंगा नहाके दिल्ली देखूँ , पन्द्रह दिन में आऊँ ।

पति को सौंप दिया घरबार , दिखाऊँ सजनो ।। 7 ।।

एक दिन लाग्या दूध बिलोवण, नींद रात की खोई ।

दही की हांडी छोड़ शेर ने, राबड़ी बिलोई ।

ढोई रात भर बेगार , दिखाऊँ सजनो ।। 8 ।।

दामण चून्दड़ी सजाके मोलड़, काढ़ण बैठा दूध ।

नई बहू के हाथ देखके, भैंस गई थी कूद ।

खूँटा पाड़, हो गई पार , दिखाऊँ सजनो ।। 9 ।।

धणी भाग रहा पीछे-पीछे, भैंस हाथ नहीं आवे ।

चून्दड़ी उतर गई सिर से, ये खड़ा मूँछ फरकावे ।

आओ नरसिंह का अवतार , दिखाऊँ सजनो ।। 10 ।।

एक दिन ये पीसै था, एक साधु ने अलख जगाया ।

मूँछ देख घूँघट में मोडा, बाहर दौड़ के आया ।

बोला मूँछा वाली नार , दिखाऊँ सजनो ।। 11 ।।

बुड्ढे़ मांगी गुड़ की डली, भीतर से धापां नांटी ।

जितने जीया बुड्ढे़ की, रही होती खराब माटी ।

जिस दिन गया वो स्वर्ग सिधार , दिखाऊँ सजनो ।। 12 ।।

उसका छोरा बन गया बोहरा, काज की चिट्ठी पाड़े ।

जिमाके भाइयों को बुड्ढ़े के, मुँह की राख लिकाड़े ।

भरा लाडुओं का भंडार , दिखाऊँ सजनो ।। 13 ।।

पहली बीमारी अनपढ़ रहना, दूसरी अंधविश्वास ।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, जहाँ पर इनका वास ।

वहाँ संकट बेशुमार , दिखाऊँ सजनो ।। 14 ।।

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