Avtar Singh Ahlawat

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Avtar Singh Ahlawat

Avtar Singh Ahlawat (04.09.1950 - 2006) (Second Lt) was from Gochhi village in Jhajjar district in Haryana. He retired as Colonel from Indian Army. He fought bravely in Indo-Pak War 1971. He died in 2006.

Unit- 17 Horse

सैकिंड लेफ्टिनेंट अवतार सिंह अहलावत

सैकिंड लेफ्टिनेंट अवतार सिंह अहलावत

04-09-1950 - 2006

वीर चक्र

यूनिट - 17 हॉर्स (पूना हॉर्स)

बसंतर का युद्ध

ऑपरेशन कैक्टस लिली

भारत-पाक युद्ध 1971

सैकिंड लेफ्टिनेंट अवतार सिंह अहलावत का जन्म 4 सितंबर 1950 को स्व. मेजर के.एस. अहलावत के घर में हुआ था। यह परिवार मूल रूप से हरियाणा के झज्जर जिले के गोछी गांव का निवासी था। उन्होंने सैनिक स्कूल, कुंजपुरा, करनाल से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त की थी। शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात उनका राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA), खड़कवासला में चयन हुआ था। तत्पश्चात भारतीय सैन्य अकादमी (IMA), देहरादून से प्रशिक्षण पूर्ण करने के पश्चात उन्हें भारतीय सेना के आर्मर्ड कॉर्प्स की 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट में सैकिंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त हुआ था।

वर्ष 1971 के युद्ध में, सैकिंड लेफ्टिनेंट अहलावत सेंचुरियन टैंक की कमान संभाल रहे थे और उन्हें टैंक कमांडर के रूप में नियुक्त किया गया था। जैसे ही 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के साथ युद्ध आरंभ हुआ 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट को 54 इंफेंट्री डिवीजन के संचालन में शकरगढ़ सेक्टर में तैनात किया गया था।

15/16 दिसंबर 1971 को, भारतीय इंफेंट्री बसंतर नदी को पार करने और एक पुलहेड स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रही थी। 17 पूना हॉर्स के सेंचुरियन टैंकों को पुल पार करने और पाकिस्तान के भयानक पलटवार और तोपखाने की गोलाबारी का सामना कर रही इंफेट्री को सुदृढ़ करना आवश्यक था। 16 दिसंबर को सैकिंड लेफ्टिनेंट अहलावत को शकरगढ़ सेक्टर में 17 पूना हॉर्स के AXIS को सुदृढ़ करने और बसंतर नदी पर पुल को पार करने और ब्रिजहेड पर भारतीय इंफेट्री का समर्थन करने का आदेश प्राप्त हुआ।

जैसे ही सैकिंड लेफ्टिनेंट अहलावत ने अपनी टैंक टुकड़ी को आगे बढ़ाया, उनके टैंकों को शत्रु की मशीन गनों और टैंक-रोधी गोलीबारी का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने टैंक को आगे बढ़ाया और एक-एक करके पाकिस्तानी बंकरों और आरसीएल गन स्थितियों के रूप में शत्रु के गढ़ों को ढहाना आरंभ कर दिया। दुर्भाग्य से, पाकिस्तानी पैटन टैंकों के एक स्क्वॉड्रन ने प्रत्युत्तर में वृहद स्तर पर आक्रमण किया और शीघ्र ही, सैकिंड लेफ्टिनेंट अहलावत की टैंक टुकड़ी एक भीषण टैंक युद्ध में सम्मिलित हो गई। अपने टैंक को आघात लगने से पूर्व सैकिंड लेफ्टिनेंट अहलावत ने 3 पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया था।

शत्रु के गोले ने उसके सेंचुरियन टैंक के सामने के कवच को नष्ट कर दिया, जिससे उनके टैंक का गनर घायल हो गया। ऐसे में, सैकिंड लेफ्टिनेंट अहलावत ने स्वयं अपने टैंक की तोप संभाली और गोलाबारी आरंभ कर दी। दुर्भाग्य से, उनके टैंक को द्वितीय आघात लगा और इस बार, वह घायल हो गए। घायल होने और उनके टैंक के पूर्ण रूप से कार्य नहीं करने पर भी वह पाकिस्तानी पलटवार विफल नहीं होने तक जूझते रहे। युद्ध समाप्त होने पर उन्हें युद्ध के मैदान से निकालकर चिकित्सा के लिए ले जाया गया। कुछ दिनों तक उपचार चलने के पश्चात वह स्वस्थ हो गए।

इस युद्ध में यदि शत्रु का पलटवार सफल हो जाता, तो संपूर्ण पुलहेड नष्ट हो जाता। इस कार्रवाई में श्रेष्ठ मारक क्षमता से शत्रु का सामना करने और व्यावसायिक कौशल, वीरता और दृढ़ संकल्प के लिए सैकिंड लेफ्टिनेंट अहलावत को वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

उन्होंने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के ADC और AMS के रूप में दो कार्यकाल पूर्ण किए थे। वह टैंक की गोलाबारी में दक्ष थे। 2 वर्ष तक उन्होंने कमांडिंग ऑफिसर के रूप में 17 हॉर्स रेजिमेंट की कमान संभाली थी। वह कर्नल के रूप में सैन्य सेवा से सेवानिवृत्त हुए थे।

वर्ष 2006 में उनका निधन हुआ था। कर्नल अवतार सिंह अहलावत के परिवार में उनकी पत्नी, एक पुत्र और एक पुत्री है, यह सभी अब अमेरिका में बस गए हैं।

संदर्भ


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