Balwant Singh Deswal

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Balwant Singh Deswal (popularly known as Balwant Singh Arya) (1914-1997) was a social activist, Arya Samajist and famous Ayurvedic Vaid, who also wrote several books on Ayurvedic system of medicine. For some time, he donated his services to Gurukul Jhajjar also. He hailed from Baliana village of Sampla tahsil (district Rohtak, Haryana).

Short life-sketch

कप्तान सिंह देशवाल लिखते हैं - इनका जन्म गाँव बलियाणा, जिला रोहतक में सन् 1914 में हुआ था। इनके पिता जी रामदास गाँव में एक अच्छे किसान थे। यह परिवार पहले से सम्पन्न परिवार था। इनकी माता जी सुशील, कर्त्तव्य परायण, धर्म परायण आदि अनेक गुणों से युक्त थी। चौ. रामदास पहले से ही आर्यसमाज के उपदेशों को मानने वाले व आर्यसमाज के नियमों पर चलने वाले थे। इस प्रकार से माता-पिता दोनों ही बड़े आदर्शवादी थे।

वैद्य बलवन्त सिंह जी अपने साथ के बालकों में खेलने, घर-खेती का काम करने में, शिक्षा में अग्रणी थे। बालकपन से मल्लयुद्ध के शौकीन थे। बचपन से ही हृष्ट-पुष्ट, नटखट बालक थे। गाँव में शिक्षा प्राप्त करने के बाद जाट हाई स्कूल रोहतक में 12 किलोमीटर पैदल आते-जाते थे। इसी स्कूल से इन्होंने आठवीं कक्षा पास की थी। कुश्ती करना, मोगरी घुमाना, मुगदर उठाना, व्यायाम करना इनके अति प्रिय खेल थे।

शिक्षा प्राप्त करने के बाद श्री बलवन्त जी आर्य ने रोहतक में वैद्य श्री बसन्तराम आर्योपदेशक के पास वैद्यक सीखना आरम्भ किया। इन्हें ऐलोपैथी इलाज के बारे में भी पूरा ज्ञान था। पाँच वर्षों तक इन्होंने वैद्यक को विधिवत् सीखा और ये 21 वर्ष की अवस्था में एक अच्छे वैद्य बन गये। इसके साथ-साथ जिले के अच्छे पहलवानों में गिनती थी। अपने समय के माहिर पहलवान रहे हैं।

सन् 1939 में हैदराबाद के निजाम ने वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार पर रोक लगा दी। अनेक हिन्दू मन्दिर गिरा दिए गये और नये मन्दिर बनाना कानूनन बन्द कर दिया गया। हैदराबाद में हिन्दू जनता के साथ क्रूरता का व्यवहार किया जा रहा था। हिन्दुओं को मुसलमान बनाया जा रहा था और बेइज्जत भी किया जा रहा था। उस समय पर यह भारतवर्ष के हिन्दुओं के किए घोर अपमान की बात और एक चुनौती थी। इस चुनौती का हिन्दू समाज में मुकाबला करने के लिए केवल एक ही संस्था आर्यसमाज थी जिसने निजाम से लोहा लेने की ठानी। भावी योजना हेतु शोलापुर में एक आर्य महासम्मेलन हो रहा था। उस समय पर पं. श्यामलाल का शव सम्मेलन में आया। यह देखकर भयंकर रोष छा गया क्योंकि बीदर की जेल में भयंकर कष्ट व यातना देकर पं. श्यामलाल को मारा गया था। इसी सम्मेलन से पूरे भारतवर्ष में निजाम के विरुद्ध लड़ाई का समाचार शीघ्र ही फैल गया। चारों तरफ से निजाम के विरोध में जत्थे जाने लगे और निजाम हैदराबाद की सभी जेलों को भर दिया। वैद्य जी ने गाँव-गाँव जाकर हैदराबाद सत्याग्रह के लिए जत्थे तैयार किये। इसी प्रकार हिन्दी सत्याग्रह आन्दोलन में सक्रिय रहे। पंजाब में सिक्खों के नेता प्रतापसिंह कैरों मुख्यमंत्री पंजाब ने 1956 में सितम्बर के महीने में पंजाबी भाषा को राजकीय भाषा घोषित कर दिया और स्कूलों में उर्दू व हिन्दी को हटाकर पंजाबी भाषा लागू की गई। हरयाणा भी पंजाब का हिस्सा था। सारे पंजाब में हिन्दू लोग रुष्ट हो गये। इसके विरोध में जनवरी 1957 में सभी जिलों से साधुओं-सन्यासियों, आर्य-समाजियों व अन्य हिन्दू संगठनों ने हर गाँव से सैंकड़ों-सैकड़ों लोगों के जत्थे ले जा कर चण्डीगढ़ भेज दिये। सभी जेल भर गई। लोगों को काबू करना कठिन हो गया। स्कूलों और धर्मशालाओं में भी लोगों को रोका गया।

यह आन्दोलन एक वर्ष तक चला और दिसम्बर 1957 के अन्त में समाप्त हुआ। इसमें बलियाणा गाँव के आदमियों ने पूरा भाग लिया। वैद्य बलवन्त जी अग्रणी थे। गाँव में से जिले भर में सबसे ज्यादा आदमी गये थे। छः महीने तक वैद्य जी गाँव के सरपंच भी रहे थे।

गाँव बलियाणा में वैद्यक चिकित्सा की दुकान का कार्य आरम्भ कर किया। वैद्य जी गाँव की लड़की को मुफ्त दवाई देते थे। दवाइयों के पैसे किसी से नहीं मांगते थे। झज्जर गुरुकुल से जो औषधियाँ उधार में आती थी, उनका लगभग 15 हजार का बकाया होने के कारण वैद्य जी गाँव छोड़कर गुरुकुल झज्जर में नाड़ी देखकर दवाई देने लगे। गाँव के आदमियों को यह बात अच्छी नहीं लगी। वैद्य जी को वापिस गाँव में ले आए। गाँव आने पर मिस्त्री ओमप्रकाश जी के मकान पर दवाई देने लगे।

इसी दौरान चौ. कुलबीर सिंह आर्य के खेत में आर्यसमाज मन्दिर की योजना बनाकर एक आर्यसमाज भवन का निर्माण आरम्भ हो गया। वैद्य जी अन्त में अपना घर त्याग कर आर्यसमाज मन्दिर में दवाई देने लगे। अन्य प्रान्तों से भी मरीज वैद्य जी के पास आते थे। जो मरीज आया, वह यहाँ से ठीक होकर गया है। मरीजों के परिवार वालों ने व गाँव के लोगों ने अपनी इच्छा से दान देकर वैद्य की काफी मदद की थी। वैद्य जी मुफ्त दवाई देते थे। गौशाला के लिए चारा-भूसा, गुरुकुल के लिए अनाज और पैसे बलियाणा और दूसरे गाँवों के लोग वैद्य जी को अपने आप बिना मांगे अपनी इच्छानुसार दे देते थे।

गौरक्षा आन्दोलन में वैद्य जी का पूरा योगदान रहा है। गौहत्या बन्द कराने के लिए सभी हिन्दुओं, साधुओं ने मिलकर गौरक्षा सत्याग्रह आन्दोलन किया। इसमें अनेकों साधु व व्यक्ति शहीद हुए, जेलें भरी गईं। सन् 1966 में यह आन्दोलन शुरू हुआ था। वैद्य जी इस आन्दोलन में भाग लेने के कारण डेढ़ मास तक जेल में रहे।

गले में विकार के कारण वाणी रुक जाने से वैद्य जी कष्ट में रहने लगे। लम्बी आयु हो गई थी। शरीर में अन्य कोई भी बीमारी नहीं थी। भगवान् ने 13 जुलाई 1997 को उनको अपने पास बुला लिया। ऐसे महान् व्यक्ति व सन्यासी, समाजसेवी कभी-कभी ही जन्म लेते हैं। धन्य हैं वे जननी जिनकी कोख से दूसरे के दुःखों को हरने वाले महापुरुष पैदा होते हैं।[1]

Gallery

Reproduced here are photos of cover-pages of some of the books written by Balwant Singh Arya.

References


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