Devagiri

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(Redirected from Daulatabad Fort)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Devagiri (देवगिरि) or Daulatabad Fort is a historical fortified citadel located in Aurangabad Maharashtra, India. It was the capital of the Yadava dynasty (9th century–14th century CE), for a brief time the capital of the Delhi Sultanate (1327–1334), and later a secondary capital of the Ahmadnagar Sultanate (1499–1636).[1]

Origin

Variants

History

Around the sixth century CE, Devagiri emerged as an important uplands town near present-day Aurangabad, along caravan routes going towards western and southern India. The historical triangular fortress in the city was initially built around 1187 by the first Yadava king, Bhillama V.[2] In 1308, the city was annexed by Sultan Alauddin Khalji of the Delhi Sultanate, which ruled over most of the Indian subcontinent. In 1327, Sultan Muhammad bin Tughluq of the Delhi Sultanate renamed the city as "Daulatabad" and shifted his imperial capital to the city from Delhi, ordering a mass migration of Delhi's population to Daulatabad. However, Muhammad bin Tughluq reversed his decision in 1334 and the capital of the Delhi Sultanate was shifted back from Daulatabad to Delhi.[3] In 1499, Daulatabad became a part of the Ahmadnagar Sultanate, who used it as their secondary capital. In 1610, near Daulatabad Fort, the new city of Aurangabad, then named Khadki, was established to serve as the capital of the Ahmadnagar Sultanate by the Ethiopian military leader Malik Ambar, who was brought to India as a slave but rose to became a popular Prime Minister of the Ahmadnagar Sultanate. Most of the present-day fortification at Daulatabad Fort was constructed under the Ahmadnagar Sultanate.

Devagiri hill Odisha

Devagiri hill rises to a height of 120.2 meters and is 50 km from Rayagada, Odisha, India. Unlike other hills, the top of the hill is a rectangular platform. The 476 steps with which one can reach the top are another unique feature of the hill. At the top of the hill, there are perennial poles of water called Ganga, Yamuna, Saraswati, Bhargavi and Indradyumna.

The hill is considered sacred due to presence of Panchamukhi(Five faced) Shiva Linga and Asta Linga (Eight Lingas) on the top of the hill.[4] There is a cave in the hill looking like two jaws.[5] There is one still undeciphered inscription which speaks of the antiquity of the place.[6] A Shiva Lingam is enshrined at the meeting of the two jaws.Regular bus services are available from Rayagada to K. Singpur and the sacred hill is close to K.Singpur.

सुरगिरि

सुरगिरि (AS, p.976) = देवा गिरि, दौलताबाद. इसका तीर्थ माला चैत्यवंदन में प्राचीन जैन-तीर्थ के रूप में इसप्रकार उल्लेख है--'वंदे स्वर्णगिरि तथा सुरगिरौ श्रीदेवकी पत्तने'.[7]

देवगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...1. देवगिरि (AS, p.444) = दौलताबाद : औरंगाबाद ज़िला, महाराष्ट्र राज्य, दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थित प्रख्यात नगर है। जैन पंडित हेमाद्रि के कथनानुसार देवगिरि की स्थापना यादव नरेश भिलम्मा (प्रथम) ने की थी। यादव नरेश पहले चालुक्य राज्य के अधीन थे। भिलम्मा ने 1187 ई. में स्वतंत्र राज्य स्थापित करके देवगिरि में अपनी राजधानी बनाई। उसके पौत्र सिंहन या सिंघण ने प्राय: संपूर्ण पश्चिमी चालुक्य राज्य अपने अधिकार में कर लिया। देवगिरि के क़िले पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने पहली बार 1294 ई. में चढ़ाई की थी। पहले तो यादव नरेश ने उसका करद होना स्वीकार कर लिया, किन्तु पीछे से उन्होंने दिल्ली के सुल्तान को खिराज देना बन्द कर दिया, जिसके फलस्वरूप 1307, 1310 और 1318 ई. में मलिक काफ़ूर ने फिर देवगिरि पर आक्रमण किया।

यहाँ का अंतिम राजा हरपाल सिंह युद्ध में पराजित हुआ और क्रूर सुल्तान की आज्ञा से उसकी खाल खिंचवा ली गई। 1338 ई. में मुहम्मद तुग़लक ने देवगिरि को अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया, क्योंकि मुहम्मद तुग़लक के विशाल साम्राज्य की देखरेख दिल्ली की अपेक्षा देवगिरि से अधिक अच्छी तरह की जा सकती थी। सुल्तान ने दिल्ली की प्रजा को देवगिरि जाने के लिए बलात् विवश किया। 17 वर्ष पश्चात् देवगिरि के लोगों को असीम कष्ट भोगते देखकर इस उतावले सुल्तान ने फिर उन्हें दिल्ली वापस आ जाने का आदेश दिया। सैकड़ों मील की यात्रा के पश्चात् दिल्ली के निवासी किसी प्रकार फिर अपने घर पहुँचे। मुहम्मद तुग़लक ने देवगिरि का नाम बदलकर दौलताबाद रखा और वारंगल के राजाओं के विरुद्ध युद्ध करने के लिए इस स्थान को अपना आधार बनाया था। किन्तु उत्तर भारत में गड़बड़ प्रारम्भ हो जाने के कारण वह अधिक समय तक राजधानी देवगिरि में नहीं रख सका।

मुहम्मद तुग़लक के राज्य काल में प्रसिद्ध अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता दौलताबाद आया था। उसने इस नगर की समृद्धि का वर्णन करते हुए उसे दिल्ली के समकक्ष ही बताया है। राजधानी के दिल्ली वापस आ जाने के कुछ ही समय पश्चात् गुलबर्गा के सूबेदार जफ़र ख़ाँ ने दौलताबाद पर क़ब्ज़ा कर लिया और यह नगर इस प्रकार बहमनी सुल्तानों के हाथों में आ गया। यह स्थिति 1526 तक रही। अब इस नगर पर निज़ामशाही सुल्तानों का अधिकार हो गया। तत्पश्चात् मुग़ल सम्राट अकबर का अहमदनगर पर क़ब्ज़ा हो जाने पर

[p.445]: दौलताबाद भी मुग़ल साम्राज्य में सम्मिलित हो गया। किन्तु पुन: इसे शीघ्र ही अहमदनगर के सुल्तानों ने वापस ले लिया। 1633 ई. में शाहजहाँ के सेनापति ने दौलताबाद पर क़ब्ज़ा कर लिया और तब से औरंगज़ेब के राज्य काल के अंत तक यह ऐतिहासिक नगर मुग़लों के हाथ में ही रहा। औरंगज़ेब की मृत्यु के कुछ समय पश्चात् मुहम्मदशाह के शासन काल में हैदराबाद के प्रथम निज़ाम आसफ़शाह ने दौलताबाद को अपनी नई रियासत में शामिल कर लिया।

देवगिरि का यादव कालीन दुर्ग एक त्रिकोण पहाड़ी पर स्थित है। क़िले की ऊँचाई, आधार से 150 फुट है। पहाड़ी समुद्र तल से 2250 फुट ऊँची है। क़िले की बाहरी दीवार का घेरा 2¾ मील है और इस दीवार तथा क़िले के आधार के बीच क़िलाबेदियों की तीन पंक्तियां हैं। प्राचीन देवगिरि नगरी इसी परकोटे के भीतर बसी हुई थी। किन्तु उसके स्थान पर अब केवल एक गांव नजर आता है। क़िले के कुल आठ फाटक हैं। दीवारों पर कहीं-कहीं आज भी पुरानी तोपों के अवशेष पड़े हुए हैं। इस दुर्ग में एक अंधेरा भूमिगत मार्ग भी है, जिसे 'अंधेरी' कहते हैं। इस मार्ग में कहीं-कहीं पर गहरे गढ़डे भी हैं, जो शत्रु को धोखे से गहरी खाई में गिराने के लिए बनाये गये थे। मार्ग के प्रवेश द्वार पर लोहे की बड़ी अंगीठियाँ बनी हैं, जिनमें आक्रमणकारियों को बाहर ही रोकने के लिए आग सुलगा कर धुआं किया जाता था। क़िले की पहाड़ी में कुछ अपूर्ण गुफ़ाएं भी हैं, जो एलोरा की गुफ़ाओं के समकालीन हैं।

देवगिरि के प्रमुख स्मारक हैं- चांद मीनार, चीनी महल, ज़ामा मस्जिद

चांद मीनार: चांद मीनार 210 फुट ऊँची और आधार के पास 70 फुट चौड़ी है। यह मीनार दक्षिण भारत में मुस्लिम वास्तुकला की सुंदरतम कुतियों में से एक है। इसको अलाउद्दीन बहमनी ने क़िले की विजय के उपलक्ष्य में बनवाया था। मीनार का आधार 15 फुट ऊँचा है। इसमें 24 कोष्ठ हैं। संपूर्ण मीनार पर पहले सुंदर ईरानी पत्थर जड़े हुए थे। इसके दक्षिण की ओर एक छोटी मस्जिद है, जो जैसा कि एक फ़ारसी अभिलेख से सूचित होता है, 849 हिजरी (=1445 ई.) में बनी थी।

चीनी महल: चीनी महल क़िले के अष्टम फाटक से 40 फुट दाईं ओर है। यह भवन पहले बहुत सुंदर था। इसी में औरंगज़ेब ने गोलकुंडा के अंतिम शासक अबुहसन तानाशाह को क़ैद किया था। यादव कालीन इमारतों के अवशेष अब नहीं के बराबर हैं। केवल कालिका देवल, जिसके मध्य भाग को मलिक काफ़ूर ने मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था, मौजूद है।

ज़ामा मस्जिद: चीनी महल के पास ही जामा मस्जिद है, जिसमें प्राचीन भारतीय शैली के स्तम्भ और सपाट दरवाज़े हैं। इसे 1313 ई.

[p.446]: में मुबारक ख़िलजी ने बनवाया था। किंवदंती है कि बहमनी वंश के संस्थापक हसन गंगू का राज्याभिषेक इसी मस्जिद में 1347 ई. में हुआ था। अकबर के समकालीन इतिहास लेखक फ़रिश्ता ने इसका वर्णन किया है।

अन्य प्रमुख स्थान: देवगिरि के अन्य उल्लेखनीय स्थान हैं- काआरीटंका, हाथी हौज, जनार्दन स्वामी की समाधि तथा शाहजहाँ और निज़ामशाही सुल्तानों के बनवाये हुए कुछ महलों के भग्नावशेष। जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में देवगिरि को 'सुरगिरि' कहा गया है।

2. देवगिरि (AS, p.446) = अटेर: देवगिरि पहाड़ी को मध्य प्रदेश में स्थित बताया गया है। एक स्थानीय अभिलेख के अनुसार चंबल नदी के तट पर बसे हुए 'अटेर' नामक क़स्बे के क़िले की पहाड़ी का नाम 'देवगिरि' है। यह अभिलेख भदौरिया राजा बदनसिंह का है।

3. देवगिरि (AS, p.446) = कालिदास के 'मेघदूत' (पूर्वमेघ 44) में वर्णित एक पहाड़ी- 'नीचैर्वास्यत्युपजिगमिषोर्देवपूर्वंगिरिं ते, शीतोवायु: परिणमयिता काननोदंबराणाम्' अर्थात् "हे मेघ (गंभीरा नदी के आगे हो जाने के पश्चात्) वन गूलरों को पकाने वाली शीतल वायु, देवगिरि नामक पहाड़ी के निकट जाने के इच्छुक तेरा साथ देगी।" मेघ के यात्राक्रम के अनुसार देवगिरि की स्थिति, 'गंभीरा' (वर्तमान गंभीर) नदी और 'चर्मण्वती' (पूर्वमेघ 47-48) के बीच कहीं होनी चाहिए। चर्मण्वती या चंबल को पार करने के पश्चात् मेघ दशपुर पहुँचता है, जो पश्चिमी मालवा का मंदसौर है। इस प्रकार देवगिरि की स्थिति उज्जैन से मंदसौर के मार्ग पर और चंबल के दक्षिणी तट पर होनी चाहिए। इस पहाड़ी का अभिज्ञान अनिश्चित है। पूर्वमेघ (पूर्वमेघ 45) में इसी पहाड़ी पर कालिदास ने स्कंद का निवास बताया है- 'तत्र स्कंद नियतवसितम्'।

'बिहार-उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी जर्नल' के दिसम्बर, 1915 के अंक में प्रकाशित (पृष्ठ 203) एक लेख के अनुसार गंभीरा के तीर पर अंजीर के वृक्षों के वन में होकर एक मार्ग है, जो लगभग एक 200 फुट ऊँचे पहाड़ पर जाकर समाप्त होता है। इस पहाड़ पर स्कंद का एक छोटा सा मंदिर है। मंदिर की देवमूर्ति की खांडेराव (=स्कंदराज) के नाम से पूजा होती है। यह आश्चर्यजनक बात है कि कालिदास ने इस देवमूर्ति का नाम स्कंद कहा है। संभव है इसी पहाड़ी को कालिदास ने देवगिरि नाम से अभिहित किया हो।

4. देवगिरि (AS, p.446) =श्रीमद्भागवत (5, 19, 16) में उल्लिखित एक पर्वत का नाम- 'भारतेऽप्यस्मिन् वर्ष सरिच्छैला: सन्ति बहवोमलयोमंगलप्रस्थो मैनाकस्त्रिकूट ऋषभ, कूटक: काल्लंक: सह्यो देवगिरिर्ऋष्यमूक: वैकटो महेन्द्रो वारीधारी विंध्य:'। संदर्भ से देवगिरि पहाड़ी दक्षिण भारत का कोई पर्वत जान पड़ता [p.447]: है। संभव है देवगरि की पहाड़ी का इस उद्धरण में उल्लेख हो। यह पहाड़ी समुद्र के तल से 2250 फुट ऊँची है। उपर्युक्त उद्धरण में, जिसमें पर्वतों के नाम शायद क्रमानुसार हैं, देवगिरि, ऋष्यमूक पर्वत के साथ उल्लिखित है, जिससे इसे दक्षिण भारत का ही पर्वत मानना ठीक होगा।

देवगिरि परिचय

देवगिरि औरंगाबाद ज़िला, महाराष्ट्र राज्य, दक्षिण-पश्चिम भारत में स्थित प्रख्यात नगर है। यह प्राचीन समय में यादवों की राजधानी थी। देवगिरि आधुनिक दौलताबाद का प्राचीन नाम है। इसकी स्थापना यादव वंश के राजा भिल्लम द्वारा की गई थी। बाद के समय मुस्लिम आक्रमणकारियों का देवगिरि पर हमला हुआ। पहले इस पर ख़िलजी सुल्तान अलाउद्दीन ख़िलजी ने फिर मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने अधिकार किया। मुहम्मद तुग़लक ने देवगिरि को जीतकर अपनी राजधानी बनाया और इसका नाम बदलकर 'दौलताबाद' रख दिया था। मुग़ल बादशाह अकबर के समय में देवगिरि को मुग़लों ने जीत लिया और इसे मुग़ल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। मुग़लों यह अधिकार बादशाह औरंगज़ेब के राज्य काल तक बना रहा।[9]

External links

References

  1. Aurangabad with Daulatabad, Khuldabad and Ahmadnagar. Mumbai; London: Jaico Publishing House; Deccan Heritage Foundation. ISBN 9788184957020.
  2. Bajwa, Jagir Singh; Kaur, Ravinder (2007). Tourism Management. APH Publishing. p. 249. ISBN 9788131300473.
  3. Raj Goswami (May 2015). "UID યુનિક ઈન્ડિયન ડોન્કી!" [UID Unique Indian Delhi]. Mumbai Samachar (in Gujarati). India.
  4. "DEVAGIRI" rayagada.nic.in
  5. "Devagiri" odisha360.com
  6. "Devgiri Hills" orissagateway.com
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.976
  8. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.444-447
  9. भारतकोश-देवगिरि