Dharampal Singh Bhalothia/Aitihasik Kathayen/Krishna-Sudama

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ऐतिहासिक कथाऐं


रचनाकार: स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रसिद्ध भजनोपदेशक स्व0 श्री धर्मपाल सिंह भालोठिया

ए-66 भान नगर, अजमेर रोड़, जयपुर-302021, मो. 9460389546


कथा-2 कृष्ण-सुदामा

सज्जनों ! गुजरात में द्वारकापुरी के राजा कृष्ण व विदर्भ नगर का सुदामा बचपन के दोस्त थे । सुदामा गरीब ब्राह्मण परिवार से था लेकिन कृष्ण सुदामा की दोस्ती जग-जाहिर है।

भजन-1 कथा परिचय

तर्ज : दया कर दान भक्ति का, हमें परमात्मा देना.............

आज दो सच्चे मित्रों की, कहानी याद आती है।

सुदामा और घनश्याम की, पुरानी याद आती है ।। टेक ।।

थे गुरूकुल के ब्रह्मचारी, हो गई दोनों की यारी।

बात जो बचपन की सारी, निभानी याद आती है ।। 1 ।।

वर्ण था क्षत्रिय कृष्ण का, भक्त का वर्ण ब्राह्मण का।

साथ चोली और दामन का, निशानी याद आती है ।। 2 ।।

भक्त के टोटा साथ में, कृष्ण के राज हाथ में।

द्वारकापुरी गुजरात में, राजधानी याद आती है ।। 3 ।।

सुदामा फटे लिबास में, गया कृष्ण के पास में।

यार ले गया रणबास में, अगवानी याद आती है ।। 4 ।।

भोजन हाथ से बनाया था, थाल सोने का लगाया था।

बैठ के पास जिमाया था, वो रानी याद आती है ।। 5 ।।

एक दिन हो करके प्रसन्न, आये सुदामा और कृष्ण।

दिया भालोठिया को दर्शन, वो ढ़ाणी याद आती है।। 6 ।।

वार्ता- सज्जनों ! सुदामा का गरीबी के कारण परिवार चलाना मुश्किल हो रहा था । सुदामा को पत्नी सुशीला मदद के लिए राजा कृष्ण के पास जाने के लिए कहती है किन्तु सुदामा अपनी दीन-हीन हालत में मिलने में संकोच करता है ।

भजन-2 सुशीला सुदामा वार्तालाप

तर्ज : होगा गात सूक के माड़ा......

चारों बेटे कहें बाप से, मैं भी आ गई तंग जाप से ।

आपसे अर्ज करूँ भरतार मैं, जाओ कृष्ण के दरबार में।। टेक ।।

आप न्यू कहते हो रोजाना, मेरा यार सै कृष्ण।

यार आपका राज करे, उसके करवादो दर्शन।

प्रसन्न हो जा नगरी सारी, उसकी जय बोलें नर-नारी।

म्हारी इज्जत बने परिवार में, जाओ कृष्ण के दरबार में ।। 1 ।।

बोला सुदामा क्यों कर लाऊँ, यार को मेरे नगर में।

महलों में रहने वाला, कहाँ बैठेगा छप्पर में।

घर में मेरे नहीं कलेवा, उसका खानपान सै मेवा।

सेवा कैसे करूँ सत्कार मैं, जाऊँ क्योंकर मैं दरबार में ।। 2 ।।

बोली सुशीला टोटे में, माँगण की नहीं शर्म सै।

वक्त पड़े पर साथ निभावे, यार का नेक कर्म सै।

धर्म धीरज मित्र नारी, आपत्ति काल परखिये चारी।

सारी दुनिया रहे इन चार में, जाओ कृष्ण के दरबार में ।। 3 ।।

बोला सुदामा क्योंकर जाऊँ, मेरे यार के पास।

पैरों में टूटी जूती मेरे, तन पै फटा लिबास।

उदास होज्या कृष्ण कन्हाई, कहे करवादी लोग हँसाई।

भाई नजर मिलावे नहीं खार में, जाऊँ क्योंकर मैं दरबार में ।। 4 ।।

बोली सुशीला बिना बताये, अब तक कमी रही।

जल्दी जाओ उनको बताओ, अपना दर्द सही।

नहीं हो भूखे भजन गोपाला, ले लो आपकी कंठी माला।

ग्वाला प्रेम दिखावेगा यार में, जाओ कृष्ण के दरबार में ।। 5 ।।

बोला सुदामा मिसराणी, मेरे हाथ नहीं एक पाई।

ताऊ-ताऊ कहके बच्चे, मांगण लगें मिठाई।

कमाई नहीं मेरे एक धेला, कभी मैं संग कृष्ण के खेला।

मेला था बचपन के प्यार में, क्योंकर जाऊँ मैं दरबार में ।। 6 ।।

यार करे क्या सभी तरह, तकदीर आज मेरी रूठी।

वो भी खो गई कभी मेरी, शादी में मिली अंगूठी।

उठी कर मिसराणी तावळ, तरीका और बताऊँ सावळ।

चावल दो मुट्ठी दूँ उपहार में, जाओ कृष्ण के दरबार में ।। 7 ।।

धर्मपाल सिंह भालोठिया कहे, यारी के घर दूर।

कृष्ण सुदामा की यारी, आज दुनिया में मशहूर।

चूर यारी में यार बतावे, यार से झट धोखा कर जावे।

टिकावे नजर यार की नार में, जाओ कृष्ण के दरबार में ।। 8 ।।

वार्ता- सज्जनों ! सुदामा बच्चों व सुशीला के आग्रह करने पर द्रविड़ देश से चल कर द्वारकापुरी पहुँच जाता है ।

भजन-3 आल्हा

द्रविड़ देश से चला सुदामा, द्वारकापुरी की सुरत लगाय।

मंजिल-मंजिल के चलने पर, नगर द्वारका पहुँचा जाय।।

टूटी जूती मैली पगड़ी, तन के ऊपर फटा लिबास।

राजा रंक से बात करे नहीं, न्यू मन में हो रहा उदास।।

देख-देख के दंग रह गया, द्वारकापुरी था नगर विशाल।

कृष्ण का घर कहाँ मिलेगा, ढूँढ़ता फिरे गळी और गाळ।।

वहाँ पर पहुँचा भक्त सुदामा, जहाँ कृष्ण का था दरबार।

रोक दिया आगे जाने से, खड़ा गेट पर पहरेदार।।

वार्ता- सज्जनों ! जब सुदामा फटे लिबास में कृष्ण के महल पर पहुंचा तो पहरेदारों ने सुदामा का हाल देख कर गेट पर ही रोक लिया ।

भजन-4 सुदामा का पहरेदार से

तर्ज : मेरे सिर पै बंटा टोकणी, मेरे हाथ में नेजूडोल .....

पहरेदार मनै जाणदे, मैं आया जरूरी काम।

मैं मित्र घनश्याम का।। 1 ।।

नहीं बाबा नहीं जाण दूँ, ये सरकारी इन्तजाम।

मैं नौकर घनश्याम का ।। 2 ।।

पहरेदार मनै जाण दे, तेरा भला करेगा राम।

मैं मित्र घनश्याम का ।। 3 ।।

नहीं बाबा नहीं जाण दूँ, मैं बणजां नमक हराम।

मैं नौकर घनश्याम का ।। 4 ।।

मैं आया द्रविड़ देश से, विदर्भ नगर मेरा गाम।

मैं मित्र घनश्याम का ।। 5 ।।

सहपाठी मैं घनश्याम का, मेरा सुदामा है नाम।

मैं मित्र घनश्याम का ।। 6 ।।

कहे भालोठिया समाचार दे, भागा आवेगा श्याम।

मैं मित्र घनश्याम का ।। 7 ।।

            आनन्दी

पहरेदार दरबार में आके, राजा को नमस्कार किया।

आपसे मिलना चाहता है कोई, ये उसने समाचार दिया।।

गेट के ऊपर झगड़ रहा, उसने कर दिया हंगामा है।

विदर्भ नगर का रहने वाला, उसका नाम सुदामा है।।

वार्ता- सज्जनों ! पहरेदार से सुदामा नाम सुनते ही श्री कृष्ण सपरिवार अगवानी के लिए गेट पर आता है ।

भजन-5 कवि का

तर्ज : मन डोले, मेरा तन डोले .......

नाम सुदामा, सुनके श्यामा, छोड़ चला दरबार।

गेट पर आया कृष्ण मुरार।। टेक ।।

खुला गेट, जब हुई भेंट, मिट गई भक्त की परेशानी।

नन्द का लाला ,डाल के माला,करे यार की अगवानी।

साथ प्रद्युम्न रानी रूकमन, लोटे में लाई पानी।

करती स्वागत, खड़ा भक्त, अब पांव धोवे थी महारानी।

बोला कन्हैया, देखो भैया, आ गया सब परिवार।

गेट पर आया कृष्ण मुरार ।। 1 ।।

मिला हाथ, ले यार साथ, दरबार में कृष्ण आया था ।

छोटे बड़े, हो गये खड़े, स्वागत का साज बजाया था।

सिंहासन पर, अपने बराबर, कुर्सी पर बैठाया था।

देख नजारा, टोटे का मारा, भक्त बड़ा शरमाया था।

सारे सभासद, हो गये गदगद, उमड़ रहा था प्यार।

गेट पर आया कृष्ण मुरार ।। 2 ।।

नहाने का साधन, तेल और साबुन, पानी गर्म करवाया था।

आ गया नौकर, मसले मंगर, विप्र मल मल न्हाया था।

कपड़े नये, झट लाके दिये, बनड़े की ढ़ाल सजाया था।

सत पकवानी, बना के रानी, महल में भक्त बुलाया था।

सुदामा कृष्ण, जीमें भोजन, एक साथ दो यार ।

गेट पर आया कृष्ण मुरार ।। 3 ।।

रानी रूकमन, हुई मगन, फिर भोजन आप जिमावे थी।

रही घाल, पंखे से बाल, ये बेहद प्यार दिखावे थी।

म्हारा घर, हो गया पवित्र, इतनी खुशी मनावे थी।

धर्मपालसिंह, देख रंग, ये फूली नहीं समावे थी।

आया ठेठ, आज मेरा जेठ, हम करते थे इन्तजार।

गेट पर आया कृष्ण मुरार ।। 4 ।।

वार्ता- सज्जनों ! कृष्ण सुदामा से मिलकर बहुत खुश होता है और परिवार की मदद करने के लिए सुदामा की पत्नी सुशीला को पत्र लिखता है ।

आल्हा-6 कृष्ण का सुशीला को पत्र

द्वारिकापुरी से विदर्भ नगर को, पत्र लिखता कृष्ण मुरार।

परम आदरणीय भाभीजी, जोड़ के हाथ करूँ नमस्कार।।

हम यहाँ पर हैं कुशल-पूर्वक, आपको खुश रखे करतार।

भाई सुदामा मेरे पास में, बन गया नया पुराना प्यार।

अब आगे का कार्यक्रम जो, उसका समाचार दूँ खास।

कुछ राशन कुछ नकद रूपैया, भेज रहा मैं आपके पास।

घर से बाहर लगालो तम्बू, उसमें आपका रहे निवास।

पुराना घर फुड़वा देना, अब आपका यहाँ बने रणवास।

चीफ इंजीनियर और कारीगर, जितने भी मजदूर तमाम।

एक पाई मत देना इनको, ये सारा है मेरा इन्तजाम।

आप तो इनको देखती रहना, दोनों वक्त सुबह और शाम।

अधिक देर नहीं लगेगी, दो महिना में बनज्या काम।

चारों बच्चे करें पढ़ाई, इनका पूरा रखना खयाल।

जिस दिन उनकी बने परीक्षा, अच्छे नम्बर लें हर साल।

वोह दिन भी अब दूर नहीं, जो आप बनोगी मालोमाल।

पत्र लिखने वाला आपका, प्रिय देवर कन्हैया लाल।

वार्ता- श्री कृष्ण ने सुदामा के परिवार की समस्त मूलभूत आवश्यकताओं की व्यवस्था करवादी जिसकी जानकारी सुदामा को नहीं थी ।

भजन-7 कवि का

तर्ज : गंगा जी तेरे खेत में.........

श्री कृष्ण के पाऽऽस में, करे सुदामा मौज।

रहे था महऽऽल में, अपना घर भूल गयाऽऽ।। टेक ।।

देख नगरी द्वारकापुरी, रह गया सुदामा दंग।

रूकमन रानी, करे आगवानी, बच्चों में छाई उमंग।

भक्त सुदामा, साथ में श्यामा, रोजाना करें सत्संग।

आये कनागत, होता स्वागत, ब्राह्मण की जागी तकदीर।

जीम के भोजन, होता प्रसन्न, बनता हलवा पूरी खीर।

मंगावे राजा, सब्जी ताजा, आलू गोभी मटर पनीर।

विप्र रहे जिस आऽऽस में, महीना था आसोज।

ऐशो-आराऽऽऽम में, अपना घर भूल गयाऽऽऽ।। 1 ।।

बिन साधन बीता जीवन, थी विपदा पड़ी अनाथ में।

करता दर्शन, उसको कृष्ण, रखता अपने पास में।

दोनों भाई, करें घुमाई, हाथ मिलाके हाथ में।

कृष्ण मुरारी, सजा सवारी, जब अपने दरबार में आवे।

वर्दी सारी लगा सरकारी, यार को अपने साथ में लावे।

तख्त के ऊपर, अपने बराबर, यार की कुर्सी लगवावे।

फहरावे ध्वज आकाऽऽऽश में, दे रही सलामी फौज।

रहे था महऽऽल में, अपना घर भूल गयाऽऽऽ।। 2 ।।

चीफ इंजीनियर बुलाके घर पर, कृष्ण ने दिया आदेश।

चलो सफर में, विदर्भ नगर में, जाना होगा द्रविड़ देश।

महल का न्यारा, देख नजारा, ब्राह्मण राखे याद हमेश।

मजदूर सारा और चेजारा, मलबा देगा ठेकेदार।

पत्थर चूना, देखो नमूना, बिल्कुल ठोस बनें दीवार।

बनके बंगला, जोड़ी जंगला, दो महीनों में बन जा त्यार।

करता रहूँ तलाऽऽश मैं, जितना काम हो रोज।

रहे था महऽऽऽल में, अपना घर भूल गयाऽऽऽ।। 3 ।।

छान और छप्पर, मिट्टी का घर, दिया भक्त का फोड़ तमाम।

महल निराला, बनेगा आला, दिन और रात चले था काम।

घंटे अठारा, काम का सारा, छः घन्टे होता आराम।

पहली मंजिल, हुई मुकम्मल, आगे और किया विस्तार।

छत के ऊपर, लगे कारीगर, चौबारे बना दिये चार।

धर्मपाल सिंह, लगा रंग, श्री कृष्ण को दिया समाचार।

सुभाष दो माऽऽस में, भक्त बना दिया भोज।

रहे था महऽऽऽल में, अपना घर भूल गयाऽऽऽ।। 4 ।।

==आनन्दी==

कृष्ण ने यार को विदा किया, कर नमस्कार हाथ जोड़ा।

दक्षिणा में दी हरी दूब और साथ में एक दिया घोड़ा।।

वार्ता- सज्जनों ! सुदामा विदा होकर घर को चल दिया लेकिन मन ही मन उसे परिवार के भरण-पोषण की चिंता सता रही थी ।

भजन-8 सुदामा का

तर्ज : चौकलिया

द्वारकापुरी से चला सुदामा, घर की सूरत लगाई।

मन ही मन पछतावै था, मनै भारी गलती खाई।। टेक ।।

रात को सुपने में मिसराणी, मेरे आगे न्यू रोई।

दाने नहीं मिले पीसण ने, चाकी तक नहीं झोई।

कोई सूका सिद्धा देग्या था, एक दो रोटी पोई।

बच्चे खुवा के सुला दिये थे, मैं फिर भूखी सोई।

जल्दी आओ जल्दी आओ, मेरी नणद के भाई ।। 1 ।।

सूकी विदाई करके यार ने, मन कर दिया मेरा खाटा।

श्राद्ध गये अब ग्यारह महीना, छा जागा सन्नाटा।

नहीं जिमावें नहीं दें सिद्धा, दाल खांड घी आटा।

नहीं भरे ग्यारह महीनों में, आसोज वाला घाटा।

मिली सिर्फ मनै खाण नै रोटी, नहीं दक्षिणा आई ।। 2 ।।

जजमानों के न्योते आंवते, पड़ा रहे था लारा।

सारे न्योते नहीं भुगतें थे, मैं रहे था मारा मारा।

मेरा चार बच्चों का भोजन, बनता अलग हमारा।

मिसराणी के लिये ल्यांवता, घर पै परोसा न्यारा।

साथ दक्षिणा मिलती थी, मैं करता रोज कमाई ।। 3 ।।

गये वक्त का के पछतावा, अब तो सुदामा चेत।

फिर पछताये क्या बनता, जब चिडि़या चुगज्यां खेत।

आपा मारे स्वर्ग दीखै सै, लगा कर्म से हेत।

कहे भालोठिया काढ़ मुहूर्त, जाइये रोज जनेत।

दो तीन जगह फेरे करवाके, लाईये रोज मिठाई ।। 4 ।।

== आनन्दी==

आया सुदामा विदर्भ नगर में, अपना घर नहीं पाया है।

जहाँ झोंपड़ी थी मेरी, ये किसने महल बनाया है।।

वार्ता- सज्जनों ! सुदामा अत्यधिक दुविधा में विदर्भ नगर पहुंचता है। वहां पर अपनी झोंपड़ी की जगह महल देख कर तरह तरह की आशंकाओं से व्यथित हो उठता है ।

भजन-9 सुदामा का

तर्ज - बालम छोटो सो ----

ये कौन था दुश्मन, करा विघन।

घर मेरा दिया उजाड़, ये किसने जुल्म करा।। टेक ।।

करी उमर भर मेहनत भारी, घर की बनाई चार दीवारी।

छोड़ी नहीं मेरी बाड़, ये किसने जुल्म करा ।। 1 ।।

दीखे बलाई नहीं बटोड़ा, तोड़ी रसोई कोठा फोड़ा।

ले गया उतार किवाड़, ये किसने जुल्म करा ।। 2 ।।

जहाँ झोंपड़ी थी मेरी छोटी, उसको तोड़ बनाली कोठी।

छप्पर भी ले गया फाड़, ये किसने जुल्म करा ।। 3 ।।

बच्चे चार उमर थी याणी, ले गया साथ मेरी मिसराणी।

सूती जगा दी राड़, ये किसने जुल्म करा ।। 4 ।।

करूँ शिकायत श्री कृष्ण से, बदला लूँगा मैं दुश्मन से।

पड़वा दूँगा जाड़, ये किसने जुल्म करा ।। 5 ।।

भालोठिया कहे देख ड्रामा, सुबक-सुबक के रोया सुदामा

पड़ गया खाय पछाड़, ये किसने जुल्म करा ।। 6 ।।

==आनन्दी==

मिसराणी को पता लगा, वोह दौड़ी-दौड़ी आई है।

तम्बू में लाकर के पति को, सारी कथा सुनाई है।।

वार्ता- सुदामा को देखते ही सुशीला ने सुदामा की शंकाओं का निराकरण कर दिया ।

भजन-10 कवि का

तर्ज : जमाई मेरो छोटो सो,मैं किस पर करूं गुमान.........

यार को यारी ने, दिया बना रंक से राजा।। टेक ।।

विदर्भ नगर में कृष्ण आया, गृह प्रवेश का जश्न मनाया।

बजा बजा के बाजा ।। 1 ।।

सुशीला ने देखी दोराणी, कोली भरके मिली मिसराणी।

मुलाकात हुई ताजा ।। 2 ।।

भक्त के घर पै बनी मिठाई, कितनी जनता जीमण आई।

जिसका नहीं अंदाजा ।। 3 ।।

यार के राजतिलक करवाया, पाँच गाँव का राजा बनाया।

तख्त पै भक्त विराजा ।। 4 ।।

पंडित पतरा बांचा करता, घर में टोटा नाचा करता।

निकला आज जनाजा ।। 5 ।।

भालोठिया दे रहा बधाई, टोटा भाग्या लक्ष्मी आई।

खुला देख दरवाजा ।। 6 ।।

सज्जनों ! श्री कृष्ण के सपरिवार विदर्भ नगर आने पर नगरी में जश्न मनाया जाता है। सुदामा को पाँच गाँव का राजा बनाकर राजतिलक किया जाता है । आज भी कृष्ण सुदामा की यारी के चर्चे घर-घर में हैं।


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