Kinnara

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Kinnaras (किन्नर) is a tribe mentioned in Mahabharata and also mentioned by Panini in Ashtadhyayi. They are also featured in a number of Buddhist texts, including the Lotus Sutra. In South-east Asia, two of the most beloved mythological characters are the benevolent half-human, half-bird creatures known as the Kinnara and Kinnari, which are believed to come from the Himalayas and often watch over the well-being of humans in times of trouble or danger.

Variants

Mention by Panini

Kinnara (किन्नर) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi under Takshashiladi (तक्षशिलादि) (4.3.93) group.[2]

Hindu mythology

In the Sanskrit language, the name Kinnara contains a question mark (Sanskrit : किन्नर?) i.e. is this man?. In Hindu mythology, Kinnara is described as half man, half-horse, and half-bird. The Vishnudharmottara describes Kinnara as half-man and half-horse, but the correct nature of Kinnara as Buddhists understood is half-man and half-bird. The figure of Yaksha with a horse head illustrated in Bodh Gaya sculptures in however a Kinnari as the Jataka illustrating it treats her as a demi-god. According to the Jatakas, Kinnaras are fairies and are shown as going in pairs noted for mutual love and devotion. In the Chanda Kinnara Jataka the devotion of the Kinnarai to her wounded Kinnara husband brings Indra on the scene to cure him from the wound. The Kinnaras are noted for their long life.[3]

किन्नर-देश

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...किन्नर-देश (AS, p.189) तिब्बत और हिमालय प्रदेश के पश्चिमी भागों में इस देश की स्थिति रही होगी. आज कल भी हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों तथा लाहुल प्रदेश में बसी कुछ जातियां कनौडिया या किन्नर कहलाती है (देखें किंपुरुष, उत्सव संकेत). कुबेर जिसकी राजधानी अलका में थी किन्नरों का अधिपति कहलाता था. अमरकोश (1,69) में कुबेर को 'किन्नरेश' कहा गया है जिससे सूचित होता है की किन्नरों का निवास कैलाश पर्वत के परवर्ती प्रदेश में था.

किन्नर

किन्नर हिमालय के क्षेत्रों में बसने वाली एक मनुष्य जाति का नाम है। इस जाति के प्रधान केंद्र 'हिमवत' और 'हेमकूट' थे। किन्नर हिमालय में आधुनिक कन्नोर प्रदेश के पहाड़ी कहे जाते हैं, जिनकी भाषा कन्नौरी, गलचा, लाहौली आदि बोलियों के परिवार की है। 'पुराण' तथा 'महाभारत' आदि की कथाओं में किन्नरों का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है।

पुराणों और महाभारत की कथाओं एवं आख्यानों में तो किन्नरों की चर्चाएँ प्राप्त होती ही हैं, 'कादंबरी' जैसे कुछ साहित्यिक ग्रंथों में भी उनके स्वरूप, निवास क्षेत्र और क्रियाकलापों के वर्णन मिलते हैं। जैसा कि उनके नाम ‘किं+नर’ से स्पष्ट है, उनकी योनि और आकृति पूर्णत: मनुष्य की नहीं मानी जाती। संभव है किन्नरों से तात्पर्य उक्त प्रदेश में रहने वाले मंगोल रक्त प्रधान, उन पीत वर्ण लोगों से हो, जिनमें स्त्री-पुरुष-भेद भौगोलिक और रक्तगत विशेषताओं के कारण आसानी से न किया जा सकता हो।

किन्नरों की उत्पति के विषय में निम्नलिखित दो प्रवाद हैं- ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा की छाया अथवा उनके पैर के अँगूठे से किन्नर उत्पन्न हुए। 'अरिष्टा' और 'कश्पय' किन्नरों के आदिजनक थे।

हिमालय का पवित्र शिखर 'कैलाश' किन्नरों का प्रधान निवास स्थान था, जहाँ वे भगवान शंकर की सेवा किया करते थे। उन्हें देवताओं का गायक और भक्त समझा जाता है, और यह विश्वास है कि यक्षों और गंधर्वों की तरह वे नृत्य और गान में प्रवीण होते थे। विराट पुरुष इंद्र और हरि उनके पूज्य थे।

पुराणों का कथन है कि कृष्ण का दर्शन करने वे द्वारका तक गए थे। सप्तर्षियों से उनके धर्म जानने की कथाएँ प्राप्त होती हैं। उनके सैकड़ों गण थे और चित्ररथ उनका प्रधान अधिपति था। 'शतपथ ब्राह्मण' (7.5.2.32) में अश्वमुखी मानव शरीर वाले किन्नर का उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है। मानसार में किन्नर के गरुड़ मुखी, मानव शरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है। इस अभिप्राय का चित्रण भरहुत के अनेक उच्चित्रणों में हुआ है।

संदर्भ: भारतकोश-किन्नर

लाहूल, हि.प्र.

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है .....लाहूल (AS, p.817): हिमाचल प्रदेश में स्थित प्राचीन स्थानों में से एक है। महाभारत के समय यह स्थान उत्सवसंकेत अथवा किन्नर देश के अन्तर्गत था। आज भी यहाँ पर प्रचलित विवाह आदि की प्रथाएं प्राचीन काल के विचित्र रीति रिवाजों की ही परंपरा में हैं। कुछ विद्वानों के मत में महाभारत, सभापर्व 27,17 में लाहूल को ही लोहित कहा गया है। लाहूल में 8वीं शती ई. का बना हुआ 'त्रिलोकनाथ का मंदिर' स्थित है। इसमें श्वेत संगमरमर की 3 फुट ऊंची मूर्ति प्रतिष्ठित है। मंदिर की पुस्तिका के लेख के अनुसार त्रिलोकनाथ अथवा बोधिसत्व की इस मूर्ति का प्रतिष्ठान पद्यसंभव नामक एक बौद्ध भिक्षु ने आठवीं शती ई. में किया था। भिक्षु पद्यसंभव ने तिब्बत के राजा के निमंत्रण पर भारत से तिब्बत जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया था। त्रिलोकनाथ मंदिर को हिन्दू तथा बौद्ध दोनों ही पवित्र मानते हैं। भारत से तिब्बत को जाने वाला प्राचीन मार्ग लाहूल होकर ही जाता है।

In Mahabharata

Kinnara (किंनर) is mentioned in Mahabharata (I.60.7), (1.66),(III.82.4),


Adi Parva, Mahabharata/Mahabharata Book I Chapter 66 gives the genealogy of all the principal creatures: Brahma had six sons, viz., Marichi, Atri, Angiras, Pulastya, Pulaha and Kratu.

Brahma → Pulastya → Rakshasas, Vanaras, Kinnaras, and Yakshas.

Verse (I.60.7) mentions that the sons of Rishi Pulastya are Rakshasas, Vanaras, Kinnaras, and Yakshas. [6]


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 80 mentions Tirtha named Vadava celebrated over the three worlds. ....Men of wisdom say that a gift made here in honour of the Pitris, becometh inexhaustible. The Rishis, the Pitris, the gods, the Gandharvas, several tribes of Apsaras, the Guhyakas, the Kinnaras, the Yakshas, the Siddhas, the Vidhyadharas, the Rakshasas, Daityas, Rudras, and Brahma himself, O king, having with subdued senses, accepted a course of austerities for a thousand years in order to move Vishnu to grace, cooked rice in milk and butter and gratified Kesava with oblations, each offered with seven Riks. And, O king, the gratified Kesava thereupon conferred on them the eight-fold attributes called Aiswarya and other objects that they desired.


Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 82 mentions the names Pilgrims: Kinnaras are mentioned in the Tirtha of Saugandhika-vana in verse (III.82.3-4). [7] Saugandhika-vana (सौगन्धिकं वनं) (III.82.3): There dwell the celestials with Brahma at their head, Rishis endued with wealth of asceticism, the Siddhas, the Charanas, the Gandharvas, the Kinnaras and the Nagas. As soon as one entereth these woods, he is cleansed of all his sins.


Their character is clarified in the Adi parva of the Mahabharata, where they say:

"We are everlasting lover and beloved. We never separate. We are eternally husband and wife; never do we become mother and father. No offspring is seen in our lap. We are lover and beloved ever-embracing. In between us we do not permit any third creature demanding affection. Our life is a life of perpetual pleasure.[8]

References

  1. Corpus Inscriptionium Indicarium Vol IV Part 2 Inscriptions of the Kalachuri-Chedi Era, Vasudev Vishnu Mirashi, 1905, p.575-579
  2. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.511
  3. "Mythical Animals in Indian Art". Abhinav Publications. 1985.
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.189
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.817
  6. रक्षसास तु पुलस्त्यस्य वानराः | किंनरास तथा Mahabharata:(I.60.7), (1.66),
  7. सौगन्धिकं वनं राजंस ततॊ गच्छेत मानवः, यत्र बरह्मादयॊ देवा ऋषयश च तपॊधनाः (III.82.3) सिद्धचारणगन्धर्वाः किंनराः स महॊरगाः, तद वनं परविशन्न एव सर्वपापैः परमुच्यते (III.82.4)
  8. Ghosh, Subodh (2005). Love stories from the Mahabharata, transl. Pradip Bhattacharya. New Delhi: Indialog. p. 71

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