Mahakal

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(Redirected from Mahakala Bhairava)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Mahakal Temple Ujjain

Mahakala (महाकाल) is a famous temple dedicated to Lord Shiva and is one of the twelve Jyotirlingams, the sacred abodes of Shiva. It is located in the city of Ujjain, Madhya Pradesh state, India.

Origin

Mahākāla (महाकाल) is a Sanskrit bahuvrihi of mahā (महत्; "great") and kāla (काल; "time/death"), which means "beyond time" or death.[1]

Variants

History

Mahakala is also known as Mahakala Bhairava and Kala Bhairava in Hinduism, and many temples in India and Nepal are dedicated solely for Mahakala Bhairava, for example at the temple in Ujjain, which is mentioned more than once by Kālidāsa. The primary temple, place of worship for Mahakala is Ujjain. Mahakala is also a name of one of Shiva's principal attendants (Sanskrit: gaṇa), along with Nandi, Shiva's mount and so is often represented outside the main doorway of early Hindu temples.

In Mahabharata

Mahakala (महाकाल) (Tirtha) in Mahabharata (III.80.68)

Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 80 mentions the merit attached to tirthas. Mahakala (महाकाल) (Tirtha) is mentioned in Mahabharata (III.80.68).[2]....One must then go to Mahakala (महाकाल) (3.80.68) with regulated diet and senses subdued. And having bathed in the tirtha called Kotitirtha (कॊटितीर्थ) (3.80.68), one obtaineth the merit of a horse-sacrifice.

महाकाल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...महाकाल (AS, p.721): उज्जैन में स्थित भगवान शिव का अति प्राचीन मंदिर है. इसका वर्णन कालिदास ने मेघदूत, (पूर्वमेघ, 36 तथा अनुवर्ती छंद में किया है--'अप्यन्यस्मिञ्जलधर महाकालमासाद्य काले, स्थातव्यं ते नयनविषयं यावदत्येति भानुः, कुर्वन् सन्ध्याबलिपटहतां शूलिनः श्लाघनीयाम्, आमन्द्राणां फलमविकलं लप्स्यसे गर्जितानाम्'--आदि.

रघुवंश 6,34 में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में अवंती नरेश के परिचय के संबंध में भी महाकाल का वर्णन है-- 'असौ महाकालनिकेतनस्य वसन्नदूरे किल चन्द्रमौलेः, तमिस्रपक्षेऽपि सह प्रियाभिर्ज्योत्स्नावतो निर्विशति प्रदोषान्'.

उज्जयिनी को प्राचीन काल में ज्योतिष-विद्या का घर माना जाता था. इस नगरी में प्राचीन काल में भारतीय कालक्रम की गणना का केंद्र होने के कारण भी महाकाल मंदिर का नाम सार्थक जान पड़ता है (प्राचीन भारत में ज्योतिष विद्या विशारदों ने कालक्रम मापने के लिए उज्जयिनी में शून्य ने अक्षांश की स्थिति मानी थी जैसा कि वर्तमान काल में ग्रीनिच में है). जयपुर नरेश जयसिंह द्वितीय ने एक प्रसिद्ध वेधशाला भी यहां बनवाई थी. महाकाल का मंदिर उज्जैन में आज भी है किंतु यह कालिदास द्वारा वर्णित प्राचीन मंदिर से अवश्य भिन्न है. प्राचीन मंदिर को गुलाम वंश के सुल्तान इल्तुतमिश ने 13वीं शती में नष्ट कर दिया था. नवीन मंदिर प्राचीन देवालय के स्थान पर ही बनाया गया जान पड़ता है. यह मंदिर भूमि के नीचे गहरे स्थान में बना हुआ है. पास ही शिप्रा नदी बहती है जिसका वर्णन कालिदास ने महाकाल मंदिर के प्रसंग में किया है.

External links

References

  1. Mookerjee, Ajit (1988). Kali: The Feminine Force. New York: Destiny
  2. महाकालं ततॊ गच्छेन नियतॊ नियताशनः, कॊटितीर्थम उपस्पृश्य हयमेध फलं लभेत (III.80.68)
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.721