Bharat Singh Arya

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Mahashay Bharat Singh Aryopadeshak

Bharat Singh Arya was an Arya Samajist social reformer from village Badhra in Charkhi Dadri district of Haryana.

आर्यसमाज के महाधन

महाशय भरत सिंह आर्योपदेशक (आर्यनगर बाढ़ड़ा)

लेखक :- महाशय धर्मपाल आर्य "धीर" भांडवा वाले

प्रस्तुति :- अमित सिवाहा


महाशय भरत सिंह आर्य आर्यसमाज के उत्साही और लगनशील प्रचारक थे। वे आर्यनेता थे। अपने क्षेत्र के आर्यसमाज के प्रतीक थे। आर्यसमाज की चर्चा होते ही उनका नाम सामने आ जाता था। आपने अपने गांव में आर्यसमाज के उत्सव करवा कर लोकोपकारी कार्य किये। आर्यसमाज लोहारु के तो वे विशेष स्तम्भ थे। नवाब लोहारु के साथ आर्यों के संघर्ष में उन्होनें वीरता एवं धीरता के साथ सक्रिय भूमिका निभाई। प्रस्तुत है महाशय जी के संघर्षमय जीवन की झांकी।

जन्म एवं शिक्षा

महाशय जी का जन्म वर्तमान दादरी जिले की तहसील बाढ़ड़ा उपमण्डल के नया गांव आर्यनगर (पूर्व नाम कुतकपुरा) में कार्तिक शुक्ला षष्ठी मंगलवार विक्रमी सम्वत् १९६७ सन् १०/११/१९११ ई० में पिता श्री हरिकिशन जी एवं माता श्रीमती दड़ियां देवी के प्रांगण में हुआ। गांव में जुई के ब्राह्मण चन्दगीराम से अक्षरभ्यास किया। तत्पश्चात आप आर्यसमाज के आदर्श प्रचारक स्वामी नित्यानंद जी द्वारा खोली पाठशाला गांव कितलाना में लगभग आठ महिने पढ़े। कितलाना में आपकी बहन हरकौर ब्याही थी। उल्लेखनीय है कि आप अपने भानजे दयानन्द व्याकारणाचार्य जो गुरुकुल झज्जर और दयानन्द ब्रह्मविद्यालय हिसार के प्राचार्य रहे, वहीं रहते हुए आपने स्वामी नित्यानंद जी के प्रचार सुने। उनका आप पर विशेष प्रभाव पड़ा। जिसके फलस्वरूप आप आर्यसमाज के रंग में रंगे गए। अपने गांव में आर्यसमाज का प्रचार करवाने की तरंगे आपके मन में निरंतर हिलौरे लेने लगी। आपका विवाह सम्वत् १९८४ में झूंझनू (राजस्थान) जिले के सिलारपुरी गांव के श्री लालाराम जी की सुपुत्री रजमण के साथ हुआ। आपकी धर्मपत्नी आर्यसमाज के काम में आपका भरपुर साथ देती थी।

गांव में आर्यसमाज की स्थापना करवाना

सन् १९४० में आप लोहारु जाकर न्योनंद सिंह आर्य से मिले और अपने गांव में धर्मप्रचार के लिए लाए। गांव में उनके प्रचार का बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा और न्योनंद सिंह आर्य के द्वारा ही सम्वत् १९९७ में भादवा बदी अमावस्या के दिन आर्यसमाज की स्थापना की गई।

लोहारु सत्याग्रह में

लोहारु के रक्तिम काण्ड के विरोध में जब आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब ने लोहारु पर केस डाला तो उसने शिनाखत के लिए गवाही देने हेतु गांव के बीसों युवको को लेकर पैदल लोहारु जाते थे। आप सब ने दो चार हमलावर पहचान कर पकड़वाए। इस प्रसंग में लोहारु इस्लामिया स्कूल के हेडमास्टर ने उर्दू में एक धमकी भरा पत्र लिखा था, फिर भी आप किञ्चित् नहीं घबराए। आप जैसे गांव के अनेक साहसी आर्यों का योगदान इस प्रकरण में विजय का आधार बना। उल्लेखनीय है कि उस जुलूस में भी आप अपने परिवार के श्री मोहब्बत सिंह आदि सहित शामिल हुए थे। आपको बहुत गहरी चोटें आई थी। आपको व अन्य घायलों के साथ रेवाड़ी ले जाया गया जहाँ आप तेरह दिन रहे। और सबकी सेवा के लिए प्रो. शेरसिंह आर्य के पिता चौ. शीशराम आर्य, जो जुलूस में भी साथ थे, साथ रहे। आपको गोविन्दराम आर्य जेवली वाले घर पर छोड़कर गए। आपके सिर पर लाठियों के चौदह निशान थे।

स्वामी स्वतंत्रतानन्द जी का आर्यनगर में आगमन

श्री महाशय जी ने बताया कि लौहपुरुष स्वामी स्वतंत्रतानन्द जी महाराज २ अगस्त १९४१ को कुतकपुरा में पधारे। नीम के नीचे बड़ा यज्ञ हुआ। जिसमें अनेक स्त्री पुरुषों ने आहुतियां डाली, बीसों व्यक्तियों ने यज्ञोपवित धारण किया। इस कार्यक्रम में आते समय जब लड़किया गीत गा रही थी तो लोग उन्हें रोकने लगे तब स्वामी जी बोले -- "रोको मत, उपदेशक दे रही हैं। बढ़िया गीत हैं। अमृतवर्षा हो रही है"। स्वामी जी महाराज के द्वारा ही गांव कुतकपुरा का नाम बदलकर आर्यनगर रखा गया जो आज प्राय सबकी जुबां पर है।

आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के जलसे का प्रबंध

लोहारु काण्ड के बाद सभा के द्वारा इस गांव में पं. समरसिंह वेदालंकार की अध्यक्षता में एक जलसा करवाया गया। इसके प्रबंध में महाशय जी की अग्रणी भूमिका रही।

आर्यसमाज मन्दिर लोहारु के निर्माण में योगदान

मन्दिर निर्माण के लिए बनाई गई मण्डलियों में से एक मण्डली के प्रमुख आप थे और आपने अनेक गांव में घूम घूमकर धन संग्रह किया। इसके अतिरिक्त आर्य समाज की आय को बढ़ाने के लिए कमरों के आगे बरामदों का निर्माण करवाया। आप लम्बे समय तक आर्य समाज लोहारु के अधिकारी रहे और सदैव जलसों के लिए आर्थिक प्रबन्ध करते थे।

वेद प्रचार कार्य

अपने क्षेत्र के अनेक गांवों में स्वामी नित्यानंद आदि को बुलाकर अनेक बार प्रचार करवाया। आप स्वयं भी खड़ताल पर बढ़िया व्याख्या सहित भजन गाते थे। जीवन के अन्तिम दो दशकों में वाद्ययन्त्र (हारमोनियम) बजाकर भजन कथा गाते थे। इसके अतिरिक्त महाशय जी की गणना क्षेत्र के प्रमुख पंचायतियो में होती थी। अन्याय से पीड़ित व्यक्ति उनसे न्याय की गुहार लगाते थे। उनकी पुकार सुनकर महाशय जी ने अनेक बार उनको न्याय दिलाया। == आर्य सत्याग्रहों में भागीदारी आर्यसमाज द्वारा किये गए हिन्दी रक्षा आन्दोलन व गऊरक्षा आन्दोलन में आपने बढ़चढ़कर भाग लिया। गांव व क्षेत्र के अनेक सत्याग्रही का नेतृत्व करते हुए आप दोनों सत्याग्रहों में जेल गए।

शिक्षा व सामाजिक कार्यों में योगदान

आपने अपने गांव में विद्यालय के निर्माण में बहुत सहयोग किया। इसके अतिरिक्त गांव व क्षेत्र के छात्र - छात्राओं को शिक्षाणार्थ व प्रशिक्षणार्थ बड़ी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश दिलाया। सामाजिक क्षेत्र में महाशय जी का योगदान सराहनीय रहा। बहुत पुरानी घटना है कि बाढ़ड़ा अड्डे पर एक मांस की दुकान खुली। इसे बंद कराने का साहस क्षेत्र के किसी भी प्रमुख या पंचायती व्यक्ति का नहीं हुआ। बुराइयों के प्रति उग्र एवं तेजस्वी महाशय जी ने इस दुकान को बन्द करवाया। इसके अतिरिक्त अनेक गांवो की पंचायतो के द्वारा सरकार के प्रस्ताव भिजवाये कि हमारे गांव में शराब का ठेका न खोला जाए।

प्रिय पाठकों महाशय भरत सिंह आर्योपदेशक दृढ़ आर्यसमाजी थे। सिद्घान्त पालन में अडिग थे। वेद प्रचार की बहुत उत्कृष्ट भावना थी। गरीबों ,विधवाओं व दुखियों की सहायता के लिए तत्पर रहते थे। बड़े साहस के साथ अन्याय और सामाजिक बुराइयों का विरोध करते थे। महाशय जी ११/५/२००२ को जीवन यात्रा पूरी करके प्रभु चरणों में विलिन हो गए। महाशय जी याद में इनके परिजनो ने गांव में आर्यसमाज मन्दिर बनवाया। सभी पाठकों से निवेदन है कि उनके गुणों को अपने जीवन में धारण करके आर्यसमाज तथा वेद प्रचार में अपना योगदान दे। उपर्युक्त लेख श्री धर्मपाल आर्य "धीर" जी ले श्री कुलदीप आर्य जी ने लिखवाया है। महाशय जी के जीवन की लघु पुस्तक भी धर्मपाल जी प्रस्तुत कर रहे हैं। ये लेख श्री अजय शास्त्री जी ने भेजा है उनका भी विशेष धन्यवाद करते हैं। तथा महाशय जी का फोटो उनकी सुपौत्र वधु डॉ. सविता आर्या द्वारा भेजा गया जो कि हरियाणा शिक्षा विभाग में लैक्चरार हैं। उनका भी बहुत बहुत धन्यवाद।

References


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