Maninaga
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Maninaga (मणिनाग) was an ancient historical place in Rajagriha (Rajgir), Bihar. It is now known as Maniyaramatha. It was a pilgrim of Nagas during Mahabharata. [1] Author (Laxman Burdak) visited Rajgir on 12.11.2010 and has provided content and images here.
2. Maninaga (मणिनाग) was name of a Nagavanshi King.
3. Maninaga Parvata (मणिनाग पर्वत) was name of a mountain in Kalayanakannika area of Sri Lanka, mentioned in Mahavansha.
Variants
- Maninaga (मणिनाग) (AS, p.694)
- Maniyara Matha/Maniyaramatha (मणियार मठ), दे. Maninaga मणिनाग (AS, p.697)
- Maniyar Math
- Maninagaparvata (मणिनाग पर्वत) (Mahavansa/Chapter 34)
- Maninagapabbata (Mahavansa/Chapter 34)
History
मणिनाग
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...मणिनाग (AS, p.694): राजगृह (=राजगीर बिहार) के खंडहरों में स्थित अति प्राचीन स्थान है इसे अब मणियार मठ कहते हैं. महाभारत में मणिनाग का तीर्थ रूप में [p.695]: उल्लेख है--'मणिनागं ततॊगत्वा गॊसहस्रफलं लभेत्' वन पर्व 84,106. 'तैर्थिकं भुञ्जते यस्तु मणिनागस्य भारत,दष्टस्याशीर्विशेणापि न तस्य क्रमते विषम्' वन पर्व 84,107. निश्चय ही यह स्थान महाभारत काल में नागों का तीर्थ था. मणियार मठ से, उत्खनन द्वारा गुप्तकालीन कई नाग मूर्तियां मिली हैं और एक नागमूर्ति पर तो 'मणिनाग' शब्द ही उत्कीर्ण है. यह प्राय निश्चित है कि महाभारत में जिस मणिनाग का उल्लेख है वह वर्तमान मणियार मठ ही था क्योंकि महाभारत के वन पर्व के अंतर्गत तीर्थ यात्रा के प्रसंग का अधिकांश, मूल महाभारत के समय के बाद का है और बौद्ध कालीन जान पड़ता है जैसा कि मणिनाग के प्रसंग में राजगृह के नामोल्लेख से सूचित होता है-- 'ततॊ राजगृहं गच्छेत तीर्थसेवी नराधिप' वन पर्व 84,104. राजगृह नाम बुद्ध के समकालीन मगधराज बिंबसार का रखा हुआ था. (देखें राजगृह)
मणियार मठ
मनियार मठ राजगीर का आदि धर्म तीर्थ स्थल है। यह राजगीर के ब्रह्मकुंड से शांति स्तूप जाने के मार्ग में पड़ता है। यह एक बेलनाकार मंदिर है। यह राजगृह के देवता मणिनाग का मंदिर बताया जाता है। पाली ग्रंथों में इसे मणिमाला चैत्य कहा गया है, जबकि महाभारत में मणिनाग मंदिर का उल्लेख आता है। इसलिए मंदिर के बारे में स्थानीय लोग कहते हैं कि यह महाभारत कालीन है।
लोग इसे महाभारत कालीन राजा जरासंध के समय का बना हुआ बताते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो इस मंदिर में राजगृह के राजा महाराज जरासंध पूजा किया करते थे। महाभारत में आपने पढ़ा होगा कि जरासंध के कृष्ण के मामा कंस से वैवाहिक संबंध थे। कंस का साथ देने के कारण कृष्ण के कहने पर भीम ने जरासंध को गदायुद्ध में पराजित कर मार डाला था।
मंदिर की संरचना कुएं जैसी है। इसका व्यास 3 मीटर और दीवार 1.20 मीटर मोटी है। इसकी बाहरी दीवार पर पुष्पाहार से सजे देवताओं की आकृतियां बनी हैं। इनमें शिव, विष्णु, नाग लपेटे गणेश जैसी आकृतियां हैं। छह भुजाओं वाले नृत्यरत शिव की आकृति प्रमुख आकर्षण है। इनमें कई मूर्तियां नष्ट हो चुकी हैं। कला शैली की दृष्टि से इतिहासकार इन मूर्तियों को गुप्तकालीन बताते हैं। कुंड, चबूतरे और मुख्य मंदिर के आसपास भी कई कलाकृतियां हैं। वैदिक धर्म के बाहर की जनजातियों में सर्प पूजन की परंपरा थी। मगध के लोग नागों को उदार देवता मानते थे, जिन्हें वे पूजा आदि करके संतुष्ट करते थे।
ऐसा माना जाता था कि नाग देवता प्रसन्न होंगे तो बारिश अच्छी होगी, परिणामस्वरूप फसल भी अच्छी होगी। मनियार मठ में खुदाई से ऐसे बहुत से पात्र मिले हैं, जिनमें सांपों के फन के आकार के कई नलके बने हैं। संभवत: इन पात्रों से सांपों को दूध पिलाया जाता था। यहां विशाल गड्ढों में जानवरों के कंकाल भी मिले हैं, जिन्हें देख कर लगता है कि कभी यहां बलि भी दी जाती रही होगी। मनियार मठ स्थित मंदिर के गर्भ गृह में जाने के लिए आपको कई सीढ़ियां उतरनी पड़ती हैं। आज भी इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मन्नत मांगते हैं।[3]
राजा रणपुर
राजा रणपुर (Raja Ranapur) या रणपुरगढ़ (Ranapurgada) भारत के ओड़िशा राज्य के नयागढ़ ज़िले में स्थित एक नगर है। नयागढ़ जिले का यह महत्वपूर्ण नगर है। मणिनाग पर्वत के तलहटी में बसा हुआ यह शहर पुरी से 63 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में है और सीधा न्यू जगन्नाथ सड़क मार्ग से जुड़ा है। शहर को बसाने वाले राजा का नाम राणासुर था जिनके नाम पर यह पहले राणासुरपुर कहलाता था जो बाद में रणपुर नाम से जाना जाने लगा।
Maninaga Parvata in Mahavansa
Mahavansa/Chapter 34 mentions about The Eleven Kings.... After the death of Bhatikaraja his younger brother named Mahadathika Maha Naga reigned twelve years, intent on works of merit of many kinds....In Kalayanakannika the ruler of men built the (vihara) called Maninagapabbata and the vihara which was called Kalanda, furthermore on the bank of the Kubukandariver the Samudda-vihara and in Huvacakannika the vihära that bore the name Culanagapabbata.
In Mahabharata
Maninaga (मणिनाग) (Naga) in Mahabharata (I.31.6)
Maninaga (मणिनाग) (Tirtha) in Mahabharata (III.82.91)
Adi Parva, Mahabharata/Book I Chapter 31 mentions the names of Chief Nagas. Maninaga (मणिनाग) is listed in verse (I.31.6).[4]...Kaliya, Maninaga, Purana, Pinjaraka, and Elapatra, Vamana,...
Vana Parva, Mahabharata/Book III Chapter 82 mentions names of Pilgrims. Maninaga (मणिनाग) Tirtha is mentioned in verse (III.82.91). [5]...Proceeding next to Maninaga (मणिनाग) (III.82.91), one obtains the merit of giving away a thousand kine. O Bharata, he that eateth anything relating to the tirtha of Maninaga, if bitten by a venomous snake, doth not succumb to its poison. Residing there for one night, one is cleansed of one's sins.
External links
References
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.694-695
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.694-695
- ↑ livehindustan.com
- ↑ कालियॊ मणिनागश च नागश चापूर्णस तथा, नागस तथा पिञ्जरक एला पत्रॊ ऽथ वामनः (I.31.6)
- ↑ मणिनागं ततॊ गत्वा गॊसहस्रफलं लभेत, नैत्यकं भुञ्जते यस तु मणिनागस्य मानवः (III.82.91)