Munger

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(Redirected from Mongir)
For village in Rajasthan see Munger Dungarpur
Author:Laxman Burdak, IFS (Retd.)

Munger District Map

Munger (मुंगेर) is a city and district of Bihar state, in eastern India. Bhaddiya (भद्दिय) was an ancient city in the Anga country. It has been identified with modern Munger in Bihar, India.[1]

Variants

  • Bhaddiya भद्दिय (AS, p.655)
  • Hiranyaparvata हिरण्यपर्वत = Munger मुंगेर का प्राचीन नाम (AS, p.1023)
  • Munger मुंगेर, बिहार, (AS, p.747)
  • Modagiri मोदागिरि = Munger मुंगेर (AS, p.763)
  • Modachala मोदाचल = Munger मुंगेर (AS, p.763)
  • Munigraha (मुनिगृह)(AS, p.748)
  • Lohaninila (लोहानिनिला)
  • Lavananila लावणनील, बिहार, (p.816)

Location

Munger District is located in the southern part of Bihar and its headquarters is located on the southern bank of river Ganges. The major rivers of this district are the Ganges, the Mohane, the Harohar and the Kiul.

Origin of name

There are several traditions regarding the etymology of Munger.

  • According to one tradition, the present name of the town is derived from its ancient name Mudgagiri, which is mentioned in the Munger copper-plate inscription of Devapala.
  • According to another tradition, the name of the town is derived from either sage Mudgala or Maudgalyayana, a disciple of Buddha.
  • However, Alexander Cunningham had strong suspicion that the original name of the town was connected with the Mundas, who are the earliest residents of this region and C.E.A.
  • Oldham thinks it was probably derived from Munigriha (the abode of the Muni).

Sub-divisions

Munger district comprises 3 Sub-divisions: Munger Sadar, Kharagpur, Tarapur

History

Hiranya-parvata was one of the Buddhist places visited by Xuan Zang in 639 AD. Alexander Cunningham[3] has identified Hiranya Parvata with Munger in Bihar state.

The territory occupied by the present day Munger district was a part of Anga mahajanapada. The Mahabharata says that it was ruled by Karna.

Mudgagiri (Munger) was the capital of the Pala empire. Bengal Nawab Mir Kasim fought one of the last battles before the East India Company captured the eastern India. The Fort built by him has three gates and the Ganges on its fourth sides.

Munger was known as Monghyr throughout British rule. In the early years of British rule Monghyr formed a part of Bhagalpur, and was not created a separate district till 1832.

मुंगेर, बिहार

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है .... मुंगेर, बिहार, (AS, p.747): महाभारत में मुंगेर शहर को मोदागिरि कहा गया है-'अथ मोदागिरौ चैव राजानं बलवत्तरम् पांडवो बाहुवीर्येण निजधान महामृघे'वन. 30,21. अर्थात् पूर्व दिशा की दिग्विजय यात्रा में मगध पहुँचने के उपरान्त मोदागिरि के अत्यन्त बलवान नरेश को भुजाबल से युद्ध में मार गिराया। इसका वर्णन गिरिव्रज (राजगीर) के पश्चात् है तथा इसके उल्लेख के पहले भीम की कर्ण पर विजय का वर्णन है। किंवदन्ती के अनुसार मुंगेर की नींव डालने वाला चंद्र नामक राजा था। मुंगेर कई पहाड़ियों से धिरा हुआ नगर है। कर्णचूर की पहाड़ी महाभारत के कर्ण से सम्बन्धित बताई जाती है। महाभारत के उपर्युक्त प्रसंग में भी कर्ण और भीम का युद्ध मुंगेर के उल्लेख से ठीक पूर्व वर्णित है। (दे. कर्णगढ़)

नगर के निकट सीताकुण्ड नामक स्थान है। जहाँ कहा जाता है कि [p.748]: सीता अपने दूसरे वनवास काल में अग्नि प्रवेश के लिए उतरी थी। चंडी स्थान भी प्राचीन स्थल है। एक किंवदन्ती में मुंगेर का वास्तविक नाम मुनिगृह भी बताया जाता है। कहते हैं कि यहीं पहाड़ी पर मुदगल मुनि का निवास स्थान होने से ही यह स्थान मुदगल नगरी कहलाता था। किन्तु इसका सम्बन्ध महाभारत के मोदागिरि से जोड़ना अधिक समीचीन है। कनिंघम के मत में 7वीं शती में युवानच्वांग ने इस स्थान को लोहानिनिला (लावणनील) कहा है। 10वीं शती में पाल वंशी देवपाल का यहाँ पर राज था, जैसा कि उसके ताभ्राट्ट लेख में वर्णित है। मुंगेर में मुस्लिम बादशाहों ने भी काफ़ी समय तक अपना मुख्य प्रशासन केन्द्र बनाया था, जिसके फलस्वरूप यहाँ पर उस समय के कई अवशेष हैं। मुग़लों के समय का एक ज़िला भी उल्लेखनीय है। यह गंगा के तट पर बना है। इसके उत्तर पश्चिम के कोने में कष्टतारिणी नामक गंगा घाट है। जहाँ 10वीं शती का एक अभिलेख है। क़िले से आधा मील पर मान पत्थर है, जो गंगा के अन्दर एक चट्टान है। कहा जाता है कि इस पर श्रीकृष्ण के पदचिह्न बने हैं। क़िले के पश्चिम की ओर मुल्ला सईद का मक़बरा है। ये अशरफ़ नाम से फ़ारसी में कविता लिखते थे और औरंगज़ेब की पुत्री जेबुन्निसा के काव्य गुरु भी थे। इनका मूल निवास स्थान कैस्पियन सागर के पास मजनदारन नामक स्थान था। अकबर के समय में टोडरमल ने बंगाल के विद्रोहियों को दबाने के लिए अभियान का मुख्य केन्द्र मुंगेर में बनाया था। शाहजहाँ के पुत्र शाहशुजा ने उत्तराधिकार युद्ध के समय इस स्थान में दो बार शरण ली थी। कुछ विद्वानों का मत है कि मुंगेर का एक नाम 'हिरण्यपर्वत' भी है, जो सातवीं शती या उसके निकटवर्ती काल में प्रचलित था। (दे. बिहार दि हार्ट ऑफ इंडिया, पृ.59)

भद्दिय

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...भद्दिय (AS, p.655): प्राचीन अंग की महत्वपूर्ण नगरी जिसका बौद्ध जातक कथाओं में उल्लेख है. मिगारमाता विशाखा, जिसकी कथाएं पाली साहित्य में विख्यात हैं, का जन्म भद्दिय में ही हुआ था. इसी नगरी को संभवत: भद्दवति या भद्रिका नाम से भी अभिहित किया गया है. कुछ विद्वानों का मत है कि यह वर्तमान मुंगेर का प्राचीन नाम है.

कर्णचूर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...कर्णचूर (AS, p.143) मुंगेर बिहार के निकट एक पहाड़ी है जो महाभारत के कर्ण (जो अंग का राजा था) के नाम से विख्यात है।

कर्णगढ़

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...कर्णगढ़ (AS, p.143) भागलपुर (अंग देश की राजधानी, प्राचीन चंपा) के निकट एक पहाड़ी है। कर्णगढ़ का नाम महाभारत के कर्ण से संबंधित है। कर्ण अंगदेश का राजा था। यह स्थान पूर्व-बौद्धकालीन है। महाभारत में भीम की पूर्व दिशा की दिग्विजय के प्रसंग में मगध के नगर गिरिव्रज के पश्चात् मोदागिरि या मुंगेर के पूर्व जिस स्थान पर भीम और कर्ण के युद्ध का वर्णन है वह निश्चयपूर्वक यही जान पड़ता है- 'स कर्णं युधि निर्जित्य वशेकृत्वा च भारत, ततो विजिग्ये बलवान् राज्ञ: पर्वतवासिन:।' (सभा पर्व महाभारत 31,20)

लावणनील, बिहार

लावणनील, बिहार, (AS, p.816): लावणनील प्राचीन समय में बिहार का एक स्थान था। 7वीं शती में भारत का भ्रमण करने वाले प्रसिद्ध चीनी यात्री युवानच्वांग ने इस स्थान को चीनी भाषा में 'लोहपानिनीलो' लिखा है। इतिहासकार कनिंघम के अनुसार यह स्थान वर्तमान मुंगेर हो सकता है।[8]

In Mahabharata

Moda-giri (मॊदा गिरि) in Mahabharata (II.27.19)

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 27 mentions the countries subjugated by Bhimasena. Moda-giri (मॊदा गिरि) is mentioned in Mahabharata (II.27.19). [9]....Bhima's Conquests - Bhima was sent out to the East, since Bhishma thought the easterners were skilled in fighting from the backs of elephants and in fighting with bare arms, he deemed Bhima to be the most ideal person to wage wars in that region. The Mahabharata mentions several kingdoms to the east of Indraprastha which were conquered by Bhima. According to Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 26 & Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 27 Bhimasena subjugated the countries which include Modagiri.

Visit by Xuanzang in 639 AD

Alexander Cunningham[10] writes that At 200 li, or 33 miles, to the east of Rohinala, Hwen Thsang reached the capital of the kingdom of I-lan-na-po-fa-ta, or Hiranya-Parvata, that is, the "Golden Mountain." Close to the city stood Mount Hiranya, " from which issued smoke and vapours that darkened the sun and moon."[11] The position of this hill is determined, from its proximity to the Ganges, and from its bearings and distances from Rohinala and Champa, to be Mongir. No smoke now issues from the hill, but the numerous hot springs in the neighbouring hills show that volcanic action still exists within a few miles of Mongir. These hot springs are mentioned by Hwen Thsang.

The advantageous position of this isolated hill on the bank of the Ganges, which commanded the land route between the hills and the river, as well as the water route by the Ganges, must have led to its occupation at a very early date. Accordingly it is mentioned in the Mahabharata as Modagiri (मोदागिरि), which was the capital of a kingdom in eastern India, near Banga and Tamralipta, or Bengal and Tamluk. At the time of Hwen Thsang's visit the king had been lately ejected by the Raja of a neighbouring state. The kingdom was bounded by the Ganges on the north, and by great forest-clad mountains on the south ; and as its circuit is estimated at 3000 li, or 500 miles, it must have extended to the south as far as the famous mountain of Parasnath, which has an elevation of 4478 feet. I would therefore fix its limits as extending from Lakhi Sarai to Sultanganj on the Ganges in the north,


[p.477]: and from the western end of the Parasnath hill to the junction of the Barakar and Damuda rivers in the south. The circuit of this tract is 350 miles, measured direct on the map, or upwards of 420 miles by- road distance following the windings of the two rivers.

Munger copper-plate inscription of Devapala

References