Nagyal

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Nagyal (नाग्याल) Nangyal, Nagyala or Nagra is a Hindu, Sikh and Muslim Jatt Clan found in Jammu and Kashmir, Punjab, Haryana and Pakistan (Mirpur and Chhamb).

Nagyal Kuldevta

जय बाबा प्यारा शहीद

जय बाबा बाला शहीद

जय बुआ मिर्ज़ा जी

जय बाबा शल्लो शहीद

आरती बाबा प्यारा जी

ओम जय बाबा प्यारा, सब देवां चूं तू न्यारा । बिच रिवेरी जन्म लित्ता, कित्ता सारा जग्ग उजियारा। ओम जय... निक्की बरेसा तप करी, बनेआ वैष्णों दा पुजारा। ओम जय... गोऊ जनेऊ दी राखी ली, दित्ता गजनीयें गी ललकारा। ओम जय... धर्मा दी खातिर ओया शहीद, बनया मानु दा रखवारा। ओम जय... पैने गी तू दिन्ना रक्खड़ी, मावें गी अक्खें दा तारा। ओम जय... मेल तेरी जदूं ए लगदी, करदा जगमग तेरा दरबारा। ओम जय... तेरियें मेहरें दी लोड़ सानु, तेरे चरण 'कमल' दा सारा। ओम जय बाबा प्यारा, ओम जय बाबा प्यारा।

जय बाबा शल्लो शहीद नगयाल वंश (भ्रादबारी गोत्र)

आरती शल्लो शहीद:- ओम् कुलाना सूजद शान्त सर्वदा कुल वर्दनामा आयुवल यसोदेहि कुल देव नमोस्तूत ओम् गणेशाय नमः कुल देवाय नमः त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव वन्धु च सखा त्वमेव त्वमेव विद्या च द्रविन त्वमेव त्वेमव सर्व मम देव देव बाबा शल्लो शहीद की जय नमो नमो बाबा वरदानी कलयुग में हो शुभ कल्याणी रठाना में हो ज्योति तुम्हारी पिण्डी रुप में हो अवतारी जगे अखण्ड, इक जोत तुम्हारी कलयुग में है महिमा तुम्हारी

Kuldevta Dev Sathan

1 Baba pyara shaheed , Baba Bala Shaheed, Bua Mirza ( Riviere nagyal kuldevta Dev Sathan) Kali badi, Near Samba Railway station https://maps.app.goo.gl/wFzqRyseGmJqTr429

2 Baba Shallo Shaheed Dev Sathan:- Rathan(Ratian)

3 Dev Sathan thandi Khui Vijaypur sambaka pass hai

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Brief Introduction of Nagyal (Riveria) Community

It is known from oral tradition that hundreds of years ago there were two brothers named 'Naga' and 'Paga'. They were very brave and courageous. Due to some mutual dispute, they gave different names to their clans. The descendants of Nagi came to be known as 'Nagyal' Jatt and the descendants of Pagi came to be known as 'Bhau' Rajput.

In olden times, people used to settle from one place to another as per their convenience and that of their cattle. Due to some such geographical and other circumstances, the above Nagyal Jatts got displaced and got divided into many castes. These castes came to be known by their lifestyle, for example the Nagyals living in the [Chhimkariyan] locality of Chhamb came to be known as Chhimkariyan Nagyal, those living in Gudanakka came to be known as Gudanakka Nagyal, those living in a place called Mola came to be known as Nagyal Molavale, those living in [Nagaiyale] came to be known as Nagaiyale Nagyal. The Nagyals living in Riveri are called Riveri Nagyals. Similarly our community is called 'Riveri Nagyals' because it lives in Riveri village. Some of the Nagyals from Riveri settled in [Veraval], some in [Mandyala] and some in [Chhamb]. Basically all three are the same. Some Nagyals from Veraval which is now in Pakistan came and settled in Ambala at the time of India-Pakistan partition. They write the surname 'Nagra' with their name. Along with many other castes, the Riveria Nagyals also migrated from Chhamb after the Indo-Pak war of 1971. At present, Nagyal Jatts live in Jammu city and many border villages. The annual and half-yearly fair of the community is held in Kali Badivillage of Tehsil Samba.

The Story of Baba Pyara Shaheed Ji

<बाबा प्यारा शहीद जी की कथा> :- यह समय मध्यकाल का था। राजनैतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से उथल-पुथल के इस समय में हिन्दू धर्म पर संकट था। मुगलों की सत्ता स्थापित होने के साथ अकबर की सहिष्णुता तले लोग थोड़ी राहत महसूस कर रहे थे। परन्तु इनके वंशज औरंगजेब की कट्टरता से प्रजा बहुत दुखी हो गई। औरंगजेब ने मंदिरों और मूर्तिकला को काफी क्षति पहुंचाई। कहते हैं कि औरंगजेब सवा मन जनेऊ उतरवाकर खाना खाता था। इस बात का कोई प्रमाण तथ्य रूप से इतिहास में नहीं मिलता। वैसे भी यह कोई तर्कसम्मत बात नहीं है। परन्तु औरंगजेब की कट्टरता पर कोई मतभेद नहीं है। उसने धर्मपरिवर्तन तो खूब करवाया पर इस परिवर्तन का मुख्य कारण औरंगजेब की कट्टरता से अधिक हिन्दू धर्म का जातिगत भेदभाव था। वह एक सफल और बड़ा शासक था। धार्मिक कट्टरता ने उसका पतन किया। इसी समय में औरंगजेब के समर्थकों और बाहरी आक्रमणकारियों ने भी औरंगजेब का अनुसरण करते हुए भारत का रुख किया। वे भी लूटपाट के साथ-साथ धर्म परिवर्तन करवा रहे थे। इसी उपक्रम में गढ़ गजनी से फौजें चढ़ाई करके भारत में पदार्पण कर चुकी थीं। इसी अराजकता भरे समय में प्रजा पर हो रहे अत्याचार, अन्याय और शोषण का विरोध करने के लिए बहुत से वीर योद्धा भी हुए। मीरपुर पकिस्तान, डुग्गर, पंजाब व अन्य प्रांतों के लोक साहित्य तथा लोक कथाओं में ऐसे अनेक वीरों का वर्णन मिलता है। कारकों में हम इनकेबलिदान और शौर्य की कथाएँ सुनते हैं। बाबा प्यारा शहीद भी उन में से एक थे। बाबे का जन्म रिवेरी गाँव में हुआ जो अब पकिस्तान में है। बाबा प्यारा का नाम प्यारा रखा गया। वे बचपन से ही बहुत धार्मिक, उदार हृदय और सेवा भाव वाले थे। माता वैष्णों के उपासक थे। शस्त्र और शास्त्र दोनों में गहरी रुचि रखते थे। कहते हैं जब मुस्लिम धर्मान्ध शासकों के कुछ सिपाही धर्म परिवर्तन करवाने हेतु रिवेरी गाँव में आए तो बाबा प्यारे की प्रसिद्धि देख दंग रह गए। लोगों का बाबा प्यारे पर अटूट विश्वास था। उन्होंने कहा कि अगर आप लोग योद्धा प्यारे का धर्म परिवर्तन करवा देंगे तो हम भी अपना धर्म बदल लेंगे। सिपाहियों ने लोगों की बात को स्वीकृत कर बाबा के घर को घेर लिया। बाबा उस समय माता की उपासना कर रहे थे। बाबा ने सिंगार करके शस्त्रों से सुसज्जित होकर शत्रुओं को ललकारा। बाबे की ललकार ने युद्ध की घोषणा कर दी। घोड़े पर सवार हो कर बाबा बाहर निकले। उन्होंने शत्रु दल के सामने छाती तान कर कहा- 'मैं किसी कीमत पर अपना धर्म नहीं छोडूंगा। धर्म छोड़ने के लिए नहीं निभाने के लिए होते हैं। मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है। बात हिन्दू या मुस्लिम धर्म की नहीं है। बात है अन्याय को सहन न करने की। धर्म निजी मामला है पर जब मामला मेरे लोक पर तलवार की ताकत दिखाना है तो मुझे आपको मजा चखाना ही है, इतना कह कर बाबा शत्रुओं पर बिजली की गति से टूट पड़े। शत्रु दल को संभलने का अवसर भी न मिला। बाबा ने कितने सैनिकों को मार गिराया। समर भूमि में हाहाकार मच गया। शाम तक युद्ध होता रहा। स्मरण रहे कि यह युद्ध एक नदी के बीच बने छोटे से टापू पर हो रहा था। बाबा उन पर भारी थे। कोई वश न चलता देख शत्रु दल की एक टुकड़ी ने बाबा पर धोखे से पीठ पीछे से वार किया और उनका सिर काट दिया। यह माता वैष्णों की कृपा और बाबे के तप का फल था कि उनका धड़ घोड़े से नीचे नहीं गिरा। धड़ को युद्ध करता देख पानी भरने आई गाँव की औरतें आश्चर्यचकित हो गईं। वे बोली- 'देखो कैसा अपूर्व वीरता और रणकौशल भरा दृश्य है। चलो जाकर सब को सुनाते हैं। 'यह संवाद समाप्त होते ही धड़ नीचे गिर पड़ा। शत्रु दल ने भी बाबे की शक्ति को मान कर कहा - 'यह कोई बहुत बड़ा फकीर था। 'सैनिक वापिस लौट गए। इसी प्यारे वीर योद्धा को नग्याल अपना कुल देवता मानते हैं। रिवेरी में उनकी कोई देहरी नहीं थी। नग्याल वंश बाबे को पत्थर के एक चबूतरे पर दिया जला कर याद करता था। बाद में बाबा बाला शहीद जी ने अपनी और अपने भाई बाबा प्यारे शहीद की जगह बनाने का निर्देश अपने वंश को दिया। जिसे प्रसन्नता से बिरादरी ने माना। भारत – पाक विभाजन के बाद बाबा प्यारा व बाबा बाला शहीद व बुआ मिर्जा की देहरियाँ छम्ब के माड़ी स्थान पर बनाई गई। पकिस्तान में जिन हिन्दुओं ने धर्म परिवर्तन कर लिया वे बाबे को पीर मानते हैं।

इस प्रकार बाबा प्यारा जी ने धर्म की रक्षा हेतु प्राणों का बलिदान दे दिया। इसीलिए उनको बाबा प्यारा शहीद कहा जाता है। बाबा अपने कुल के ही नहीं मानवता के रक्षक हैं। वे मन्नतों को पूरा करते हैं। दुख-सुख में अपने भक्तों के अंग-संग रहते हैं। बाबा बहुत दयालू हैं। अपने भक्तों, कंजकों, ब्राह्मणों और त्यान (कुल की बेटी) की पुकार एकदम सुनते हैं।

The Story of Jai Baba Bala Shaheed Ji

मौखिक साहित्य तथा पूर्वजों के अनुसार बाबा बाला जी छम्ब से तीन मील उत्तर दिशा में स्थित  मंडयाला गाँव में रहते थे। वे संत स्वभाव के थे। वे अधिकतर समय घर से थोड़ी दूर एक वट वृक्ष के नीचे डेरा लगा कर रहते थे। वे तत्कालीन समय अनुसार आर्थिक रूप से अपनी खेती व मवेशी पर निर्भर थे। वे प्रतिदिन सुबह अपने गाँव से दक्षिण की तरफ मत्तेवाल की हरीभरी चरागाह में गायें चराने जाते थे और शाम को लौटते थे।

घरवालों ने बाबा की मंगनी मत्तेवाल गाँव में एक (नडग्याल Nadgyal ) परिवार में की थी। बाबा की मंग का नाम मिर्जा था। एक दिन की बात है बुआ मिर्जा अपने भाईओं को खेत में खाना देने जा रही थी कि तभी एक तंग रास्ते में एक नाग ने उसे लपेट लिया। दरअसल बात यह थी कि बुआ मिर्जा ने बाबा और उसके साथियों को देख लिया था और रीति-रिवाजों और संस्कारों को निभाने हेतु उसने ओढ़नी से पूरा चेहरा ढक लिया था इसलिए वह नाग के लपेटे में आ गई। वह नारीसुलभ संकोचवश बाबा का नाम नहीं ले पाई। वह एक ही स्थान पर खड़े रहकर नाग से संघर्ष करती रही। कुछ चरवाहों ने यह दृश्य देखा तो वे आशंकित हुए। उन्होंने कहा- 'मित्रो जरा देखें तो यह कौन है और क्या कर रही है ? 'जब जाकर उन्होंने देखा तो वे हैरान हो गए। उसने देखा कि एक भयानक काले नाग ने बाबा की मंग को लपेट रखा है। एक ने दौड़ते हुए जाकर बाबा से कहा – 'बाला तेरी मंग को एक नाग ने शिकंजे में फांस लिया है। उसे बचाना असम्भव है। 'इतना सुनना था कि बाबा ने क्रोध से भर कर कहा- 'मेरी मंग का कोई बाल बांका नहीं कर सकता। एक नाग तो क्या मैं अपनी मंग की खातिर पूरी नाग जाति से भी लड़ सकता हूँ। 'बाबा ने संस्कारबद्ध अपने मुहं पर कपड़ा लपेटा और घटनास्थल पर जा पहुंचे। उन्होंने नाग को ललकारा। जब नाग ने नहीं छोड़ा तो उन्होंने अपने लकड़ी काटने के अस्त्र (जिसे डोगरी या पंजाबी में तवर कहते हैं) से नाग का सिर काट दिया। कटे हुए नाग ने उछल कर बाबा को काट खाया। बाबा जी अपनी मंग की रक्षा हेतु वही पर शहीद हो गए। मिर्जा को बहुत दुःख हुआ वह वही बैठ कर बाबा जी की देह से लिपट कर रोने लगी। जब बुआ के भाईओं को पता चला तो वे दौड़े-दौड़े आए और बुआ को घर चलने के लिए कहने लगे। भाई कहने लगे – 'बाला से अभी तेरी मंगनी ही हुई थी। कोई विवाह नहीं हुआ था। बहन तू क्यों रो रही है! हम तेरी शादी कहीं और तय कर देंगे। 'इस पर चुप होते हुए दृढसंकल्प होकर बुआ ने कहा 'यह मेरे लिए शहीद हुए हैं। शादी के बारे में मैं सोच भी नहीं सकती। मैं अपने धर्म का पालन करते हुए इन्हीं के साथ शहीद हो जाऊँगी। 'यह सुन कर भाई बुआ को घसीटते हुए घर ले गए। बुआ को अन्दर धकेल कर दरवाजा बंद कर दिया गया। नारी शक्ति महान है। उसी नारी शक्ति स्वरूप दरवाज़े अपने आप खुल गये। बुआ शमशानघाट में हवा से बातें करती पहुँच गई। बुआ ने अपना दृढ संकल्प दोहराया - 'मैं अपने बाला जी के साथ सती हो रही हूँ। मुझे आज के बाद(नडग्याल Nadgyal)अनिवार्य रूप से पूजेंगे और (नाग्याल Nagyal) स्वेच्छा से। 'इतना कह कर बुआ ने जलती अग्नि में अपना दाह कर लिया। बाद में बाबा बाला शहीद जी ने अपनी और अपने भाई बाबा प्यारे शहीद की जगह बनाने का निर्देश अपने वंश को दिया। जिसे प्रसन्नता से बिरादरी ने माना। भारत-पाक विभाजन के बाद बाबा प्यारा व बाबा बाला शहीद व बुआ मिर्जा की देहरियाँ छम्ब के माड़ी स्थान पर बनाई गईं। इस प्रकार बुआ और बाबा बाला जी अमर हो गए। बुआ का सतीत्व एक आदर्श था। बाबा जी की शहादत केवल अपनी मंग के लिए न थी बल्कि नारी जाति का मान थी।

Jai Bua Mirza

बुंआ मिरजां का जन्म बुधवार 1793 ई० में हुआ। बुआ मिरजां के पिता जी का नाम धर्मचंद था और वह गांव मत्तेवाली(छंब्ब सैक्टर) के रहने वाले थे। उनकी माता जी का नाम मन्तों देवी था। उन दिनो वालविवाह की प्रथा थी तो बुआ मिरजां की मंगनी 'वाला नाम के बालक जिनके भाई जी का नाम प्यारा नगयाल Nagyal से की गई। जब बुआ मिरजां थोड़ी बड़ी हुई तो वह रोज अपने पिता जी को खाना देने खेत मे जाया करती थी। रास्ते में एक जंगल से हो कर जाना पड़ता था। एक दिन दोपहर का समय था बुआ खाना लेकर जा रही थी कि रास्ते में एक सांप ने बुआ जी की टांगों को झकड़ लिया और बुआ जी डर के मारे चीखने चिल्लाने लगी। संयोग से बालक 'वाला' भी उसी जंगल में लकड़ी काटने आया हुआ था। उसने चीखने की आवाज सुनी तो वहां बुआ जी के पास आ पहुँचा। उसके हाथ मे दराट था उसने उस से सांप की गर्दन काट दी और सांप की गर्दन 'वाला' के माथे से जा टकराई और वाला जी को डंस लिया और 'वाला' जी ने वहीं पर अपने प्राण त्याग दिये। बुआ जी डर के मारे वहीं बैठ कर रोने लगी। जब बुआ जी अपने पिता जी के पास नहीं पहुंची तो पिता जी ढुंढते हुए वहां बुआ जी के पास आ पहुंचे और उन्होंने देखा की यह तो वही लड़का है जिससे बुआ जी की मंगनी हुई है। तब पिता जी ने इस घटना की सुचना 'वाला' के प परिवार को दी। 'वाला' जी का संस्कार बुधवार को तय हुआ। बुआ जी संस्कार में जाने की जिद्ध करने लगी बुआ जी के बड़े भाई जिनका नाम 'काना' था उन्होने डांट कर कमरे में बंद कर दिया।

बुआ जी ने माता वैष्णों देवी से प्रार्थना कि और दरवाजा खुल गया। बुआ रोत्ती बिलखती संस्कार के स्थान की तरफ जा रही थी कि रास्तें में उन्हें खोखर विरादरी का एक बुजर्ग मिला जिन्हे कोढ़ हो गया था। उसने बुआ जी को रोकना चाहा और पुछा तूं कौन है। बुआ जी ने उन्हें बताया की वह अपने मंगतेर जिसने उनके लिये अपने प्राण दे दिये। नके साथ सती होने जा रही है। उसने प्रार्थना की तूं शक्ति है और मेरा कोढ़ ठीक करती जा। बुआ जी ने उस पर पानी फेंका और हाथ फेरा तो उसका कोढ़ ठीक हो गया। खोखर बुजुर्ग ने कहा देवी जब तक मेरा वंश चलेगा वह तेरी पूजा करेगा। जब बुआ जी शमशान पहुंची यहां 'वाला' जी का संस्कार होना था और बुआ जी 'वाला' जी के साथ सती हो गई। आज भी लोग बुआ के मन्दिर में चमड़ी रोग के लिए सुखन करते और चिलियां व मरूंडे चढ़ाते हैं। बुआ मिरजां का मंदिर गांव बुड़ेजाल सई खुर्द में है। यहां हर वर्ष दो बार मेल होती है और सारे वंशज बुआ जी के मंदिर में माथा टेकते हैं। बुआ मिरजां की मेल आषाड़ माह के नवचंद्र बुधवार और धरमी महीने के नवचंद्र बुधवार को होती है। बेटे की शादी का ब्यौर यहां पर चढ़ाया जाता है। जय बुआ जी दी

=Note= Apart from Baba Bala, Baba Pyara had three more brothers. Baba Pyara did not marry and Baba Bala ji was also only engaged. This, Riverier Nagyal are the descendants of the other three brothers.


Nagyal : - Nagyal / Nangyal / Nagyala / NAGIAL all are same, only difference is in pronunciation. In Jammu Nagyal is called NAGRA because Nagyal and Nagra are same. There is no difference, all are Hindu and Sikh, there is no difference between both, Nagyals do not marry in their gotra. Culture and language is same, all follow tradition of Kuldevta, and all are Jats. No Hindu is Rajput, and Hindu and Sikh marry each other, all people who write Nagyal. All are from Mirpur, Chhamb, Bhimber, they came and settled in Jammu, Punjab after 1947. When people of Ambala started writing Nagra. Then Nagyals of Jammu also started writing Nagra, so Nagyals of Jammu write Nagra after their name, like Nagyals write Nagra after their name, similarly Jats in Jammu have other gotras like:- 1 Dour - Dhillon writes

2 Thathaal - Randhawa writes

3 Pajal - Bajwa writes

4 Chedi - Chahal writes

5 Nadgyal - Nagokay writes

6 Saryal

7 Samotra

8 Virk

9 Bhatti

10 Jaal - Johal writes

11 Sandhu

12 Assla

13 Heer

14 Brar

15 Gill

16 Toor

17 Chouhan

18 Laalyaal/Lalya

19 Nathyal

etc, all are Jatts and are from places like Mirpur, Chhamb, Bhimber etc. After the partition of 1947, 1965, 1971, they are now living in the border areas of Jammu, Kathua, Samba, Akhnoor, Nowshera

Note:- Hindu Nagyal Jatts live in Jammu Samba, Kathua, Rajouri districts. All these Nagyals have come from places like Mirpur, Bhimber, Chammb etc. and after partition they are living in Jammu, Punjab, Haryana

Distribution in Jammu And Kashmir

JAMMU:- R.S.Pura,Malayali,Baja chak, Sai, Hansa, Trawa camp, Sarore Camp,Nanowal,Chak Majra,Seer Bala,Diwangarh, Sai kalan, Ration etc many more villages settled.

<Baba Shallo Shaheed Dev Sathan:- Rathan(Ratian)>

Samba Districts

Nanga, Barota, Kungwala Vijaypur,Ramgarh,Chak salaria, karalia Rangoor camp,Palouta, Bangla,Kamour, Aabtal, Nandpur, etc many more villages settled.

Kail Badi:- Riviere nagyal kuldevta Dev Sathan

District Kathua Villages

District Akhnoor Villages

Distribution of Pakistan

Presently, the Nagyal are found in Jhelum, Mirpur and Rawalpindi districts, with those of Rawalpindi generally being acknowledged to be of Rajput status, while those of Jhelum and Mirpur considering themselves as Jats. Starting off with the Islamabad Capital Territory, the Nagyal are found in Hardogher and Mohra Nagyal villages. In neighbouring Rawalpindi District, they all found in all the tehsils bar Murree.

Rawalpindi District

In Kahuta Tehsil in Paike village, and in Rawalpindi Tehsil, their villages are Banda Nagyal, Mohra Nagyal and Maira Nagyal.

In Kallar Syedan tehsil

they are found in Basanta, Bhala Khar, Choha Khalsa, Dhamali (Chak Mirza), Doberan Kalan (in Dhok Allah Rakha), Jocha Mamdot, Nagyal and Nala Musalmanan.

Gujar Khan Tehsil

There is a whole cluster of villages in Gujar Khan Tehsil that are entirely inhabited by the Nagyal, or they form an important element, and these include: Bagwal, Bhatta, Bhai Khan, Chak Begwal, Cheena, Dhok Baba Kali Shaheed, Dhok Badhal, Nagial Umer, Daultala, Dera Syedan, Dhok Nagyal (near Gharmala), Gagian, Gharmala, Ghick Badhal, Hoshang, Katyam (near Ratala), Karumb Kaswal, Karyali, Kaniat Khalil, Kasran, Kayal Dera, Miani Borgi, Missa Kaswal, Nata Gujarmal, Mohra Nagyal, Qutbal, Sasral, Nagial Pehl, Nagial Sohal, Saib, Mohra Jundi, Dhok Nagyal in Bewal and Nagial Pahlwan.

Nagyal Villages in Jhelum District

In Jhelum and Dina Tehsils, the Nagyal are found in the villages of Chautala, Dhok Kanyal, Dhok Masyal, Dhok Nagyal, Gora Nagyal, Nagyal, and Sohan.

In Pind Dadan Khan tehsil

there are five Nagyal villages in the Chamkon Valley, namely Chanadh, Muradanwali, Khairr, Wagh and Nagial.

In Sohawa Tehsil

they are found in the following villages: Bhit Sher Ali, Bulbul Kalan, Bulbul Khurd, Dhamak, Dhok Nagial, Dohalah, Domeli, Gharyali, Jandot, Kaido, Kandyari, Labana Hail, Langar Bhakral, Lehri, Mangot, Pail Binah Khan and Pothi.

Nagyal Villages in Chakwal District

Chakwal District, their villages are all in Chakwal Tehsil and include Ghazial, Mohri, and Potha. There is one Nagyal village near Sarai Alamgir in Gujrat District, called Mandi Majuwa.

Nagyal of Azad Kashmir

In Azad Kashmir, they are found mainly in Mirpur District, in the following villages: Amb, Bassar, Chak Sawari, Nagyal, Onah and Rattan.

Notable persons

References

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