Naina Devi

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Naina Devi Temple, Himachal Pradesh

Naina Devi (नैना देवी) is a town and a municipal council in Bilaspur district in the Indian state of Himachal Pradesh. The city is famous for the historic temple of Naina Devi. Naina Devi Temple is one of the fifty-one Shakti Peeths in India. Situated 60 km from Bilaspur district in Himachal Pradesh, Naina Devi Temple is one of the highly venerated Shakti Temples in India.

Legend

According to legend, Lord Shiva's consort Sati once burnt herself alive in Yagna to avenge an insult to Lord Shiva. The distraught Shiva picked her corpse and gyrated his horrified dance. Then Lord Vishnu unleashed his Chakra and cut the Sati's body into fifty one pieces to save the earth from Shiva's wrath. All the fifty one places - where parts of Sati's body fell, became known as Shakti Peeths It is believed that Sati's eyes fell at the place where this temple is situated. Therefore, this temple is called Naina Devi.The word Naina is synonymous with Sati's eyes. Since then, devotees started visiting this temple.

History

According to Bhim Singh Dahiya the goddess, Nana/Nina/Naina/Nannai, is at least 4,000 years old and originally was a Babylonian goddess. Her statue was installed in a temple at Uruk (the Uruga desha of the Puranas ?). In 2287 B.C. she was carried off to Susa, after the defeat of Babylonia, 1,635 years later, i.e. 652 B.C. Asur Banipal sacked Susa and took away the statue of the goddess back to Uruk, and installed her in her own temple. She came to India with the Jats and is now enshrined in a temple in Himachal Pradesh. Here too, her name remains as Naina Devi (Goddess). [1]

दलीपसिंह अहलावत

दलीपसिंह अहलावत[2] लिखते हैं - ......कश्यपगोत्री जाटों की बड़ी संख्या है। ये असुर भी कश्यपगोत्री जाट हैं। इनका शासन बेबीलोनिया (लघु एशिया) पर रहा है। लगभग 4000 वर्ष पुरानी देवी नेना/ नीना /नैना/ नेननई, आरम्भ में बेबीलोनिया की देवी थी। 2287 ई० पू० में उसकी बनी हुई मूर्ति उरुक (उरुगदेश) के मन्दिर में स्थापित की गई थी। बेबीलोनिया को हराकर इस देवी की मूर्ति को सूसा (ईरान के दक्षिण-पश्चिम में) ले जाया गया। 1635 वर्ष बाद यानी 652 ई० पू० में असुर बेनीपाल (जाट सम्राट्) ने लूसा को लूट लिया तथा इस देवी की मूर्ति को वापिस उरुक ले आया और उसी के मन्दिर में स्थापित कर दिया।

जब जाट लोग वहां से अपने देश भारत में आये तब उस देवी की मूर्ति को अपने साथ यहां ले आए और वह अब हिमाचल प्रदेश के जिला विलासपुर के एक मन्दिर में नैना देवी के ही नाम से स्थापित है।

सम्राट् कनिष्क कुषाण जाट के छोटे पुत्र हुविष्क का शासन सन् 162 ई० से 182 ई० तक रहा। उसके एक सिक्के पर शेर पर सवार इस नैना देवी की मूर्ति है। (op cit. plates 1-6, p. 31)। (जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज)।

नैनीताल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...नैनीताल (AS, p.508): स्कंद पुराण में नैनीताल का नाम त्रिऋषिसरोवर मिलता है जिसका अत्रि, पुलह और पुलस्त्य ऋषियों से संबंध बताया गया है. इस पौराणिक किंवदंती के अनुसार इन ऋषियों ने यहां सरोवर के तट पर तप किया था. नैनीताल का नाम इसी सरोवर या नैनी झील के तट पर स्थित नैना देवी के प्राचीन मंदिर के कारण हुआ है. 1841 ई. में दो अंग्रेज शिकारियों ने इस स्थान की खोज की थी. प्रकृति की यह मनोरम स्थली गागर की पहाड़ियों से घिरी है जो पूर्व से पश्चिम की ओर फैली हुई हैं. उत्तर की ओर चीना-शिखर (ऊंचाई समुद्र तल से 8568 फुट), पूर्व की ओर आलमा तथा शेर का दंदा नामक शिखर, पश्चिम में एक ढलवां 8000 फुट ऊंची पहाड़ी और दक्षिण में आयारपथ नामक 7800 फुट ऊंचा गिरीशृंग--ये पहाड़ियां नैनीताल की चतुर्दिक सीमा की प्रहरी हैं. स्कंद पुराण की उपर्युक्त कथा के अनुसार तीनों देवऋषि घूमते हुए यहां पहुंचे थे किंतु उन्हें इस स्थान पर बसने में, पानी न होने के कारण कठिनाई जान पड़ी. अतः उन्होंने वहां एक बड़ा सरोवर खुद वाया जो फौरन ही जल पूर्ण हो गया. इस कथा से यह सूचित होता है कि संभवत: नैनीताल की झील कृत्रिम रूप से बनाई गई थी. इस कथा से [p.509] यह भी ज्ञात होता है कि नैनीताल के स्थान का प्राचीन काल से ही भारतीयों को पता था. सरोवर के किनारे ही नैना देवी का प्राचीन मंदिर था, जो संभवत: इस क्षेत्र के पहाड़ी जाति के लोगों की अधिष्ठात्री देवी थी. उत्तरी भारत के मूल निवासियों की तरह नैनीताल के मूलनिवासी भी देवी के पुजारी थे. नैना देवी कल्याण रूपा देवी मानी जाती है इसके विपरीत यहां के लोक-विश्वास के अनुसार नैनीताल की दूसरी देवी चंडी अथवा पाषाण देवी का रूप अमांगलिक समझा जाता है. नैनीताल की झील में प्रतिवर्ष होने वाली घटनाओं का कारण इस देवी का प्रकोप माना जाता है

External links

See also

References

  1. Jats the Ancient Rulers (A clan study), Book by Bhim Singh Dahiya, IRS, First Edition 1980, Publisher: Sterling Publishers Pvt Ltd, AB/9 Safdarjang Enclave, New Delhi-110064, p.199
  2. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV (Page 413-414)
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.508-509

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