Kvilan

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(Redirected from Nelkanda)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Map of Kerala

Kvilana (क्विलन) is an ancient coastal place in Kerala mentioned in Mahabharata. It was an important trade centre for trade with the western countries. .

Origin

Variants

History

Kollam

Kollam: Kollam (Nelcynda) shares fame with Kodungallur (Muziris) as an ancient sea port on the Malabar coast of India from early centuries of the Christian era. Kollam had a sustained commercial reputation from the days of the Phoenicians and the Romans. Pliny (23-79 AD) mentions about Greek ships anchored at Musiris and Nelkanda. Musiris is identified with Kodungallur (then ruled by the Chera kingdom) and Nelkanda (Nelcyndis) with Quilon or Kollam (then under the Pandyan rule). The inland sea port(kore-ke-ni) was also called Tyndis. Kollam was the chief port of the Pandyas on the West Coast and was connected with Korkai (Kayal) port on the East Coast and also through land route over the Western Ghats. Spices, pearls, diamonds and silk were exported to Egypt and Rome from these two ports on the South Western coast of India. Pearls and diamonds came from Ceylon and the South eastern coast of India, then known as the Pandyan kingdom.[1][2] Yule identifies Nelcynda as Kallada. That would also satisfy the mention "This place also is situated on a river, about one hundred and twenty stadia from the sea...."[3]Yule writes

That Nelkynda cannot have been far from this is clear from the vicinity of the Red Hill of the Periplus. There can be little doubt that this is the bar of red laterite which, a short distance south of Quilon, cuts short the backwater navigation, and is thence called the Warkalle Barrier. It forms abrupt cliffs on the sea, without beach, and these cliffs are still known to seamen as the Red Cliffs. This is the only thing like a sea cliff from Mount D'Elv to Cape Comorin""
— Notes on the Oldest Records of the Sea-route to China from Western Asia

कोलम

विजयेन्द्र कुमार माथुर[4] ने लेख किया है ...कोलम (AS, p.237): क्विलन (केरल) का प्राचीन नाम कोलम . यह प्राचीन समय में इस प्रदेश का प्रसिद्ध बंदरगाह था. (दे. क्विलन)

क्विलन

विजयेन्द्र कुमार माथुर[5] ने लेख किया है ...क्विलन (केरल) (AS, p.192) प्राचीन नाम कोलम. यह प्राचीन नगर और बंदरगाह है. यह पुराने जमाने में दक्षिण भारत के इस क्षेत्र और समुद्र पार से पश्चिमी देशों के बीच होने वाले व्यापार का प्रमुख केंद्र था.

विजयेन्द्र कुमार माथुर[6] ने लेख किया है ...क्विलन (केरल) (AS, p.249) क्विलन परिचय: क्विलन केरल के प्राचीन नगरों में से एक है। यह त्रिवेंद्रम से 44 मील (लगभग 70.4 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। बहुत प्राचीन समय में ही इस नगर का व्यापार पश्चिमी देशों के साथ प्रारंभ हो गया था, जिनमें फ़िनीशिया, ईरान, अरब, यूनान, रोम और चीन आदि मुख्य हैं। 'तांग' राज्य काल में चीनियों ने क्विलन में अनेक व्यापारिक बस्तियाँ स्थापित की थीं। क्विलन का एक प्राचीन नाम 'कोलम' भी था। सम्भवत: कोलम के प्राचीन नाम 'कोलगिरि', 'कोलाचल' और 'कोल्लक' आदि हैं, जिनका उल्लेख महाभारत, सभापर्व में हुआ है।

कोलगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ... कोलगिरि (AS, p.237) का उल्लेख महाभारत, सभापर्व में हुआ है- 'कुत्स्नं कोलगिरि चैव सुरभीपत्तनं तथा, द्वीपं ताम्राह्वयं चैव पर्वतं रामकं तथा' (महाभारत, सभापर्व 31, 68.) पाण्डव सहदेव ने अपनी दिग्विजय यात्रा में इस स्थान पर विजय प्राप्त की थी। श्रीमद्भागवत 5, 19, 16 में कोल्लक नामक एक पर्वत का उल्लेख है। कोलगिरि संभवत: भारत के पश्चिम समुद्र तट के निकट स्थित कोल्लक है। इस नाम का नगर भी शायद यहाँ स्थित था और कोलाचल और कोलगिरि शायद एक ही स्थान के पर्यायवाची नाम थे।

कोलाहलगिरि

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ... कोलाहलगिरि (AS, p.238) मालवा और बुंदेलखंड को अलग करने वाली पर्वतमाला का नाम है, जो चंदेरी के पास स्थित है।[9] विष्णुपुराण के अनुसार कोलाहलगिरि एक पर्वत का नाम है- 'सापि द्वितीय संप्राप्ते वीक्ष्य दिव्येन चक्षुषा, ज्ञात्वा श्रृगालं तंद्रष्टुं ययौ कोलाहलं गिरिम्' (विष्णुपुराण 3, 18, 72.)

कोलाहलगिरि का उपर्युक्त उल्लेख एक आख्यान के प्रसंग में है। वायुपुराण 1, 45 में भी कोलाहलगिरि का उल्लेख किया गया है। यह 'कोलाचल' या 'कोलगिरि' का भी रूपांतरित नाम हो सकता है। श्री नं. ला. डे के अनुसार इसका अभिज्ञान ब्रह्मयोनि पहाड़ी, गया (बिहार) से किया गया है।

कोलाचल

विजयेन्द्र कुमार माथुर[10] ने लेख किया है ... कोलाचल (केरल) (AS, p.237): प्रथम-द्वितीय सदी ई. में प्रसिद्ध व्यापारिक स्थान तथा पश्चिम समुद्र तट [पृ.238]: पर स्थित बंदरगाह है. इस स्थान का नाम कोलाचल या कोलगिरी पर्वत के नाम पर हुआ होगा. 18 वीं सदी में हालैंड निवासियों ने यहाँ व्यापारिक कोठियां बनाई थीं. 1741 ई. में उन्हें तिरुवांकुर नरेश मार्तंड वर्मा ने पराजित कर निकाल दिया था. इस घटना के संस्मारक के रूप में एक प्रस्तर स्तंभ यहाँ अवस्थित है. कालिदास के काव्यों के प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ शायद इसी कोलाचल के निवासी थे. ( देखें कोलम,क्विलन)

कोल्लक

विजयेन्द्र कुमार माथुर[11] ने लेख किया है ... कोल्लक (AS, p.239): श्रीमद्भागवत 5, 19, 16 में कोल्लक नामक एक पर्वत का उल्लेख है--'मंगलप्रस्थो मैनाकस्रिकूट ऋषभ: कूटक: कोल्लक: सह्यो देवगिरि:'-- कोल्लक सह्याद्रि की ही किसी पर्वत-श्रेणी का नाम जान पड़ता है. संभवत: यह कोलगिरी का ही रूपांतरित नाम है जिसका उल्लेख महाभारत 2,31,68 में है. (दे. [[Kolagiri|कोलगिरि)

In Mahabharata

Kolla-giri (कॊल्ल गिरि) Mahabharata (II.28.45),

Sabha Parva, Mahabharata/Book II Chapter 28 mentions Sahadeva's march towards south: kings and tribes defeated. Kolla-giri (कॊल्ल गिरि) is mentioned in Mahabharata (II.28.45). [12]....The Kuru warrior then vanquished and brought under his subjection numberless kings of the Mlechchha tribe living on the sea coast, and the Nishadas and the cannibals and even the Karnapravarnas, and those tribes also called the Kalamukhas who were a cross between human beings and Rakshasas, and the whole of the Cole mountains (Kolla-giri), and also Murachipattana (Surabhipattana), and the island called the Copper island (Tamradvipa), and the mountain called Ramaka.

External links

References

  1. Kollam, Indian Manual
  2. "Kollam, On South India".
  3. R. A. Donkin Beyond price: pearls and pearl-fishing : origins to the Age of Discoveries. American Philosophical Society, 1998, p. 100.
  4. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.237
  5. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.192
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.249
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.237
  8. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.238
  9. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 556, परिशिष्ट 'क' |
  10. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.237-238
  11. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.239
  12. ये च कालमुखा नाम नरा राक्षसयॊनयः, कृत्स्नं कॊल्ल गिरिं चैव मुरची पत्तनं तदा (II.28.45)