Sabuktigin

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Abu Mansur Sabuktigin (b.942,r.977–997) or Nasiru-d din Subuktigin, also spelled as Sabuktagin, Subaktegin , Sabuktakin, Sebüktegin and Sebük Tigin, also known as Nasir al-din Sabuktigin,[1] was the founder of the Ghaznavid dynasty, ruling from 977 to 997. His son Mahmud of Ghazni (r. 997-1030) was the most prominent ruler of the Ghaznavid Empire.

Life of Sabuktigin

Sabuktigin lived as a slave during his youth and later married the daughter of his master Alptigin, the man who seized the region of Ghazna (modern Ghazni Province in Afghanistan) in a political fallout for the throne of the Samanids of Bukhara.[2] Although the latter and Sabuktigin still recognized Samanid authority, and it was not until the reign of Sabuktigin's son Mahmud that the rulers of Ghazni became independent.

When his father-in-law Alptigin died, Sebuktigin became the new ruler and expanded the kingdom after defeating Jayapala to cover the territory as far as the Neelum River in Kashmir and the Indus River in what is now Pakistan.

Title of Nāsir ud-Dīn

In 994 he was involved in aiding Nuh II of the Samanids against internal uprisings and defeated the rebels at Balkh and then at Nishapur, thereby earning for himself the title of Nāsir ud-Dīn ("Hero of the Faith") and for his son Mahmud the title of Governor of Khorasan and Saif ud-Dawlah ("Sword of the State").[3]

Mahmud of Ghazni

His son Mahmud of Ghazni was the most prominent ruler of the Ghaznavid Empire. In the name of Islam, he conquered the eastern Iranian lands and the northwestern Indian subcontinent from 997 to his death in 1030.

हिन्दी में परिचय

सुबुक्तगीन (977-997) ग़ज़नी की गद्दी पर अलप्तगीन की मृत्यु के बाद बैठा था। प्रारंभ में वह एक ग़ुलाम था, जिसे अलप्तगीन ने ख़रीद लिया था। अपने ग़ुलाम की प्रतिभा से प्रभावित होकर अलप्तगीन ने उसे अपना दामाद बना लिया था और 'अमीर-उल-उमरा' की उपाधि से उसे सम्मानित किया।

भारत पर आक्रमण

सुबुक्तगीन एक योग्य तथा महत्त्वाकांक्षी शासक सिद्ध हुआ। उसने अपनी शक्ति को बढ़ाया और साथ ही राज्य का विस्तार करना भी शुरू कर दिया। उसकी बढ़ती हुई शक्ति को कमज़ोर बना देने के लिए पंजाब के निकट हिन्दुशाही वंश राज्य के शासक जयपाल ने एक योजना बनाई और सुबुक्तगीन के राज्य पर आक्रमण कर दिया। किन्तु इस युद्ध में जयपाल की सेना सुबुक्तगीन की सेना से पराजित हो गयी। हिन्दू शासक जयपाल को पराजय के कारण विवश होकर सुबुक्तगीन से एक अपमानजनक संधि करनी पड़ी। पहले इस अपमानजनक संधि को स्वीकार करने के लिए जयपाल तैयार नहीं था, किन्तु जब सुबुक्तगीन ने भारत में उसके राज्य पर आक्रमण कर उसे दूसरी बार पराजित किया, तब उसे सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर मुस्लिम शासक के समक्ष झुकने को विवश होना पड़ा। सुबुक्तगीन ने पेशावर में अपनी एक सेना रख दी, जो उसके विजित प्रदेशों की देखभाल करने लगी। 991-992 में काफ़ी बड़ी मात्रा में धन लेकर सुबुक्तगीन ग़ज़नी वापस लौट गया।

मृत्यु

997 में सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गयी। उसके निधन के बाद उसका पुत्र महमूद ग़ज़नवी ग़ज़नी की गद्दी पर बैठा, जिसने भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। उसने भारत पर लगातार 17 बार आक्रमण किया और बड़ी मात्रा में लूट-पाट की।[4]

External links

References

  1. Ferishta, History of the Rise of Mohammedan Power in India, Volume 1: Section 15. Packard Humanities Institute.
  2. Encyclopædia Britannica, "Ghaznavid Dynasty"
  3. The Ghaznavids, C.E. Bosworth, Age of Achievement: A.D. 750 to the End of the Fifteenth Century, Vol. 4, ed. M. S. Asimov, C. E. Bosworth, (UNESCO, 1998), 98.
  4. सुबुक्तगीन - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर