Siddhpur

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Sidhpur on District map of Patan

Siddhpur (सिद्धपुर) , also spelled Sidhpur is a town and taluka headquarter in Patan district in the Indian state of Gujarat. It is a historical place located on the bank of the endorheic Saraswati River,[1] which is probably a remaining of the ancient Sarasvati River.

Origin

Variants

History

Siddhpur was historically known as Sristhal,[2] literally "a pious place".

The bard sings of it,[3]

Tirath bhumipavan Siddhakshetra subhasar,
Nirmal nir vahe Sarasvati sada mokshko dwar, ... —
"A Tirtha, a place to make holy, is the good Siddha Kshetra,
Where flows Sarasvati's pure stream — ever beatitude's door.
A city three worlds to purify, by Siddhs ever worshipped,
Gods, Rishis, and men cherish the desire to live there.
And there dwell devas unnumbered, as a tirtha regarding it, —
Of Kasi, Gaya, Godavari, and all other tirthas, the best ;
Where Kardam and Dehuti lived, and Kapila was born.
Here is Bindusarovar's pure fount, and Matrugaya;
Applied to the bodies of men degraded and fallen, it washes their myriads of sins.
Here is Prachi Mahadev, whose renown by Veda and Purana is sung:
Of all Tirthas, the essence — it is named Kapilashram."

In tenth century (943 AD), Mularaja, the founder of Chaulukya dynasty, started constructing the Rudra Mahalaya Temple. On completion of the temple, around 1140 AD, Jayasimha Siddharaja consecrated it and established the town as his capital. He changed its name to Siddhpur, literally Siddhraj's town. The temple was dismantled by an army under Almas Beg (Ulugh Khan) and Nusrat Khan sent by Alauddin Khalji in 1298-99.[4]

During the Gujarat Sultanate, the town was under the rule of local dynasty ruling from Palanpur. In the 15th century, the town was brought under the Mughal rule by Akbar. Under the Mughal rule the Hindu heritage of the town deteriorated further and the Rudramahalaya temple fell into ruins.

Asaita Thakar, traditionally credited for the origin of traditional folk theatre Bhavai, in 14th century, lived in Siddhpur.[5]

श्रीस्थल

श्रीस्थल (AS, p.925) - वर्तमान 'सिद्धपुर' (गुजरात राज्य) का प्राचीन नाम। इसे 'धर्मारण्य' भी कहते हैं।[6]

सिद्धपुर

विजयेन्द्र कुमार माथुर[7] ने लेख किया है ...1. सिद्धपुर (AS, p.965) जिला पाटण गुजरात में स्थित इस नगर की स्थापना पाटन गुजरात के प्रसिद्ध राजा सिद्धराज ने 12 वीं सदी ई. में की थी. नगर सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ था. यह नदी आबू पहाड़ से निकलकर कच्छ की खाड़ी में गिरती है. किंतु मार्ग में अनेक स्थानों पर लुप्त हो जाती है. किंवदंती है कि कौरवों के विनाश के पश्चात प्रायश्चित रूप में भीम ने इसी स्थान पर सरस्वती [p.966]: नदी में स्नान किया था. इस स्थान का प्राचीन नाम श्रीस्थल अथवा धर्मारण्य कहा जाता है (दे.धर्मारण्य). पाटण-नरेश सिद्धराज ने इसके प्राचीन नाम को परिवर्तन करके सिद्धपुर कर दिया था. इस नगर में गुर्जरेश्वर मूलराज सोलंकी और उसके पुत्र सिद्धराज जयसिंह द्वारा निर्मित विशाल शिव मंदिर था जिसे रूद्रमहालय कहते थे. यह सरस्वती तट पर स्थित था. इसे अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण के समय तोड़ दिया था और अब केवल इसके खंडहर दिखाई पड़ते हैं. मूल मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनवाई गई थी. हिंदू काल के कई अन्य मंदिर भी यहां स्थित हैं. सिद्धराज से एक मील के लगभग बिंदुसर नामक सरोवर है जहां किवदंती के अनुसार स्नान करने से कपिल की माता देवहूति का शरीर सुंदर हो गया था. यह महाभारत में वर्णित विनशन नामक तीर्थ हो सकता है. हाल ही में पूर्व-सोलंकी कालीन (10वीं सदी ई.) मंदिर के अवशेष यहां से उत्खनन द्वारा प्राप्त हुए हैं. इसका श्रेय निर्मल कुमार बोस तथा अमृतपांड्या को है. सिद्धराज को मातृ-श्राद्ध का तीर्थ माना जाता है.

2. सिद्धपुर (AS, p.966) सिद्धपुर मैसूर, चित्रदुर्ग ज़िला, कर्नाटक में स्थित है। इस स्थान पर अशोक का लघु शिलालेख एक चट्टान पर उत्कीर्ण है। कुछ विद्वानों का मत है कि इस अभिलेख में वर्णित 'इसिला' नामक नगरी जो इस प्रदेश की मौर्यकालीन राजधानी थी, सिद्धपुर नगर के स्थान पर ही रही होगी।

धर्मारण्य

विजयेन्द्र कुमार माथुर[8] ने लेख किया है ...धर्मारण्य (AS, p.464) महाभारत, वनपर्व 82, 46 के अनुसार धर्मारण्य को एक प्रमुख तीर्थ स्थान बताया गया है- 'धर्मारण्यं हि तन् पुण्यमाद्यं च भरतर्पभ, यत्र प्रविष्टमात्रो वै सर्वपापै: प्रमुच्यते'। धर्मारण्य गुजरात के प्राचीन नगर सिद्धपुर के परिवर्ती क्षेत्र (श्रीस्थल) का नाम है। प्राचीन समय में धर्मारण्य प्रदेश सरस्वती नदी द्वारा सिंचित था। महाभारत, वनपर्व 82, 45 में धर्मारण्य में कण्वाश्रम की स्थिति बताई गयी है- 'कण्वाश्रम ततो गच्छेच्छ्रीजुष्ट लोक पूजितम्'। उपर्युक्त उल्लेख में धर्मारण्य को श्रीजुष्टम् प्रदेश कहा गया है, जिससे इसके नाम 'श्रीस्थल' की पुष्टि होती है। (दे.सिद्धपुर, श्रीस्थल)

External links

References

  1. "Saraswati River". guj-nwrws.gujarat.gov.in, Government of Gujarat.
  2. Burgess; Murray (1874). "The Rudra Mala at Siddhpur". Photographs of Architecture and Scenery in Gujarat and Rajputana. Bourne and Shepherd. p. 19.
  3. Burgess; Murray (1874). "The Rudra Mala at Siddhpur". Photographs of Architecture and Scenery in Gujarat and Rajputana. Bourne and Shepherd. p. 19.
  4. Burgess; Murray (1874). "The Rudra Mala at Siddhpur". Photographs of Architecture and Scenery in Gujarat and Rajputana. Bourne and Shepherd. p. 19.
  5. Amaresh Datta (1987). Encyclopaedia of Indian Literature: A-Devo. Sahitya Akademi. p. 236. ISBN 978-81-260-1803-1.
  6. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.925
  7. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.965-966
  8. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.464