Slav

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(Redirected from Sláv)
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Slav (स्लाव) are the largest European ethnolinguistic group.[1] They speak the various Slavic languages, belonging to the larger Balto-Slavic branch of the Indo-European languages. The Slavs have been identified with Indian Sikarvar clan of Jats. [2][3][4]

Variants

Ethnonym

The oldest mention of the Slavic ethnonym is the 6th century AD Procopius, writing in Byzantine Greek, using various forms such as Sklaboi (Σκλάβοι), Sklabēnoi (Σκλαβηνοί), Sklauenoi (Σκλαυηνοί), Sthlabenoi (Σθλαβηνοί), or Sklabinoi (Σκλαβῖνοι),[5] while his contemporary Jordanes refers to the Sclaveni in Latin.[6]The oldest documents written in Old Church Slavonic, dating from the 9th century, attest the autonym as Slověne (Словѣне). These forms point back to a Slavic autonym which can be reconstructed in Proto-Slavic as *Slověninъ, plural Slověne.

The reconstructed autonym *Slověninъ is usually considered a derivation from slovo ("word"), originally denoting "people who speak (the same language)", i.e. people who understand each other, in contrast to the Slavic word denoting German people, namely *němьcь, meaning "silent, mute people" (from Slavic *němъ "mute, mumbling"). The word slovo ("word") and the related slava ("glory, fame") and slukh ("hearing") originate from the Proto-Indo-European root *ḱlew- ("be spoken of, glory"), cognate with Ancient Greek κλέος (kléos "fame"), as in the name Pericles, Latin clueo ("be called"), and English loud.

In Medieval and Early Modern sources written in Latin, Slavs are most commonly referred to as Sclaveni, or in shortened version Sclavi.[7]

Distribution

Slavs are geographically distributed throughout northern Eurasia, mainly inhabiting Central and Eastern Europe, and the Balkans to the west; and Siberia to the east. A large Slavic minority is also scattered across the Baltic states and Central Asia,[8][9] while a substantial Slavic diaspora is found throughout the Americas, as a result of immigration.[10]

Present-day Slavs are classified into East Slavs (chiefly Belarusians, Russians, Rusyns, and Ukrainians), West Slavs (chiefly Czechs, Kashubs, Poles, Slovaks, Silesians and Sorbs) and South Slavs (chiefly Bosniaks, Bulgarians, Croats, Macedonians, Montenegrins, Serbs and Slovenes).[11]

Religion

The vast majority of Slavs are traditionally Christians. However, modern Slavic nations and ethnic groups are considerably diverse both genetically and culturally, and relations between them – even within the individual groups – range from "ethnic solidarity to mutual feelings of hostility".[12]

Jat History

Bhim Singh Dahiya[13] provides Clan Identification Chart: Slav is identified with Indian Sikarvar.

Sl West Asian/Iranian Greek Chinese Central Asian Indian Present name
1 2 3 4 5 6
140. Sklav/Slav Sacarauli/Sacaraucae - - Sakarvaka Sagarvar/Sikarvar.

Bhim Singh Dahiya[14] writes....Antal/Benhwal/Sikarwar : The Russian "Antas" are the same as the Indian Antals and the Russian "Ven" seems to be the same as the Indian Benhwal/Venwal. Even the Russian word, Slav, which is the name of a major population of Russia is a derivative from Sakalav which is Sakaravak of the Indian Puranas and the Sakawar/Sikarwar of Indian Jats.169 The love of Central Asian people for 'L' as against 'R' is well- known.

To conclude this section on identity of the Indian, the Central Asian and the European Jats, I must refer to the excavation work carried out in Crimea and other western parts of Soviet Russia. In the excavations at Tovsta (in Ukraine) in 1971; many articles of the Sakas were unearthed. One of the articles was gold pectoral


169. See Madhya Asia Ka Itihas, Vol. II, p. 563,


[p.62]: weighing 2½ pounds. On this pectoral there were figures of 44 cows and mares. In the centre there were two Sakas, with matted hair and full beards-exactly like the present-day Sikh Jats of Punjab. A gold drinking vessel of fourth century, B.C. and another drinking cup were also found at Solokha in Ukraine. It depicted a Saka hunter on horseback, killing a lion with his spear. A gold - comb was also found. The heavy necklace of solid gold or silver, which the Sakas were very fond of, are exactly the same as the present Hansla/Kantha of the Indian Jats which is even now worn in the countryside. The earrings of the males called "Murki" are stil1 current in the Indian Jats in the Rajasthan area, although these are now on the wayout.

Therefore, we can say with full confidence that the Indian Jats, the Russian: Slavs and many north European people belong to the same Jat race. The following quotation is given from R. Sankrityayana is worth noting: "The ancient Sakas have reappeared in the form of Russian slavs and are present even today. The western Sakas, after migrating from Sakadvipa, entered many countries and were absorbed in India as the Saka Brahmins, Rajputs, Jats, Gujjars etc., of the Hindus. The close similarity of Sanskrit - with the Russian language will be clear from a look at their history. This is because the Russians are the descendants of the same Sakas, whose brothers, the Aryans, settled in India and Iran in ancient times. Their mutual contracts were not broken. On the 'other hand, after a lapse of centuries, a large number of Sakas again came to India" 170


170. Madhya Asia Ka Itihas, Vol. II, p. 565. (Translated from the original in Hindi).

Bhim Singh Dahiya[15] writes.... 67. Sikarvar/Sagarwar/Sakarwar - They are the same as Sakaravakas of the Puranas. In Mathura, they call themselves Sagarvar which is the same. They are called Sacaravcae by the Greeks and this name is the same as the Puranic name. In about 100 B.C. the Sakarwars began to play an important part in the politics of Persia.

जाट इतिहास

दलीप सिंह अहलावत[16] लिखते हैं कि....रूसी लोगों की अनेक जातियों के नाम भारतीय जाटों से मिलते हैं जैसे रूस के आंतस (Antas) भारतीय आंतल (Antals) तथा रूस के वैन (Ven), भारतीय बैनीवाल-वैन (Benhwal-Venwal) आदि। रूस की बड़ी आबादी के लोग स्लाव (Sláv) कहलाते हैं। यह स्लाव शब्द


1. जाट्स दी ऐनशन्ट् रूलर्ज, पृ० 2, 26, 27, 302 लेखक बी० एस० दहिया।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-346


सकलाव से निकला है जो कि भारतीय पुराणों में सकरवाक लिखा है और भारतीय जाटों का गोत्र सकरवार/सिकरवार है (मध्य एशिया का इतिहास, हिन्दी खण्ड 2, पृ० 563), लेखक राहुल सांकृत्यायन1। सिकरवार, शक जाट थे जिनका मध्य एशिया में सोगदियाना प्रदेश पर शासन छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में था तथा जिनके राज्य में बुखारा, समरकन्द, ताशकन्द आदि नगर थे। (American Journal of Semetic Languages and Literature, 1940, P. 354)2

भारतीय, मध्यएशिया तथा यूरोप के जाटों की पहिचान एवं समानता के लिए क्रिमिया (Crimea) एवं पश्चिमी रूस के अन्य स्थानों से की गई खुदाइयों से प्राप्त वस्तुओं के प्रमाण -

सन् 1971 ई० में रूस के यूक्राइन (Ukraine) प्रान्त में टोवस्टा (Tovsta) नामक स्थान से खुदाई करते समय शक लोगों की बहुत सी वस्तुएं मिली हैं। इनमें से एक सोने का बना हुआ छाती का कवच है जिसका भार 2½ पौंड का है। इस कवच पर 44 गायों एवं घोड़ियों की मूर्तियां हैं। इसके मध्य में दो शक हैं जिनके सिर पर जटाजूट बाल तथा लम्बी दाढ़ी है। यूक्राइन में सोलोखा (Solokha) नामक स्थान पर 400 ई० पू० का एक स्वर्ण का पीने का बर्तन तथा दूसरा पीने का प्याला मिले हैं। इस पर एक शक शिकारी, घोड़े पर सवार, अपने भाले से शेर को मारते हुए की मूर्ति अंकित है। एक सोने का कंघा भी मिला है। एक सोने या चांदी का ठोस हँसला (कंठा या गुलिबंद) मिला है जिसको शक स्त्रियां बड़े चाव से पहनती थीं जिसका प्रयोग भारतवर्ष की जाट जाति में आज भी होता है। इस कारण से, दृढ़ विश्वास के साथ हम कह सकते हैं कि रूस निवासी स्लाव लोग, तथा उत्तरी यूरोपियन लोग जाट जाति से सम्बन्धित हैं3। यह पिछले पृष्ठों पर लिख दिया गया है कि शक जाट हैं और उनके नाम पर सीथिया देश नाम पड़ा। शक-सीथियनज़, इण्डो-सीथियनज़, यूरोपियन-सीथियनज़ सब एक ही नाम हैं जो कि सब जाट हैं।

नोट - ड्यूक आलेग नॉरमन जाट ने आधुनिक रूस की नींव डाली। यह इसी अध्याय के अगले पृष्ठों पर लिखा जाएगा।

पश्चिमी रूस का एक बहुत बड़ा प्रान्त यूक्राइन है जहां पर स्लाव जाटों की बड़ी संख्या है। वहां पर स्त्री-पुरुषों की शक्ल-सूरत, कद, चाल-ढाल, रंग-रूप, पहनावा हरयाणा प्रान्त के जाट स्त्री-पुरुषों से मिलता-जुलता है। इन स्लाव जाटों का देश चेकोस्लोवाकिया (Czechoslovakia) है। यह देश सेरब + स्लाव (Serb + Slav) दो जातियों के मिलाप से चेको + स्लोवाकिया (Czecho+Slovakia) चेकोस्लोवाकिया कहलाया। इस देश के साथ लगने वाले पोलैण्ड, आस्ट्रिया, हंगरी, रूमानिया, युगोस्लाविया आदि देशों में भी स्लाव जाट बड़ी संख्या में बसे हुए हैं।

इतिहासकार एच० जी० वेल्ज ने अपनी पुस्तक “दी ऑउटलाइन ऑफ हिस्ट्री” के अध्याय 32, पृ० 635 पर लिखा है कि “जब हम दक्षिणी रूस क्षेत्रों की वर्तमान जनसंख्या के विषय में सोचते हैं तो हमें नॉरमन लोगों का बाल्टिक तथा काला सागर के बीच आवागमन भी याद रखना होगा। और यह भी याद रखना होगा कि वहां स्लावोनिक (Slavonik) जनसंख्या काफी थी जो कि सीथियन तथा सरमाटियन्ज (Sarmatians) के वंशज एवं उत्तराधिकारी थे तथा वे इन अशान्त, कानूनरहित किन्तु उपजाऊ क्षेत्रों में पहले ही आबाद हो गये थे। ये सब जातियां परस्पर घुलमिल


1, 2, 3. जाट्स दी ऐनशन्ट् रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया पृ० क्रमशः 61, 372, 61, 62.


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-347


गईं तथा एक-दूसरे के प्रभाव में आ गईं। स्लावोनिक भाषाओं की, सिवाय हंगरी में, सम्पूर्ण सफलता से प्रतीत होता है कि स्लाव (Slav) लोगों की ही जनसंख्या अत्यधिक थी।” डेन, विकिंग्ज़, नॉरमन, ऐंगल्स, सैक्सन्स और गोथ ये सब सीथियन जाटों में से ही थे तथा उन्हीं के वंशज थे1

नोट - इनके जाट होने के प्रमाण इसी चतुर्थ अध्याय में यूरोप तथा अफ्रीका में जाटों का शासन, प्रकरण में लिखे जायेंगे।

मध्यएशिया का इतिहास हिन्दी, खण्ड 2, पृ० 565 पर लेखक राहुल सांकृत्यायन ने लिखा है कि “प्राचीन समय के शक, रूस के स्लाव लोगों के रूप में फिर से प्रकट हुए हैं, जो आज भी विद्यमान हैं। पश्चिमी शक लोग बहुत देशों में प्रवेश कर गये और भारतवर्ष में ब्राह्मण, गूजर, जाट, राजपूत आदि हिन्दू जाति में लीन हो गये। रूसी भाषा संस्कृत भाषा से मिलती जुलती है। इसका कारण यह है कि रूसवाले लोग, शक लोगों के वंशज हैं और शक लोग आर्य ही हैं जो प्राचीन समय से भारतवर्ष व ईरान में आबाद हैं। बहुत शताब्दियों के बीतने के पश्चात् काफी शक लोग फिर से अपने देश भारत में आये2। शक लोग क्षत्रिय आर्य जाट भी हैं तथा आज शक गोत्र के जाट बड़ी संख्या में विद्यमान हैं। (अधिक जानकारी के लिए देखो तृतीय अध्याय, शक प्रकरण)।

“इण्डिया एण्ड रस्सिया, लिंगुइस्टिक एण्ड कल्चरल अफीनिटी” लेखक डब्ल्यू० आर० ऋषि के अनुसार भारतीयों एवं भारतीय जाटों के रूस निवासियों से सम्बन्ध निम्न प्रकार से हैं -

आर्यों और पूर्वी स्लाव लोगों की भाषा, धर्म तथा धार्मिक त्यौहारों की समानता में विचित्र सम्बन्ध रहे हैं। यह सम्बन्ध मात्र दैवयोग या संयोग से नहीं हो सकते। यह दृढ़ कथन या यथार्थता है कि किसी समय संस्कृत भाषा बोलने वाले और रूसी भाषी लोग अवश्य साथ रहे हैं। रूस के इतिहास के अनुसार रूस के प्रथम निवासी काला सागर के उत्तर में पोनटिक मैदानों (Pontic steppes) में थे जो कि समेरियन्स (Cimmerians) कहलाते थे। ये समेरियन्स, आर्य लोग ही थे जिसके ठोस प्रमाण हैं। ईस्वी पूर्व 11वीं - 8वीं शताब्दियों में इन समेरियन्स के स्थान पर सीथियन या शक लोग आ गए थे। इन शक लोगों ने वहां पर उच्चकोटि की एवं प्राचीन संस्कृति उत्पन्न की जिसका पूर्वी और मध्य यूरोप की जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा। इन सीथियन्स या शक लोगों का योगदान रूस के इतिहास पर इतना महान् एवं प्रभावशाली है कि यह सारा समय रूस के इतिहास में “सीथियन विशिष्ट युग” कहलाता है। यूनानी इतिहासकार हैरोडोटस ने सीथिया की सीमा डेन्यूब (Danube) नदी से डॉन (Don) नदी तक जिसमें क्राइमियन के मैदान (Crimean steppes) शामिल हैं, लिखी है। परन्तु प्रसिद्ध भारतीय विद्वान् राहुल सांकृत्यायन ने रूसी वैज्ञानिकों द्वारा हाल में की गई खुदाइयों से प्राप्त प्राचीनकालीन रूसी वस्तुओं का अध्ययन करके लिखा है कि सीथियन या शक लोगों का निवास एवं अस्तित्व कार्पेथियन पर्वतमाला (Carpathian Mountains) से गोबी मरुस्थल (Gobi Desert) तक 2000 ई० पू० से सिकन्दर


1. अनटिक्विटी ऑफ जाट रेस, पृ० 70 ।
2. जाट्स दी ऐनशन्ट् रूलर्ज, पृ० 62 लेखक बी० एस० दहिया।


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-348


महान् के समय तक (चौथी शताब्दी ई० पू०) था। यह देश शकद्वीप या शकटापू कहलाता था (पृ० 140-141)।

स्लाव और सरमाटियन्ज जातियों के अतिरिक्त पहली-तीसरी शताब्दियों में गोथ (जाट) नीपर नदी (Dnieper) के मैदानों में आबाद हो गये थे। आरम्भ में ये लोग स्केण्डेनेविया में रहे। ये लोग 3-2 शताब्दी ई० पू० में वॉल्टिक सागर के दक्षिणी तट तक फैल गए। ईसा की तीसरी शताब्दी तक गोथ जाति (जाटों) ने डेन्यूब नदी के निचले तथा नीपर नदी के बहुत बडे़ भाग पर अपना अधिकार कर लिया था। ये लोग पूर्व में डॉन नदी और दक्षिण में काला सागर तक पहुंच गए। (पृ० 115)

पूर्वी स्लाव लोगों को हूणों ने उत्तर-पूर्व की ओर धकेल दिया। इनमें से कुछ नीपर नदी के मैदानों में बस गए जो पोलियन कहलाए। (Poliane-Pole का अर्थ मैदान)। इनका दूसरा भाग जंगलों में आबाद होने के कारण द्रेवलियन कहलाया (Drevliane-derevo का अर्थ वृक्ष)। स्लाव लोगों का एक भाग इलमेन झील (Ilmen Lake) के निकट आबाद हो गया और अपने स्लाव नाम से स्लोवेनज़ (Slovenes) कहलाते रहे। इन स्लाव (जाट) लोगों ने वहां पर नोवगोरॉड (Novgorod) नामक नगर का निर्माण किया। शेष स्लाव लोग जो उत्तर में बस गये वे सेवेरियन (Severiane) कहलाए। ये सब स्लाव लोग सीथियन्ज या शक लोगों के वंशज थे तथा एक-दूसरे की पहचान करना बहुत मुश्किल एवं असम्भव था। “सीथियन युग” में जंगलों से भरे हुए मैदानों में खेतीहर लोगों का पद (जिसमें स्लाव लोगों के पूर्वज भी शामिल थे) “सीथियन हलजोता” कहा गया। (पृ० 143) पूर्वी स्लाव लोगों का धर्म और आर्यों का धर्म समान थे। पूर्वी स्लावों ने अपना यह धर्म सन् 988 ईस्वी तक बराबर कायम रखा। तब उनके नेता स्लाव कनयजः वलाडीमीर स्वीटोस्लाविच (Slav knyaz Vladimir Sviatoslavich) ने ईसाई मत स्वीकार कर लिया। उसने अपने आश्रित प्रजा पर ईसाई पादरियों के उपदेश अनुसार स्लाव लोगों के देवताओं की तमाम मूर्तियां नष्ट कर दी गईं और उनके मन्दिरों के स्थान पर चर्च स्थापित कर दिए गए। इस तरह से पूर्वी स्लाव लोगों की ईश्वरपूजा रीति बदल गई और उनकी भाषा भी बदल गई।

रूस में और भारतवर्ष में रहने वाले सीथियनज़ या शकों का सन् 528 ई० तक घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है जब तक कि शक राजा मिहिरकुल को जाट सम्राट् यशोधर्मा वरिक ने हराया। रूस निवासियों एवं भारतीयों की भाषा संस्कृत थी तथा संस्कृति भी एक रही थी। भौगोलिक स्थिति के कारण रूस एवं भारतीयों की संस्कृति एवं संस्कृत भाषा बदल गई। परन्तु इन दोनों देशों के निवासियों की भाषा एवं संस्कृति का मूल सम्बन्ध आज भी जीवित है। (पृ० 144)

हमने द्वितीय अध्याय में प्रमाणों द्वारा सिद्ध किया है कि जाट आर्य हैं तथा क्षत्रिय वर्ण के हैं और तृतीय अध्याय, शक प्रकरण में लिखा गया है कि शक या सीथियन जाट हैं। सारांश यह है कि रूस के स्लाव निवासी जो कि बड़ी संख्या में रूस के तथा यूरोप के अनेक प्रान्तों एवं देशों में आबाद हैं, वे सब जाट हैं। इनके अतिरिक्त इन महाद्वीपों में भिन्न-भिन्न जाट गोत्रों के लोगों की बड़ी संख्या है। यद्यपि वे कम ही जानते हैं कि हम जाट हैं। (लेखक)


जाट वीरों का इतिहास: दलीप सिंह अहलावत, पृष्ठान्त-349

External links

References

  1. "Slav". Encyclopedia Britannica.
  2. Bhim Singh Dahiya: Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Appendices/Appendix II,p.327
  3. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV,pp.346-349
  4. Madhya Asia Ka Itihas, Vol. II, p. 565, by Rahul Sankrityayana
  5. Procopius, History of the Wars,\, VII. 14. 22–30, VIII.40.5
  6. Jordanes, The Origin and Deeds of the Goths, V.33.
  7. Curta, Florin (2001). The Making of the Slavs: History and Archaeology of the Lower Danube Region, c. 500–700. Cambridge: Cambridge University Press. ISBN 9781139428880. p. 41-42, 50, 55, 60, 69, 75, 88.
  8. Kirch, Aksel (June 1992). "Russians as a Minority in Contemporary Baltic States". Bulletin of Peace Proposals. SAGE Publishing. 23 (2): 205–212.
  9. Ramet, Pedro (1978). "Migration and Nationality Policy in Soviet Central Asia". Humboldt Journal of Social Relations. California State Polytechnic University, Humboldt. 6 (1): 79–101. JSTOR 23261898.
  10. Ramet, Pedro (1978). "Migration and Nationality Policy in Soviet Central Asia". Humboldt Journal of Social Relations. California State Polytechnic University, Humboldt. 6 (1): 79–101. JSTOR 23261898.
  11. Encyclopædia Britannica (18 September 2006). "Slav (people) – Britannica Online Encyclopedia". Britannica.com.
  12. Robert Bideleux; Ian Jeffries (January 1998). A History of Eastern Europe: Crisis and Change. Psychology Press. p. 325. ISBN 978-0-415-16112-1.
  13. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Appendices/Appendix II,p.327
  14. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/The Jats,p.61-62
  15. Jats the Ancient Rulers (A clan study)/Jat Clan in India,p.271
  16. Jat History Dalip Singh Ahlawat/Chapter IV,pp.346-349