Pandit Indra Vidyavachaspati
इन्द्र विद्यावाचस्पति (अंग्रेज़ी: Indra Vidyawachaspati, जन्म: 9 नवम्बर, 1889; मृत्यु: 1960) एक प्रसिद्ध पत्रकार, राष्ट्रीय कार्यकर्ता और भारतीयता के समर्थक थे। इन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में भी भाग लिया और गांधी जी के 'नमक सत्याग्रह' के समय जेल की यात्रा भी की। इन्होंने कई पुस्तकों की भी रचना की थी। इन्द्र विद्यावाचस्पति जीवन में सत्य और अहिंसा के स्थान को सर्वश्रेष्ठ मानते थे।
जन्म तथा शिक्षा
राष्ट्रीय कार्यकर्ता और भारतीयता के समर्थक इन्द्र विद्यावाचस्पति का जन्म 9 नवम्बर, 1889 को पंजाब के जालंधर ज़िले में हुआ था। वे 'लाला मुंशीराम' के पुत्र थे। लालाजी सन्यास लेने के बाद स्वामी श्रद्धानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए। इन्द्र जी की शिक्षा प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार हुई। सात वर्ष की उम्र में उन्हें गुजरांवाला के गुरुकुल में भेजा गया और संस्कृत के माध्यम से उनका शिक्षण आरम्भ हुआ। बाद में उन्होंने अन्य विषयों का अध्ययन किया। पिता की इच्छा इन्द्र जी को बैरिस्टर बनाने की थी। विदेश जाने के कई अवसर भी आये। पर इन्द्र जी ने इस ओर ध्यान न देकर गुरुकुल कांगड़ी में पहले विद्यार्थी और अध्यापक बनना पसन्द किया।
राजनीति तथा पत्रकारिता
इन्द्र जी सार्वजनिक कार्यों में भी शुरू से ही रुचि लेने लगे थे। कांग्रेस संगठन में सम्मिलित होकर उन्होंने दिल्ली को अपना कार्यक्षेत्र बनाया। 1920-1921 में उनकी गणना दिल्ली के प्रमुख कांग्रेसजनों में होती थी। गुरुकुल के वातावरण के कारण वे आर्य समाज से प्रभावित थे। बाद में उनके ऊपर 'हिन्दू महासभा' का भी प्रभाव पड़ा। पत्रकार के रूप में उन्होंने दिल्ली के 'विजय' और 'सर्वधर्म प्रचारक' का सम्पादन किया। उनको सर्वाधिक ख्याति 'वीर अर्जुन' के सम्पादक के रूप में मिली। वे इस पत्र के 25 वर्ष तक सम्पादक रहे। 'विजय' के एक अग्रलेख के कारण विदेशी सरकार ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया था। 'नमक सत्याग्रह' के समय भी उन्होंने जेल की सज़ा भोगी।
रचनाएँ
इन्द्र विद्यावाचस्पति ने अनेक पुस्तकों की भी रचना की। उनकी कुछ कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
- भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का उदय और अन्त
- मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण
- मराठों का इतिहास
- उपनिषदों की भूमिका
- आर्य समाज का इतिहास
- स्वराज्य और चरित्र निर्माण
गांधी जी से मतभेद
इन्द्र जी की मान्यता थी कि व्यक्तिगत जीवन में सत्य और अहिंसा का स्थान सर्वोपरि है, किन्तु अहिंसा को राजनीति में भी विश्वास के रूप में स्वीकार करने के पक्ष में वे नहीं थे। इसलिए उन्होंने गांधी जी से मतभेद होने के कारण 1941 में कांग्रेस से सम्बन्ध तोड़ लिया था।
देहान्त
सन् 1960 ई. में इन्द्र विद्यावाचस्पति का देहान्त हुआ।
साभार
साभार: भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर]
External Links
- इन्द्र विद्यावाचस्पति जीवनी - Biography of Indra Vidyawacspti in Hindi Jivani
- विकिपीडिया पर लेख
- Indra Vidyavachspati Books in Hindi PDF
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