Badkhalsa

From Jatland Wiki
(Redirected from Badh Khalsa)

Badkhalsa (Bad Khalsa) (बडखालसा/ बाढ खालसा) is a village in Rai tahsil of Sonipat district in Haryana. The village was earlier known as Garhi.

Location

Jat Gotras

History

Badkhalsa's pride

The small village of Badkhalsa has its name inscribed in the Sikh history in golden letters. The supreme sacrifice of an ancestor from here, Bhai Kushal, a follower of the ninth Sikh Guru, Guru Teg Bhadur, is something that this village will always be proud of. Bhai Kushal Singh of this village offered his head to fool the Mughals, who wanted to retrieve the head of the guru being taken to Anandpur Sahib by one of followers.

Each year, Badkhalsa, which was then known as Garhi, holds an annual memorial to remember Bhai Kushal, their ancestor, who ordered his son Bahadur to behead him. For he resembled Guru Teg Bahadur, he offered himself to be beheaded to befool the Mughal forces, so that the head of the guru could be taken to Anandpur Sahib for cremation. Villagers often organise religious functions and ‘nagar kirtans’ in the memory of the guru and Bhai Kushal.

Ram Chander Dahiya and Rajesh Dahiya, Badkhalsa residents, told The Tribune that after the selfless sacrifice of Bhai Kushal, Garhi was renamed Kushal Garhi and then it was named Badkhalsa. “There is no record of the direct lineage of Bhai Kushal, therefore the entire village considers itself a direct descendant of the martyr,” they said.

The Haryana Government has constructed a memorial in the name of Sri Guru Teg Bahadur in an area of around two acres on the GT Road.[1]

दादा वीर कुशाल सिंह दहिया

सिखों के महान बलिदानी गुरु तेगबहादुर सिंह को याद कर प्रकाश उत्सव मना रहे हो यह भी कभी न भूलें। अपने बेटे से ही अपना शीश कटवाने वाले दादा वीर कुशाल सिंह दहिया के आत्मबलिदान को सादर शत शत नमन:

प्रणाम शहीदां नू। ऐसी कुर्बानी की मिशाल कहीं नहीं मिलेगी। इस्लाम कबूल न करने पर जालिम औरंगजेब ने भाई सतीदास, भाई मतीदास और भाई दयाला को शहीद कर दिया। 22 नवंबर को औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर का भी शीश कटवा दिया और उनके पवित्र पार्थिव शरीर की बेअदबी करने के लिए शरीर के चार टुकड़े कर के उसे दिल्ली के चारों बाहरी गेटों पर लटकाने का आदेश दे दिया। लेकिन उसी समय अचानक आये अंधड़ का लाभ उठाकर एक स्थानीय व्यापारी लक्खीशाह गुरु जा धड और भाई जैता जी गुरु जी का शीश उठाकर ले जाने में कामयाब हो गए। लक्खीशाह ने गुरु जी के धड़ को अपने घर में रखकर अपने घर को अग्निदाग लगा दी। इस प्रकार समझदारी और त्याग से गुरु जी के शरीर की बेअदवी होने से बचा लिया।

इधर भाई जैता जी ने गुरूजी का शीश उठा लिया और उसे कपडे में लपेटकर अपने कुछ साथियों के साथ आनंदपुर साहब को चल पड़े। औरँगेजेब ने उनके के पीछे अपनी सेना लगा दी और आदेश दिया कि किसी भी तरह से गुरु जी का शीश वापस दिल्ली लेकर आओ। भाई जैता जी किसी तरह बचते बचाते सोनीपत के पास बढ़खालसा गाँव में जो पंजाब जाते हुए जीटी रोड सोनीपत में स्थित है उसमें पहुंचे गए।

मुगल सेना भी उनके पीछे लगी हुई थी। वहां के स्थानीय निवासियों को जब पता चला कि - गुरु जी ने बलिदान दे दिया है और उनका शीश लेकर उनके शिष्य उनके गाँव में आये हुए हैं तो सभी गाँव वालों ने उनका स्वागत किया और शीश के दर्शन किये। चौधरी कुशाल सिंह दहिया को जब पता चला तो वे भी वहां पहुंचे और गुरु जी के शीश के दर्शन किये और बड़ा दुख जताया।

उधर अब मुगलो की सेना भी गांव के पास पहुंच चुकी है। गांव के लोग इकट्ठा हुए और सोचने लगे कि क्या किया जाए? मुग़ल सैनिको की संख्या और उनके हथियारों को देखते हुए गाँव वालों द्वारा मुकाबला करना भी आसान नहीं था। सबको लग रहा था कि- मुगल सैनिक गुरु जी के शीश को आनन्दपुर साहिब तक नहीं पहुंचने देंगे। अब क्या किया जाए?

तब "दादा कुशाल सिंह दहिया" ने आगे बढ़कर कहा कि - सैनिको से बचने का केवल एक ही रास्ता है कि - गुरुजी का शीश मुग़ल सैनिको को सौंप दिया जाए। इस पर एक बार तो सभी लोग गुस्से से "बाबा खुशाल" को देखने लगे लेकिन बाबा ने आगे कहा - आप लोग ध्यान से देखिये गुरु जी का शीश, मेंरे चेहरे से कितना मिलता जुलता है उनकी आयु,शक्ल और दाढ़ी गुरु तेगबहादुर से हुबहू मिल रही थी।बिना वक्त जाया करते उन्होंने कहा कि

अगर आप लोग मेरा शीश काट कर, उसे गुरु तेगबहादुर जी का शीश कहकर, मुग़ल सैनिको को सौंप देंगे तो ये मुग़ल सैनिक शीश को लेकर वापस लौट जायेंगे। तब गुरु जी का शीश बड़े आराम से आनंदपुर साहब पहुँच जाएगा और उनका सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो जाएगा। उनकी इस बात पर चारों तरफ सन्नाटा फ़ैल गया।

सबलोग स्तब्ध रह गए कि - कैसे कोई अपना शीश काटकर दे सकता है? पर वीर कुशाल सिंह फैसला कर चुके थे,उन्होंने सबको समझाया कि - गुरु तेग बहादुर कों हिन्द की चादर कहा जाता हैं,उनके सम्मान को बचाना हिन्द का सम्मान बचाना है। इसके अलावा कोई चारा नहीं है।फिर दादा कुशाल सिंह ने अपने वंशजों अपने बड़े बेटे के हाथों से अपना सिर कटवाकर थाली में रख कर गुरु शिष्यो को दे दिया।एक बेटा धर्म रक्षा के लिए अपने बाप का सिर काटे ऐसी मिशाल देखने तो क्या सुनने को भी नहीं मिलती लेकिन ऐसे महावीर बलिदानियों को भुला दिया गया।आज गुरु तेगबहादुर सिंह का बलिदान दिवस मनाया जा रहा है 400प्रकाश पर्व भी है ऐसे में हमें उनको भी नहीं भूलना चाहिए।

जब मुगल सैनिक गाँव में पहुंचे तो सिक्ख दोनों शीश को लेकर वहां से निकल गए। भाई जैता जी गुरु जी का शीश लेकर तेजी से आगे निकल गए और जिनके पास बाबा कुशाल सिंह दहिया का शीश था, वे जानबूझकर कुछ धीमे हो गए, मुग़ल सैनिको ने उनसे वह शीश छीन लिया और उसे गुरु तेग बहादुर जी का शीश समझकर दिल्ली लौट गए।

इस तरह धर्म की खातिर बलिदान देने की भारतीय परम्परा में एक और अनोखी गाथा जुड़ गई। जहाँ दादा वीर कुशाल सिंह दहिया ने अपना बलिदान दिया था उसे "गढ़ी दहिया" तथा "गढ़ी कुशाली" भी कहते हैं। केवल जाटों को छोड़कर सदियों से बाकी किसी कथित पत्तलचाट चाटुकार लेखकों, इतिहासकारों और सरकारों ने "दादा वीर कुशाल सिंह दहिया" तथा इस स्थान को कोई महत्त्व नहीं दिया।

हरियाणा के लोगों ने अब उस स्थान पर एक म्यूजियम बनवाया है और वहां पर महाबलिदानी अमर वीर चौधरी कुशाल सिंह दहिया (कुशाली) की स्मारक को स्थापित किया है। यह स्थान सोनीपत जिले में बढ़खालसा नामक स्थान पर है जहां गुरुद्वारा बना हुआ है, आदमकद प्रतिमा और शिलालेख चीख चीख कर इस महान बलिदान की अमर गाथा दिखाई देते नजर आ जायेंगे। जो सिंघु बार्डर से थोड़ी ही दूर है। सभी जाटों व खालसा प्रेमियों को वहां दर्शन के लिए जरूर जाना चाहिए।ऐसा वीर आज तक नहीं हुआ जो अपने ही बेटे को अपना सर काटने का भरी पंचायत में आदेश दे और बेटा बिना हिचक उस आदेश का पालन करे।पता नहीं क्यों सरकारों के मुंह सिल जाते हैं खुद हमारी कौम हमारा समाज भी भुला कर उपेक्षित किए बैठा है हमें अपने महा बलिदानी को आगे लाना होगा जिससे सबको ज्ञान प्राप्त हो प्रेरणा मिले।यही हम सबका फर्ज और उत्तरदायित्व भी है।राष्ट्रीय जाट रत्न पत्रिका प्रकाशन समूह ने बार बार इन पर लेख प्रकाशित कर भारतीयों को याद दिलाने की कोशिश की है,आगे दहिया इतिहास में भी प्रकाशित किया जा रहा है।आपका भी नैतिक उत्तरदायित्व बनता है।इसलिए इस पोस्ट को जितना ज्यादा हो सके आगे शेयर,फॉरवर्ड करने का कार्य करें।हम आप सभी की तरफ से इस प्रकाश पर्व पर अपने भारत के महान सपूत अमर वीर बलिदानी बाबा चौधरी खुशाल सिंह दहिया महान आत्मा को शत शत नमन करते हुए श्रद्धांजलि देते हैं ऐसी महान आत्माओं की आहुतियों की वजह से यह भारत देश धर्म सभ्यता,संस्कृति जिंदा है जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए।

Population

Notable persons

External links

http://www.tribuneindia.com/2013/20131125/haryana.htm#2

References


Back to Jat Villages