Acharya Hemachandra Surī

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आचार्य हेमचंद्र ने 'निघण्टुशेष', 'अभिधान चिंतामणी', 'अनेकार्थ संग्रह', एवं 'देशी नाममाला' कोशों की रचना इस समय की। १२वी शताब्दी में सर्वोत्कृष्ठ ग्रंथ हेमचंद्र के कोश है। इतिहास की द्दष्टि से ५६ ग्रंथकारों तथा ३१ ग्रंथों का उल्लेख बडा महत्व है। आचार्य हेमचंद्र कहते है, आत्मप्रशंसा एवं परनिंदा से क्या प्रयोजन? मुक्ति का प्रयास करना चाहिये। सभी वर्णों को अपनाते हुए भी संकरीत, वर्णसंकर, उच्च, नीच का भाव अत्याधिक था यह सत्य है। अमरकोश की अपेक्षा हेमचंद्रका संस्कृत कोश श्रेष्ठतम है। सम्पूर्ण कोश साहित्यकारों मे अक्षुण्ण है। महाबलाधिकृत - फील्ड मार्शल, अक्षयपटलाधिपति - रेकार्ड कीपर, सांस्कृतिक इतिहास, शब्द ज्ञान में अभिधान चिंतामणिकोश सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वांगसुंदर है। व्याकरण लिखकर शब्दानुशासन पूर्णता प्रदान की। उसी प्रकार व्याकरण के परिशिष्ट के रुप में देशी नाममाला कोशों की रचना की।

भारतीय चिंतन, साहित्य और साधना के क्षेत्र में आचार्य हेमचंद्रका नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे महान गुरु, समाज-सुधारक, धर्माचार्य, अद्दभुत प्रतिभा ओर मनीषी थे। समस्त गुर्जरभूमि को अहिंसामय बना दिया। साहित्य, दर्शन, योग, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वाड्मय के सभी अंगों पर नवीन साहित्य की सृष्टि तथा नये पंथ को आलोकित किया। संस्कृत एवं प्राकृत पर उनका समान अधिकार था। लोग उन्हें 'कलिकालसर्वज्ञ' के नाम से पुकारते थे। आचार्य हेमचंद्र का जीवन, रचनाकाल, कृतियां, प्रमुख घटनाएं जैन इतिहास द्वारा संभ्हालकर संजोकर रखी गयी हैं।

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