Kollur
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Kollur (कोल्लूर) is a small temple-town in Byndoor Taluk in Udupi district of Karnataka state, India. It is situated about 23 km from Byndoor town. This village lies at the foot of the Western Ghats and is famous for the Mookambika temple, a Hindu pilgrim center. The village is located on the banks of Souparnika river.
Variants
- Kollur (कोल्लूर)
- Kullura (कुल्लूर) (मैसूर) (AS, p.210)
- Kolluru
- Kolapura
- Kollura (कोल्लूर) (उडुपी, कर्नाटक) (AS, p.239)
Location
It is situated about 23 km from Byndoor town. This village lies at the foot of the Western Ghats and is famous for the Mookambika temple, a Hindu pilgrim center. The village is located on the banks of Souparnika river.
Distances from Kollur:
- Kundapura: 40 km
- Udupi: 80 km
- Murudeshwara: 55 km
- Mangalore: 140 km
- Bangalore: 405 km (via Shimoga)
- Sringeri: 115 km
History
Kollur also called Kolapura (in the name of sage called Kola Maharshi) one of the important places of pilgrimage in Karnataka State, which has a temple dedicated to supreme goddess Mookambika or Durga devi .
The goddess Durga is called Mookambika as she is said to have slain the demon Mookasura. The goddess is described as in the form of a jyotirlinga incorporating both Shiva and Shakti. The panchaloha image of the goddess on Shri Chakra is stated to have been consecrated by Shri Adi Shankaracharya. The Divine Mother is said to be a manifestation of trigunas or triple forms such as Mahakali, Mahalakshmi & Mahasaraswati. The shikhara of the temple which is well gilded with gold is said to have been donated by Sankanna Savantha. Around the chief shrine of Mookambika, there are many other shrines.
The idol of Chandramaulishvara is said to have been installed by Shri Adi Shankara. The temple has been renovated by Keladi rulers. The temple of Mookambika and other shrines attract a large number of pilgrims from other states too.[1]
कोल्लूर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[2] ने लेख किया है ...कोल्लूर (AS, p.239) दक्षिण भारत, कर्नाटक राज्य के उडुपी ज़िले में स्थित मुकाम्बिका देवी को समर्पित है। यहाँ का मुकाम्बिका मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है। कोल्लूर कृष्णा नदी के दक्षिण में स्थित है. यह स्थान हीरों की खानों की वजह से भी प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस स्थान पर प्राचीन समय में हीरे की खानें थीं। एक किंवदन्ती के अनुसार संसार प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा यहीं की खान से 1656-57 ई. में प्राप्त हुआ था और मीरजुमला ने इसे सम्राट शाहजहाँ को भेंट में दिया था।
अन्य किंवदन्तियाँ ऐसी भी है, जिनके अनुसार कोहिनूर का इतिहास कहीं अधिक प्राचीन है। कहा जाता है कि पहली बार इस हीरे ने महाराज युधिष्ठर के मुकुट की शोभा बढ़ाई थी और कालक्रम से यह रत्न भारत के बड़े महाराजाओं तथा सम्राटों के पास रहा। अब यह हीरा, जो कि प्रारम्भ में 787½ कैरेट का था, कट-छट कर बहुत हल्का रह गया है और इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ के ताज में जड़ा हुआ है। यह भी सम्भव है कि, जो हीरा मीरजुमला ने शाहजहाँ को भेंट किया था, वह मुग़लेआज़म नामक हीरा था। यद्यपि कुछ लोग कोहिनूर और मुग़लेआज़म को एक ही मानते हैं।
कोल्लूर की खान से दूसरा [p.240]: जगत प्रसिद्ध हीरा होप नामक भी प्राप्त हुआ था, किन्तु कोहिनूर के विपरीत इसे बहुत ही भाग्यहीन समझा जाता है। 1642 में यह हीरा फ़्राँसीसी यात्री टवर्नियर के हाथ में पहुँचा। तब इसका भार 67 कैरेट था। टेवर्नियर ने भारत से लौटने पर इसे फ़्राँस के सम्राट चौदहवें लुई को भेंट में दिया। इसके पश्चात् यह फ़्राँस की रानी मेरी एनतिनोते के पास पहुँचा, जिसका फ़्राँस की राज्यक्रान्ति (1789 ई.) के काल में वध कर दिया गया। इसके पश्चात् यह होप परिवार के पास आया। तीन पीढ़ियों के बाद यह अन्य हाथों में जा चुका था।
लॉर्ड फ़्राँसिस होप, जिनके पास यह था, अपनी सारी सम्पत्ति खो बैठे और उनकी पत्नी की भी अचानक मृत्यु हो गई। उन्होंने इसे एक तुर्की व्यापारी के हाथों बेच दिया, जो बेचारा डूबकर मर गया। उसने पहले ही इसे तुर्की के सुल्तान अब्दुल हमीद को बेच दिया था। वे राज्य-च्युत हुए और कारागार में मरे। तत्पश्चात् यह अभागा हीरा एक अमरीकी परिवार में श्रीमती मेकलीन के यहाँ पहुँचा। उनका पुत्र एक मोटर दुर्घटना में मारा गया। श्रीमती मेकलीन ने इसे फिर भी न छोड़ा और एक ईसाई पुजारी से इसे अभिमंत्रित करवाया। किन्तु उनके पास भी यह न रह सका और थोड़े समय से आजकल एक अन्य अमरीकी परिवार के पास है। इस प्रकार भारत की कोल्लूर खान से यह नीली कान्ति वाला दीप्तिमान किन्तु अभिशप्त रत्न संसार में दूर-दूर तक जाकर अनेक हाथों में रहा है, किन्तु दुर्भाग्यवश जहाँ भी यह गया, वहाँ दुर्घटनाएँ इसकी सहेलियाँ बनी रही हैं।
कुल्लूर
विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...कुल्लूर (मैसूर) (AS, p.210) सौपर्णिका नदी के तट पर आद्यशंकराचार्य द्वारा स्थापित सिद्ध-पीठ है.
External links
References
- ↑ Kamath, Suryanath, ed. (1983). Karnataka State Gazetteer. 2. p. 1261.
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.239-240
- ↑ Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.210