Maur Jat Vansha

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चित्तौडगढ़ किले के निर्माता जाट राजा चित्रांग (चित्रांगद) मोर ----- मोर, मोरी, मयूर, मौर्य जाट राजवंश


मोर इतिहास

मौर जाट जाति का एक अति प्राचीन राजवंश है। मौर गोत्र के जाटों को भिन्न भिन्न क्षेत्रीय अपभ्रंश के कारण,मोर,मोरी,मौर्य ,मयूर ,मोरिया,नाम से भी जाना जाता है। मोर जाट गोत्र की आबादी राजस्थान, पंजाब, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश गुजरात,महाराष्ट्र में है । मौर जाट पाकिस्तान और जर्मनी में भी बड़ी संख्या में निवास करते है ।

  • मौर(मौर्य) जाट गोत्र की निम्न उप गोत्र शाखाएं है।
  • 1•चितरवाडा मौर:- चित्रांग मौर के छोटे पुत्र के वंशज चितरवाड़ा मौर कहलाते है|इनका निवास मालवा क्षेत्र में है यह लोग नीमच में 14 ग्रामो में निवास करते है।इनके साथ वहां इनके भाई मोर भी निवास करते है दोनों शाखाओ मौर जाटों के नीमच में कुल 30 ग्राम है |
  • 2•खोवे मौर:-चित्तौड़ गढ़ के अंतिम जाट राजा मान मोरी के पुत्र खुब्बे(खोवे) सिंह(बिजनोर रियासत के संस्थापक) के वंशज बिजनोर में खोवे मयूर कहलाते हैं।
  • 3•राय मौर:- सिंध के मोर जाट राजाओ की पदवी राय होने के कारण इनके वंशज राय मौर कहलाते हैं। यह मूलतः सिंध और पंजाब में निवास करते हैं।
  • 4•मेहसरिया मोर:- मौर वंश के राजा महेश्वर के वंशज महेश्वर (मेहसरिय)मोर कहलाते हैं।

मोर गोत्र के जाट जणवा चौधरी समाज (जणवा जाटों के अगुवाई में जाट समूह) में भी पाया जाता है।कुछ जाट लोग मराठो की सेना में सम्मलित हो गए थे यह लोग मोरे नाम से प्रसिद्ध है।


सातवीं या आठवीं शताब्दी में परमार अग्नि यज्ञ शुद्धि से राजपूत जाति में शामिल हुए थे। इस पहले परमार /पंवार वंश का अस्तित्व जाटों में मौजूद था परमार वंश से मोर वंश को जोड़ना पूर्ण रूप से गलत है।क्योकि मौर वंश तो परमारो से पहले ही अस्तित्व में था।मोरो की उत्पत्ति बाद में स्थापित हुए परमार वंश से कैसे हो सकती है।अतः मौर एक प्राचीन जाट गोत्र है।

  • मौर जाटों की उत्पत्ति
  • इतिहासकार नवल वियोगी अपनी पुस्तक "History Of The Later Harappans And Silpakara Movement (2 Vols.)" में सम्पूर्ण मौर्य(मोर) वंश को तक्षक नागवंशी जाटों की शाखा लिखा है |

इतिहासकार रामस्वरूप जून ने मौर वंश को तक्षकों की एक शाखा माना है।[1] प्रारम्भ में यह लोग जिस तराई क्षेत्र में बसे वहां मौर पक्षी का निवास अधिक संख्या में होने तथा मौर को अपना प्रिय पक्षी माने के कारन यह मौर कहलाते है।

  • डॉ H R गुप्ता के अनुसार मौर लोग कोह मौर के निवासी थे।जो पेशावर से भी आगे है। यहां भी वर्तमान में मौर जाट मिलते है ।
  • मौर मूल रूप से प्राचीन जाट वंश है। जिसका प्रतीक चिन्ह मयूर(मौर) नामक पक्षी था। यह मयूर पक्षी देवताओं के सेनापति कार्तिकेय का वाहन भी है। अतः कार्तिकेय की स्तुति करने वाले जाट लोगो का समूह अपने युद्ध टोटम(प्रतीक) मयूर(मौर) के नाम से इतिहास में मौर वंशी प्रसिद्ध हुए थे।
  • ए. के. मित्तल ने 'पॉलिटिकल एंड कल्चरल हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया' के पेज 126 , राहुल संकीर्तयन ने 'बुद्ध दर्शन' के पेज 126 और डॉ. अतल खोखर ने 'जाटो की उतपत्ति एवं विस्तार (जाट तरंगिनि)' में पेज 113 पर महावंश और तत्वप्रकाशिनी को संदर्भ में लेते हुए बताया है कि मौर्य जाट वंश के क्षत्रिय है ।।

सम्राट् अशोक ने शिलालेख नं० 1 पर स्वयं मौर शब्द लिखवाया और मौर्य नहीं। जब इस वंश के जाटों का (मध्य एशिया) में था, तब भी ये मौरवंशी कहलाते थे। जब इस वंश के लोग यूरोप तथा इंग्लैण्ड में गये, वहां पर भी मौर कहलाये। मौर या मौर्य जाटों का राज्य खोतन तथा तुर्किस्तान के अन्य क्षेत्रों पर भी रहा।

मोर प्राचीन जाट वंश था प्रारंभ में मौर जाट बौद्ध धर्म की तरफ झुकाव था मौर/मौर्य/ मयूर गोत सिर्फ जाट जाति में मिलता है । मौर जाटों का अर्जुनायन (तोमर /कौन्तेय) मालव (मलोई) जाटों से विवाह सम्बन्ध थे इस बात के प्रमाण है की उदयपुर चित्तोड़गढ़ के समीप माध्यमिका नामक स्थान पर शिवि जाटों का शासन रहा है।

मौर रियासत

मगध के मौर जाट शासकों की सूची

मगध पर राज्य करने वाले मौर चन्द्रगुप्त मौर्य – 322-298 ईसा पूर्व (25 वर्ष) बिन्दुसार – 298-273 ईसा पूर्व (25 वर्ष) सम्राट अशोक – 273-232 ईसा पूर्व (41 वर्ष) कुणाल – 232-224 ईसा पूर्व (8 वर्ष) दशरथ मौर्य –232-224 ईसा पूर्व (8 वर्ष) सम्प्रति – 224-215 ईसा पूर्व (9 वर्ष) शालिसुक –215-202 ईसा पूर्व (13 वर्ष) देववर्मन् – 202-195 ईसा पूर्व (7 वर्ष) शतधन्वन् मौर्य – 195-187 ईसा पूर्व (8 वर्ष) बृहद्रथ मौर्य – 187-185 ईसा पूर्व (2 वर्ष)

चित्तौड़गढ़ के जाट राजा

राजस्थान के ऐतिहासिक नगर चित्तौड़ की स्थापना का श्रेय मौर जाटों को ही जाता है।राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ नगर और किले के निर्माता जाट राजा चित्रांग मौर थे। राजा चित्रांग मौर को ही चित्रांगद मोरी भी बोलते थे।

जेम्स टॉड ,दसरथ शर्मा व अधिकांश इतिहासकार इस बात पर एक मत है।की जाट राजा चित्रांग ही चित्तौडग़ढ़ नगर और किले के निर्माता थे। राजा ने चित्रंग तालाब का भी निर्माण कराया था। ऐसा वर्णन “कुमारपाल प्रबन्ध” पत्र 30-2 में आता है। यह मोर वंश राजपूत जाति में नहीं मिलता है।

चित्तौड़गढ़ के मोर वंश के प्रथम शासक चित्रांग मोर और अंतिम शासक मान मोरी थे।राजा मान मौर ने चित्तौड़ के पास मानसरोवर बनवाया। इसमें सन 713 ई० में खुदवाया हुआ एक शिलालेख प्राप्त हुआ है।जिसमें क्रमशःमाहेश्वर भीम, भोज और मान का चित्तौड़ पर राज्य करना प्रमाणित होता है।राजा चित्रांग मौर महिष्मति के शासक थे। उन्होंने ने ही चित्तौड़ गढ़ किले का निर्माण करवाया था।

पुठोली में सन् 1822 ईस्वी में इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड को अभिलेख मिला था। इस अभिलेख में सन 713 ई में नर्मदा तट के तक्षक वंश का उल्लेख है। इसमें राजा महेश्वर को महाबली, बाहुबली बताया गया है। कर्नल टॉड ने इस शिलालेख का जिक्र अपनी किताब 'एनाल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान' में किया था। इसका अनुवाद डॉ. जुगनू ने भी उनकी किताब 'मेवाड़ का प्रारंभिक इतिहास' में दिया है। डॉ. जुगनू बताते हैं कि राजा महेश्वर इस वंश का इतना पराक्रमी राजा था कि उसके चर्चे अवंती से चित्रकूट तक थे। इसके साथ ही ये अभिलेख इस वंश के महेश्वर, भीम, भोज और मान राजाओं का विवरण भी देता है।पुठोली ग्राम में राजा मान मोरी द्वारा निर्मित शिवालय के अवशेष आज भी प्राप्त होते हैं। डा श्री कृष्ण जुगनू के मतानुसार चित्तौड़गढ़ पर राजा भीम मोरी के शासन काल में भीमलत जलाशय, भीमगोडी बावड़ी और भीमगोड़ेश्वर का निर्माण हुआ है।

नोट:-पुठोली के शिलालेख से एक बात तो प्रमाणित होती है कि यह मौर वंशी जाट नागवंशी तक्षको के वंशज है।

हेनसांग ने सातवी शताब्दी में चित्तौडगढ की यात्रा की थी और अपने यात्रा विवरण में हेनसांग ने चित्तौडगढ को चिकिटो नाम दिया था। हेनसांग की चित्तौड़ की यात्रा के दौरान चित्तौड़ पर राजा भीम मोरी का शासन था| हेनसांग के यात्रा विवरण के अनुसार चिकिटो बहुत ही भव्य और विस्तृत भूभाग में फैली थी।

चित्तौडगढ़ के प्रसिद्ध मोर शासक

  • चित्रांग मोर
  • महेश्वर
  • भीम
  • भोज
  • मान

राजा मान मौर्य के धर्म की बहिनके पुत्र (धेवते) वाप्पा रावल ने धोखे से चित्तौड़ का राज्य छीन लिया। जैसा कि राजप्रशस्ति महाकाव्य सर्ग 3 में लिखा है -


ततः स निर्जित्य नृपं तु मौरी जातीयभूपं मनुराजसंज्ञम्। गृहीतवांश्चित्रितचित्रकूटं चक्रेऽत्र राज्यं नृपचक्रवर्ती॥


मुहणोंत नैणसी ने भी अपनी ख्यात में “मौरी दल मारेव राज रायांकुर लीधौ,” लिखकर इसी सत्यता को पुष्ट किया है। राजा मान मौर सन् 713 ई० में राज्य करता था। इसका धेवता वाप्पा रावल जो कि बल वंश का था, ने भीलों की मदद से धोखा देकर इसको मार दिया और चित्तौड़ राज्य का शासक बन गया। इसने यहां पर गोहिलवंश के नाम पर राज्य स्थापित किया।


चित्तौडग़ढ़ से जाटों का राज्य चले जाने पर मान मौर्य के पुत्रो में 2 पुत्र क्रमश आगरा और बिजनौर चले गए बाकी पुत्र पहले सांभर गढ़ में बसे फिर गुगा (ददरेवा) में बसे यहां से यह लोग अपने जातीय जाट भाई तोमरो के सेना में सम्मलित हो गए दिल्ली के इतिहास में नीमा जाट का ज़िक्र हुआ है वास्तव में वो नीमा मौर था जिसको हरियाणा में जागीरी मिली थी उसके नाम पर नीमवाला ग्राम का नाम है आगे जाट राजा महिपाल ने अपने वैवाहिक सम्बन्ध बुरडक जाटों में किये उनको 84 ग्रामो का स्वामी बनाया साथ ही अपने रिश्तेदार शाही/सोही /सोऊ जाटों के राज्य की सीमा पर मौर जाटों को जागीरी प्रधान की नीमवाला का काकड़ सिंह मौर बड़ा वीर था इसके साथ राजा महिपाल ने अपनी छोटी पुत्री का विवाह किया साथ ही 1090 ईस्वी (1148विक्रमी) को सोनीपत के पास बड़ौदा के आसपास की जागीरी दी आज इस ग्राम के संस्थापक काकड़ सिंह के वंशज इसी ग्राम में निवास करते है इस ग्राम के रामफल जी मौर बड़े प्रसिद्ध समाजसेवी है मोर खाप का बड़ौदा मौर चबूतरा में ही है।

कोटा कंसुआ के मोर शासक

कोटा कंसुआ के मोर शासक चित्तौड़ के अधीन एक सामंत मात्र थे।राजस्थान में आठवीं सदी में मौर राजाओं का राज्य कोटा की प्राचीन भूमि पर था। इण्डियन ऐण्टीक्वेरा जिल्द 19, पृ० 55-57 पर एक मौर्य राजा धवल के द्वारा कोटा की प्राचीन भूमि पर शासन करना प्रमाणित होता है। इस धवल राजा का नाम 738 ईस्वी का एक शिलालेख प्राप्त होता है। यह शिलालेख कोटा के कण्वाश्रय (कणसवा) के शिवालय में प्राप्त हुआ है।

सिंध के मौर जाट शासक

सिन्ध प्रान्त पर भी चित्तौड़गढ़ से गए मौर्य-मौर जाटों का राज्य स्थापित हुआ। इनकी उपाधि ‘राय’ थी। जिनकी राजधानी अलौर थी इन राजाओं का सिन्ध पर शासन सन् 185 ई० पू० से सन् 632 ई० तक लगभग 80 0 वर्ष रहा। सिन्ध पर राय उपाधि का प्रथम शासक राय देवायज था जिसका परिचय सिन्ध गजेटियर में मौर्य नाम पर मिलता है। इसका समय मगध पर से मौर्य साम्राज्य के पतन के दिनों का माना जाता है। इसका पुत्र राय महरसन और उसका पुत्र साहसी राय , उसके बाद महरसनराय द्वितीय ने राज्य को बहुत बढ़ाया। महरसनराय द्वितीय ईरान के राजा नीमरोज से भी युद्ध किया किन्तु गले में तीर लग जाने से वीरगति पाई। इसके पुत्र साहसीराय द्वितीय ने अपने राज्य की सीमाओं की रक्षा और वृद्धि की ओर बड़ा ध्यान दिया। इस सम्राट् का राज्य पश्चिम में समुद्र के देवल बन्दरगाह तथा मकरान तक, दक्षिण में सूरत बन्दरगाह तक, उत्तर में कंधार, सीस्तान, सुलेमान, फरदान और केकानन के पहाड़ों तक और पूर्व में कन्नौज राज्य की सीमा और कश्मीर तक विस्तृत था।

एक समय शालायज नामक ब्राह्मण का पुत्र चच ड्योढीदार ‘राम’ से आकर मिला। उसने चच को मन्त्री ‘राम’ के यहां नौकर रखवा दिया। एक बार राजा साहसीराय बीमार हुआ तो उसने मन्त्री को इस वास्ते महल में ही बुलाया कि देश-विदेश से आई हुई चिट्टियों को सुना दे। मन्त्री ने अपने मुंशी चच को भेज दिया। राजा उस चच की विद्वत्ता को देखकर प्रसन्न हुआ और उसे ड्योढीवान बना दिया। चच बे-रोकटोक रानी के जनाने महल में जाता था। राजा साहसीराय की रानी सुहानन्दी की नीयत में फर्क आ गया। दोनों ने मिलकर धोखे से राजा की हत्या कर दी जब यह समाचार चित्तौडग़ढ़ पंहुचा तो यहां का शासक माहेश्वर मौर था उसने अपने भाई राजा साहसीराय की हत्या के बदला लेने के लिए 632 ईस्वी में हमला कर दिया जिसका वर्णन चचनामा में भी है इस हमले में राजा साहसीराय की रानी ने धोखे से माहेश्वर मौर का वध करवा दिया जिस के बाद चित्तोड़ की गद्दी पर भीमराज राजा बना उसके बाद भोज और अंतिम शासक मान मोर बना चित्तोड़ से 713 ई० में खुदवाया हुआ एक शिलालेख प्राप्त हुआ जिसमें माहेश्वर भीम, भोज और मान का चित्तौड़ पर राज्य करना प्रमाणित होता है।

विजयनगर (बिजनौर) के मौर जाट शासक

चित्तोड से राज्य समाप्ति के बाद मान मौरी का बड़ा लड़का खूब्बे सिंह मौर अपनी सुसराल दिल्ली के तोमर जाट राजाओ के पास चला गया उन्होंने हस्तिनापुर की जागीरी उस को दे दी मझले लड़का कछोर सिंह ने कचोरा बसाया जो आज आगरा जिले में है खूब्बे सिंह बड़ा वीर था हस्तिनापुर से गंगा नदी पार करके भारशिव (जाटवंश) शासक से विजयनगर गढ़ पर युद्ध किया। चार दिन के घोर युद्ध के बाद वहां के भारशिवों को जीत लिया।परन्तु युद्ध में खुब्बे सिंह की मृत्यु हो गयी खोबे मौर्यों के बड़े पुत्र वैन मौर्य को विजयनगर का राजा बनाया गया। परन्तु बुखारे गांव के कलालों द्वारा राजा वैन तथा उसके परिवार को विषैली शराब पिलाकर धोखे से मार डाला। इस परिवार की केवल एक गर्भवती स्त्री बची जो कि अपने पिता के घर गई हुई थी। वहां पर ही उसने एक लड़के को जन्मा। इस खोबे वंश का पुरोहित पं० रामदेव भट्ट इस लड़के को लेकर अकबर के पास पहुंचा। स्वयं मुसलमान बनकर अकबर से अपने यजमान राजा वैन के एकमात्र वंशधर एकोराव राणा को विजयनगर दिलाने की अपील की। इस लड़के के जवान होने पर पं० रामदेव भट्ट और एकोराव राणा ने मुगल सेना सहित मुखारा के कलाल और विजयनगर के भरों को विदुरकुटी के समीप परास्त कर दिया। इस विध्वस्त विजयनगर से पृथक् नगर विजयनगर बसाया जो कि आज बिजनौर नाम से प्रसिद्ध है। इसे ब्रिटिश सरकार ने बाद में जिला बना दिया। इस में राजा नैन सिंह मयूर प्रसिद्ध राजा हुए

मौर/मयूर /मौर्य/मोरी जाटों का विस्तार

मध्यप्रदेश में

मध्यप्रदेश में यह लोग चित्तौड़गढ़ से लगते हुए क्षेत्र में भारी संख्या में निवास करते है।

  • नीमच में 20 से ज्यादा ग्रामो में मौर /मौर्य जाट निवास करते है

बागपिपल्या ,धोकलखेड़ा ,हरनावड़ा ,खोर विक्रम ,कुण्डला ,नानपुरिया, हरवाड,मोरवन

  • चितावर मौर शाखा के ग्राम

अघोरिया ,असपुरा ,केसरपुरा नयागांव जवाड मुख्य ग्राम है

  • धार में--- तलवाड़ा
  • रतलाम में -बजली
  • श्योपुर जिले में श्योपुर के निकट एक गाँव

राजस्थान में

यहां सिर्फ मुख्य ग्रामो के नाम दिए गए जबकि ग्रामो की संख्या इस से ज्यादा है जिन में मौर जाट रहते है

  • चित्तौड़गढ़ और प्रतापगढ़ जिले में मौर जाट 14 से ज्यादा ग्रामो में निवास करते है इनमे से देवखेड़ा ,जमलावड़ा ,सुबि ,गोमला ,जलौदिया
  • टोंक जिले में बगड़ी,मोरो की ढाणी,मोर ला समेत कुल 7 ग्राम है
  • जयपुर जिले में धमाणा
  • हनुमानगढ़ में मोरो का बास संगरिया
  • कोटा जिले में गणेशखेड़ा
  • नागौर जिले में डांगियावास में मोरिया लिखते हैं।
  • भीलवाड़ा जिले में मोरिया खेड़ा

हरियाणा में

हरियाणा में मोर/मौर्य खाप आज तक अस्तित्व में है जिसमे 59 ग्राम आते है जबकि मोर जाट 80 से ज्यादा ग्रामो में निवास करते है मोर खाप का बड़ौदा मौर चबूतरा में ही है इस ग्राम के प्रधान रामफल जी मौर बड़े प्रसिद्ध समाजसेवी है

  • सोनीपत जिले में ---बड़ौदा मोर ,खानपुर खुर्द ,गुढ़ा ,लडसोली मल्चा ,सफीयाबाद .
  • रोहतक जिले में -बखेता
  • जींद जिले मे--- जजवान ,लुदाना ,राम काली ,सिंधवी खेड़ा,छत्तर ,लोचब ,करसिंधु ,संगतपुरा ,कुचराना ,पहलवान ,झील ,दनौदा कलां ,नरवाना ,दबलान ,इस्माइलपुर ,उझाना ,गुरथली ,सीमला ,बीबीपुर ,मंडी सुरताखेड़ा बड़सीकरी
  • कैथल जिले में --कैलाराम ,चांदना चौक ,नीमवाला ,स्योंसर ,गढ़ी लंगड़ी
  • कुरुक्षेत्र जिले में ---कोटरा माजरा
  • करनाल जिले में --धनो खेड़ी ,मठी ,कुचलाना रामभका
  • यमुनानगर जिले में --पंजूपुर
  • अम्बाला जिले में--- दाऊ माज़रा ,लेहन्डी
  • हिसार जिले में --मदनहेड़ी ,मुजादपुर .बास
  • झज्जर जिले में --रेढुवास ,निवाड़ा ,बिगोवा
  • रेवाड़ी जिले में --बालावास
  • मेवात जिले में --अमदबास ,राजोली ,मोहमदपुर ,

उत्तरप्रदेश में

उत्तरप्रदेश में मौर्य मोरी मयूर जाटों के ग्राम

  • बिजनौर जिले में 27 ग्राम --, पूरनपुर, तिमरपुर, आदमपुर बांकपुर, पमड़ावली, गन्दासपुर,घुमडोटी कबाड़ीवाला,शादीपुर खुर्द ,शादीपुर कलां आदि गांव अच्छी सम्पन्न स्थिति में हैं। इनका मोहल्ला भी चौधरियान ही है।
  • आगरा जिले में ---कुचेरा ,ऊंदरा
  • अलीगढ जिले में 2 ग्राम है


पंजाब में

पंजाब में राय मौर /मोड़ के 45 से ज्यादा ग्राम है

सिंध से राज्य ख़त्म होने पर यह लोग पंजाब की तरफ भी विस्थापित हुए यहां इन्होने सोही और दूसरे जाटवंश से अपने पराक्रम से छोटी छोटी जागीरी कायम की वर्तमान में पटियाला के मोखला और मौरान मोगा जिले के नौआबाद ,भटिंडा में मौर चतरसिंह ,मौर ग्राम साथी गुरदासपुर के मौर गाँव मुक्तसर के मौर गाँव जालंदर के थला ,होशियारपुर जिले मोरानवाली गाँव समेत 45 ग्रामो में यह निवास करते है


गुजरात मे

गुजरात मे मोर गोत्र के जाट (आंजणा चौधरी गुजराती जाट समाज) मेहसाणा जिले के खरोल और अरावली जिले के खींचा गाँव मे निवास करता है।

आधार पुस्तकें

  • मध्यकालीन भारत का संक्षिप्त इतिहास, पृ० 15, लेखक ईश्वरीप्रसाद;
  • जाटों का उत्कर्ष पृ० 369, लेखक योगेन्द्रपाल शास्त्री;
  • भारत का इतिहास (प्री०-यूनिवर्सिटी कक्षा के लिए), पृ० 172-173,
  • लेखक अविनाशचन्द्र अरोड़ा;
  • जाट्स दी ऐन्शन्ट रूलर्ज, पृ० 263 लेखक बी० एस० दहिया।
  1. Ram Sarup Joon: History of the Jats/Chapter II, p. 31.

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