Jaton Ki Kahaniyan

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The Jat's gift - a folktale from Haryana

A Jat had grown a huge watermelon in his garden. It was the biggest watermelon anybody had ever seen and the Jat was very proud of it.

One day the king of the country who was touring the country in disguise, arrived there and was fascinated by the watermelon.

"Will you give it to me?" he asked the Jat.
"No," said the man.
"Will you sell it to me?" asked the ruler.
"No," said the Jat.
"Then what are you going to do with it?" asked the king.
"I plan to take it to the palace and give it to the king," he said.
"I see," said the king. "But suppose he refuses to accept it?"
"Then he can go to the devil!" snorted the Jat.

A few days later the Jat came to the palace with the watermelon.

He at once recognised the king but gave no sign that he had done so.

"I've brought you a melon, Your Majesty," he said, humbly.
"It's a marvel," said the king. "But suppose I refuse to accept it?"
"Then,sire," said the Jat, timidly,"you already know my answer!!"

The above story is available on this web-page also - http://www.dimdima.com/khazana/stories/showstory.asp?q_catid=18&q_title=The+Jat%27s+Present

हूं रे हूं

अेक जाडी गवाड़ी रो धणी चालतो रह्‌यौ तो उणरी घरवाळी केई दिनां तांई रोवती नीं ढबी। न्यात अर कड़ूंबा रा जाट भेळा होय उणनै समझावण लागा। तद वा रोवती-रोवती ई कैवण लागी- धणी रै लारै मरणा सूं तो रीवी। आ दाझ तो जीवूंला जित्तै बुझैला नीं। अबै रोवणो तो इण बात रो है कै लारै घर में कोई मोट्यार कोनीं। म्हारी आ छह सौ बीघा जमीं कुण जोतैला, बोवैला? हाथ में गेडी अर खांधै पटू़डो लियां अेक जाट पाखती ई ऊभो हो। वो जोर सूं बोल्यो- हूं रे हूं। पछै वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै तीन सौ गायां री छांग अर पांच सौ लरड़ियां रो ऐवड़ है। उणरो धणी-धोरी कुण व्हैला?

वो सागी ई जाट वळै कह्यो- हूं रे हूं।

वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै च्यार पचावा*, तीन ढूंगरियां* अर पांच बाड़ा है, वां री सार-संभाळ कुण करैला?

वो जाट तो किणी दूजा नै बोलण रो मौको ई नीं दियो। तुरंत बोल्यो- हूं रे हूं। जाटणी तो रोवती नीं ढबी। डुस्कियां भरती-भरती बोली- म्हारो धणी बीस हजार रो माथै लेहणो छोड़नै गियो, उणनै कुण चुकावैला?

अबकी वो जाट कीं नीं बोल्यो। पण थोड़ी ताळ तांईं किणी दूजा नै इणरो हूंकारो नीं भरतां देख्यो तो जोस खाय कह्यो- भला मिनखां, इत्ती बातां रा म्हैं अेकलो हूंकारा भरिया। थैं इत्ता जणा ऊभा हो, इण अेक बात रो तो कोई हूंकारो भरो। यूं पाछा-पाछा कांईं सिरको!

(विजयदांन देथा री बातां री फुलवाड़ी सूं साभार।)

आगै नै सरकियो

गांव में एक लुगाई बुहारी निकाळ रैयी थी। चौक में उण रो धणी बैठ्यो थो। बा बुहारी काडती-काडती उणरै कनै आई तो बोली, 'परै सी सरकियो।'

आदमी उठकै पौळी में आगो। लुगाई भी बुहारी काडती-काडती पौळी में आगी और धणी नै बोली, 'आगै नै सरकियो दिखां।'

आदमी बारलै चौक में आगो। थोड़ी ताळ पछै बठै भी आगै सरकणै की बात कैयी। बो उठकै घरां रै बारणै दरूजै पर आगो अर चबूतरै पर बैठगो। लुगाई बुहारती-बुहारती घरां कै बारै आई तो पति नै बोली, 'सरकियो दिखां।'

आदमी आखतो होय'र मुंबई चल्यो गयो। बठै सूं चिट्ठी लिखी- 'अब भी तेरै अड़ूं हूं कै और आगै सरकूं? आगै समंदर है, देख लिए।'

जाट और राजपूत

एक बार एक जाट और एक राजपूत में बहस हुई. राजपूत बोल्यो कै म्हे बड़ा हाँ अर जाट बोल्यो म्हे बड़ा.

राजपूत बोल्यो - म्हे हां 'ठाकर'

जाट बोल्यो - म्हे हां 'चौधरी'

राजपूत - म्हे हां 'छत्री' (क्षत्रिय)

जाट - म्हे हां 'तंबू'

राजपूत - 'तंबू' कांई हुवे है?

जाट - छतरी को फूफो !!

सुथरी सी लुगाई

शिवजी ने जब जाट बनाया तो उसे सब कुछ दिया - तेज़ दिमाग़, लंबा चौड़ा शरीर, लेकिन ज़ुबान ना दी, तो पार्वती बोली "प्रभु आपने कितना सुथरा आदमी बनाया है ये जाट. इसे भी ज़ुबान दे दो ताकि यह भी बोल सके"शिवजी ने कहा "ना पार्वती यह बिना ज़ुबान के ही ठीक है लेकिन पार्वती ना मानी शिवजी के पैर पकड़ लिए पार्वती की ज़िद के चलते शिवजी ने जाट को ज़ुबान दे दी.ज़ुबान मिलते ही जाट बोला शिवजी ने जब जाट बनाया तो उसे सब कुछ दिया - तेज़ दिमाग़, लंबा चौड़ा शरीर, लेकिन ज़ुबान ना दी, तो पार्वती बोली "प्रभु आपने कितना सुथरा आदमी बनाया है ये जाट. इसे भी ज़ुबान दे दो ताकि यह भी बोल सके"शिवजी ने कहा "ना पार्वती यह बिना ज़ुबान के ही ठीक है लेकिन पार्वती ना मानी शिवजी के पैर पकड़ लिए पार्वती की ज़िद के चलते शिवजी ने जाट को ज़ुबान दे दी.ज़ुबान मिलते ही जाट बोला "अरे मोड, आ सोहणी सी लुगाई कठै स्यूँ मार ल्यायो"

जाट रे जाट तेरे सर पर खाट

एक बार, एक नाई और एक जाट में बहस हो गयी। बतों-बातों में नाई ने कह दिया, जाट रे जाट तेरे सर पर खाट। जाट को इसका कोई उत्तर नहीं सूझा। वह चुप-चाप घर आ गया। रात भर वह सोचता रहा पर ऐसी कोई तुकबंदी उससे नहीं बन पायी। दूसरे दिन फिर दोनों का आमना-सामना हुआ। नाई जाट को देख व्यंग पूर्वक मुस्कुराने लगा तो जाट को ताव आ गया। उसने नाई से कहा, नाई रे नाई तेरे सर पर कोल्हू। नाई बोला, तुक नहीं मिला, तुक नहीं मिला। जाट ने जवाब दिया, तुक नहीं मिला तो क्या हुआ, खाट से भारी तो है।

जाट का घोड़ा चोरी गया

एक बंदूकधारी जाट घोड़े पर सवार हो कर अपनी यात्रा के दौरान एक जगह चाय पीने के लिये रुका।

उसने अपना घोड़ा चाय के होटल के पास एक पेड़ से बांध दिया और अंदर चाय पीने चला गया।

जब वह लौटा तो पाया कि उसका घोड़ा जगह पर नहीं है। किसी ने उसे चुरा लिया था। जाट ने बंदूक से एक हवाई फायर दागा और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगा - "जिसने भी मेरा घोड़ा चुराया है वो सुन ले! मैं एक चाय और पीने अंदर जा रहा हूं। इस बीच अगर मेरा घोड़ा वापस जगह पर नहीं मिला तो याद रखना ..। इस जगह का वही हाल करूंगा जो घोड़ा चोरी होने पर मैंने जयपुर में किया था!"

चाय पीकर जाट जब लौटा तो उसका घोड़ा अपनी जगह पर वापस बंधा था।

वह उस पर सवार होकर चलने लगा। तभी होटलवाले ने आवाज देकर उसे रोका - "चौधरी साहब, जरा वो किस्सा तो सुनाते जाओ । जयपुर में आखिर आपने क्या किया था ?"

जाट :- "करना क्या था! वहां से पैदल ही चला आया था !!"

कार्तिक माह में नगर बसेरे की कहानी

किसी गाँव में एक भाट व एक जाट रहता था, दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी. एक बार जाट अपनी बहन के घर जाने को तैयार हुआ तो भाट अपनी ससुराल जाने को तैयार हुआ. दोनो साथ चल पड़े तो रास्ते में रुककर एक कुएँ की मुँडेर पर बैठ गए. जाट ने भाट से कहा कि नगर बसेरा कर लेते हैं. इस पर भाट बोला कि तू ही नगर बसेरा कर ले, मैं तो अपनी ससुराल जा रहा हूँ. वहाँ खूब खातिर होगी मेरी, तू कर ले नगर बसेरा. जाट वहीं कुएँ के पास बैठ पानी की घंटी और चावल का दाना लेकर नगर बसेरा करने लगा.

नगर बसेरा करने के साथ जाट कहने लगा कि –

नगर बसेरा जो करे, सो मल धोवे पाँव,
ताता मांड़ा तापसी देगी मेरी माँ.
माँ देगी मावसी, देगी द्वारका का वास,
मीठा-मीठा गास वृंदावन का वास,
पाँच कुल्ठी छटी रास.
मेरा जिबड़ो श्रीकृष्ण के पास,
डालूँ पानी हो जाए घी,
झट से निकल जाए मेरा जी.

यह सब कर करा के वह जाट बहन के पास चल पड़ा. जाट की बहन ने भाई के आने पर उसकी खातिर की. घी बूरा के साथ भाई को जिमाया. दोनों ने बैठकर ढेर सारी बातें की.

इधर भाट अपने ससुराल पहुंचा तो वहां आग लगी हुई थी. आग बुझाने वह भी लग गया जिसमें हाथ-मुँह भी काले हो गए और खुद भी थोड़ा झुलस गया. ना रोटी ना पानी के लिए ही किसी ने पूछा. एक पड़ोसन आई तो उसने भाट की सास को कहा कि जमाई आया है, जरा उसकी आवभगत कर लो. बुढ़िया बोली कि सब कुछ तो जल गया है अब कहाँ से आवभगत करूँ! तब पड़ोसन ने ही भाट को एक रोटी के साथ छाछ दी. उसने वही खाकर गुजारा किया.

शाम को दोनों फिर घर की ओर चल पड़े और रास्ते में मिल गए और एक-दूसरे का हाल पूछा. भाट बोला कि मेरी ससुराल में तो आग लगी हुई थी. आग बुझाते मैं खुद काला हो गया हूँ, ना रोटी मिली ना पानी. जाट बोला कि मेरी तो बहुत खातिर हुई. फिर बोला कि मैने कहा था ना कि नगर बसेरा कर ले. आ, अब कर ले। लेकिन भाट ने फिर मना कर दिया. कहने लगा कि तेरी मावसी है पता नहीं रोटी दे या ना दे. तेरी तो माँ है, दही की छुंछली, चूरमा का पेड़ा धरा पाएगा. भाट ने फिर नगर बसेरा नहीं किया, जाट ने कर लिया. नगर बसेरा जो करे, सो मल धोवे पाँव, ताता मांड़ा तापसी देगी मेरी माँ. माँ देगी मावसी, देगी द्वारका का वास, मीठा-मीठा गास वृंदावन का वास, पाँच कुल्ठी छटी रास. मेरा जिबड़ो श्रीकृष्ण के पास, डालूँ पानी हो जाए घी, झट से निकल जाए मेरा जी, कर के वह चल पड़ा.

घर पहुंचते ही जाट की मावसी ने बहुत लाड-प्यार किया. उधर भाट घर गया तो उसकी भैंस खो गई थी. बाप एक लाठी रखे तो दूसरी उठाए और कहने लगा कि ससुरा गया तो आग लगा दी, अब यहाँ आया तो भैंस खो दी. बाप ने कहा कि पहले भैंस लेकर आ तभी रोटी-पानी मिलेगा. सारा दिन भाट भैंस ढूंढता रहा लेकिन उसे भैंस नहीं मिली. जाट और भाट की मुलाकात फिर से बाजार में हो गई. जाट ने भाट के हालचाल पूछे तो भाट बोला कि आते ही भैंस खो गई. बस उसी दिन से भैंस ढूंढ रहा हूँ. रोटियों का तो पूछो ही मत. जाट ने कहा कि मैने तो पहले ही कहा था कि नगर बसेरा कर ले.

जाट की बात सुनकर भाट बोला कि तेरे नगर बसेरे में इतनी ताकत है तो चल अब कर लेते हैं. दोनों ने बैठकर नगर बसेरा किया. नगर बसेरा जो करे, सो मल धोवे पाँव, ताता मांड़ा तापसी देगी मेरी माँ. माँ देगी मावसी, देगी द्वारका का वास, मीठा-मीठा गास वृंदावन का वास, पाँच कुल्ठी छटी रास. मेरा जिबड़ो श्रीकृष्ण के पास, डालूँ पानी हो जाए घी, झट से निकल जाए मेरा जी. दोनों के नगर बसेरा करने पर भाट जैसे ही आगे बढ़ा तो उसकी खोई भैंस मिल गई जिसे लेकर घर पहुंचा. घर पहुंचते ही माँ ने कहा कि लड़के को आते ही घर से निकाल दिया. सारे दिन से ये भूखा प्यासा भटक रहा है. यह कहकर उसकी माँ ने उसको खूब खिलाया-पिलाया.

इस घटना के बाद सारे नगर में ढिंढोरा पिटवाया गया कि कार्तिक में सब कोई अपने पीहर या सासरे आते-जाते नगर बसेरा करें. जैसे भाट को नगर बसेरा करने का फल मिला, वैसा ही हर किसी को मिले.

लिछमा गुजरी का भात

यहाँ पढ़ें - Lichhama Gujari Ka Bhat

अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा जाट खुदा जैसा

यहाँ पढ़ें - Anpadh Jat Padha Jaisa Padha Jat Khuda Jaisa

जाट गंगा नहाने हरिद्वार गया

एक बार एक जाट गंगा नहाने हरिद्वार गया। वहाँ स्नान करने के बाद वह मज़े में रेती पर टहल रहा था। अचानक एक पंडा लपक कर उसके पास आया और बोला- “अरे जजमान तू कैसा भगत है? बिना दान-दक्षिणा किए स्नान कर लिया?” जाट को ग़ुस्सा तो बहुत आया पर धर्म का मामला क्या बोलता! लेकिन वह पाँड़े पंडा से बोला- “तू कैसा पंडत है? न चंदन न पानी, पहले चंदन तो लगा!” पाँड़े जी ने गंगा जी की रेती उठा कर उस जाट के माथे पर लगाई, और बोला- “गंगा जी का घाट है अवसर पुण्य महान। गंगा जी की रेणुका तू चंदन कर के मान।।” पाँड़े जी ने कहा, जजमान अब गोदान कराओ। जाट भी कम चतुर नहीं था। उसने इधर-उधर देखा और एक मेंढकी उठा कर पाँड़े जी के हाथ पर रख दी और बोला- “गंगा जी का घाट है अवसर पुण्य महान। गंगा जी की मेंढकी तू गऊ कर के मान।।” (कन्हैया लाल मिश्र “प्रभाकर” की पुस्तक ‘ज़िंदगी लहलहाई’ से)

संदर्भ शंभूनाथ शुक्ल का फेसबुक पेज-5.6.2021

See also

  • Jat re Jat जाट रे जाट - राजस्थानी जाट कथाएं :by Rajendra Kedia :लेखक - राजेन्द्र केडिया प्रकाशक - वृन्दा प्रकाशन, 16, नूरमल लोहिया लेन, कोलकाता-700007 ISBN 978-81-903894-1-9
  • Jat Ji Aur Popji - महर्षि दयानन्द के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में वर्णित प्रसिद्ध किस्सा



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