जाट का मैं लाडला
जाट का मैं लाडला तिरखा लगी सरीर
- अगन लगी बुझती नईं, बिना पिए जल-नीर
- बिना पिए जल-नीर,--रस्ते में कुयाँ चुनाया
- किस पापी ने यै जुल्म कमाया, उस पै डोल ना पाया!
भावार्थ
- मैं जाट पिता का लाड़ला पुत्र हूँ, मुझे प्यास लगी है । मेरे मन में जो आग लगी है वह बिना पानी पिए नहीं बुझेगी । हालाँकि रास्ते में पक्का कुआँ बना हुआ है लेकिन न जाने किस पापी ने यह ज़ुल्म किया है कि उस पर डोल नहीं रखा है ।
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