तीज : हरयाणा का मुख्य त्यौहार
. श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया (तीज) को हरयाणा में झूळों (पींघ) का त्यौहार मनाया जाता है जिसे 'तीज' के नाम से जाना जाता है । वैसे 'तीज' एक लाल रंग का प्यारा सा कीट होता है जो मिट्टी में रहता है और बरसात के दिनों में तीज त्यौहार के समय ही दिखाई पड़ता है । इस त्यौहार से शुरुआत होती है बहुत से त्यौहारों की जो कि देवोत्थान एकादशी ("देवठणी ग्यास) तक चलते हैं । इसीलिए कहावत बनी है -
आई होऴी भर ले-गी झोऴी
आई तीज बिखेर-गी बीज
तीज के मौके पर लड़कियों द्वारा गाया जाने वाला एक लोकगीत इस प्रकार है:
झूलण जांगी हे मां मेरी बाग मैं री ...
आये रही कोए संग-सहेली चार ...
झूलण जांगी हे मां मेरी बाग मैं री ...
कोए 15 की मां मेरी, कोए 20 की री ...
आये रही कोए संग-सहेली चार ... झूलण
कोए गोरी हे मां कोए सांवऴी ...
आये रही कोए ...
तीजां का त्योहार रितु सामण की ...
खडी झूल पै मटकै छोरी बामण की ...
क्यों तूं ऊंची पिंग चढावै ...
क्यों पड कै नाड तुडावै ...
या लरज-लरज करै डाह्ऴी जामण की ...
तीजां का .....
और अब एक रागनी के बोल (तीज के मौके पर) :
हां.... चौगरदे तै बाग हरया ... घनघोर घटा सामण की ...
होर छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
चौगरदे तै बाग हरया ... घनघोर घटा सामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
मार चौखडी ... हुं ... मार चौखडी ...
चढी पींघ पै ... लत्ते-चाऴ सजा कै ...
दो छोरियां ने लसकर पकड्या ...इधर-उधर तै आकै ...
न्यून घुमाई-न्यून घुमाई ...मारी पींघ बधा कै ...
सासू जी का नाक तोड ल्याई ... लाम्बा हाथ लफ्फा कै ...
झौटा फिरग्या ... खिली बत्तीसी, झौटा फिरग्या ... खिली बत्तीसी ...
कहै बीर सामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
चौगरदे तै बाग हरया ... घनघोर घटा सामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
तेज हवा मैं पल्ला उड्ग्या ... होस रहया ना गाती का ...
झटका लाग्या ... नाथ टूटगी .. ग़या लिकड पेच पाती का ...
कोडी होके ठावण लागी ... हार झुक्या छाती का ...
उह्का बोलण नै जी कर रहया था ... मुह पाटया ना सरमाती का ...
पल्ला ठा मुह पूछण लागी ... होएए ...पल्ला ठा मुह पूछण लागी
गई कली दीख दामण की ....
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
चौगरदे तै बाग हरया ... घनघोर घटा सामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
ऊची एडियां के बूट पहर रही ... कडी तोडिये भारी ...
हरे रंग का कमीज पहर रही ... काऴी-पीऴी धारी ...
चम्पाकली हवेल झालरा ... टिक्की तक भी ला रही ...
52 गज का घूम-घाघरा ऊठी कलियां न्यारी-न्यारी ...
दरजी के न छांट करी सै ..दरजी के न छांट करी सै ..
भाई मगजी और लामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
चौगरदे तै बाग हरया ... घनघोर घटा सामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
जिब आवे सामण का महीना ... गोरी रंग नै छाटैं ...
किसे की गोरी किसे की छोरी .. सबके सत्ते छाटैं ...
किसे की कोथऴी किसे का सींधारा ... भर भर बुगटे बांटै ...
20 साल तै नीचै-नीचै ... खुरियां धरती काटैं ..
बेरा ना कित तीज मनैगी .. बेरा ना कित तीज मनैगी ..
उस लखमीचंद बामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
चौगरदे तै बाग हरया ... घनघोर घटा सामण की ...
छोरी गावें गीत सुरीले ... झूल घली सामण की ...
External Links: http://www.teejfestival.org/
Dndeswal 11:53, 2 August 2007 (EDT)
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