तोमरधार

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ग्वालियर राज्य में तोमरधार में चम्बल नदी के किनारे रूहर तथा वरबाई नाम के दो गांव प्रसिद्ध हैं । यहां के निवासी बहुत काल से अपने साहस और वीरता के कारण प्रसिद्ध हैं । शिक्षा की कमी ने वीरता को उद्दण्डता में बदल दिया है । भूपसिंह, तात्या, मानसिंह आदि प्रसिद्ध डाकू यहीं के निवासी थे । यहां के जमींदार राजा तक से नहीं डरते थे, इच्छा होती तो राज्य का भूमिकर दे देते, नहीं तो नहीं ।


प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी रामप्रसाद बिस्मिल के पूर्व वंशज भी इन्हीं गावों के निवासी थे । इन के दादा अमानसिंह, समानसिंह और नारायणसिंह तीनों सगे भाई थे और 'तोमर' गोत्र के राजपूत ठाकुर थे । वैसे कहा यही जाता है कि 'तोमर' गोत्र के जाट ही यहां बसे थे, जो बाद में 'राजपूत' कहलाये जाने लगे । बिस्मिल के सगे दादा नारायणसिंह कौटुम्बिक कलह और भाभी के असह्य दुर्व्यवहार से तंग आकर अपनी पत्नी और दोनों पुत्रों (मुरलीधर तथा कल्याणमल) सहित घर से निकल पड़े । उस समयु मुरलीधर की आयु 8 वर्ष और कल्याणमल की आयु 6 वर्ष थी । अनेक स्थानों पर भटकने के बाद वे शाहजहांपुर आकर बस गए और यहां इन्होंने अपना नाम 'नारायणलाल' बदल लिया तथा अपने आप को ब्राह्मण जाति का बतलाया । तभी से यह "गैया वाले पण्डित जी" कहलाये जाने लगे । मरते समय भी इन्होंने घर में गाय पालने का ही आदेश दिया था । उनके पौत्र रामप्रसाद 'बिस्मिल' अमर शहीद बने और देश के लिये अपने प्राण न्यौछावर कर दिये । पढ़िये उनकी आत्मकथा इस पेज पर - रामप्रसाद 'बिस्मिल' की आत्मकथा

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Dndeswal 12:43, 22 April 2008 (EDT)


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