धरती धोरां वाळी

From Jatland Wiki
Jump to navigation Jump to search

धरती धोरां वाळी - लेखक सालू राम

   मानसरोवर सूं उड़ हंसौ, मरुथळ मांही आयौ
   धोरां री धरती नै पंछी, देख-देख चकरायौ
   धूळ उड़ै अर लूंवा बाजै, आ धरती अणजाणी
   वन-विरछां री बात न पूछौ, ना पिवण नै पाणी
   दूर नीम री डाळी माथै, मोर निजर में आयौ,
   हंसौ उड़कर गयौ मोर नै, मन रौ भेद बतायौ
   अरे बावळा, अठै पड़्यौ क्यूं, बिरथा जलम गमावै
   मानसरोवर चाल’र भाया, क्यूं ना सुख सरसावै
   मोती-वरणौ निरमळ पाणी, अर विरछां री छाया
   रोम-रोम नै तिरपत करसी, वनदेवी री माया
   साची थारी बात सुरंगी, सुण सरसावै काया
   जलम-भोम सगळा नै सुगणी, प्यारी लागै भाया
   मरुधर रौ रस ना जाणै थूं, मानसरोवर वासी
   ऊंडै पाणी रौ गुण न्यारौ, भोळा वचन-विलासी
   दूजी डाळी बैठ्यौ विखधर, निजर हंस रै आयौ
   सांप-सांप करतौ उड़ चाल्यौ, अंबर में घबरायौ
   मोर उतावळ करी सांप पर, करड़ी चूंच चलाई
   विखधर री सगळी काया नै, टुकड़ा कर गटकाई
   अब हंस नै ठाह पड़ी आ, मोरां सूं मतवाळी
   मानसरोवर सूं हद ऊंची, धरती धोरां वाळी

Back to राजस्थानी लोकगीत / Rajasthani Folk Lore