हरेराम बैंसला की रागनी
किस्सा अजीत राजबाला
तेरी नाजुक नरम कलाई श
तेरी नाजुक नरम कलाई श क्यूकर बन्दूक उट्ठावेगी।
मै राइफल ठा रंग रूट बनू तेरी हूर मरद कह्लावेगी ॥
पहलम तै तेरे नैन कटीले चोरी चुगली खावेंगे ।
कडवे त्योंर लखाऊ मै माणस देख मन्ने डर ज्यवेंगे ।
मरद सामने देख तेरे री यो नैना खुद शर्मावेंगे ।
नीची नाड़ झुका लुंगी जिब्ब मरद सामने आवेंगे ।
अरी जागी भूल चलानी गोली खड़ी हो नैन लड़ावेगी ।
मेरा निशाना ठीक रह्वे ना गोली ख़ाली जावेगी ।
तेरी नाजुक नरम कलाई श क्यूकर बन्दूक उट्ठावेगी।
मै राइफल ठा रंग रूट बनू तेरी हूर मरद कह्लावेगी ॥
एक नहीं छुपाए तै री छुप सकदा कोयल बरगा बोल तेरा ।
रौबीली बोली बोलूगी मत ना करो मखोल मेरा ।
मानस के कान्या नै री भा ज्या मिश्री जैसा घोल तेरा ।
सोच समझ कै बात करुँगी कोण्या पाटे तोल मेरा ।
तेरी जात बीर की डर ज्यागी कित्त गोली बीर च्लावेगी ।
वर्दी के नीचै कोटी पिस्तोल नजर ना आवैगी ।
तेरी नाजुक नरम कलाई श क्यूकर बन्दूक उट्ठावेगी।
मै राइफल ठा रंग रूट बनू तेरी हूर मरद कह्लावेगी ॥
हेरी चाल हंसनी की तेरी माणस के दिल मै खट्कैगी ।
फिकर करै मत नार तेरी पायाँ नै ठा ठा पटकेगी ।
तेरे ढुंगे ऊपर काली चोटी नागन की ज्यूँ लटकेगी ।
चोटी खोल धरु साजन ना राह हमारी अट्केगी ।
हेरी पतली कमर लरज ज्यागी तू खड़ी हो हूर लखावेगी ।
मौका लेगी जात हूर मामूली वजन टिकावेगी ।
तेरी नाजुक नरम कलाई श क्यूकर बन्दूक उट्ठावेगी।
मै राइफल ठा रंग रूट बनू तेरी हूर मरद कह्लावेगी ॥
तेरे अंग अंग तै रस टपकै कत्ती नाजुक नरम कलाई श ।
तेरी हूर नहीं ऐसी वैसी आखिर राजा की जायी श ।
हेरी तन का होश भूल ज्यागी जिब्ब करनी पड़े लड़ाई श ।
यो भी श छत्री का खून पिया छत्री की गैला ब्याही श ।
अरी लिख देगा हरेराम बैंसला मीठे स्वर मै गावेगी ।
मोती बरगे छंद पिरो दिए माला हूर बनावेगी ।
तेरी नाजुक नरम कलाई श क्यूकर बन्दूक उट्ठावेगी।
मै राइफल ठा रंग रूट बनू तेरी हूर मरद कह्लावेगी ॥
किस्सा - भीष्म परशुराम
जब भीष्म जी काशी नरेश के यहाँ से उसकी तीनो लड़कियों को स्वयंवर से उट्ठा लाते है और अपने छोटे भाई के साथ में उनकी शादी करवाने लगते है तो अम्बिका और अम्बालिका तो शादी कर लेते है मगर अम्बा कहती है की महाराज मै तो शालव नरेश से प्यार करती हूँ और भीष्म जी उसे इज्जत के साथ विदा करते है मगर शालव नरेश शादी से इंकार कर देता है तो अम्बा परशुराम जी के पास जाती है और परशुराम जी भीष्म जी के पास आते है और दोनों गुरु चेले के बीच क्या बातें होती है सुनिए इस रागनी में -
अरै ओ भीष्म तन्नै रै मेरी ताकत का बिलकुल ज्ञान रहया ना।
तेरी क्या औकात किसी का भी अभिमान रहया ना र्र भी अभिमान रहया ना ॥
अरै ओ भीष्म तन्ने मेरी ताकत का बिलकुल ज्ञान रहया ना ।
तेरी क्या औकात किसी का भी अभिमान रहया ना र्र भी अभिमान रहया ना ॥
अरै बात गुरु की ना मानै तन्ने पल मै बेरा पट ज्या ।
ना चेल्या का दोष रह जब गुरु सामने डट ज्या ।
अरै इब्ब बी बात मान मेरी अंख्या आगे तै हट ज्या ।
चंद्रवंशी छत्री हु मेरा धरम हते तै घाट ज्या ।
अरै पल मै कट ज्या शीश तेरा तन्ने इतना ध्यान रहया ना ।
दिके अभिमानी का साथ कभी देता भगवान रहया ना र्र देता भगवान रहया ना ॥1॥
अरै ओ भीष्म तन्ने मेरी ताकत का बिलकुल ज्ञान रहया ना ।
तेरी क्या औकात किसी का भी अभिमान रहया ना र्र भी अभिमान रहया ना ॥
अर ओ भीष्म देखिये परशुम के गुस्से का तमाम दुनिया नै बेरा है जब जब मैंने हाथों में ये फरसा ठाया है तब तब जमीन आसमान कांपने लगते है
अरै परशुराम के गुस्से का है सब दुनिया नै बेरा ।
दिके खुद महतारी मार दइ नु नाम लिकड़ गया तेरा ।
अरै छत्री जाम नहीं छोड्या मन्ने उज्जड कर दिया डेरा ।
तेरी सारी अकड़ लिकड़ ज्यागी जिब्ब करै सामना मेरा ।
अरै मेरी फरसे की टक्कर का कोई जग मै बाण रहया ना ।
अरै के जोहर की गिनती सागर का तूफ़ान रहया ना र्र का तूफ़ान रहया ना ॥2॥
अरै ओ भीष्म तन्ने मेरी ताकत का बिलकुल ज्ञान रहया ना ।
तेरी क्या औकात किसी का भी अभिमान रहया ना र्र भी अभिमान रहया ना ॥
अरै धरती अम्बर हाल गए जब मैंने फरसा ठाया ।
हेरै अन्धो मै दिके अन्धो मै काना राजा ना तन्ने सूझता पाया ।
इस पृथ्वी पी २१ बार छत्री का खोज मिटाया ।
ये भीष्म उस समय नहीं था तेरे आजा सामने आया ।
अरै तीन लोक मै कोई योद्धा र मेरे र्र सामान रहया ना ।
दिके अपनी करै बड़ाई जग मै कोई शैतान रहया ना र्र कोई शैतान रहया ना ॥3॥
अरै ओ भीष्म तन्ने मेरी ताकत का बिलकुल ज्ञान रहया ना ।
तेरी क्या औकात किसी का भी अभिमान रहया ना र्र भी अभिमान रहया ना ॥
अरै तेरे खून तै प्यास बुझेगी ये फरसा मेरा प्यासा ।
गीदड़ भबकी दिखा रहया ना मुझपे असर जरा सा ।
अरै देव दनुज और मनुष कांपते मेरा देख तमाशा ।
आज तेरे गल मै पड़ ज्या मेरे हाथ काल का फाँसा ।
अरै दूर कभी हरेराम बैंसले श्री हनुमान रहया ना ।
नाम अमर जग मै रह ज्या जिन्दा इंसान रहया ना र्र जिन्दा इंसान रहया ना ॥4॥
अरै ओ भीष्म तन्ने मेरी ताकत का बिलकुल ज्ञान रहया ना ।
तेरी क्या औकात किसी का भी अभिमान रहया ना र्र भी अभिमान रहया ना ॥
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