Agnimali

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Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Agnimali (अग्निमाली) was an ancient Sea mentioned in Shurparaka-Jataka. It is identified with Red Sea.

Origin

Variants

Agnimali (अग्निमाली) (AS, p.10)

History

अग्निमाली

विजयेन्द्र कुमार माथुर[1] ने लेख किया है ...अग्निमाली (AS, p.10) शूर्पारक-जातक में वर्णित एक सागर-'यथा अग्गीव सुरियो व समुद्दोपति दिस्सति, सुप्पारकं तं पुच्छाम समुद्दो कतमो अयंति। भरुकच्छापयातानं वणि-जानं धनेसिनं, नावाय विप्पनट्ठाय अग्गिमालीति वुच्चतीति।'

अर्थात् जिस तरह अग्नि या सूर्य दिखाई देता है वैसा ही यह समुद्र है; शूर्पारक, हम तुमसे पूछते हैं कि यह कौन-सा समुद्र है? भरुकच्छ से जहाज़ पर निकले हुए धनार्थी वणिकों को विदित हो कि यह अग्निमाली नामक समुद्र है।

इस प्रसंग के वर्णन से यह भी सूचित होता है कि उस समय के नाविकों के विचार में इस समुद्र से स्वर्ण की उत्पत्ति होती थी। अग्निमाली समुद्र कौन-सा था, यह कहना कठिन है। डॉ. मोतीचंद के अनुसार यह लालसागर या रेड सी का ही नाम है किंतु वास्तव में शूर्पारक-जातक का यह प्रसंग जिसमें क्षुरमाली, नलमाली, दधिमाली आदि अन्य समुद्रों के इसी प्रकार के वर्णन हैं, बहुत कुछ काल्पनिक तथा पूर्व-बुद्धकाल में देश-देशांतर घूमने वाले नाविकों की रोमांस-कथाओं पर आधारित प्रतीत होता है। भरुकच्छ या भडौंच से चल कर नाविक लोग चार मास तक समुद्र पर घूमने के पश्चात् इन समुद्रों तक पहुंचे थे। (दे. क्षुरमाली, बड़वामुख, दधिमाली, नलमाली, कुशमाल)

External links

References