Aloe
Author:Laxman Burdak, IFS (R) |
Aloe (ग्वारपाठा) is a genus containing over 650 species of flowering succulent plants. The most widely known species is Aloe vera, or "true aloe". It is called this because it is cultivated as the standard source for assorted pharmaceutical purposes. Other species, such as Aloe ferox, are also cultivated or harvested from the wild for similar applications.
Variants
- Aloe vera (ऐलोवेरा)
- Aloevera
- ग्वारपाठा
- alloeh (ऐलोह) (Arabic)
- घृतकुमारी (Sanskrit)
- वानस्पतिक नाम – सविला बरबाडेनसिस मिल्लर (Saliva Barbadensis Miller)
- कुवार-गंदल (पंजाबी)
Etymology
The genus name Aloe is derived from the Arabic word alloeh (ऐलोह), meaning "bitter and shiny substance" or from Hebrew אוהלים ahalim, plural of אוהל ahal.[1]
Distribution
The genus is native to tropical and southern Africa, Madagascar, Jordan, the Arabian Peninsula, and various islands in the Indian Ocean (Mauritius, Réunion, Comoros, etc.). A few species have also become naturalized in other regions (Mediterranean, India, Australia, North and South America, Hawaiian Islands, etc.).[2]
Description
Most Aloe species have a rosette of large, thick, fleshy leaves. Aloe flowers are tubular, frequently yellow, orange, pink, or red, and are borne, densely clustered and pendant, at the apex of simple or branched, leafless stems. Many species of Aloe appear to be stemless, with the rosette growing directly at ground level; other varieties may have a branched or unbranched stem from which the fleshy leaves spring. They vary in color from grey to bright-green and are sometimes striped or mottled. Some aloes native to South Africa are tree-like (arborescent).[3]
Uses
Aloe species are frequently cultivated as ornamental plants both in gardens and in pots. Many aloe species are highly decorative and are valued by collectors of succulents. Aloe vera is used both internally and externally on humans as folk or alternative medicine.[4] The Aloe species is known for its medicinal and cosmetic properties. Around 75% of Aloe species are used locally for medicinal uses.] The plants can also be made into types of special soaps or used in other skin care products.
Historical use of various aloe species is well documented. Documentation of the clinical effectiveness is available, although relatively limited.
Of the 500+ species, only a few were used traditionally as herbal medicines, Aloe vera again being the most commonly used species. Also included are A. perryi and A. ferox. The Ancient Greeks and Romans used Aloe vera to treat wounds. In the Middle Ages, the yellowish liquid found inside the leaves was favored as a purgative. Unprocessed aloe that contains aloin is generally used as a laxative, whereas processed juice does not usually contain significant aloin.[5]
According to Cancer Research UK, a potentially deadly product called T-UP is made of concentrated aloe, and promoted as a cancer cure. They say "there is currently no evidence that aloe products can help to prevent or treat cancer in humans".[6]
ग्वारपाठा
ग्वारपाठा को संस्कृत भाषा में घृतकुमारी नाम से जाना जाता है. इसे अलोवेरा/एलोवेरा या क्वारगंदल के नाम से भी जाना जाता है. यह एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है. इसकी उत्पत्ति संभवतः उत्तरी अफ्रीका में हुई है. यह प्रजाति विश्व के अन्य स्थानों पर स्वाभाविक रूप से नहीं पायी जाती पर इसके निकट संबंधी अलो उत्तरी अफ्रीका में पाये जाते हैं. इसे सभी सभ्यताओं ने एक औषधीय पौधे के रूप में मान्यता दी है और इस प्रजाति के पौधों का इस्तेमाल पहली शताब्दी ईसवी से औषधि के रूप में किया जा रहा है. इसका उल्लेख आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसके अतिरिक्त इसका उल्लेख नए करार (न्यू टेस्टामेंट) में किया है लेकिन, यह स्पष्ट नहीं है कि बाइबल में वर्णित अलो और अलो वेरा में कोई संबंध है।
घृत कुमारी के अर्क का प्रयोग बड़े स्तर पर सौंदर्य प्रसाधन और वैकल्पिक औषधि उद्योग जैसे चिरयौवनकारी (त्वचा को युवा रखने वाली क्रीम), आरोग्यी या सुखदायक के रूप में प्रयोग किया जाता है, लेकिन घृत कुमारी के औषधीय प्रयोजनों के प्रभावों की पुष्टि के लिये बहुत कम ही वैज्ञानिक साक्ष्य मौजूद है और अक्सर एक अध्ययन दूसरे अध्ययन की काट करता प्रतीत होता है. इस सबके बावजूद, कुछ प्रारंभिक सबूत है कि घृत कुमारी मधुमेह के इलाज में काफी उपयोगी हो सकता है साथ ही यह मानव रक्त में लिपिड का स्तर काफी घटा देता है. माना जाता है ये सकारात्मक प्रभाव इसमे उपस्थिति मन्नास, एंथ्राक्युईनोनेज़ और लिक्टिन जैसे यौगिकों के कारण होता है. इसके अलावा मानव कल्याण संस्थान के निदेशक और सेवानिवृत्त चिकित्सा अधिकारी डॉ॰गंगासिंह चौहान ने काजरी के रिटायर्ड वैज्ञानिक डॉ॰ए पी जैन के सहयोग से एलोविरा और मशरूम के कैप्सूल तैयार किए हैं, जो एड्स रोगियों के लिए बहुत लाभदायक हैं. यह रक्त शुद्धि भी करता है.
घृत कुमारी के सौन्दर्य वर्धक और उपचारात्मक प्रभावों के संबंध में वैज्ञानिक साक्ष्य बहुत सीमित है और आम तौर पर विरोधाभासी है. इसके बावजूद सौन्दर्य और वैकल्पिक दवा उद्योग इसके चिकित्सीय गुणों का निरंतर दावा करता है. घृत कुमारी का स्वाद बहुत ही कड़वा होता है तथापि इसके जैल का प्रयोग व्यावसायिक रूप में उपलब्ध दही, पेय पदार्थों और कुछ मिठाइयों में एक घटक के रूप में किया जाता है. माना जाता है कि घृत कुमारी के बीजों से जैव इंधन प्राप्त किया जा सकता है. भेड़ के कृत्रिम गर्भाधान में वीर्य को पतला करने के लिये घृत कुमारी का प्रयोग होता है. ताजा भोजन के संरक्षक के रूप में और छोटे खेतों में जल संरक्षण के उपयोग में भी आता है.
सौभाग्य से मीडिया, आयुर्वेदिक संस्थानों और उनसे जुड़े हुए लोगों के द्वारा आजकल आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का काफी प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. उनमें से एक बहुत ही महत्वपूर्ण सब जगह पाई जाने वाली जड़ी बूटी ग्वारपाठा है. आज हम ग्वारपाठा के बारे में घर में लगाने की विधि, इसके उपयोग और घर में इसका प्रयोग करने और स्वास्थ्य में सुधार की विधि बताएंगे. मैं इस पोस्ट में आपको बिना किसी बाहरी सहायता के ग्वारपाठा के लाभ लेने की विधि बताऊंगा.
ग्वारपाठा लगाने की विधि : ग्वारपाठा आप घर में ही बहुत आसानी से लगा सकते हैं. घर में यदि जमीन का छोटा टुकड़ा हो तो उसमें लगा सकते हैं या दो- तीन गमले में लगाकर आपके साल भर की माँग पूर्ति कर सकते हैं. यह बहुत कम पानी माँगता है और पर्यावरण की हानिकारक गैसों को एबजोर्ब करके उपयोगी रसायनों में बदल कर आपके घर के पर्यावरण को शुद्ध कर देता है.
ग्वारपाठा के पोषक तत्व
ग्वारपाठा के पोषक तत्व : ग्वारपाठा या घृतकुमारी का वानस्पतिक नाम – सविला बरबाडेनसिस मिल्लर (Saliva Barbadensis Miller) पाश्चात्य भाषा में Aloevera (एलोवेरा) के नाम से जाना जाता है. ग्वारपाठा में रोग निवारण की अद्भुत क्षमता विद्यमान है. इसीलिए इसे परम रोग नाशक पौधा कहा जाता है. यह अनेक पोषक तत्वों से भरपूर होता है जिनमें 20 आवश्यक खनिज लवण, आवश्यक अमीनो एसिड तथा 11 द्वितीय श्रेणी के अमीनो एसिड शामिल हैं. ग्वारपाठा में विटामिन-ए, विटामिन बी-1, बी-5, बी-6, बी-12, विटामिन-सी एवं विटामिन-ई भी विद्यमान होते हैं. इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व की पूर्ण जानकारी नीचे के चित्रों में दी गई है जो मनोज कुमार लांबा की पुस्तक- ग्वारपाठा, 2011, पृ. 12, 13, 14 से ली गई है.
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मनोज कुमार लांबा - ग्वारपाठा, 2011, पृ. 12,
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मनोज कुमार लांबा - ग्वारपाठा, 2011, पृ. 13,
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मनोज कुमार लांबा - ग्वारपाठा, 2011, पृ. 14,
ग्वारपाठा के कुछ गुण
ग्वारपाठा के गुण - इस समय दवा और ब्यूटी उत्पादों के रूप में ऐलोवेरा का चलन बढ़ गया है, लेकिन यह औषधि और इसके अनोखे फायदे कहीं ज्यादा पुराने हैं. ऐलोवेरा कई तरह की स्वास्थ्य एवं सौंदर्य समस्याओं का अचूक उपाय है. औषधि की दुनिया में इसे संजीवनी भी कहा जाता है. इसकी तासीर गर्म होती हैं. यह खाने में बहुत पौष्टिक होता है. इसे त्वचा पर लगाना भी उतना ही लाभप्रद होता है. ग्वारपाठा के कुछ गुण इस प्रकार हैं:
1. ग्वारपाठा त्वचा में गहराई तक जाकर असर करता है. यह नए कोशों का निर्माण करता है तथा टूटे-फूटेकोशों की मरम्मत करता है. यह एंटीबायोटिक औषधि जैसा कार्य करता है. यह शक्तिवर्धक और सौंदर्य वर्धक होता है. पाचन संस्थान को दुरुस्त करता है. त्वचा में कोमलता और नमी प्रदान करता है. यह विष नाशक और पोषक होता है. ग्वारपाठा संधि प्रदाह (Arthritis), गठिया (Gout), विवर प्रदाह, दाद और मंडल आदि असाध्य रोगों को ठीक करने में सहायक है.
2. ग्वारपाठा ‘ऐसीमेनन टीलिंफोसाइट’ कोशिकाओं की वृद्धि कर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है. इसका सेवन शरीर में रोगाणु तथा वायरल संक्रमण से मुकाबला करने की शक्ति उत्पन्न करता है.
3. ग्वारपाठा में सूजनरोधी, प्रतिजीवाणु, फफूंदनाशक, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक एंटीबायोटिक, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीटॉक्सिक, एंटीएलर्जिक तथा एंटीयीस्ट और बी-12 के गुण पाए जाते हैं. इसमें शरीर को कीटाणु रहित करने के विशेष गुण हैं.
4. यह बवासीर, डायबिटीज, हृदय रोग, अस्थमा (दमा), मोटापा, रक्तचाप, गुर्दे का दर्द, आंतों की सूजन, पेट के घाव, सिरदर्द, अनिद्रा, गर्भाशय के रोग, पेट की खराबी, बदहजमी, कब्ज, मासिक धर्म की गड़बड़ी, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों का दर्द, अनिमिया, गंजापन, सिर में पपड़ियाँ जमना, दाँतों एवं मसूड़ों से खून आना, मूंह से बदबू आना, त्वचा की खराबी, मुंहासे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, झुर्रियों, चेहरे के दाग-धब्बों, आंखों के काले घेरों, फटी एड़ियों के लिए यह लाभप्रद है वहीं दूसरी तरफ यह खून की कमी को दूर करता है तथा शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
5. जलने पर, अंग कहीं से कटने पर, अंदरूनी चोटों पर एलोवेरा अपने एंटी बैक्टेरिया और एंटी फंगल गुण के कारण घाव को जल्दी भरता है. यह रक्त में शर्करा के स्तर को बनाए रखता है. इसका गूदा या जैल निकालकर बालों की जड़ों में लगाना चाहिए. बाल काले, घने-लंबे एवं मजबूत होंगे.
6. यह मच्छर से भी त्वचा की सुरक्षा करता है. आजकल सौंदर्य निखार के लिए हर्बल कॉस्मेटिक प्रोडक्ट के रूप में बाजार में एलोवेरा जैल, बॉडी लोशन, हेयर जैल, स्किन जैल, शैंपू, साबुन, फेशियल फोम, और ब्यूटी क्रीम में हेयर स्पा में ब्यूटी पार्लरों में धड़ल्ले से प्रयोग हो रहा है.
7. एलोवेरा जैल या ज्यूस मेहंदी में मिलाकर बालों में लगाने से बाल चमकदार व स्वस्थ होंगे. एलोवेरा के कण-कण में सुंदर एवं स्वस्थ रहने के कई-कई राज छुपे पड़े हैं. यह संपूर्ण शरीर का कायाकल्प करता है. बस, जरूरत है तो रोजमर्रा की व्यस्त जिंदगी से थोड़ा सा समय अपने लिए चुराकर इसे अपनाने का.
ग्वारपाठा के प्रयोग की विधि
ग्वारपाठे की कांटेदार पत्तियों को छीलकर एवं काटकर रस निकाला जाता है. ग्वारपाठा के पौधे से पत्ता काट कर पानी से साफ कर लें. पत्ते के दोनों तरफ किनारों पर कांटे होते हैं चाकू से इन कांटों को साफ कर लें. पत्ते के ऊपर हरी पतली छल को चाकू से छीलकर निकाल लें. इसके अंदर आपको गुद्दा (Pulp) दिखाई देगा. इस गुद्दे को चम्मच से एक किनारे से लेकर दूसरे किनारे तक आइसक्रीम की तरह खुरच कर निकाल लें. इसको बर्तन में भर लें. इस ग्वारपाठे के रस को बिना पानी मिलाएं मिक्सी में फेंट लें और चलनी से छान लें. इस ग्वारपाठे के जूस से कई चीजें बनाई जा सकती हैं.
यदि आप ग्वारपाठे के जूस को नहीं पी सकते तो इससे खाने की कई चीजें बनाई जा सकती हैं. ग्वारपाठे के जूस से, थोड़ा सा मोयन डालकर, आटा गूंद लें. इस आटे से आप घी में तलकर मठरी (खुरमे या सकरपारा) बना सकते हैं. इसके लिए टेस्ट के अनुसार आप आटे में नमक, अजवाइन या अन्य मसाले भी डाल सकते हैं. यह मठरी हम को सबसे ज्यादा पसंद है. इसको आप चाय के साथ ले सकते हैं या इससे नाश्ता कर सकते हैं और यह कई दिन तक चल सकती है. इस ग्वारपाठा के रस से गुंदे हुये आटे से रोटी भी बनाई जा सकती हैं, परांठे बनाए जा सकते हैं अथवा इस आटे को घी में सेक कर मठरी या लड्डू भी बना सकते हैं.
इस रस को आप पानी में मिलाकर जूस की तरह पी सकते हैं.
कई लोग ग्वारपाठा की सब्जी भी बनाते हैं.
ग्वारपाठे के लड्डू बनाने कि विधि – आटे में थोडा मोयन (घी) (1 किलो में 200 ग्राम घी) डालकर उस को ग्वारपाठा के रस के साथ आटे को गोंद लें. इसमें पानी बिलकुल नहीं मिलाएं. अब कढाई में घी को अच्छी तरह से गरम करलें. ग्वारपाठा के रस साथ गोंदे हुए आटे को मुठी भर लेकर हाथ में दबालें और उसको गर्म घी में डाल कर तल लें. जब मठरी अच्छी तरह सिक जाए तो परात या थाली में दाल लें. थोडा ठंडा होने के बाद में इन मठरीयों को फोड़ लें. इसको मिक्सी में चूरन के रूप में बनालें. अब कढाई में बचे हुए घी में हलवे की तरह आटा भुन्ज लो. इस आटे में आधा किलो में 200 ग्राम पिसा हुआ गोंद डाल कर धीमी आंच में चमचे से हिलाते रहो. जब गोंद फूल जावे तो नारियल का बूरा, पिसाहुआ काजू, इलायची पावडर डाल दो. इस को ग्वारपाठे के रस के साथ बनाए गए बारीक़ चूरमे के साथ मिलाकर टेस्ट के अनुसार मीठा बुरा डाल लो. इसको अच्छी तरह से मिलाकर थोडा गर्म-गर्म में ही लड्डू बनालो. ये लड्डू जब ठंडे हो जावें तब किसी बर्तन में रख लें. शर्दी के मौसम में एक महीने तक ये लड्डू चल जाते हैं.
Source - Facebook Post of Laxman Burdak, 01.08.2020
External links
References
- ↑ Harper, Douglas (2021). "Aloe". Online Etymology Dictionary
- ↑ "Aloe". Plants of the World Online. Royal Botanic Gardens, Kew. 2022
- ↑ Rodd, Tony; Stackhouse, Jennifer (2008). Trees: a Visual Guide. Berkeley: University of California Press. p. 131. ISBN 9780520256507.
- ↑ Woźniak, Anna; Paduch, Roman (2012-02-01). "Aloe vera extract activity on human corneal cells". Pharmaceutical Biology. 50 (2): 147–154. doi:10.3109/13880209.2011.579980. ISSN 1388-0209. PMID 22338121. S2CID 40123094.
- ↑ "Aloe Vera Juice - How to Make it and its Side Effects".
- ↑ "Aloe". Cancer Research UK. Archived from the original on 6 August 2014.
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