Antri Gwalior
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Antri (आंतरी) is a village and site of Jat Fort in Gwalior Tahsil and District in Madhya Pradesh.
Location
It is located at crossing of Bhageh-Dhirol Road at Railway Line.
It is situated about 30 km south of Gwalior and west of Bilaua.
History
राणा भीमसिंह का ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य (1754)
मराठो का ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण - जब मराठा सेनाये 1754 में कुम्हेर दुर्ग का घेरा उठाकर दक्षिण की ओर लौट रही थी, तब उनके एक सेनानायक विठ्ठल शिवदेव विंचुरकर ने ग्वालियर में अपना सैन्य पड़ाव डाला. विंचुरकर ने ग्वालियर दुर्ग पर घेरा डाल दिया और आक्रमण कर दिया.(Ojha, p.64) किलेदार किश्वर अली खां के नेतृत्व में मुग़ल बादशाह की और से नियुक्त राजपूत सैनिक एक माह तक मराठों का सामना करते रहे.[1] मुग़ल साम्राज्य में उस समय षड्यंत्रों का दौर चल रहा था. जिसकी वजह से दिल्ली दरबार ग्वालियर दुर्ग पर मराठों का सामना करने के लिए सेना नहीं भेज सका. किलेदार किश्वर अली ने दुर्ग पर नियुक्त उच्च अधिकारियों से विमर्श किया. किश्वर अली खां के वकील किशनदास ने सलाह दी कि 'दक्षिण के लुटेरों के सामने आत्म समर्पण करने के बजाय गोपाचलगढ़ गोहद के राणा भीम सिंह को सौंपना उचित होगा'.[2] (Ojha, p.65)
किलेदार किश्वर अली खां ने वकील की सलाह के अनुसार गोहद के राणा भीम सिंह को पत्र भेजकर ग्वालियर दुर्ग राणा भीमसिंह को सौंपने के निर्णय से अवगत कराया. [3] (Ojha, p.65)
जाट सेना का ग्वालियर दुर्ग में प्रवेश - किलेदार किश्वर अली खां की अधिकृत सूचना पर राणा भीम सिंह ने मराठों को ग्वालियर से खदेड़ने तथा ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य करने के लिए जाट सेना फ़तेहसिंह के नेतृत्व में 1000 बन्दूक सैनिक ग्वालियर दुर्ग पर भेज दिए. जिन्हें कबूतरखाने के रास्ते से दुर्ग में प्रवेश करा दिया गया. [4] जाट सेनापति फ़तेह सिंह ने मराठा सेना का सामना करने के लिए मोर्चा लगाया. [5] (Ojha, p.65)
जाट मराठा युद्ध 1754 - मराठा सरदार विट्ठल शिवदेव विचुंरकर बहादुरपुर गांव के निकट मोर्चा लगाये थे. राणा भीमसिंह अपने साथ 5000 पैदल, 1000 घुडसवार, 1000 बंदूकों वाले सैनिक की विशाल सेना लेकर युद्ध के मैदान में पहुंचे. ग्वालियर, नरवर आदि राज्यों के अमीर, सामंत, जमींदार तथा सरदार इकट्ठे होकर मराठों का सामना करने के लिये राणा भीमसिंह के पक्ष में पहुंचे.[6](Ojha, p.66)
राणा भीमसिंह ने गिरगांव के निकट अपना मोर्चा लगाया. जाट सेना तथा मराठा सेना मे घमासान युद्ध हुआ. जाट सेना के सामने मराठा सेना ठहर न सकी. मराठों के बहुत से सैनिक मारे गये तथा घायल हो गये. मराठा सेना बुरी तरह परास्त हुई. राणा भीमसिंह ने विट्ठल शिवदेव विचुंरकर के मोर्चे को बुरी तरह ध्वस्त कर दिया. [7] विट्ठल शिवदेव विचुंरकर अपनी सेना लेकर ग्वालियर से 20 मील दूर स्थित आंतरी भाग गया.[8] कुछ मराठा सैनिकों को भीम सिंह की सेना ने कैद कर लिया. [9](Ojha, p.66)
राणा भीमसिंह का ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य (1754) - राणा भीमसिंह ने मराठों को बुरी तरह पराजित कर ग्वालियर दुर्ग पर आधिपत्य कर लिया. उसने दुर्ग की सुरक्षा की नये सिरे से व्यवस्था की. किले पर रह रहे उन लोगों को हटा दिया, जिन्हें युद्ध कला का कोई ज्ञान नहीं था. बादशह की ओर से नियुक्त राजपूत दुर्ग रक्षकों को भी हटा दिया, जब्कि किलेदार किश्वर अली खां को उसके पद पर बना रहने दिया. [10](Ojha, p.66)
मराठा रघुनाथ राव का ग्वलियर दुर्ग पर आक्रमण -1755 -
अग्ले वर्ष 1755 मे जब मराठा सेनापति दादा रघुनाथ राव अपने दिल्ली अभियान से दक्षिण की ओर सेना सहित वापस लौट रहा था, तब ग्वालियर दुर्ग पर पुन: घेरा डाला गया. जाट सेना ने भी दुर्ग पर मोर्चा लगाया. दोनों पक्षों मे लगभग एक माह तक युद्ध चलता रहा, लेकिन किसी पक्ष को कोई विशेष नुकसान नहीं हुआ. [11](Ojha, p.67)
Notable persons
External links
References
- ↑ Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.101,132
- ↑ Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.132
- ↑ Harihar Niwas Dwivedi, Dilli Ke Tomar, p.38
- ↑ Harihar Niwas Dwivedi, Gopachal Akhyan, p.132
- ↑ Nathan Kavi, Sujas Prabandh, p.40
- ↑ Anand Rao Bhau Falke, Shindeshahi Itihas-sanchi sadhanen Part-3,p.213
- ↑ Anand Rao Bhau Falke, Shindeshahi Itihas-sanchi sadhanen Part-3,p.213
- ↑ Harihar Niwas Dwivedi, Gopachal Akhyan, p.132
- ↑ V.G. Khobrekar, Maratha Kalkhand, p.237
- ↑ Harihar Niwas Dwivedi, Gopachal Akhyan, p.132
- ↑ Harihar Niwas Dwivedi, Gopachal Akhyan, p.132
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