Ashvatirtha

From Jatland Wiki
Author:Laxman Burdak, IFS (R)

Ashvatirtha (अश्वतीर्थ) is a pilgrim mentioned in Mahabharata.

Origin

Variants

Mention by Panini

Ashva (अश्व) is mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [1]


Ashva Nadi (अश्व-नदी) is a River mentioned by Panini in Ashtadhyayi. [2]

History

अश्वतीर्थ

विजयेन्द्र कुमार माथुर[3] ने लेख किया है ...अश्वतीर्थ (AS, p.50) प्राचीन भारतवर्ष में कान्यकुब्ज देश में कन्नौज के निकट गंगा-कालिन्दी संगम पर स्थित एक तीर्थ स्थान था। अश्वतीर्थ का वर्णन महाभारत, वन पर्व के तीर्थपर्व के अंतर्गत है- 'तत्रदेवान् पितृन विप्रांस्तर्पयित्वा पुन: पुन:, कन्यातीर्थेऽश्वतीर्थे च गवां तीर्थे च भारत। (वन पर्व महाभारत 95, 3)

यह स्थान कान्यकुब्ज या कन्नौज, उत्तर प्रदेश के निकट गंगा-कालिंदी संगम पर स्थित था। कान्यकुब्ज को इस उल्लेख में कन्या तीर्थ कहा गया है। यहाँ गाधि का तपोवन था। स्कंद पुराण नगरखण्ड 165,37 के अनुसार ऋचीक मुनि को वरुण ने एक सहस्र अश्व दिए थे, जिनको लेकर उन्होंने गाधि की पुत्री सत्यवती से विवाह किया था। इसी कारण इसे अश्वतीर्थ कहा जाता था- 'तत: प्रभृति विख्यातमश्वतीर्थं धरातले, गंगातीरे शुभे पुण्ये कान्यकुब्जसमीपगम्'।

महाभारत, अनुशासन पर्व अनुशासन पर्व, 4,17 में भी इसी कथा के प्रसंग में यह उल्लेख है- 'अदूरे कान्यकुब्जस्य गंगायास्तीरमुत्तमम्, अश्वतीर्थं तदद्यापि मानवै: परिक्ष्यते'।

बाद में कान्यकुब्ज का ही एक नाम 'अश्वतीर्थ' पड़ गया था। वास्तव में यह दोनों स्थान सन्निकट रहे होंगे।

In Mahabharata

Ashwatirtha (अश्वतीर्थ) is mentioned in Mahabharata (XIII.4.17).

Anusasana Parva/Book XIII Chapter 4 mentions ancestry of Viswamitra, a Kshatriya whose sons became progenitors of many races of Brahmanas and founders of many clans. Ashwatirtha (अश्वतीर्थ) is mentioned in Mahabharata (XIII.4.17) [4].... Not far from Kanyakubja, the sacred bank of Ganga is still famous among men as Aswatirtha in consequence of the appearance of those horses at that place.

External links

References

  1. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.154, 184, 219
  2. V. S. Agrawala: India as Known to Panini, 1953, p.60
  3. Aitihasik Sthanavali by Vijayendra Kumar Mathur, p.50
  4. अदूरे कन्यकुब्जस्य गङ्गायास तीरम उत्तमम, अश्वतीर्थं तद अद्यापि मानवाः परिचक्षते (XIII.4.17)